Risky Love - 23 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | रिस्की लव - 23

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रिस्की लव - 23



(23)

बहुत सोचने पर मानवी को अंधेरे में एक छोटी सी किरण नज़र आई। यह किरण थी अंजली स्वामीनाथन।‌ वह उसके साथ चेन्नई निफ्ट में थी।‌ कोई आठ महीने पहले उसकी अंजली से बात हुई थी। तब उसने बताया था कि वह गोवा में है। उसका अपना फैशन स्टोर है। जहाँ वह अपने डिज़ाइन किए हुए कपड़े रखती थी।
निफ्ट में मानवी ने अंजली की सहायता की थी। उसके एक साल की फीस अपनी तरफ से जमा की थी। वह उसी मदद के बदले में अब मदद की उम्मीद कर रही थी। हालांकि उसके मन में संदेह था कि इस हालत में अंजली उसकी मदद करेगी। उसे लग रहा था कि जब अंजन ने उसके प्यार और उसके भाई के अहसानों को नज़रंदाज़ कर दिया तो वह गैर से क्या उम्मीद रखे। लेकिन इसके अलावा उसके पास कोई और राह नहीं थी। इसलिए उसने अंजली के पास जाने का फैसला किया।
फैसला तो उसने कर लिया लेकिन अभी भी कुछ सवाल थे। वह गोवा जाएगी कैसे ? पुजारी को क्या बताएगी ? गोवा पहुँचने पर अपनी इस हालत के बारे में क्या बताएगी ? वह अब इन सवालों के बारे में सोच रही थी। उसने सोचा कि अगर किसी तरह गोवा तक पहुँचने के लिए पैसों का इंतज़ाम हो जाए तो वह पुजारी को बिना बताए ही चली जाएगी।
वह नदी के किनारे से लौटी थी। दरवाज़े पर ही थी कि उसे पुजारी की पत्नी की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह चुपचाप खड़ी होकर सुनने लगी। पुजारी की पत्नी चिंता व्यक्त करते हुए कह रही थी,
"अब कब तक इस जवान लड़की मानवी को घर पर रख पाएंगे। जमाना ठीक नहीं है। कोई ऊंँच नीच हो गई तो सब हमको ही कहेंगे। कोई यह नहीं देखेगा कि इतने दिनों तक रखकर सेवा की।"
पुजारी की आवाज़ आई,
"तुम ठीक कह रही हो। पर क्या करें। अब ऐसे ही तो घर से निकाल नहीं सकते। सोचा था कि कुछ दिनों में अपने घरवालों के बारे में याद कर बता देगी। पर उसे तो कुछ याद ही नहीं है सिवा अपने नाम के। क्या करें ?"
"मुझे तो कभी कभी लगता है कि लड़की हमसे कुछ छुपा रही है। वह सब कुछ जानती है। शायद प्रेमी के साथ भागी होगी। उसने धोखा दे दिया होगा तो मरने के लिए नदी में कूद गई होगी। हमने बचा लिया। अब हमसे क्या बताए। यहाँ आराम से रहने खाने को मिल रहा है। इतना खर्च कर चुके हम दोनों उस पर।"
मानवी वहाँ से हटकर पास एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गई। वह सोच रही थी कि अब तो यह दोनों भी उससे ऊब रहे हैं। जाना तो उसे होगा ही। अब यहाँ रुकने का कोई मतलब नहीं। उसने उन दोनों को सुनाने के लिए उसने मन ही मन एक कहानी बनाई। वह उसे सुनाने के लिए उन दोनों के पास गई।
मानवी को देखकर पुजारी की पत्नी ने कहा,
"कहाँ रहती हो ? माना याददाश्त चली गई है पर दुनियादारी तो समझती हो। इतना तो जानती हो कि इस समय जवान लड़की का घर से बाहर रहना ठीक नहीं। अभी तो तुम्हारी ज़िम्मेदारी हम पर है। कुछ हो गया तो हम किसको किसको जवाब देंगे।"
मानवी फर्श पर बिछी चटाई पर बैठ गई। उसने इशारे से उन दोनों को भी बैठने के लिए कहा। पुजारी और उसकी पत्नी बैठ गए। मानवी ने अपनी बात कही,
"आप लोगों ने मेरी बड़ी मदद की है। कभी मौका मिला तो आप लोगों की भी मदद करूंँगी। मैं आज आप लोगों को अपने बारे में बताना चाहती हूंँ।"
पुजारी ने कहा,
"तुमको अपने बारे में याद आ गया।"
मानवी ने कहा,
"मुझे सब याद था। पर आप लोगों से डर के मारे छुपाया। मेरा पति मुंबई पुलिस में काम करता है। बहुत जल्लाद है। हर समय मारता पीटता रहता था। तंग आकर मैं घर से भाग निकली। कोई आसरा ना देखकर नदी में कूदकर जान देनी चाहिए। लेकिन बच गई। पर आज मैंने देखा कि मेरे पति के आदमी मुझे ढूंढ़ते हुए यहाँ तक आ गए हैं। मैं यहाँ रहकर आप लोगों को मुसीबत में नहीं डालना चाहती। अगर आप मुझे कुछ पैसे दे दें तो मैं यहांँ से चली जाऊँ।"
यह सुनकर पुजारी की पत्नी गुस्से में बोली,
"हम क्यों दें भागने के पैसे ? तुम्हारा पति आया है तो तुमको यहांँ से ले जाएगा।"

