ओरा, कुण्डलिनी, नाड़ी
लेखांक १ में मेटाफिजिक्स और ोरा (Aura)के बारे में कुछ चर्चा हुई [ आगे बढ़ने से पहले इस लेखमाला में आगे क्या आने वाला है, इस के बारे में कुछ जानकारी लेते है [
'विज्ञानं की आँखों से, अध्यात्म के पंखो पर' शीर्षक के अंतर्गत गुजराती में Aura, कुंडलिनी, नाड़ी और ७ चक्रो के बारे में विस्मय, सृजन, अध्यात्म लिमिटेड १० और कुछ अन्य डिजिटल मैगज़ीन के माध्यम से यह लेखमाला करीबन ५ लाख से भी अधिक लोगों तक पहुंची है l 'चक्रसंहिता' नामक गुजराती पुस्तक (जो अभी प्रिंट में है) इन सब लेख और अन्य बहुत माहिती का समावेश किया गया है l हिंदी और इंग्लिश भाषांतर बाद में किया जायेगा l आने वाले हप्तो में हम ७ चक्रो और उसे कैसे संतुलित किया जा सकता है, उस के बारे में बहुत विस्तार से समझेंगे l आने वाले हप्तो में क्या माहिती हो सकती है, उस की झलक https://www.youtube.com/watch?v=HmFHcvPCQX0 पर मिल पायेगी l
'ओरा (Aura)' हमारे स्थूल शरीर के आसपास एक सुरक्षा कवच है| किसी भी प्रकार की बीमारी सर्वप्रथम ओरा पर आक्रमण करने की कोशिश करती है और 'ओरा' हमारे शरीर को उस में से बचाने की कोशिश करता है| जब 'ओरा' कमजोर होता है, तब यही बीमारी स्थूल शरीर पर घात करती है| इसी लिए ओरा अभ्यास के माध्यम से स्थूल शरीर पर आनेवाली बीमारी को उसके आने के काफी समय पहले ही जाना जा सकता है| और अगर हम ओरा को सशक्त बनाते है तो शरीर पर किसी भी बीमारी के आने की सम्भावना काफी हद तक कम हो सकती है एवं अगर कोई बीमारी आ भी गई है तो उसे दूर कि जा सकती है| एक अच्छा ओरा हमें काफी सारे जोखिम से सुरक्षित रखता है एवं अकस्मात् जैसी दुर्घटना से भी बचा लेता है|
'ओरा' सजीव या निर्जीव; व्यक्ति, स्थान या वस्तु का हो सकता है - घर, वाहन, करंसी नॉट एवं सिक्के, कुर्सी-टेबल या अन्य कोई भी वस्तु|! ऐसा क्यूँ? वजह : प्रत्येक वस्तु ऊर्जा से बनी हुई है| विज्ञान ने यह प्रस्थापित किया है कि कोई भी पदार्थ घन(Solid) नहीं है, विभाजित करने पर उसमे से प्राप्त होता है: एटम, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन इत्यादि| बहुत ही सरल भाषा मे समझने की कोशिश करे तो यह ऊर्जा ही Electromagnetic Waves है|
ओरा तस्वीर जिस की मदद से ली जा सकती है वह किर्लियन कैमेरा का आविष्कार रशियन वैज्ञानिक डॉ. किर्लियन ने वर्ष ) ) 1939 मे किया था| क्रमशः काफी सारे सुधार के बाद वर्ष 1989 में हेरी ओल्डफील्ड ने PIP ( Polycontrast Interference Photography ) स्केनर विकसित किया जिस की मदद से बेहतरीन तस्वीरें ली जा सकती हैं। तत्पश्चात वर्ष ) 1995 मे रशियन वैज्ञानिक डॉ. कोरोत्कोव द्वारा आविष्कृत GDV (Gas Discharge Visualization) कैमरा एवं इसके बाद जर्मनीके डॉ. थ्रोंटन स्ट्रीटर द्वारा विकसित बायोफील्ड व्यूअर इस कॅमेरे के आधुनिक स्वरुप है|
अब कुछ प्राथमिक माहिती कुण्डलिनी के विषय में| एक चीज उल्लेखनीय है कि कुंडली और कुण्डलिनी दोनों बिलकुल ही भिन्न है| हम बात कर रहे है 'कुण्डलिनी' की| जब कि जन्मसमय के ग्रहों की स्थिति के आधार पर ज्योतिषशास्त्र के माध्यम से बनाते है वह होती है कुंडली|
