यह कहानी बिलकुल सच्ची घटना पर आधारित है।
बहुत समय पहले की बात है। बिहार के मधुबनी जिले में एक गाँव है जिसका नाम है जम-सम। कहा जाता है कि यह नाम वहाँ हुई घटना के कारण पड़ा था। जम का मतलब भूत और सम का मतलब सभी, यानी कि जहाँ भूत है सभी।
दो ब्राह्मण पुत्र श्यामनंद और रामानंद आज बारह बरस बाद काशी से विद्या अर्जन कर अपने गाँव जम-सम लौट रहें है।रास्ते में बाजार से अपने माता-पिता और भाई-भाभियों के लिए ढेर सारे फल और मिठाई भी खरीद लिए है।
"भैया याद है जब हम आठ और तुम दस वर्ष के थे, तभी पिताजी ने हमें विद्या अर्जन हेतु काशी भेज दिया था। आज हम इतने बड़े हो गये है कि माता और पिता जी भी हमे देखकर आश्चर्य चकित रह जायेंगे। हमारे दोनों भैया तो हमें देख कर प्रसन्न हो जायेंगे, पर भाभियाँ शायद पहचान नहीं पायेगी , है ना,,,।" रामानंद बोला था।
"हाँ छोटे, हमारी भाभियों और भतीजे-भतीजियों को तो हम भी आज पहली बार ही देखेंगे।" श्यामनंद मुस्कुराकर बोला था।
दोनों भाई खुशी पूर्वक अपने घर पहुंचते हैं और सबसे मिलते है, सब बहुत खुश है। पूरे गांव में फल और मिठाईयाँ बाँटी गयी है। गाँव के सभी लोग श्यामनंद और रामानंद से पूरे दिनभर मिलने आते है, आखिर बरसों गये बच्चे आज पांडित्य ज्ञान प्राप्त कर गाँव आये है। सब बहुत खुश है, दोनों भाई अपने भाइयों के बच्चों के साथ खेलने में लग गये और भाभियाँ खाने की व्यवस्था करने में।
दिन ढलने लगा था, सब कुछ तो ठीक था, पर उनदोनों भाइयों को कभी-कभी लगता था कि उनके माता-पिता और भाईयों का मुँह अचानक ही खूंखार हो उठता है। कभी खेलते-खेलते बच्चों का चेहरा भयानक हो जाता है, तो कभी भाभियाँ गुस्से से गुर्राने लगती। वो दोनों इसे अपने मन का भ्रम समझकर छोड़ देते है। रात में सब लोग मिल कर बातचीत करते हुए भोजन करते है और सो जाते हैं।
सुबह दोनों भाई स्नान करके पूजा करने के उद्देश्य से घर में आसन लगाने लगते हैं, पर तभी उनकी माता आकर बोलती है--"बेटा पहले भोजन कर लो।"
रामानंद चकित होकर बोलता है--"माता, हमदोनों पूजा-पाठ किये बिना भोजन नहीं करते,,, आप चलिए हम पूजा करके आते है।" पर उनकी माँ नहीं मानती है और दोनों का हाथ पकड़ कर ले जाना चाहती है।
"ओह,,, ये क्या,, क्या पहन रखा है तुमने,,?" वो अचानक से झटका खा कर गिर जाती है।
"माता,,, माता, क्या हुआ? उठिए आप चलिए हम चलते हैं।" फिर वो दोनों माँ के साथ चल पड़ते है भोजन करने।
बरामदे में आसन बिछाकर भाभियों ने सबका खाना लगाया था। पिता जी, भाई और सारे बच्चे एक तरफ बैठे हुए थे। माता और दोनों भाभियों ने सबको भोजन परोसकर खुद भी खाना शुरू कर दिया था। उसी समय अचानक रामानंद को याद आता है, घर के पीछे नींबू का पेड़ होगा जिसमें बहुत सारे नींबू लगे होंगे। वो बड़ी भाभी को कहता है--"भाभी थोड़ा सा जाकर एक-दो नींबू ले आइए, दाल के साथ बहुत अच्छा लगेगी।"
