chaahat - 8 in Hindi Fiction Stories by sajal singh books and stories PDF | चाहत - 8

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चाहत - 8

पार्ट -8

शिव भैया की सगाई को दो दिन बीत चुके हैं। आज भाभी की गोदभराई की रस्म है। हमने फंक्शन बहुत छोटा रखा है। भाभी बड़ा फंक्शन नहीं चाहती थी। इसलिए सिर्फ शिव भैया की मम्मी ,दादी, नेहा ,प्राची और सुमन को बुलाया है। सास और माँ की सारी रस्में शिव भैया की मम्मी ने निबाही। हम दोस्तों ने मिलकर खूब मस्ती की। अब हम सब बैठकर गप्पे मार रहे हैं।

दादी जी -रिया बेटा ,अब तो कभी भी हॉस्पिटल जाना पड़ सकता है। नौओं महीना शुरू हो गया है।

भाभी-जी दादी ,इसलिए तो राघव ने अभी से छुटियाँ ले ली हैं।

नेहा -भाभी ,आपको बेटा चाईए या बेटी ?

भाभी -बेटा हो या बेटी कोई फर्क नहीं पड़ता बस स्वस्थ होना चाइये।

आंटी -सच कह रही है रिया। बस बेबी healthy हो।

मैं -भाभी ,काफी देर हो गयी है। आपको बैठे -बैठे। चलिए आप रूम में चलकर आराम कर लीजिये।

भाभी -ठीक है चीनू ,चलती हूँ।

जैसे ही भाभी उठ कर चलने लगती हैं वो ज़ोर से चिल्लाती हैं।

आंटी -क्या हुआ रिया ?

भाभी -आंटी ,लगता है मेरी पानी की थैली फट चुकी है। अब समय नहीं है हमारे पास।

दादी -चीनू ,राघव को जल्दी से बुला कर ला। अभी हॉस्पिटल जाना पड़ेगा।

(हम जल्दी से भाभी को हॉस्पिटल ले कर आये। दादी को घर पर ही सुमन और प्राची के साथ छोड़ आये। मैं ,आंटी ,भैया ,और नेहा हॉस्पिटल में भाभी के साथ मौजूद हैं। डॉक्टर भाभी को देख रही हैं। आंटी ने शिव भैया को भी फ़ोन करके बुला लिया है। )

डॉक्टर -(रूम से बाहर आते हुए ) हमे रिया की डिलीवरी अभी करवानी होगी।

राघव भैया -हाँ। डॉक्टर आप करवा लीजिये।

डॉक्टर -हमें ब्लड की जरूरत होगी। वो भी AB नेगेटिव जो की रेयर है।

भैया -(टेंशन में ) डॉक्टर ये ग्रुप तो मिलना मुश्किल है। मेरा और चीनू का तो मैच भी नहीं होता रिया के साथ।

नेहा -भैया ,मेरा भी नहीं मैच होगा। मैं बी पॉजिटिव हूँ।

आंटी -मेरा भी नहीं मैच हो रहा। अब क्या होगा।

मैं -भैया ,अब भाभी को खून कौन देगा।

(पीछे से आवाज़ आती है -मैं ) हमने मुड कर देखा तो शिव भैया सलिल के साथ खड़े हैं।

सलिल -मैं दूंगा डॉक्टर। मेरा ब्लड ग्रुप भी AB नेगेटिव है।

डॉक्टर -पर आप कैसे ?

सलिल -डॉक्टर ,मेरी कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं है। मैं पूरी तरह फिट हूँ।

डॉक्टर -ओके। चलिए मेरे साथ। (सलिल डॉक्टर के साथ चला गया। )

मैं -शिव भैया ,ये सलिल यहाँ पर कैसे ?

शिव भैया -मैं हॉस्पिटल के लिए आ ही रहा था की सलिल ने कहा की वो भी साथ चलेगा। क्या पता कब क्या जरूरत पड़ जाये ? और देखो जरूरत पड गयी।

राघव भैया -बड़ा नेक इंसान है सलिल।

मैं -(मन में सोच रही हूँ अगर आज सलिल नहीं होता तो ...............)

