Jab Hi Met Mausi in Hindi Short Stories by S Sinha books and stories PDF | जब ही मेट मौसी

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जब ही मेट मौसी

कहानी - जब ही मेट मौसी


प्रकृति की लीला भी कभी समझ से परे होती है . एक ही माँ के गर्भ से एक ही समय जन्मे जुड़वाँ संतानों में कितनी विभिन्नता होती है . गौरी और काजल जुड़वाँ बहनें थीं .दोनों में कोई समानता नहीं थी . गौरी सुन्दर गोरे रंग की थी और काजल साधारण काले रंग की .काजल गौरी से मात्र पंद्रह मिनट बड़ी थी .शक्ल सूरत से काजल अपने पिता पर गयी थी .उसके पिता रमेश एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे . उस समय शिक्षक का वेतन भी अच्छा नहीं होता था .इसके पहले भी उनकी एक बेटी थी , उमा , जो अभी करीब तीन साल की थी.जुड़वां बेटियों के जन्म के साथ ही उनकी पत्नी का देहांत हो गया था .


रमेश ने अपनी विधवा बुआ की मदद से तीनों बेटियों की परवरिश की . वे चिंतित तो थे ही कि तीन तीन बेटियों की पढ़ाई लिखाई शादी ब्याह कैसे कर पाएंगे .फिर भी वे बुआ से बोलते “ आप देखना काजल भाग्यशाली निकलेगी .जो बेटी अपने पिता पर जाती है अक्सर भाग्यशाली होती है .”


अपनी हैसियत के मुताबिक रमेश तीनों बेटियों का पालन पोषण अच्छी तरह से कर रहे थे . समय पंख लगा कर तेजी से उड़ता जा रहा था . बेटियाँ जवानी की दहलीज पर थीं .सौभाग्य से उन्हें उमा के लिए एक लड़का सही समय पर मिल गया .उमा ब्याह कर अपने ससुराल चली गयी .रमेश एक ओर से कुछ निश्चिन्त हुए . अब वे काजल की शादी पहले करना चाहते थे .


अब उन्हें जुड़वां बेटियों का ब्याह करना था .वे अपनी बेटियों के लिए वर तलाश कर रहे थे .गौरी और काजल दोनों 18 साल की थीं . दोनों प्लस टू में पढ़ रही थीं .रमेश के एक दूर के रिश्तेदार ने काजल के लिए एक लड़के सुरेश का पता दिया .वह राज्य सर्कार में अफसर था साथ में दो नंबर की कमाई भी थी , पर उम्र में सात साल से ज्यादा ही बड़ा था , ऊपर से उसका एक पैर जन्म से ख़राब था .वह थोड़ा लंगड़ा के चलता था .पर रमेश ने इन खामियों को दरकिनार कर उसे पसंद कर लिया . सुरेश की माँ ने कहा “ मैंने भी काजल के बारे में बेटे को बता दिया है , आप चिंता न करें .बस रोका की एक रस्म भी उसी दिन कर दी जाएगी .”


उस समय लड़कियों की शादी जल्द ही कर दी जाती थी .काजल को पिता ने लड़के के बारे में बता दिया था . काजल भी पिता की और अपनी मजबूरी समझती थी और उसने अपने भाग्य से समझौता कर लिया था .दो दिनों के बाद सुरेश अपनी माँ के साथ काजल के घर आया .


गौरी ने बहन को अच्छी तरह तैयार कर सुरेश और उसकी माँ के सामने लाया .गौरी को रमेश ने खुद सजने संवरने से मना कर दिया था . फिर भी जब दोनों लड़कियां सामने आयीं तो बिना श्रृंगार के भी गौरी काफी सुन्दर लग रही थी .सुंदरता किसी श्रृंगार की मोहताज नहीं होती है . सुरेश का मन गौरी की ओर स्वतः आकृष्ट हुआ. उसने अपनी माँ के कान में मन की बात बताई भी .पहले तो माँ ने उसे समझाने का पूरा प्रयास किया , पर वह नहीं माना .


