Atonement - 14 in Hindi Adventure Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | प्रायश्चित - भाग-14

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प्रायश्चित - भाग-14

शिवानी का जवाब सुन दिनेश चुप हो गया । कुछ कह वह बात को और आगे नहीं बढ़ाना चाहता था।
कहे भी क्या! उसे खुद को समझ नहीं आ रहा था इसलिए वह चुप हो गया।
"चुप क्यों हो गये दिनेश! जवाब दो।" शिवानी गुस्से से फिर बोली।
दिनेश शांत स्वर में बोला "मैं कुछ भी कहूं, यकीन तो तुम करोगी नहीं इसलिए चुप रहना ही बेहतर है। "
उसे इतना शांत देख शिवानी को अच्छा नहीं लग रहा था। वह अंदर गई और उसने जोर से दरवाजा बंद कर लिया। यह देख दिनेश का दिल किसी अनिष्ट की आशंका सोच घबरा गया और वह जोर जोर से दरवाजा पीटने लगा।
"शिवानी दरवाजा क्यों बंद कर लिया! दरवाजा खोलो! दरवाजा खोलो शिवानी! यह क्या पागलपन है! दरवाजा क्यों बंद कर लिया। जो कुछ बात है, आमने सामने बैठकर सुलझाते हैं ना। दरवाजा खोलो।"
शिवानी ने झटके से दरवाजा खोला और बाहर आकर बोली "फिक्र मत करो। मरने वाली नहीं। वैसे भी, मैं क्यों मरूं। मैंने कौन से पाप किए हैं। मैं आराम करना चाहती हूं बस।" कहकर शिवानी ने उसके मुंह पर फिर से दरवाज़ा दे मारा। दिनेश चुपचाप बाहर आकर सोफे पर बैठ गया।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी हंसती खेलती जिंदगी में यह कैसा ग्रहण लग गया । यह ग्रहण किरण ही तो थी। शुरू से ही दिनेश शिवानी से कहता आया था कि इससे दूर रहो लेकिन शिवानी ने उसकी एक न सुनी और आज देखो, कैसे हमारे जीवन में आग लगाकर चलती बनी लेकिन उसने ऐसा क्यों किया! मैंने तो उससे कभी बात तो क्या, उसकी तरफ कभी आंख उठाकर भी नहीं देखा था।
लेकिन वह वीडियो कहां से आया। मैं उसमें कैसे! मुझे तो कुछ याद नहीं ! हे भगवान कैसी पहेली है यह! जिसका ओर छोर ही नहीं मिल रहा।
सोचते सोचते पता नहीं दिनेश की आंख कब लग गई।

सुबह घर में आती खटर पटर की आवाजों से उसकी आंख खुली।
अंदर से रिया के चहकने की आवाज आ रही थी।
घर का माहौल कुछ हल्का देख उसे अच्छा लगा। मन ही मन दिनेश ने सोचा कि शायद शिवानी को अपनी भूल का एहसास हो गया हो या वह इन बातों को नजरअंदाज कर
जीवन में आगे बढ़ना चाह रही हो। अच्छा ही है।
मैं तो उससे पहले ही कह रहा था कि शिवानी यह सब हम दोनों का बसा बसाया घर बर्बाद करने के लिए की साजिश है। हां, लगता है कि उसे भी इस बात पर विश्वास हो गया होगा। फिर मैंने भी तो इतने सालों में कभी उसे शिकायत का मौका नहीं दिया।
भगवान तेरा लाख-लाख शुक्र है, तूने मेरी गृहस्थी उजड़ने से बचा ली।
दिनेश भगवान को शुक्रिया अदा करता, शिवानी की मदद करने के लिए कमरे में गया। देखा तो शिवानी सूटकेस में अपने व बच्चों के कपड़े पैक कर रही थी।
दिनेश को देख रिया खुश होते हुए बोली " पापा हम घूमने जा रहे हैं ! देखो मम्मी ने पैकिंग कर ली है। वाह, कितना मजा आएगा! हम दादी के घर जा रहे हैं या नानी के घर! बताओ ना पापा! आप ही बताओ। इतनी देर से मम्मी से पूछ रही हूं लेकिन मम्मी कोई जवाब ही नहीं देती।" रिया मचलते हुए बोली।

"बेटा, मम्मी पैकिंग करते हुए कोई सामान भूल ना जाए इसलिए नहीं बोल रही। मैं जरा मम्मी की हेल्प करा दूं । तब तक आप बाहर खेलो। वैसे तुमने दूध पी लिया क्या रिया!"

