मैं भावना की रिपोर्ट्स हाथ मे लेकर स्तब्ध सा बैठा हुआ था..! मुझे अब भी डॉक्टर की कही बातों पर विश्वास नही हो पा रहा था..!!
थोड़ी देर बाद भावना डॉक्टर के केबिन में आई..! डॉक्टर ने जो बातें मुझे कही वो सब उसे भी बताई..! ये सब जानने के बाद तू भावना का हाल हमसे भी ज्यादा बेहाल था। उसके चेहरे का तो रंग ही उड़ गया..!
कुछ देर बाद भावना की बाकी की रिपोर्ट्स भी आ गयी। डॉक्टर ने उसकी वो रिपोर्ट्स देखी और भावना से प्रश्न करने लगी..! जब मैं उठकर जाने लगा तो उन्होंने मुझे वहीं बैठ भावना को हिम्मत और सहारा देने को कहा..! बाद में आई रिपोर्ट्स को देखकर डॉक्टर और भी ज्यादा गंभीर नज़र आई हम दोनों को। मैंने और भावना ने एक दूसरे को देखा । मुझसे उस समय भावना का चेहरा देखा ही नही जा रहा था। कितना दर्द था उसके चेहरे पर..?!
डॉक्टर ने अपनी रिपोर्ट्स साइड में रखी और भावना से पूछा, "मिसेज़ प्रेम.. क्या आपको पता था कि आप प्रेग्नेंट है..?"
भावना ने निषेध भाव मे अपना सिर घुमाया।
डॉक्टर ने फिर उससे पूछा," आप जानती है जो बच्चा आपके गर्भ में था उसकी आयु लगभग चार सप्ताह मतलब, एक महीने के लगभग की थी..! आपको कभी कुछ अजीब सा फील नही हुआ अपने अंदर..? या पेट मे दर्द.. माहवारी में समस्या..!! ऐसा कुछ नही लगा..? आप तो खुद एक डॉक्टर हैं ना..!!"
मैं भावना को देखने लगा..! भावना ने कहा, "जी डॉक्टर, फील तो होता था लेकिन मुझे हमेशा यही लगा कि, शायद कमज़ोरी की वजह से या काम के प्रेशर की वजह से में अपना ध्यान नही रख पा रही तो...!!"
"तो आपने अपना ध्यान नही रखा..! खुद को इग्नोर कर दिया..! राइट..?" डाक्टर ने कहा।
भावना डॉक्टर की बात सुन थोड़ी परेशान हो गयी। अपना सिर झुकाकर उसने कहा, "ऐसा नही है डॉक्टर..! मैंने अपना ट्रीटमेंट करवाया था जब मुझे अपने शरीर मे कुछ अवांछित से परिवर्तन नज़र आये तो..! लेकिन तब भी जब मेडिकल टेस्ट्स हुए थे तो रिपोर्ट्स नार्मल थी..! उन रिपोर्ट्स में ऐसा कुछ नही था..! और रही बात प्रेग्नेंट होने की तो मैं खुद एक गायनिक हूँ। मैंने किट भी उसे की थी प्रेग्नेंसी चेक करने के लिए..! लेकिन उसमें रिजल्ट नेगेटिव था इसलिये मैंने सोनोग्राफी करवाना उचित नही समझा..!"
"आपका ये उचित ना समझना ही आज आप पर भारी पड़ गया है आज..!!" डॉक्टर ने कुछ नाराज़गी भरे स्वर में कहा..!
डॉक्टर भावना से बहुत देर तब सवाल-जवाब करती रही..! उससे पूछती रही। मुझे भावना या डॉक्टर की कुछ बातें समझ आ रही थी और बाकी सब सिर के ऊपर से जा रही थी। लेकिन मैं इतना समझ चुका था कि जो भी है बेहद गंभीर है। और आखिर में डॉक्टर ने जो बात कही वो किसी विस्फोट से कम नही थी मेरे और मेरी भावना के लिए।
डॉक्टर ने कहा, " मिसेज़ प्रेम आपको गर्भाशय का कैंसर है..!!"