हम सब वेट करते हुए एक -दूसरे की तरफ देखें जा रहे हैं। तभी सलिल खून देकर बाहर आता है। सब उसे बैठने के लिए फ़ोर्स करते हैं तो वह बैठ जाता है। तभी बेबी के रोने की आवाज़ आती है। कुछ ही मिनटों में डॉक्टर बाहर आती है।

डॉक्टर -BADAHI हो ! बेटी हुई है। माँ और बच्ची दोनों स्वस्थ हैं। आप लोग उनसे मिल सकते हो। (ये कहकर डॉक्टर चली गयी। )

मैं ख़ुशी के मारे सब से गले मिल रही हूँ। पहले राघव भैया ,आंटी ,शिव भैया ,नेहा और अनजाने में लास्ट में सलिल के भी गले लग जाती हूँ और कहती हूँ -थैंक्स ! आप न होते तो पता नहीं हम ये ख़ुशी देख पाते या नहीं। इससे पहले वह कुछ कहता मैं उससे दूर हो गयी। अपने आसपास देखा तो सब भाभी के पास अंदर चले गए थे।

सलिल -अगर मुझे पता होता थोड़ा सा खून देने पर तुम मुझे गले लगा लोगी तो मैं कब का अपना सारा खून दे चूका होता।

मैं -आप को सब मज़ाक लगता है ?

सलिल -बिलकुल नहीं। वैसे BADAHI हो तुम बुआ बन गयी और मैं फूफा।

मैं -कुछ भी ....(यह कहकर मैं भाभी के पास आयी। भाभी ने बेबी को मुझे दिया। )

जैसे ही मैंने बेबी को गोद में लिया कितना सुखद अहसास था वो। शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। भाभी ने सलिल को मदद के लिए धन्यवाद किया तो सलिल ने कहा हम सब परिवार हैं। और एक -दूसरे के काम आना हमारा फर्ज है।

धीरे -धीरे वक़्त बीतता जा रहा था। भाभी हॉस्पिटल से घर आ गयी थी। बेबी अब दो महीने की हो गयी थी। बेबी के आने से घर खुशियों से भर गया था। दादी और आंटी तो हर वक़्त भाभी और बेबी का ख्याल रखती। उनके होते हुए हमे अहसास ही नहीं हुआ कि हमारे सर पर बड़ो का साया नहीं है। सभी दोस्त बेबी से मिलने आते थे। सलिल भी आता था। मुझसे बात करने की कोशिस जब भी करता मैं कोई न कोई बहाना बनाकर टाल जाती। अगले ही महीने हमारे फाइनल एग्जाम होने वाले थे। इसलिए थोड़ा पढाई का प्रेशर भी है। इसी संडे हमने बेबी का नामकरण फंक्शन रखा है। हमने सब दोस्तों को INVITE कर दिया है। सिर्फ प्राची को छोड़कर। भाभी चाहती हैं की मैं आंटी के साथ जाकर उन्हें निजी तौर पर invite करूँ क्यूंकि वो शिव भैया के ससुराल वाले हैं।

मैं और आंटी (शिव भैया की मम्मी ) प्राची के घर invite करने पहुंचे। प्राची ,दादाजी और आंटी ने हमारा ज़ोरदार स्वागत किया। प्राची और सलिल को देखकर कभी नहीं लगा कि वो इतने अमीर खानदान से हैं। आज मैं खुद उनका घर देख रही हूँ किसी महल से कम नहीं है उनका घर। फिर भी ये लोग इतने सिंपल। सच में सब अमीर लोग एक जैसे नहीं होते। तभी दादाजी ने प्राची से कहा -प्राची ,अपनी दोस्त को अपना घर तो दिखा।

प्राची -जी दादू ,(इसके बाद प्राची मुझे अपने साथ ले गयी। )

मैं पूरे घर को देखे जा रही थी। एक से बढ़कर एक सुविधा है प्राची के घर में। हर कमरा जितना बड़ा उतना ही व्यवस्तिथ। प्राची का रूम देखने में किसी होटल के रूम से कम नहीं था।