"हां पापा, मैंने दूध पी लिया । अच्छा ठीक है। मैं रियान के साथ बात करती हूं। तब तक आप मम्मी के साथ पैकिंग पूरी करवाओ। फिर हम घूमने जाएंगे।" यह कह कर रिया खुश होते हुए रियान के पास बैठकर उससे बातें करने लगी।

"शिवानी, यह तुम क्या कर रही हो। यह पैकिंग किसलिए! कहां जा रही हो तुम!"
"कहीं भी लेकिन अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती दिनेश!"
सुनकर दिनेश की खुशियां पल भर में ही मिट्टी में मिल गई।

"शिवानी यह क्या पागलपन है! कहां जाओगी तुम! अरे पति पत्नी के बीच सौ झगड़े होते हैं! सौ गलतफहमियां होती है! तो क्या ऐसे घर छोड़कर चली जाओगी।
कहां गई वो मेरी समझदार शिवानी ! जो हर बात को लेकर सोच समझकर चलती थी। छोटी मोटी बातों को तो हंसी में उड़ा देती थी!"
"दिनेश छोटी मोटी बात होती तो मैं अब भी हंसकर उड़ा देती!
छोटा मोटा झगड़ा होता तो लड़ झगड़ कर सुलझा लेती। हल्की फुल्की गलतफहमी होती तो बैठकर सौ बार सोचती, तुमसे पूछती!
लेकिन यहां तो बात ही कुछ और है। इतना घिनौना कृत्य अपनी आंखों से देखने के बाद, तुमने सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हारे साथ रहूंगी। नहीं दिनेश, अब हमारे रास्ते अलग हैं। तुम्हारा तो अब मुझसे वैसे भी मन भर गया। तुम्हें तो अब किसी दूसरे सहारे की तलाश है। जाओ मैंने तुम्हें आजाद किया। ढूंढ लो नया जीवनसाथी। बसा लो नयी गृहस्ती। पर मैं अब तुम्हारे साथ एक छत के नीचे नहीं रहूंगी। अब तुम आजाद हो । बच्चों को मैं अपने साथ ले जाऊंगी। कोई बंदिश नहीं तुम्हारे ऊपर।" शिवानी आंसू पोंछते हुए बोली।

"इसका तो सीधा सा अर्थ है शिवानी! तुमने मुझे चरित्रहीन समझ ही लिया है। तुम्हें दूसरों की बातों पर यकीन है लेकिन मेरी पर नहीं। मैं तो अब भी यही कहूंगा। मैं कसूरवार नहीं। तुम्हारे सिवा मैंने कभी किसी को आंख उठाकर नहीं देखा और यह मैंने तुमसे पहले भी कहा था। वह वीडियो झूठा है ,शिवानी!
किरण और कुमार ने यह चाल पैसा ऐंठने के लिए चली थी और उसमें वह कामयाब भी रहे। मेरी बात समझो शिवानी। मैं सच कह रहा हूं। अपने गुस्से की आग में हम दोनों के साथ-साथ हमारे बच्चों का जीवन बर्बाद मत करो। ठंडे दिमाग से सोचो।
और मुझे ऐसा ही कुछ करना होता तो क्या मुझे किरण ही मिली थी। अपना घर ही मिला था। कुछ तो दिमाग लगाओ!"

"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। मैं पागल हो जाऊंगी। " कह शिवानी जोर जोर से रोने लगी। दिनेश ने आगे बढ़ना चाहा तो उसने उसे दूर रहने का इशारा कर दिया।
"मैं इस घर में सांस भी नहीं ले सकती। यहां मुझे तुम्हारे और किरण के पाप की गंध आती है। मैं यहां से जाना चाहती हूं ।बस मैंने कह दिया।"
"ठीक है । हम यह घर छोड़ देंगे । कहीं और घर ले लेंगे। बस तुम शांत रहो‌। ऐसे तो तुम बीमार हो जाओगी शिवानी!"
"नहीं, मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना दिनेश मैंने पहले भी कहा था, मैं अब तुमसे कोई संबंध नहीं रखना चाहती।"
दिनेश कुछ कहता उससे पहले ही उसका फोन बजे उठा। देखा तो उसकी मां का फोन था।
उसने फोन उठाकर, अपनी मां को प्रणाम किया और पूछा "कैसी हो मां आप!"
"मैं तो ठीक हूं बेटा लेकिन जबसे तुम गए हो, तुमने फोन ही नहीं किया। 2 दिन हो गए। तुम्हारी कोई खैर खबर ही नहीं मिली मुझे। मेरा दिल बड़ा घबरा रहा था। सब ठीक है ना वहां पर!"
"हां मां, यहां तो सब ठीक हैं। आप घबराओ नहीं!" दिनेश ने अपनी आवाज में झूठी खुशी घोलते हुए कहा।

"पता नहीं बेटा, रात भर बेचैनी के कारण नींद भी नहीं आई। ऐसा लग रहा था कि कुछ बुरा होने वाला है इसलिए सुबह उठते ही तुम्हारे पास फोन किया। बहू व बच्चे कैसे हैं!"