सुरेश की माँ ने रमेश से कहा कि सुरेश को गौरी पसंद है और वह शादी गौरी से ही करेगा काजल से नहीं . रमेश यह सुन कर सकते में आ गये और बोले “ हम तो आपसे काजल की बात पक्की कर के आये थे .यह नहीं हो सकता , जरा सोचिये बेटी के मन पर क्या बीतेगी ? “


पर सुरेश तैयार नहीं हुआ . सुरेश की माँ ने जाते हुए कहा “ एक दो दिन फिर से ठीक से सोच लो . हम तुम से दहेज़ में कुछ भी नहीं लेंगे , कोई सोना चाँदी भी नहीं .बस गौरी को सिर्फ अपने शरीर पर वस्त्र के साथ विदा कर देना . हम तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा करेंगे , आगे तुम्हारी मर्जी .”


उनके जाने पर रमेश बोले “ सारा दोष मेरा ही था . मुझे गौरी को लड़के के सामने नहीं जाने देना चाहिए था .”


काजल बोली “ पापा , आप चिंता न करें . गौरी का ब्याह सुरेश से कर दें .हम सभी अपना अपना भाग्य लेकर पैदा हुए हैं .कोई हमारा भाग्य तो नहीं बदल सकता है . सुरेश की माँ को बता दें कि आप गौरी के रिश्ते के लिए तैयार हैं .”


गौरी और सुरेश की शादी हो गयी .शादी में बड़ी बेटी उमा भी आयी थी .उसने गौरी को डांटा और कहा “ गौरी सारा कसूर सिर्फ तुम्हारा है .तुम्हें लड़के वालों के सामने आने की क्या जरूरत थी ? तुम्हें अपनी सुंदरता की प्रदर्शनी करना जरूरी था ? काजल की शादी टूटने के लिए तुम जिम्मेवार हो .”


काजल के मन भी यही बात बैठ गयी . गौरी की शादी तो सुरेश से हो गयी , पर काजल भी गौरी को माफ़ नहीं कर सकी .उसके बाद से उसने गौरी से बोल चाल बंद कर दिया और एक तरह से अपने दुर्भाग्य का कारण उसी को मान बैठी . वह मन ही मन गौरी को सौतन समझने लगी .


गौरी ब्याह कर अपने ससुराल चली गयी . रमेश अब काजल बेटी के रिश्ते के लिए प्रयत्नशील थे पर कहीं सफलता नहीं मिल रही थी . काजल ने आगे पढ़ना जारी रखा .


इधर गौरी अपने ससुराल में खुश थी .वह शादी के बाद दुरागमन की रस्म के लिए दो दिन के लिए मायके आयी

थी . काजल ने उस से कोई बात न की , बल्कि वह जान बूझ कर अपने मामा के यहाँ चली गयी थी .गौरी के जाने के बाद ही वह अपने घर लौटी थी .


गौरी ने एक साल बाद एक कन्या नंदा को जन्म दिया . काल का चक्र घूम रहा था . कुछ साल बाद रमेश का निधन हो गया . उन्हें अचानक हार्ट अटैक हुआ और कुछ इलाज हो सके इसके पूर्व ही वे परलोक सिधार गए .उस समय तक काजल बनारस से अपना पी एच डी पूरा कर चुकी थी . वह बनारस के एक कॉलेज में सहायक प्रोफेसर थी.


इधर गौरी की बेटी नंदा बड़ी हो चली थी . वह पढ़ने लिखने में बहुत तेज थी . स्कूलिंग के बाद वह SAT टेस्ट दे कर आगे पढ़ने के लिए अमेरिका गयी . जल्द ही वहां उसे एक भारतीय मूल के अमेरिकी लड़के के साथ प्यार हो गया और वह गर्भवती भी हो गयी . एक दिन नंदा माँ से फोन पर बात करते करते फूट फूट कर रोने लगी .गौरी के कारण पूछने पर उसने अपनी गलती बतायी .गौरी ने अपने पति से यह बात बतायी . सुरेश के जीजा अशोक ह्यूस्टन के राइस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे . सुरेश ने चिंतावश अपने जीजा से फोन पर बात की .उस लड़के के पिता और सुरेश के जीजा अशोक दोनों अमेरिका में ह्यूस्टन में रहते थे .


अशोक ने हँसते हुए कहा “ डोंट वरी , मैं एक बार लड़के और उसके माता पिता से बात कर के देखता हूँ . “

अशोक ने उस लड़के और उसके माता पिता से बात कर सुरेश को फोन किया “ साले साहब , मुबारक हो . तुम्हें घर बैठे बैठे अच्छा एन आर आई लड़का मिल गया है . वे लोग भी मान गए है , उन्हें भी हिंदुस्तानी वधु ही चाहिए थी , जो मिल गयी है . मैं यहाँ शादी की तैयारी कर रहा हूँ . तुम लोग भी यहाँ जल्द आ जाओ . “


नंदा की शादी हो गयी . अठारह वर्ष से भी कम उम्र में नंदा ने एक बेटे को जन्म दिया , सुधांशु नाम था उसका . डिलीवरी के बाद नंदा ने कुछ महीनों के लिए अपना सेमेस्टर ड्रॉप कर दिया .