"ठीक है देवर जी, आप धीरे खाइए, मै तुरंत लेकर आयी।" वो उठकर चल दी थी, पर जब बड़ी भाभी आंगन से बाहर जाने के बजाय रसोई में जाती है तो, श्यामनंद भी चुपचाप पीछे से जाता है और सामने का दृश्य देखकर उसकी आँखे फटने लगती है। उसकी बड़ी भाभी अपना हाथ बढाते हुए आंगन के लगभग दस कदम बाहर तक ले जाकर नींबू तोड़ रहीं थी। वो चुपचाप वापस आकर बैठ जाता है और रामानंद के कान में कुछ कहता है। रामानंद खाते-खाते अपना हाथ रोक लेता है और फिर हाथ धोकर अपने कमरे में जाता है। वो पूजा की सारी किताबें, दुर्गा सप्तशी, दिव्य कवच लेकर फर्श पर बैठकर पढ़ना शुरू कर देता है। कुछ ही मिनटों से पीछे से श्यामनंद भी आकर बैठ जाता है और फिर दोनों रामायण पाठ करना शुरू कर देते है।
बाहर बरामदे में बैठे उसके माता-पिता, भाई-भाभियाँ और भतीजे-भतीजियों के चेहरे बदल जाते हैं। वो बहुत ही डरावने लगने लगते हैं। उनके बाल बिखर गये है ,आँखे लाल-लाल हो गयी है और वो सब एकसाथ चिल्लाने लगते है--"बंद करो-बंद करो, ये रामायण पाठ पढ़ना बंद करों।"
उन सबकी कोई बात ना सुनते हुए ये दोनों भाई पूरे तल्लीन होकर पाठ करने लगते है। उनके मंत्रोच्चार और श्लोकों के साथ शंख और घंटियों की आवाज से पूरा गाँव चिल्ला पड़ता है। हर तरफ चीख-पुकार और मातमों का शोर होने लगता है। जानवरों के रंभाने की आवाज और बच्चों के रोने की चीख से उनदोनों भाइयों के आँसू फूटकर बहने लगते है। उन सारे लोगों के चिल्लाने की जोरदार आवाज से श्यामनंद का पूरा घर टूट कर गिरने लगता है। गाँव के सारे घर बिखरते जाते है और पूरा गाँव शमशान घाट की तरह जलने लगता है, किंतु दोनों भाई रामायण पढ़ना बंद नहीं करते है।
रामायण जब आधा खत्म होने पर आता है तो पूरे गाँव में शांति छा जाती है। कहीं से कोई शोर नहीं, कोई हलचल नहीं,,,, अब दोनों भाई अपने सामान में से भगवान भोलेनाथ का फोटो निकालकर, एक दूसरें का हाथ पकड़े रामायण पाठ पढ़ते हुए गाँव की सीमा से बाहर जाने लगते है। गाँव की सीमा लांघते ही उनदोनों को हनुमान जी मंदिर दिखता है, वो दोनों उसमें जाकर शरण लेते हैं।
दोनों भाई सोचने लगते हैं ऐसा क्यों हुआ? जब हम बारह वर्ष पहले यहाँ से पढाई पूरी करने गये थे, तब तो सब ठीक था। हमारा गाँव कितना खुशहाल था, पर आज ये क्या हो गया? हराभरा गाँव पूरा राख में बदल चुका था और कोई इंसान कहीं नहीं था, सब गायब हो चुके थे।
शाम होने लगी थी। वो दोनों भूखे-प्यासे मंदिर के पुजारी के आने की राह देख रहे थे, जो कुछ ही देर बाद आ गये थे। वो, उन दो नवयुवकों को देखकर हौले से मुस्कुरा दिये थे, फिर संध्या आरती के लिए उन्हें मंदिर के अंदर बुलाकर आरती करते है।
दोनों भाई आरती होने के बाद पंडित जी के पास बैठते है और पूछते है--"ये हमारे गाँव में क्या हुआ है पंडित जी, सब बदल गये है, ऐसा कैसे हुआ?"
"बेटा कहीं तुम जम-सम गाँव की बात तो नहीं कर रहें हो..?"