"ठीक है मां । रिया अपने भाई के साथ खेल रही है। शिवानी रसोई में काम कर रही है।" दिनेश बात बनाते हुए बोला।
"अच्छा बेटा बहु से बात करना चाहती हूं। उससे बात करके मेरा जी हल्का हो जाएगा। एक बार मेरी शिवानी से बात करा दे! "
"मां, वह अभी खाना बना रही है!"
"बेटा, खाना बाद में बना लेगी। तू मेरी एक बार उससे बात करा दे। सच , तेरे पिताजी के जाने के बाद दिल बहुत कच्चा हो गया है। हर वक्त तुम सबकी फिक्र लगी रहती है। बहू को फोन दे, उसे पता चलेगा कि मां का फोन है तो वह मना नहीं करेगी।"
दिनेश ने स्पीकर पर हाथ रखकर शिवानी से कहा " शिवानी मां का फोन है। उनका दिल बहुत घबरा रहा है। वह तुमसे बात करना चाहती है। प्लीज उनसे बात कर लो। प्लीज!"

शिवानी ने दिनेश के हाथ से फोन ले लिया और अपने आप पर काबू करते हुए, उसने अपनी सास को प्रणाम किया और पूछा "मांजी कैसे हो आप!"
" बहु मैं ठीक हूं। सच बता वहां सब सही है ना!"
"हां मांजी, यहां तो सब बिल्कुल ठीक है। क्यों आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो!"
"पता नहीं बहू, रात को बहुत ही बुरे ख्याल मन में आ रहे थे। दिल बहुत घबरा रहा था। इसी परेशानी में रात भर नींद भी नहीं आई, लग रहा था किसी अपने के साथ अनिष्ट होने वाला है और तुम दोनों से बढ़कर मेरा अपना इस दुनिया में अब रहा कौन है! बहु तुझे तो पता है दिनेश कितना सीधा है। उसे दुनियादारी का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं ! तू उसका साथ कभी मत छोड़ना सुन रही है ना!" अचानक से उसकी सास को जोर-जोर से खांसी उठने लगी और फिर एकदम से फोन बंद हो गया!
" मांजी आप ठीक हो ना! मांजी अब बोल क्यों नहीं रहे कुछ!" शिवानी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई।

"क्या हुआ शिवानी! तुम इतना परेशान क्यों हो गई, मां की बात सुनकर ।बताओ तो!"
"पता नहीं, बात करते-करते अचानक उन्हें खांसी उठने लगी। फिर अचानक फोन बंद हो गया। मुझे तो कुछ सही नहीं लग रहा! घर पर वह अकेली भी है । अगर उन्हें कुछ
तकलीफ हो भी गई तो किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा। जरा अपने किसी पड़ोसी को फोन करो। वो उनका हाल-चाल पूछ कर आए। जल्दी करो!" अपनी सास के दुख में शिवानी अपना गम भूल गई। अब उसे सिर्फ अपनी सास की चिंता थी।
दिनेश ने अपने पड़ोसी को फोन किया और घर जाने के लिए बोला।
उसका पड़ोसी घर गया तो देखा दिनेश की मां बेहोश पड़ी थी। उसने तुरंत दिनेश को फोन कर इस बारे में बताया और कहा "भैया हम चाची को हॉस्पिटल लेकर जा रहे हैं वही जाकर पता चलेगा कि इन्हें क्या हुआ है।।"
सुनकर दिनेश के हाथ पांव कांपने लगे। वह अपने आपको किसी तरह संभालते हुए बोला "ठीक है, तुम अच्छे से उनका इलाज करवाना। पैसों की चिंता मत करना और जो भी कुछ बात हो, मुझे फोन पर बताना । इलाज में कोई कमी ना रहे। मैं भी आ रहा हूं लेकिन मुझे समय लग जाएगा। भाई तुम जब तक मां को संभाल लेना।" कहते हुए दिनेश के आंसू निकल आए।

"क्या हुआ! क्या कहा उन्होंने! मांजी ठीक तो है!" शिवानी चिंतित होते हुए बोली।
दिनेश ने अपनी आंखों में आए आंसुओं को पोंछते हुए शिवानी को सारी बातें बताई और कहा " शिवानी मैं, मां से मिलने जा रहा हूं। मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा। वहां उन्हें मेरी जरूरत है। तुम अपना और बच्चों का ध्यान रखना।"

"दिनेश, मैं भी चलूंगी। वह सिर्फ तुम्हारी मां नहीं, मेरी भी है। मेरा भी कुछ फर्ज बनता है। कहते हुए शिवानी ने सूटकेस में दिनेश के कपड़े भी रख लिए और कुछ देर बाद ही वह गांव के लिए रवाना हो गए।
क्रमशः
सरोज ✍️