एक बार की बात है एक लड़की थी. जिसका नाम कुहू था. बचपन से ही कुहू बेहद सुशील, संस्कारी, समझदार और होशियार लड़की थी. वह एक छोटे से गांव में रहती थी. गांवों की हालत हम सब से छुपी नहीं है! हम सभी गांव की परंपरा और हालातों से वाकिफ है. कुहू बहुत ही चंचल बच्ची थी. वह बहुत ही समझदार थी. उसे बचपन से ही पढ़ने लिखने का जुनून सवार था. छोटी सी कुहू के मन में और आंखों में बहुत बड़े-बड़े सपने बचपन से ही थे. वह जब भी पढ़ते हुए किसी बच्चे को देखती उसका भी पढ़ने का बहुत मन करता था. बड़ी होकर मैं भी स्कूल जाऊंगी यह कहकर हर रोज अपनी मां से लड़ा करती थी. खेलने से ज्यादा उसका मन किताबों की तरफ रहता था. जैसे जैसे वह बड़ी हुई, उसने अपनी मां से कहा! मां अब तो मैं बड़ी हो गई हूं मुझे स्कूल भेजो मां ने भी उसकी बात को मान लिया. और स्कूल में उसका दाखिला करवा दिया. अब वह रोज स्कूल जाने लगी. और स्कूल में खूब लगन और मन लगाकर पढ़ाई करने लगी. उसकी स्कूल के सारे विद्यार्थियों से वह हमेशा आगे आती. उसके स्कूल के आचार्य और प्रधानाचार्य उसकी खूब तारीफ करते थे. और इसी तरह वह पढ़ लिख कर हर परीक्षा में अव्वल आने लगी. उसकी पढ़ाई लिखाई को लेकर सभी उसकी चर्चा करने लगे. कुछ लोग उसे खूब अच्छा बताते और शाबाशी देते, तो वहीं कुछ लोग उसे पढ़ लिख कर क्या कर लेगी संभालनी तो रसोई ही है ऐसा ताना मारते थे. पर इन सबके बीच भी कुहू ने अपनी पढ़ाई को और अपने सपनों को नहीं छोड़ा. एक दिन जब उसे उसके सपनों को पाने का मौका मिला ही था कि उसके घर में उसकी शादी की बातें चलने लगी. सभी लोग घर में बहुत ही खुश थे. उसकी शादी की बातें करने लगे थे. बातें भी क्या वह तो तैयारियां शुरू करने लगे थे और सपने सजाने लगे थे, शादी में यह वह करेंगे ऐसे करेंगे उसकी चर्चा करने लगे थे. एक तरफ कुहू थी जो बहुत हैरान थी साथ ही बहुत परेशान थी समझ नहीं पा रही थी कि क्या करें और क्या ना करें? एक तरफ परिवार की खुशियां थी और दूसरी तरफ उसके सपने. फिर एक दिन जब वह लड़का कुहू से मिलने उसके घर आया, और कुहू से मिला और उससे पूछा क्या तुम खुश हो ना इस रिश्ते से? कुहू खामोश रही! तो उन्होंने फिर से पूछा अगर तुम्हारे मन में कोई सवाल है तो मुझसे पूछ सकती हो. सुनते ही कुहू ने कहां मैं पढ़ना चाहती हूं. तब उस लड़के ने कुहू से कहा यह तो बेहद अच्छी बात है. मैं तुम्हारे सपनों तो पूरा करूंगा यह सुनकर कुहू भी बहुत खुश हुई और खुशी खुशी शादी के लिए हां कर दी अब जब वह अपने ससुराल गई, तब उसने पूरे घर को अच्छे से संभालने लगी, वह घर के सारे हिसाब किताब देखने लगी. जीन कामों के लिए अक्सर कुहू की सास को लोगों की मदद लेनी पड़ती थी वही सारे काम अब उनकी बहू कर लिया करती थी. और जब जब उसके पति को कारोबार में जरूरत पड़ती तो कुहू उनका हाथ बँटा दिया करती थी, इतना ही नहीं वह अपने बच्चों को भी होशियारी और संस्कारी बनाने मैं सक्षम बन पाई. एक बार जब उसके पति को कारोबार में बहुत घाटा हुआ तब उसने कदम से कदम मिलाकर उसका साथ दिया और हालातों से लड़कर दोनों ने फिर से नया कारोबार शुरू किया. और कुहूके पढ़े लिखे होने का फायदा कई लोगों को हुआ. फिर कुहू ने अपने ससुराल में स्कूल खोला जहां वह गरीब असहाय बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने लगी और उसकी इस छोटी सी कोशिश से गांव की कई ही बच्चों को शिक्षा जैसा धन प्राप्त हुआ और कई लोगों ने अपने सपने साकार किए.
इस तरह से कुहू ने शिक्षा का उपयोग करके अपने, अपने परिवार, बच्चों, पति और साथ ही साथ समाज का भी उद्धार किया सबकी मदद की. समाज में अपनी एक पहचान बनाई एक पड़ी लिखी होकर भी उसने एक बेटी, पत्नी, बहू और मां के सारे फर्ज निभाते हुए अपनी एक पहचान बनाई ऑल लोगों के लिए काम आई. अपने साथ-साथ जिंदगी को सहारा देकर उन्हें खुशियां दी.
इसलिए जरूरी है बेटियों का पढ़ना पढ़ी लिखी बहू वह को लाना.