Story of a girl my tongue - 3 in Hindi Fiction Stories by Trishala_त्रिशला books and stories PDF | एक लड़की की कहानी मेरी जुबानी - 3

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एक लड़की की कहानी मेरी जुबानी - 3

मुझे क्या पता था कि मैं एक ऐसे सच से अनजान था, जो मेरी जिंदगी हिला देने वाला था। भाई अब कभी भी ठीक नहीं होगे और जितना वक्त बिताता जाएगा भाई साहब की हालत और भी खराब होती जाएगी। इसी बीच अचानक पापा कि एक accident में मौत हो गई, वो हमें छोड़ कर चले गए, जिसने मम्मी को और तोड़ दिया। इसी के साथ मम्मी बहुत चिड़चिड़ा हो गई और इसी के साथ-साथ मम्मी हंसना भी भूल गई। जो घर रिश्तेदारों से भरा रहता था, अब हमारी हालत खराब होने के चलते सब दूर होते चले गए या फिर ये कहूँ कि कही मम्मी उन से मदद न माँग ले इस डर से भी वो दूर होने लगे। मैं भी बड़ी हो रही थी और मेरी ज़रूरतें भी बढ़ने लगी थीं। पापा के जाने के बाद मम्मी ने भाई को ठीक करने के लिए सब किया डॉक्टरो को दिखाया, जादू- टोन, हाकिम और ना ही जाने क्या-क्या। डॉक्टरो के ख़र्चों में धीरे-धीरे सर पैसा ख़त्म होता चल गया। हमें अपना घर बेचना पड़ और हम अपने हम हीं मामा के किरायदार बना गए। मम्मी ने किसी और पर निर्भर होने की जगह ख़ुद को मज़बूत किया और एक प्रेस की दुकान खोली, जहा मैं प्राइवेट स्कूल में पढ़ती अब सरकारी स्कूल में पढ़ने लगी थीं। मम्मी, भाई को अपने साथ कैसे ले के जाए ये बहुत बड़ी दिक़्क़त थी तभी सरकार की मदद से भाई के लिए एक गाड़ी मिली जो दिव्यंगाजन को मिलती थीं, इस ने मम्मी की थोड़ी मदद कर दीं। हमारा मकान चीथीं मंज़िल पर था मम्मी और मैं, भाई को सहारा देकर उतरते फिर उन्हें गाड़ी पर लेट या बैठा देतीं और मम्मी उसे चलकर दुकान जाती और मैं वही से स्कूल चली जाती थी। मम्मी मुझे कहती बेट अब मेरी इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं मुझे 12वीं से आगे पढ़ पाऊँ। तेरे समाने ही तेरे भाई की हालत हैं, मेरे बाद न जाने इसका क्या होगा। ये तो ख़ुद में कुछ कर भी नहीं कर सकता है, और अब तू भी बड़ी हो रही है। पता नहीं भगवान मेरी कौन-सी परीक्षा ले रहा है, जो अभी तक ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही है। रवि की हालत में भी कोई सुधार नहीं आ रहा है, ना जाने ये अब कभी सही होगा भी या नहीं अब तो धीरे-धीरे मेरी उम्मीद भी टूटतीं जा रही है। मुझे तो अब तेरी चिंता खाई जा रही है। तेरा रंग थोड़ा दब हुआ है, यहाँ लोग गुण नहीं शक्ल देखते है। ऊपर से हमारी हालत किसी से छुपी नहीं है, ऐसे में कोई साथ भी नहीं देने वाला है। मेरे पास तो तेरे ख़र्च उठने के लिए भी पैसे नहीं होते हैं। दुकान से जो कमाई होती है वो मकान के किराए में चली जाती हैं और बाक़ी राशन में चली जाती हैं। मुझे तो याद भी नहीं हैं कब मैंने तुझे नए कपड़े ख़रीद के दिए थे, मम्मी आप कुछ ज़्यादा ही सोच रही हो। आप ने मुझे वो सब दिया हैं, जो मेरे लिए ज़रूरी हैं और अगर मुझे कुछ चाहिए होगा तो मैं ख़ुद उसके लिए मेहनत करूँगी। वैसे भी मुझे स्कूल से जो scholarship मिलाती हैं उस से मेरा ख़र्च निकल जाता हैं, आप परेशान मत हो! मेरी प्यारी मम्मी, मेरे लिए इतना ही काफ़ी हैं कि आप और भाई, मेरे साथ हो। मेरी बच्ची तुझे क्या मालूम ये दुनिया बहुत बुरी हैं जो, "उगते सूरज को सलाम करती हैं और डूबते सूरज को प्रणाम करती हैं" इसलिए कहती हूँ, अपने पैरों पर खड़े हो जा वरन लोग तेरा मज़ाक़ बनांएगे, तेरा साथ देने कोई नहीं आएगा। यहाँ सब साथ तो चाहते हैं, मगर साथ देना नहीं चाहते। जब तक मैं हूँ तू अपने आप को खड़ा कर ले और किसी तरह के पागलपन में मत पड़ जाना समझी।
Teenage कुछ ऐसी ही होती हैं जब हम किसी कि तरफ़ attract होते हैं, किसी की बातें, किसी का look, तो किसी ा Smypethic behave उसकी तरफ़ खींचता हैं। मेरी life कुछ ऐसी थी, जहाँ मेरे दोस्त महज़ मेरी किताबें भर थी क्योंकि किसी और को वक़्त देना मेरे लिए मुनासीब नहीं था, मगर इसका मतलब ये नहीं था कि मुझे कोई पसंद नहीं था। मुझे भी कोई बहुत पसंद था लेकिन मेरी मजबूरी और मेरे हालात मुझे इस बात की इजाज़त नहीं देते या फिर सच कहूँ मैं ख़ुद भी इन सब में पड़ना नहीं चाहती थी। मेरी सहेली मुझे जब भी अपने crush की बात बताना चाह रही होती तो, मैं कुछ न कुछ बहना करके निकल जाती थी, वैसे वो मेरे इस behave को समझती थी; तो कुछ मुझे egoistic कहती थी। इसमें उन की कोई ग़लती नहीं थी, जिस तरह का मेरा behave था। ऐसा लगना लाज़िमी था। मैं अपनी class की book worm किताबी कीड़ा थी, जिसकी दुनिया किताबों में थी और इसे मानाने में मुझे कभी ग़लत भी नहीं लगता था। मैं सब से एक ही बात कहती कि "मेरी किताबें कम-से-कम किसी को चोट तो नहीं पहुँचती हैं, किसी को परेशान तो नहीं करती हैं"। ज़िंदगी किताबों के साथ बीत रही थी.............. कि.....