"हाँ पंडित जी, हम दोनों भाई उसी गाँव के है। हम बारह वर्ष बाद काशी से विद्या अध्ययन कर कल आये थे।" और पूरी घटना बताते हैं।
पंडित बोलते है--"बेटा दस साल पहले इस गाँव में आग लग गयी थी। पूरा गाँव एकाएक धू-धू करके जल गया। क्या बूढे-क्या जवान? पशु-पक्षी, जानवर सब जल गये,,, कोई भी नहीं बचा। उस दिन से गाँव वालों की आत्मा इस गाँव में भटकती है और जो भी जाता है उन सबको मार डालती हैं।"
"तो पंडित जी हम दोनों भाई कैसे बच गये?" रामानंद ने घबराकर पूछा।
"बेटा, तुम दोनों के बाजू पर रक्षा कवच बंधा हुआ है, जिस कारण वो तुम दोनों को छू नहीं पाएँ।" वो गहरी नजरों से उनके बाजू देखते हुए बोले थे। रामानंद को याद आता है कि कैसे उसकी माता, उसको छूते ही गिर गयी थी--"बेटा तुम दोनों भाइयों को उन सबका श्राद्ध करना होगा और उनकी अस्थियों को गंगा में विसर्जन करना पड़ेगा। अब तुम दोनों भाईयों के अलावा उस गाँव का कोई व्यक्ति जिंदा नहीं है जो उनका श्राद्ध कर उन्हें प्रेत योनि से मुक्त कराए। उनमें तुम्हारे माता-पिता के साथ-साथ तुम्हारे पूरे गांववाले भी है। बेटा करोगे ना ये कार्य?"
"हाँ पंडित जी हम तैयार है। हम दोनों करेंगे उन सबका कर्म- कांड।" उस रात दोनों भाई मंदिर में ही बिताते हैं और सुबह पूजा-पाठ, आरती करके अपने गाँव जाते हैं।
पंडित जी ने दोनों भाई के गले में हनुमान जी लाकेट पहना दिया था और कहा था--"याद रहें सुर्य अस्त होने से पहले वहाँ से वापस आ जाना। ये लाकेट तुम दोनों की रक्षा करेगा।"
गाँव जाकर दोनों भाई अपने घर जाकर सबकी अस्थियां बटोरकर मटकों में रख लिये थे। रामानंद छोटा था, अपने माता-पिता, भाई-भाभियों और बच्चों को यादकर खूब रोने लगा था।
"रामानंद,, मेरे भाई रोकर समय व्यर्थ मत करो। हमें अपने परिवार वालों के साथ पूरे गांववालों को भी मुक्ति दिलानी है। चलो यहाँ से चलते है।" और वो भी नम आखों से छोटे भाई का हाथ पकड़े, अपने घर से बाहर निकल गया था। फिर वो दोनों प्रत्येक घर से अस्थियों को चुनकर अलग-अलग मटकों में रखते गये।
शाम होने लगी थी, दोनों को पंडित जी की बात का स्मरण हो आयी था। वो दोनों बाकी घर छोड़कर वापस आ गयें और मंदिर के प्रांगण में सब अस्थियों को कतार से रख दिये थे। शाम में पंडित जी आये तो उन्हें सारी बात बताये।
"ठीक किया बेटा, तुमलोग शाम होने से पहले वापस आ गये। ये काम एक-दो दिन में संभव नहीं है। कुछ वक्त लगेगा, क्योंकि पूरे गाँव के लोगों की अस्थियों को चुनना पड़ेगा।" वो बोलकर आरती की तैयारी में लग गये थे।
इस तरह लगभग पन्द्रह दिनों में दोनों भाईयों ने अपना काम पूरा कर लिया। फिर सबकी अस्थियों को जला कर श्राद्ध कर्म किया और गंगा में विसर्जन कर दिया।
उस दिन के बाद से उस गाँव में धीरे-धीरे लोग बसने लगे और कभी भी किसी को कोई भूत नहीं दिखा। वो दोनों भाई स्वयं भी विवाह करके अपने घर में ही बस गये थे। उन्हें अपने परिवार वालों की बहुत याद आती थी, पर अब वो लोग कभी भी ना अच्छे और ना बुरे बनकर उसके सामने आये। अपने जीवन को ईश्वर का वरदान मानकर उनदोनों भाइयों ने उस गाँव में भोलेनाथ के भव्य मंदिर की स्थापना की और बरसों तक सुख भोगकर अपने धाम को पधारे।
समाप्त