इधर काजल ने बी एच यू ज्वाइन कर लिया .वह विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कभी कभी अमेरिका की यूनिवर्सिटी में पढ़ाने आती थी . दक्षिण पूर्व एशिया के इतिहास में उसने शोध किया था , इसी विषय पर लेक्चर के लिए उसे अमेरिका जाना होता था .


वैसे तो काजल और गौरी में कोई बोलचाल न थी . उनके बीच रिश्ता भी मृतप्रायः ही था .गौरी को मन ही मन आत्मग्लानि भी होती थी कि कहीं न कहीं काजल के अविवाहित रहने की वजह वही है .यह सोच कर उसे दुःख होता था कि वह नानी भी बन गयी और मेरी बहन अभी कुंवारी है . खुद गौरी और उसकी बेटी दोनों की शादियां कम उम्र में ही हो गयी थी और काजल चालीस के करीब थी .गौरी ने अपने पति और अमेरिकन ननदोई से इस विषय में चर्चा की थी .


काजल अक्सर अमेरिका पढ़ाने जाती थी .अशोक ने गौरी को भरोसा देते हुए कहा था “ गोरा काला , नाटा लम्बा , जाति धर्म इंडिया में ही ज्यादा देखा जाता है .यहाँ सूरत नहीं सीरत देखी जाती है . मैं पूरी कोशिश कर्रूँगा काजल की शादी के लिए .तुमलोगों को जात पात से परहेज तो नहीं ? “


गौरी ने कहा “ नहीं . पर इस विषय में मेरा नाम कहीं नहीं आना चाहिए , वरना दीदी हरगिज तैयार नहीं होगी .”


“ दीदी कौन ? “


“ काजल और कौन ? हम जुड़वां बहनें हैं , पर वह सिर्फ पंद्रह मिनट बड़ी है मुझसे .पापा ने शुरू से उसे दीदी बोलने को सिखाया था ? “


अशोक हँस पड़ा और बोला “ . सॉरी , मैं काजल को भूल गया था . बट ओके , डोंट वरी . मैं यहाँ देखता हूँ . ”


अशोक हैदराबाद का रहने वाला था . हैदराबाद के ओसमानिया यूनिवर्सिटी से एक इतिहास के प्रोफेसर एक्का साहब भी राइस यूनिवर्सिटी पढ़ाने आते थे . वहां अशोक , एक्का और काजल तीनों अक्सर मिल जाते थे .तीनों एक साथ बैठते तो इतिहास और राजनीति पर देर तक बातें करते .एक तरह से तीनों दोस्त थे .एक्का का अपनी बीबी से बहुत पहले तलाक हो चुका था .वैसे वे बहुत अमीर थे ,वे रहने वाले झारखण्ड के रांची के थे . एक्का आदिवासी क्रिश्चियन थे और हैदराबाद में सैटल कर गए थे . उम्र 45 के आसपास रही होगी पर देखने में अभी भी काफी स्मार्ट थे .अशोक ने काजल के बारे में उन्हें बता रखा था . धर्म की परवाह नहीं करते हुए वे काजल की ओर आकर्षित हुए .अशोक ने उन्हें भांप लिया था फिर गौरी से इसकी चर्चा की और पूछा कि कहीं धर्म के चलते कोई विघ्न न हो . गौरी ने उन्हें आगे बढ़ने की सलाह दी और कहा “ एक्का साहब को पहल करने के लिए कहा जाये .”


एक दो बार सेमीनार में काजल को हैदराबाद बुलाया भी था . गौरी यह सुन कर कुछ संतुष्ट हुई और उसके मन में आशा की किरण जागृत हुई कि उसके प्रयास से काजल का घर बस जायेगा , देर ही सही .पर अभी तक काजल गौरी , अशोक और एक्का के इरादे से अनभिज्ञ थी .


