मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही है कि मैं उस से सच कहूं कि वो अब कभी भी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकेगा और धीरे-धीरे mental condition भी बिगड़ती जाएगी। कैसे मैं उसे ये सच कहूं बच्चा है, वो मेरा....... बच्चा......हैं....। शायद आप इतने पत्थर दिल हो मैं नहीं, रवि कि मम्मी शांत हो जाओ, तुम तो रो सकती हो, चिल्ला सकती हो। थोड़ा मेरा तो सोचो मैं किससे कहूं कहां जाकर अपना सिर मारूं? तुम्हारा ही नहीं मेरा भी बेटा है, मुझे क्यों भूल जाती हो। बोलो.... मैं क्या करूं.... बोलो मैं क्या करूं........ रवि के पापा!!
रवि की मम्मी, मैं बस इतना ही जानता हूं कि हमें अब हिम्मत बांध के खड़े होना है और खुद को और अपने बच्चों को मजबूत बनाना है और मैं तुमसे भी यही उम्मीद करता हूं। पापा मम्मी एक-दूसरे की हिम्मत बांधने की कोशिश कर रहे थे और मैं भाई के सिरानी बैठ कर भाई-भाई कर रही थी, उस वक्त मुझे कुछ नहीं पता था और ना ही मेरी इतनी समझ थी कि मैं समझ सकूं क्या हो रहा है? मगर मुझे इतना तो समझ आ रहा था कि कुछ बहुत बुरा हो रहा है। ऐसा माहौल मेरे परिवार और मेरे घर का आज पहली बार मैंने देखा था। मेरी नन्ही उंगलियां भाई के बाल सहाला रही थी और मैं प्यार से भाई को पुकार रही थी उनकी लाडली जो थी हमेशा से उनकी तरह बनना चाहती थी। मगर आज ना भाई साहब कुछ बोल रहे थे और ना ही मम्मी पापा। ऐसा घर मैंने कभी नहीं देखा था, मैं तो बस भाई साहब के साथ खेलना और उन्हें प्यार करना चाहती थी। अचानक से मम्मी मेरे पास आई और बोली बेटा चलो, भाई को छोड़ो तुम्हें खाना खिलाना है चलो! मैंने कहा, मुझे नहीं जाना मुझे भाई के पास रहना है।मम्मी अचानक से चिल्ला पड़ी, सुनाई नहीं देता एक बार बोलो तो! मैं ये सुनते ही रोने लगी। मम्मी ने गुस्से में मुझे पर हाथ छोड़ दिया, मेरी रोने की आवाज सुनते ही। पापा मेरे रोने की आवाज सुनते ही भागे-भागे आए और मुझे गोद में ले लिया फिर मम्मी से कहने लगे तुम्हारे ऐसा करने से सब कुछ ठीक हो जाएगा? खुद को संभालो, बेटे की हालत की वजह से बेटी को नजरअंदाज मत करो! मम्मी ने मुझ पर कभी भी हाथ नहीं छोड़ा था, ऐसा पहली बार हुआ था, मम्मी भी बहुत दुखी हुई फिर वो मुझे और पापा को गले लगा कर ख़ूब रोई। मम्मी को रोता देख मैंने मम्मी कि आंखों से आंसू पोंछे। ऐसा मेरा परिवार पहले कभी नहीं हुआ था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब हो क्या रहा है? हम सब क्यों रो रहें हैं? मम्मी की मुस्कान और हंसी कहां चली गई? अचानक से ऐसा क्या हुआ जिसने मेरे परिवार को एकदम से बदल दिया। शायद उस वक्त मैं चाह के हूं है ये सब समझ नहीं सकती थी, इसकी वजह मेरा अबोध होना था लेकिन मुझे इतना तो समझ आ चुका था कुछ ऐसा हुआ है जो सब कुछ बदल कर चला गया है......... सब कुछ................ मेरा सब कुछ.........
ना जाने कितने घंटे बीत गए थे और पता नहीं कब भाई साहब को होश आएगा। मेरी आंखों में अचानक से चमक आ गई। मैंने देखा कि भाई साहब को होश आ रहा है। मैं चिल्लाई पापा मम्मी भाई उठ रहे हैं, भाई उठ रहे हैं !वो भागे-भागे कमरे में आए। उन्होंने भाई को देखा और कहा बच्चे ठीक हैं दर्द नहीं हो रहा है, भाई कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे। 2 साल के बच्चे की तरह कर रहे थे। मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैंने हंसकर कह दिया भाई यह क्या कर रहे हो, कुछ बोलो तो सही, मम्मी भाई की तरफ देख कर बोली बेटा मैं समझ गई। मैं बड़ी अजीब निगाहों से भाग कर देख रही थी पापा भाई के करीब आकर बैठ गए पर उनका माथा सहलाने लगे और कहने लगे आपके पापा की जान हो, शान हो ऐसे परेशान नहीं होते मम्मी और पापा है ना आपके साथ, मुझे पता है तुम सोच रहे हो तुम्हें क्या हुआ है? आप को कुछ नहीं हुआ है, बस आप थोड़े-से बीमार हो time के साथ ठीक हो जाओगे।जब ये सब पापा ने कहा तो मैं खुशी से नाचने लगी। भाई जल्दी से ठीक हो जाएंगे फिर हम खूब करेंगे, खूब मजा मजा करेंगे बहुत मजा आएगा।
मुझे क्या पता था मैं एक ऐसे सच से अनजान थी जो मेरी जिंदगी हिला देने वाला था.......