मानवी ने बात बनाते हुए कहा,
"आप लोगों ने मेरी इतनी मदद की है इसलिए मुसीबत में नहीं डालना चाहती हूँ। मेरा पति सनकी दिमाग का है। उसे लगेगा कि आप लोगों ने मुझे यहाँ छुपा कर रखा था। ऐसे में मेरे साथ साथ आप लोगों के लिए भी मुसीबत आ जाएगी। इसलिए कह रही थी। गोवा में मेरी एक सहेली रहती है। उसके बारे में मेरे पति को नहीं मालूम। मुझे इतने पैसे दे दीजिए कि गोवा पहुँच सकूँ।"
पुजारी की पत्नी कुछ कहने जा रही थी। उसे रोककर पुजारी ने कहा,
"जाना चाहती है तो जाने दो। कुछ पैसे दे देते हैं। इसके पति ने कोई बवाल किया तो इस उमर में क्या-क्या झेलेंगे।"
पुजारी की पत्नी ने कहा,
"हमारे पास पैसे हैं कहाँ ?"
मानवी ने कहा,
"बस उतने पैसे दे दीजिए जितने से मैं गोवा पहुंँच जाऊंँ।"

अगले दिन तड़के ही मानवी पैसे लेकर पुजारी के घर से निकल गई। उनका घर छोड़ते हुए उसके मन में आ रहा था कि जैसे भी थे उन दोनों ने उसकी मदद की थी। उसकी जान बचाई थी। अगर कभी उनके लिए कुछ कर पाई तो ज़रूर करेगी।

मानवी पणजी में अंजली स्वामीनाथन के फैशन स्टोर में खड़ी थी। फैशन स्टोर की रिसेप्शनिस्ट उसे अजीब निगाहों से देख रही थी। मानवी के हुलिए से ऐसा नहीं लग रहा था कि वह कुछ भी खरीदने की हैसियत रखती है। रिसेप्शनिस्ट ने रुखाई से पूँछा,
"क्या काम है तुम्हें ? यहाँ क्यों आई हो ?"
मानवी जानती थी कि उसका हुलिया देखकर वह ऐसे बोल रही है। मानवी ने बड़ी नम्रता से अंग्रेजी में कहा,
"मुझे अंजली स्वामीनाथन से मिलना है।"
जिस लहज़े में वह अंग्रेजी बोल रही थी उसे सुनकर रिसेप्शनिस्ट कुछ चौंक गई। कुछ नरम पड़कर वह बोली,
"आप कौन हैं ?"
"मैं उनकी पुरानी दोस्त हूंँ। किसी काम के सिलसिले में उनसे मिलना है। मेरी मुलाकात उनसे करवा दीजिए।"
"सॉरी पर अंजली मैडम तो अभी हैं नहीं। किसी ज़रूरी काम से गई हुई हैं। कुछ समय लगेगा आने में।"
मानवी ने उसी तरह नम्रता से पूँछा,
"क्या मैं यहांँ बैठकर अंजली का इंतज़ार कर सकती हूंँ ?"
मानवी का हुलिया भले ही कुछ और कह रहा हो पर उसके बोलने का लहज़ा रिसेप्शनिस्ट को यकीन दिला रहा था कि वह अंजली की दोस्त हो सकती है। फिर भी वह हिचक रही थी। मानवी ने कहा,
"अगर आपको समस्या है तो मैं बाहर इंतज़ार करती हूँ।"
यह कहकर वह बाहर जाने लगी। रिसेप्शनिस्ट ने उसे रोकते हुए कहा,
"आप अंदर बैठकर मैडम के आने की राह देख सकती हैं।"
मानवी वहीं एक प्लास्टिक स्टूल पर बैठ कर इंतज़ार करने लगी।