ये सुनने के बाद तो जैसे मेरे कान ही सुन्न पड़ गए थे..! इसके आगे मुझे कुछ सुनाई ही नही दिया। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के बारे में आज तक सुना ही था। लेकिन मेरी भावना को ये बीमारी हो चुकी थी। जानलेवा बीमारी। मेरी हिम्मत जवाब दे चुकी थी कि मैं भावना को संभाल सकूँ..! लेकिन मेरी भावना बहुत मजबूत थी। उसने खुद को संभाला और मेरे हाथों पर अपने रख दिये।
फिर उसने डॉक्टर से पूछा, "कितना समय है मेरे पास डॉक्टर..?"
भावना का ये सवाल तो मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे सीने से दिल ही निकाल लिया हो..! लेकिन डॉक्टर का जवाब सुन मुझे थोड़ी तसल्ली मिली, " समय तो बहुत है आपके पास मिसेज़ भावना..!!"
जो डॉक्टर इतनी देर से भावना को मिसेज़ प्रेम कह रही थी उसने जैसे ही मिसेज़ भावना कहा मैं मन ही मन कोसने लगा उसे। एक तो इतनी बुरी खबर उसपर ऐसा बोलना..!!
मैंने खुद से ध्यान हटाकर फिर डॉक्टर की बातों में अपना ध्यान लगाया, "अभी तो ये कैंसर प्री स्टेज पर ही है। अभी आपके गर्भाशय में एक छोटी सी गांठ बनने लगी है जिसमे कैंसर पनप रहा है। "
मुझे एक अजीब सी घुटन और बैचेनी का आभास हो रहा था। मुझसे चुप नही रहा गया इस बार मे बोल पड़ा , "जब प्री स्टेज पर ही है तो आप इसका इलाज कीजिये ना डॉक्टर..! कैसे भी कर के इसे ठीक करिए। खर्चे की बिल्कुल चिंता मत कीजियेगा..!"
मेरी हालत को देखते हुए डॉक्टर ने मुझसे कहा, " देखिए मिस्टर प्रेम.. मैं आपकी तकलीफ समझ सकती हूँ। "
फिर डॉक्टर भावना की ओर देखते हुए बोली, " आजकल ये एक आम समस्या होती जा रही है महिलाओं में। प्रेग्नेंट होने के बाद भी कई बार पता नही चलता..!!आप तो स्वयं एक डॉक्टर हैं ये सब और कैंसर के बारे में भी जानती ही होंगी महिलाओं में कितने प्रकार के कैंसर होते हैं। ईनके लक्षण, बचाव, कारण सब..पता होगा आपको!"
भावना ने धीरे से हां में अपना सिर हिलाया।
डॉक्टर अपनी बात जारी रखते हुए बोली, " गर्भाशय कैंसर ऐसी बीमारी है जो किसी भी महिला को किसी भी उम्र में हो सकती है. इस बीमारी की समय पर पहचान हो जाए और सही इलाज हो, तो इससे मुक्ति पाई जा सकती है ।
देखा गया है कि गर्भाशय कैंसर के लक्षणों को महिलाएं अक्सर नजरअंदाज करती रहती हैं ।
दुर्भाग्यवश, इनकी शुरुआती स्टेज में अधिकतर कभी कोई तकलीफ ही नहीं होती. एक किस्म का साइलेंट वक्फा रहता है इन कैंसरों के शुरूआती दिनों में. कई माह तक ये शरीर में चुपचाप पलते रहते हैं. इनका पता बाद में प्रायः तब चलता है जब बीमारी फैलकर दूसरे अंगों तक पहुंच जाती है और तब तक बड़ी देर हो चुकी होती है ।"
डॉक्टर थोड़ी देर के लिए चुप हो गयी और रिपोर्ट्स अपने हाथ मे लेकर कहने लगी, " लेकिन आप के केस में थोड़ा अलग है। और मुझे बेहद दुख और अफसोस है ये कहते हुए कि हमे इस गांठ को निकालने के लिए ऑपरेशन करना होगा। जिसके बाद आप शायद माँ ना बन पाए या हो सकता है हमें आपकी बच्चादानी भी निकालनी पड़े ....! "