मैं -प्राची ,तेरा घर बहुत सुन्दर है।

प्राची -थैंक्स ! तूने अब तक मेरे घर का सबसे अच्छा रूम तो देखा ही नहीं है। चल दिखाती हूँ।

फिर प्राची ने एक रूम का दरवाज़ा खोला। मैं अंदर गयी तो देखा बेड के ऊपर सलिल की बड़ी सी तस्वीर है। मैं समझ गयी ये सलिल का कमरा है। कमरे के साथ अटैच बड़ा -सा वॉशरुम। कमरे के एक तरफ जिम का सामान है ,दूसरी तरफ ढेर सारी किताबें। मैं समझ गयी बंदा सच में पढ़ता था तभी तो टॉप किया था उसने। कमरे में से एक दरवाज़ा छत की ओर खुला है।

मैं -प्राची ,वहां क्या है ?

प्राची -देख ले।

मैंने वहां जाकर देखा तो विश्वामित्र साहब का अपना स्विमिंग पूल है। वैसे सच बताऊँ तो खुले आसमान के निचे पूल बड़ा अच्छा लग रहा है।

मैं प्राची से कुछ कहती इससे पहले उसने कहा-एक मिनट चाहत ,शिव का फ़ोन है। मैं अभी आयी। (ये कहकर वो बाहर निकल गयी। )

मैं भी सलिल के कमरे से बाहर आने ही लगी थी की मेरा दुपट्टा उसके बेड साइड drawer में उलझ गया। मैं अपना दुपट्टा निकाल रही थी कि drawer खुल गया। मुझे drawer में मेरी फोटो दिखी। मैंने तुरंत फ्रेम को उठाया। मैं पूरी तरह शॉक थी। यह तो मेरी उसी लहंगे में फोटो है जो मैंने शिव भैया की सगाई में पहना था। मैंने तुरंत फोटो को फ्रेम से निकालकर अपने पर्स में रख लिया। और रूम से बाहर आ गयी।

प्राची के यहाँ से आते वक़्त हमने दोबारा सब को आने के लिए कहा तो दादाजी ने हमें आश्वस्त किया कि वो जरूर आएंगे। अब हम अपने घर आ चुके थे। रात हो गयी है पर नींद नहीं आ रही है। पता नहीं क्यों ये सलिल हर बार कुछ ऐसा करता है कि ना चाहते हुए भी मुझे उसके बारे में सोचना पड़ता है। क्या वो मेरे बारे में सच में सीरियस है ? अब तक तो उसे फोटो के बारे में पता चल गया होगा ?

(तभी फ़ोन पर किसी का टेक्स्ट मैसेज आता है। ) किसी की चीज बगैर पूछे ले जाना गलत होता है ?

मैंने नंबर truecaller पे सर्च किया तो ये सलिल ही निकला। आज तक तो इसके पास मेरा नंबर नहीं था जरूर प्राची से लिया होगा। मैंने कोई रिप्लाई नहीं दिया और सोने की कोशिस की।

आज बेबी का नामकरण है। मैंने हलके पीले रंग का सूट पहना है। सब लोग आये हैं और बेबी के लिए ढेर सारे गिफ्ट लेकर आये हैं। सलिल भी अपने पूरे परिवार के साथ आया है। मैंने उसकी ओर देखा तो मेरी और इशारा कर रहा है सुन्दर लग रही हो मैंने अपना मुँह ही दूसरी तरफ कर लिया। सब लोग बेबी को आशीर्वाद दिए जा रहे हैं। पूजा संपन्न हो चुकी है। अब पंडित जी नाम रखने के लिए कहते हैं स अक्षर से।

भाभी -नाम तो बच्ची की बुआ ही रखेगी।

मैं -(बच्ची को अपनी गोद में लेकर नाम उसके कान में कहा )

नेहा -अब सबको बता भी दे ,क्या नाम रखा है तूने ?