अंजली लौटकर आई। मानवी को देखते ही पहचान गई। उसे मानवी के द्वारा की गई मदद याद थी। मानवी को उस हालत में देखकर वह बहुत दुखी हुई। बातचीत करने के लिए उसे स्टोर के ऊपर बने अपने घर में ले गई। यह एक स्टूडियो अपार्टमेंट था।
उसने सबसे पहले मानवी को पीने के लिए जूस दिया। उसके बाद बोली,
"तुमको भूख लगी होगी। ऐसा करो तुम फ्रेश हो जाओ। मैं खाने के लिए कुछ आर्डर कर देती हूंँ। तब तक नीचे जाकर स्टोर देखती हूँ। फिर खाते हुए बातें करेंगे।"
उसने अपनी कबर्ड से उसके लिए एक ड्रेस निकाल कर रख दी। वह नीचे चली गई।
फ्रेश होने के बाद मानवी अंजली के ऊपर आने की राह देखने लगी। वह खुश थी कि अंजली को उसका किया हुआ अहसान याद था। उसके मन में आ रहा था कि बस अब अंजली उसकी मदद के लिए भी तैयार हो जाए। अंजली को अपनी इस हालत के बारे में क्या बताना है यह उसने सोच लिया था।
कुछ समय के बाद अंजली खाने का एक पैकेट लेकर ऊपर आई। खाना सर्व करने के बाद दोनों बालकनी में बैठकर खाने लगीं। यहांँ आकर मानवी को बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन उसके मन में अभी भी एक बात की चिंता थी। अंजली उसकी मदद करेगी कि नहीं। खाना खाते हुए अंजली ने कहा,
"तुम्हें देखकर यह यकीन से कह सकती हूंँ कि तुम किसी मुसीबत में पड़ी हो। क्या बात है ?"
"जब बुरा वक्त आता है तो कुछ भी सही नहीं रहता है।"
"ऐसा क्या हो गया ? कुछ महीनों पहले हमारी फोन पर बात हुई थी। तब तुमने बताया था कि तुम्हारी शादी हो गई है। तुम्हारे पति अंजन ने तुम्हारे भाइयों का बिज़नेस अच्छी तरह से संभाल लिया है। क्या तुम्हारे पति को बिज़नेस में नुकसान हो गया ?"
मानवी ने जो कहानी सोची थी वही बताई,
"अंजन धोखेबाज़ निकला। मुझे पता चला कि मेरे भाइयों की मौत के पीछे भी उसका हाथ था। उसने उनकी सारी प्रॉपर्टी और बिज़नेस हड़प लिया। मुझ पर बहुत अत्याचार करता था। मैं बड़ी मुश्किल से सब सह रही थी। लेकिन एक दिन मुझे पता चला कि वह मुझे मारना चाहता है। मैं मौका देखकर भाग निकली। पुलिस के पास जा नहीं सकती थी। उसके ऊपर तक कनेक्शन हैं। उसका आदमी मेरा पीछा कर रहा था। उसकी गोली मेरे हाथ में लगी। मैं घायल होकर नदी में गिर गई। एक बुजुर्ग दंपति ने मुझे बचाया, मेरी सेवा की। लेकिन वह मेरी मदद नहीं कर सकते थे। मुझे तुम्हारी याद आई। इसलिए बड़ी उम्मीद के साथ तुमसे मदद मांगने आई हूँ। प्लीज़ अंजली मेरी मदद कर दो।"
अंजली कुछ देर सोचकर बोली,
"मानवी मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूँ। मेरी तो सलाह है कि तुम उस अंजन के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करो। अपना सबकुछ वापस ले लो उससे।"
"मैं जानती हूंँ कि इससे कुछ नहीं होगा। उसने अपनी पहुंँच दूर तक बना रखी है। वैसे भी इस समय मेरी मानसिक दशा उससे लड़ने की नहीं है। तुम बस मुझे अपने स्टोर में काम दे दो। तुम जानती हो कि मैं एक अच्छी डिज़ाइनर हूंँ।"
अंजली सोचने लगी। मानवी ने कहा,
"प्लीज़ अंजली हेल्प मी। तुम्हें याद है ना मैंने भी तुम्हारी मदद की थी।"
"मुझे सब याद है मानवी। तुम्हारी मदद मैं कभी नहीं भूली। मैं तो बस यह सोच रही थी कि मेरे स्टोर में तुम्हारे लायक कोई काम नहीं है।"
मानवी को लगा कि अंजली उसकी मदद करने से इंकार कर रही है। उसे बुरा लगा। वह कुछ कहती उससे पहले अंजली ने कहा,
"पर कोई बात नहीं। तुम मेरे साथ रहो। मैं देखती हूंँ कि क्या कर सकती हूंँ।"
उसकी बात सुनकर मानवी का मन खुश हो गया।