डॉक्टर की बात से मेरे और भावना दोनो के होंश उड़ गए। मैंने भावना के हाथ कसकर पकड लिया। उसके हाथ एकदम ठंडे पड़ गए।
डॉक्टर ने हमे जितनी जरूरी बातें, निर्देश, सावधानियां थी सब बताई और घर जाने की इजाज़त दे दी। लेकिन इतना कुछ सुनने-जानने के बाद में और भावना दोनो ही होश खो चुके थे।
मेरी भावना का हाल तो मुझसे भी ज्यादा बुरा था। वहां से उठते ही नही बन रहा था। मैं भावना को जैसे तैसे लेकर घर आया।
मम्मी ने जब सारी बात सुनी तो चक्कर आ गए उन्हें। अंगद भागकर पानी ले आया उनके लिए।
उस दिन के बाद से तो भावना बहुत बदल गयी। हमेशा खिलखिलाने वाली, बातें करने वाली मेरी चुलबुली सी भावना ना जाने कहाँ खो गयी..? अब तो जो थी वो एकदम गुमसुम और खामोश रहने वाली लड़की जो अपनी ही दुनिया मे रहती।
बड़ी मुश्किल से भावना को मनाया ऑपरेशन के लिए।लगभग एक महीने बाद भावना का सफल ऑपरेशन हुआ। पंद्रह दिन भावना हॉस्पिटल ने ही रही। उसके बाद हम उसे घर ले आयी। इतनी कमज़ोर हो गयी थी मेरी जान उसे देखते ही मेरी आँखें नम हो जाती।
भावना के ऑपरेशन के कुछ समय तो सब ठीक रहा। लेकिन धीरे-धीरे घर का माहौल तनावपूर्ण होने लगा। मम्मी को हमेशा भावना से कोई ना कोई शिकायत होने लगी। तो कभी भावना को मम्मी से। दोनो के बीच मे मैं पिस रहा था। किसकी सुनूं ? समझ ही नही पा रहा था...! एक दिन तो दोनो सास-बहू में ज्यादा ही बहस हो गयी। भावना आवेश में आकर मम्मी से तेज़ आवाज में कुछ ऐसा कह गयी जो मुझसे सहन नही हुआ और मैंने उसपर हाथ उठा दिया। उस दिन मैंने पहली बार अपनी भावना पर हाथ उठाया था। आज तक जिससे मैंने कभी गुस्से में बात तक नही की उस पर हाथ उठा दिया था मैंने।
गुस्से में अपने कमरे में आया और ज़ोर से गेट बंद कर दिया। गुस्सा खुद पर भी आ रहा था मुझे। मैं बात भी तो कर सकता था भावना से । उसे समझाता।लेकिन हाथ उठाने की क्या आवश्यकता थी। मैंने गुस्से में अपना हाथ दीवार पर दे मारा।
उस दिन के बाद से तो भावना एकदम ही खामोश हो गयी। जो थोड़ी बहुत आवाज़ आती थी उसकी वो भी कहीं खो गयी।
उसकी ये खामोशी मुझे दिन रात चुभती। बहुत कोशिश की उसे पहले जैसा बनाने की। पर नही कर पाया।
एक दिन मैं ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था। भावना ने पीछे से आकर मुझे जकड़ लिया। कितने दिनों बाद मुझे खुशी हुई थी। खुशी से ही आंखे भीग गयी मेरी। मैं तुरंत पीछे मुड़ा और भावना को कस के गले लगा लिया। उसके पूरे चेहरे को चूमते हुए उससे माफी मांगने लगा और मेरी भावना ने मुझे माफ़ भी कर दिया।
कुछ देर बाद भावना ने कहा, "प्रेम जी..आपसे कुछ चाहिए..! देँगे आप हमें..!!"
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