शरीर की मूलभूत प्राणशक्ति (Basic Life Force) यानी कुण्डलिनी| अंग्रेजी में Serpentine Power. जन्म के वख्त ही कुदरती रूप से सब को यह शक्ति प्राप्त होती है| इस शक्ति का बहोत ही छोटा सा हिस्सा (5% से 7%) इस्तेमाल कर के अधिकतर लोग अपना जीवन व्यतीत करते है| ऐसा कहा जाता है कि अलबर्ट आइंस्टाइन जैसी महान हस्ती भी 10% से अधिक इस शक्ति का उपयोग नहीं कर पाई थी| भारत के अलावा अतिप्राचीन संस्कृति जैसी कि चीन, जापान, ग्रीस, इजिप्त इन सभीमें किसी न किसी नाम से कुंडलिनी का जिक्र है| इस विषय ने विश्वभर में इस कदर रूचि जगाई है कि गूगल सर्च में कुण्डलिनी शब्द टाइप करते ही ०.6 सेकण्डमे २.57 करोड़ सन्दर्भ प्राप्त होते है|
वैज्ञानिक दृष्टि से परिक्षण करे तो कुंडलिनी शक्ति की तुलना एकदम ही DNA के साथ कि जा सकती है, क्योंकि हमारे जीन्स अभ्यास करनेवाले वैज्ञानिक यानि कि Genealogists अब तक में केवल २% से भी कम DNA जान पाए है जब कि ९८% DNA उनके लिए Junk DNA है| इसी वजह से पश्चिम के अध्यात्म जगतमें DNA activation का ख्याल उत्पन्न हुआ है, जिस को सदिओं से भारत देश कुण्डलिनिजागृति के रूप में जनता है| काफी सरल शब्द में समझने की कोशिश करे तो कुण्डलिनिजागृति यानि इस छुपे हुए खजानेका महत्तम उपयोग करने की क्षमता जिसके फलस्वरुप सर्वांगीण प्रगति एवं आंतरिक शांति से भरपूर जीवन, जिसे पाने कि इच्छा प्रत्येक मनुष्य को है|
स्त्रीपुरुष के जातीय संबंध इसी कुदरती शक्ति को आभारी है, फर्क सिर्फ इतना है कि शारीरिक समागम के दौरान यह शक्ति नीचे की ओर गतिमान होती है; जब कि यही शक्ति ऊर्ध्वगति को प्राप्त होती है तब उसे कुण्डलिनिजागृति कहते है - जो आध्यात्मिकता के नवीनतम शिखर सर तो कराती ही है किन्तु साथ ही साथ सांसारिक जीवन में भी काफी सकारात्मक बदलाव लाती है|
थोड़ी बातें नाड़ी के विषय में | थोड़ी देर के लिए आंख बंध कर के कोई ऐसे ख्याल को मन में लाइए जो किसी भी प्रकार के भावनात्मक आवेश को अत्यंत प्रभावी रूप से महसूस कराये| थोड़ी सी बारीकी से देखनेका प्रयत्न करे कि शरीर में ऊर्जा का प्रवाह किस तरह घूम रहा है| धीरे-धीरे महसूस होगा कि यह ऊर्जाप्रवाह शरीर में कहाँ पे गतिमान है| आधुनिक विज्ञानं नर्वस सिस्टम में हो रहे परिवर्तन के साथ इस स्थिति को बखूबी समझा देता है किन्तु हमारे ऋषिमुनिओ ने इसी घटना को प्राणशरीर में स्थित एक भिन्न प्रकारके ऊर्जातन्त्र यानि कि एनर्जी नेटवर्क के द्वारा समजायी है| जैसे बिजली, रेडियो या लेसर तरंगे अदृश्य होने के बावजूद भी अस्तित्वम में है और प्रवाहित है उसी तरह से प्राणशक्ति का प्रवाह नाड़िओं के माध्यमसे बहता रहता है| नर्वस सिस्टम स्थूल शरीरमें है जब कि नाड़ीतंत्र प्राणशरीर में स्थित है| एक बहुत ही विशाल, जटिल और प्रकृति ही जिसकी रचना कर सकती है ऐसे व्यवस्थित नाड़ीतंत्र के नेटवर्क द्वारा ऊर्जाका प्रवाह शरीर के प्रत्येक अंग एवं कोष में पहुंचता रहता है|
नाड़ी और चक्रो के बारे में विशेष जानकारी अगले हप्ते में लेंगे l
(क्रमशः)
✍🏾 जीतेन्द्र पटवारी✍🏾
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