मैं -सावी। मतलब सूर्य की तरह हमेशा मेरी भतीजी दमकती रहे।

भाभी -वाह चीनू ,नाम तो तूने बहुत अच्छा रखा है।

सब लोग नाम को नया और यूनिक बताते हैं। (पंडित जी दकिश्ना ले कर चले गए। अब बस हम ,शिव भैया की फॅमिली , सलिल की फॅमिली ,नेहा ,सुमन और अमन बचे हैं। हम सब बातें कर रहे हैं। )

भाभी -दादी जी ,मुझे कुछ कहना है। उम्मीद करती हूँ आप लोग मेरी बात समझोगे।

दादीजी -बेटी ,तुम निश्चिंत हो कर कहो। सब यहाँ अपने ही तो है।

भाभी -मेरी राघव के साथ शादी लगभग आठ साल पहले हुई थी। शादी के चार साल बाद तक तब मैं माँ नहीं बन पायी थी तो औरतें मुझे बाँझ कहने लग गयी थी। तब राघव और उसके परिवार ने मेरा साथ दिया था। नहीं तो मैं कैसे ये सब सह पाती। सबसे बढ़ कर तो चीनू ने मेरा साथ दिया था। मुझे और राघव को बच्चे की कमी महसूस न हो इसलिए चीनू ने कभी भी शादी ना करने का फैसला ले लिया था।

दादी (मेरी ओर देखते हुए )- मेरी लाडो !तूने इतना बड़ा त्याग किया अपनों के लिए।

राघव भैया -दादी ,ना सिर्फ गुड़िया ने अपना संकल्प निभाया बल्कि हमें वही प्यार और सम्मान दिया जो वो माँ -पापा को देती थी। हम बहुत खुसनसीब हैं कि गुड़िया हमारी ज़िन्दगी में है।

मैं -भैया -भाभी ,इन बातों का अब क्या मतलब है ? आप क्यों पुरानी बातें निकाल रहे हो।

भैया -हम किसी मतलब से ही बातें कर रहे हैं।

मैं -क्या चाहते है आप ?

भाभी - चीनू ,हम चाहते हैं कि अब तुम अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ो।

मैं -हाँ ,भाभी बढ़ तो रही हूँ। (हँसते हुए )थोड़े दिनों में 23 की हो जाउंगी।

भाभी -चीनू ,मैं तुम्हारी शादी की बात कर रही हूँ।

मैं -भाभी मुझे नहीं करनी शादी।

भाभी -चीनू ,तुम्हे पता है जब सावी नहीं हुई थी तो मैं हमेशा डरती थी कि तुम अपनी ज़िद्द में कभी शादी नहीं करोगी। और मैं अपने आप को तेरा दोषी समझती थी। पर अब हालात अलग हैं।

मैं -नहीं भाभी ,अब सावी हो गयी है तो क्या आप मुझे घर से निकाल दोगी।

भाभी (लगभग रोते हुए ) नहीं मेरी बच्ची। कभी ऐसा मत सोचना। सावी मेरी बच्ची बाद में है ,पहले तू मेरी औलाद है।

दादाजी -(मेरे सर पर हाथ रखते हुए ) बेटी ,ये तो दुनिया की रीत है। बेटी को एक दिन घर छोड़ कर जाना ही पड़ता है। अब देख ,तेरी दोस्त प्राची भी तो तुम्हारे घर आ रही है शिव से ब्याह करके।

दादीजी -चीनू ,भाई साहब ठीक कह रहे हैं। क्या तू अपने भाई -भाभी को कन्यादान का मौका नहीं दोगी ?

अंकल (शिव भैया के पापा )-ठीक है। अब हम चीनू के लिए अच्छा सा लड़का doondge.

मैंने बात को ना बढ़ाते हुए हाँ में सर हिला दिया। सब बहुत खुश थे मेरी हाँ से। पर मैंने हाँ सिर्फ सबका मन रखने के लिए बोल दिया था। इस संकल्प के सिवा और भी वजह थी मेरे पास शादी से दूर भागने की।