कुछ दिन बाद काजल को भी एक्का साहब के इरादे का आभास हो गया , पर वह बिलकुल तटस्थ थी .अभी तक उसके मन में ऐसी कोई भावना नहीं थी .कुछ दिनों के बाद आखिर एक्का ने काजल को प्रपोज कर ही

दिया .


वह बोली “ इस उम्र में , आप क्या कह रहे हैं ? “


“ अरे भाई मर्द बूढ़े नहीं होते .तुम भी अभी अच्छी भली हो , इसमें बुरा क्या है ? “


“ आपने मेरे में ऐसा क्या देखा ? कहीं आपको बाद में अफ़सोस न हो .” उसने बेवाक हो कर कहा


“ तुम अपनी आंखों से खुद को कैसे पहचान सकती हो ? हाँ आईने में अपना सिर्फ प्रतिबिम्ब भर देख सकती हो. मैंने जो अपनी आँखों से तुम्हें देखा है वह सिर्फ लब्जों में नहीं कह सकता हूँ .”


“ ठीक है , मुझे कुछ समय दें , प्लीज .”


“ बिल्कुल ठीक कहा है . सोच समझ कर ही इतना बड़ा फैसला लेना चाहिए .वैसे मेरे धर्म से तुम्हें कोई एतराज तो नहीं .मुझे तुम्हारा धर्म मंजूर है .”


“ मुझे धर्म से कोई आपत्ति नहीं है .”


धीरे धीरे काजल भी एक्का के फैसले से सहमत हो गयी . दोनों ने हैदराबाद में कोर्ट मैरेज कर लिया .गौरी अपनी बहन की शादी में शामिल हुई . काजल को भी पता लग चुका था कि उसकी शादी के पीछे गौरी का हाथ था . अब उसे गौरी से कोई शिकवा न था . नंदा भी अमेरिका से शादी में इंडिया आई थी , उसका बेटा सुधांशु नहीं आ सका था . सुधांशु करीब दस ग्यारह साल का हो चुका था .उसे अभी तक ठीक से पता भी नहीं था कि उसकी नानी की कोई बहन भी है . गौरी और काजल की बड़ी बहन उमा भी सपरिवार आयी थी .अशोक और एक्का ने काजल को बताया कि उसकी शादी गौरी के प्रयासों से संभव हुई है .काजल की गलतफहमी और नाराजगी दोनों मिट चुकी थी .दोनों बहनें गले मिलीं .


एक्का एक संतान चाहते थे .एक साल के अंदर ही काजल को बेटी हुई . इस अवसर पर नंदा अपने बेटे के साथ इंडिया आयी हुई थी .नानी गौरी ने उस से कहा “ चलो तुम्हें अपनी मौसी से मिलवा देती हूँ .”


सभी काजल के घर गए थे . सुधांशु ने देखा कि काजल के पास आठ दस दिन की एक छोटी सी बेबी हाथ पैर फेंक कर रो रही थी . गौरी ने सुधांशु को काजल के नजदीक ले जा कर कहा “ ये तेरी नानी हैं . इन्हें पैर छू कर प्रणाम करो .”


सुधांशु ने नानी को पैर छू कर प्रणाम किया . गौरी उसका कान पकड़ कर बोली “ अरे तुम भाग कहाँ रहे हो ? “

फिर उसके हाथ पकड़ कर बोली “ इस बच्ची के पैर छू कर प्रणाम करो , ये तुम्हारी मौसी है .”


सुधांशु अवाक हो कर सबके मुंह देखने लगा . बाकी सभी लोग ठहाका लगा कर हँसने लगे . नंदा ने बेटे को समझाया कि काजल नानी की बेटी तुम्हारी मौसी हुई न .


सुधांशु माँ के साथ अमेरिका लौट गया .वहाँ भी अपने दोस्तों को मौसी से मिलने की कहानी सुनाता तो वे बहुत हँसते . बाद में जब कभी सुधांशु मौसी से मिलता तो मौसी को बोर करने से नहीं चूकता .अब सुधांशु काफी बड़ा हो चुका है . फिर भी अपने से काफी छोटी मौसी से जब भी मुलाकात होती है वह बोलता “ मौसी इधर आएं , जरा अपने पैर छूने दें . मुझे आशीर्वाद नहीं देंगीं ? “


मौसी भागती फिरती और सुधांशु उसके पीछे पीछे दौड़ा करता . बाकी सभी देखने वाले इस दृश्य का भरपूर आनंद लेते .

समाप्त