DestructionBlack - The Last Part in Hindi Fiction Stories by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | विनाशकाले.. - अंतिम भाग

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विनाशकाले.. - अंतिम भाग

अंतिम अध्याय
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गतांक से आगे…..

मनोहर को अपने व्यवसाय एवं रेखा से फुरसत ही नहीं थी,न विशेष दिलचस्पी थी रेवती में।किन्तु रेवती और आलोक का प्रेम काकी की अनुभवी आंखों से छिपा नहीं रह सका।वे नहीं चाहती थीं कि रेवती उन फिसलन भरी राहों पर चलकर दुबारा घायल हो जाय।अतः उन्होंने उचित अवसर देखकर रेवती को समझाना चाहा कि बेटी एक बार जीवन में धोखा खा चुकी हो,दूध का जला छाछ भी फूंककर पीता है, इसलिए कोई गलत कदम मत उठा लेना, जो भी करना सोच-समझकर करना,अन्यथा तुम्हारे साथ- साथ बच्चों की भी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी।
काकी की बातों को सुनकर रेवती सोच में पड़ गई थी,क्योंकि वह जानती थी कि काकी उसकी सच्ची हितैषी हैं और उनकी बूढ़ी आँखों ने दुनिया देख रखी है।
इधर कुछ दिनों से आलोक ने उसे समझाना शुरू कर दिया था कि चलो,किसी दूसरे शहर में चलकर हम अपनी नई जिंदगी शुरू करते हैं।वह भी उसकी बातों में आकर नूतन गृहस्थी बसाने का ख्वाब देखने लगी थी लेकिन आलोक बच्चों की जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं था।एक तरफ आलोक का प्यार उसे घर छोड़ने को उकसा रहा था, तो वहीं बच्चों का मोह पैरों में बेड़ियाँ डाल रहा था।वह भयानक अंतर्द्वंद्व में फंसी हुई थी।उसकी परेशानी को भांपकर आलोक ने नई चाल चली।उसने रेवती को समझाया कि मेरी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं है कि मैं बच्चों एवं तुम्हें अच्छी जिंदगी दे सकूं।यदि मेरे पास पैसे होते तो मैं व्यापार प्रारंभ कर लेता तथा घर बना लेता।रेवती उसकी बातों में आ गई।मनोहर ने उसके नाम से दो प्लॉट खरीदे थे।उसमें से एक प्लॉट को आलोक की मदद से बेचकर पूरे दस लाख रुपए उसे अपने सुनहरे भविष्य के सपनों की खातिर सौंप दिया।आलोक 2-3 माह पश्चात सब व्यवस्थित करके आने की बात कहकर चला गया।फोन पर आलोक उसे बताता रहा कि एक घर ले लिया है एवं घर में ही रेडीमेड कपड़ों की दुकान खोल ली है, जल्दी ही वह रेवती को लेने आएगा।दो-तीन माह व्यतीत हो गए, अब आलोक के फोन भी कम होने लगे,आलोक की बातों में टालमटोल साफ नजर आने लगा था।रेवती को लगने लगा था कि वह फिर से ठगी गई और अचानक आलोक का नम्बर नॉट रिचेबल आने लगा।रेवती के दुःख का पारावार न रहा।वह समझ ही नहीं पा रही थी कि किसको दोष दे,अपनी किस्मत को या अपनी बेवकूफी को,जो इंसान नहीं पहचान सकी।या शायद रेवती में दुनियावी चालाकी नहीं थी,जिससे लोग अपने बनकर उसे छल रहे थे।
धीरे-धीरे रेवती खुद को सम्हालने लगी थी कि एक दिन सुबह-सुबह काकी आते ही उसके कमरे का दरवाजा पीटने लगीं, रेवती ने किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत होकर दरवाजा खोला और पूछा कि काकी क्या हुआ?
