Atit ke chal-chitra - 9 in Hindi Moral Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | अतीत के चलचित्र (9)

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अतीत के चलचित्र (9)

अतीत के चलचित्र (9)
रीमा की दीदी रीमा से बहुत बड़ी थी क्योंकि रीमा अपने भाई-बहिनों में सबसे छोटी और दीदी सबसे बड़ी ।जब भी छुट्टियाँ होती वह अपनी दीदी के घर ज़ाया करती ।उनके बच्चे रीमा के साथ खेलते क्योंकि हमउम्र थे ।

जब दीदी और जीजा जी आया करते रीमा के लिए नई ड्रेस और खिलौने लाते।जब परीक्षा फल आता तो जीजाजी प्रोत्साहित करने के लिए कुछ उपहार लाते और उसकी पसंद की मिठाई खिलाकर ख़ुश होते ।

जीजा जी सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाते थे ।उस समय कोई भी अतिरिक्त ट्यूशन नहीं लेता था ।वेतन में घर सुचारू रूप से चल रहा था लेकिन जीजाजी अतिरिक्त आय करने के इच्छुक थे ।बच्चे बड़े हो रहे थे आवश्यकता बढ़ रही थी, दीदी की संतानों में बेटी बड़ी थी ।उसकी चिंता भी उन्हें सताती थी ।

रीमा के शहर में जीजाजी ने यानि कि अपनी ससुराल में ही उन्होंने बिज़नेस शुरू किया तो हफ़्ते ,पंद्रह दिन में वह आ जाते।नौकरी के साथ ही वह काम कर रहे थे जिसकी वजह से,जब अवकाश होता आ जाते।

बहुत दिनों तक जीजाजी नहीं आते तो रीमा को चिंता हो जाती। इस बार छुट्टियों में रीमा दीदी के घर जाना चाहती थी।

छुट्टियाँ शुरू होने वाली थी ,जीजाजी नहीं आये।
रीमा ने मॉं से कहा—मॉं मुझे दीदी के घर जाना है ।

मॉं ने बताया कि तुम्हारे जीजाजी अपने कार्य में दूसरी जगह व्यस्त हैं ।दीदी के शहर में रहने वाले एक व्यक्ति को वहाँ का हाल जानने को कहा—
उन्होंने आकर बताया कि सब ठीक है तुम्हारे जीजाजी आजकल अपने कार्य में व्यस्त हैं ।जनगणना में उनकी ड्यूटी होने के कारण वह नहीं आये ।

वह व्यक्ति उन्हीं के शहर में रहते हुए रीमा के शहर में काम करने आया करते थे।मॉं उनसे वहाँ की जानकारी ले लिया करतीं ।

रीमा ने मॉं से कहा—मॉं मुझे अच्छा नहीं लगता जीजाजी बहुत दिनों से नहीं आये। तुम परेशान मत हो आ जायेंगे।

एक दिन रीमा खेल रही थी तभी वह व्यक्ति आये जो दीदी के शहर में रहते थे, उत्सुकता वश रीमा उनकी बातें सुन रही थी ।जो उसने सुना,सुनकर उसके बाल मन में बहुत ही घबराहट होने लगी ।वह मॉं को बता रहे थे कि यहॉं का काम तो उनका पहले ही ख़त्म हो गया ।अब नौकरी में भी निलंबित हो गये हैं जिसकी वजह से वह बहुत परेशानी से गुजर रहे हैं ।

मॉं ने उन्हें कुछ थैले में रखकर दिया और कहा—उनसे कहना कि सब ठीक हो जाएगा ।परेशान होने की आवश्यकता नहीं है ।
रीमा पूरे दिन उन बातों को सोचकर परेशान होती रही तभी उसके कोमल बाल मन में विचार आया कि मैं जीजाजी को पत्र लिख कर भेजूँ ।

पिताजी के कमरे से दो पोस्टकार्ड लिए और एक जीजाजी को और एक दीदी को लिखने बैठ गई ।पहला पत्र जीजाजी को लिखा—

दिनांक
सेवा में ,
आदरणीय जीजाजी सादर नमस्कार ।
अत्र कुशलम् तत्रास्तु ।
बहुत दिनों से आपका कोई समाचार नहीं मिला,आप कब आ रहे हैं ।मुझे आपकी बहुत याद आती है,आप जल्दी ही आइएगा ।हम सब की ओर से सभी को यथा योग्य नमस्कार एवं मॉं पिताजी की ओर से आशीर्वाद ।
नाम

दूसरा पत्र दीदी को लिखा—
दिनांक
सेवा में,
आदरणीय दीदी सादर नमस्कार ।
हम सब यहाँ कुशल मंगल है आप सब लोग भी कुशल मंगल होंगे ।दीदी आप सभी लोगों की हम सब लोगों को बहुत याद आती है ।आप कब आयेंगी,कितनी भी परेशानी हो हमें संयम से काम लेना चाहिए ।हम बच्चों की तरफ़ से नमस्कार और मॉं पिताजी की तरफ़ से सभी को ढेर सारा आशीर्वाद एवं प्यार ।थोड़े लिखे को बहुत समझना।
आपकी छोटी प्रिय बहिन
नाम

रीमा ने पत्र तो लिख दिए लेकिन कई दिनों तक जबाब न आने से उसे चिंता हो रही थी ।
रीमा बाहर खेल रही थी कि दीदी के साथ जीजाजी को आते देखा ।वह दौड़ कर मॉं को बताने गई तभी दीदी ने उसके पास आकर गले से लगाकर कहा—हमारी गुड़िया बहुत ही समझदार है...
जीजाजी ने कहा—तुम आज से मेरी दत्तक पुत्री हो! ऑंखों में ऑंसू भर कर गले लगा लिया ।
रिश्ता इतना गहरा था कि रीमा के ब्याहके बाद भी वह निभाते रहे...

✍️क्रमश:

आशा सारस्वत