काकी ने उसे देखकर राहत की सांस ली, फिर बताया कि रात में किसी काम से मैं तुम्हारे घर के पास से गुजरी थी तो मैंने छत पर से किसी को मुँह ढके आलोक के साथ छत फांदकर ब्रीफ़केस लिए हुए जाते देखा तो मैंने यही सोचा कि तुम शायद चली गईं बच्चों को छोड़कर।लेकिन जब तुम घर पर हो तो आलोक के साथ कौन थी ?कहीं रेखा तो नहीं थी।
रेवती बुरी तरह चौंक पड़ी,"क्या मतलब है आपका?आपको पक्का यकीन है कि वह आलोक ही था?वह तो 2-3 महीने से मेरा फोन भी नहीं उठा रहा है।"
काकी ने पूरे विश्वास से कहा,"मैं आलोक को अच्छी तरह पहचानती हूँ।"
रेवती ने पूछा कि आपने रेखा का नाम क्यों लिया?
काकी ने बताया,"आलोक के यहाँ से जाने से महीनों पहले ही मैंने कई बार उसे एवं रेखा को घुटकर बातें करते हुए देखा था।उसके जाने के बाद भी अक्सर फोन पर रेखा को उससे बातें करते हुए सुना था लेकिन तुम्हें नहीं बताया क्योंकि मैं तो यही सोचती थी कि वह तुझसे जुड़ा है लेकिन मैं नहीं जान सकी कि दोनों अलग ही खिचड़ी पका रहे हैं।"
थोड़ी ही देर में मनोहर का शोर सुनकर जब वे नीचे पहुंचे तो मनोहर सिर धुनते हुए चीख रहा था कि रेखा सारे जेवर-पैसे लेकर जाने किस कमीने के साथ भाग गई।
काकी मुँह बनाते हुए बुदबुदायीं कि जैसी करनी वैसी भरनी।
आज भले ही उसकी सगी बहन ने दुबारा उसे धोखा दिया था, फिर से एक पुरूष ने उसके प्रेम और विश्वास को छला था,लेकिन आज रेवती मनोहर को इस तरह रोते -बिलखते,तड़पते देखकर अत्यंत आंनद का अनुभव कर रही थी।हालांकि उसे अपने 10 लाख रुपये डूबने का अफसोस तो बेहद था,किन्तु उससे ज्यादा सुकून था कि वह एक बड़े संकट से बच गई थी।बच्चों का भविष्य तो खराब होता ही,वह भी न घर की रहती न घाट की।लेकिन आज उसने मन ही मन दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली कि न तो वह मनोहर को माफ कर स्वीकार करेगी,न अब किसी और के धोखे में आएगी।
रेखा के इस धोखे से अब मनोहर कुछ विक्षिप्त सा हो गया था।चिकित्सा से इतना तो सम्हल गया था कि अपना व्यापार सम्हाल लिया,हालांकि पहले जितना स्वस्थ नहीं हो पाया।रेवती से मनोहर ने बार-बार गिड़गिड़ाकर माफी मांगी,किन्तु रेवती ने कठोरता से कह दिया कि हम दोनों एक घर में हैं लेकिन पति-पत्नी नहीं, सिर्फ़ बच्चों के माता-पिता हैं।बच्चे धीरे -धीरे बड़े हो रहे थे, अब वे अपनी मां के साथ खड़े थे।मनोहर भरे-पूरे परिवार में अकेला था।
2-3 वर्षों तक रेखा की कोई खबर नहीं मिली,फिर रेवती जानना भी नहीं चाहती थी।अभी कुछ दिन पहले दीदी का फोन आया था,तब पता चला कि यहाँ से जाने के बाद रेखा-आलोक ने विवाह कर लिया था, तब आलोक को रेखा के कभी मां न बन सकने वाली बात ज्ञात नहीं थी।जब पता चला तो लड़ाई होने लगी।एक दिन लड़ाई हाथापाई में परिवर्तित हो गई, क्रोध में आलोक ने रेखा की डंडे से पिटाई कर दी, सर में गम्भीर चोट लगने के कारण रेखा की मृत्यु हो गई एवं आलोक हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा है।
सत्य ही कहा गया है,"विनाशकाले विपरीत बुद्धि"।जीवन में गलत रास्तों का चुनाव कभी भी लक्ष्य तक नहीं पहुंचा सकता है, इसलिए सोच-विचारकर उचित एवं सही निर्णय लेना चाहिए।भटकाव हमें पथभ्रष्ट कर देता है, चाहे वह जिंदगी में हो या आचार-व्यवहार में।
समाप्त।
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