Sand and stone in Hindi Short Stories by Anita Sinha books and stories PDF | बालू और पत्थर

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बालू और पत्थर



बालू और पत्थर

जब भी हम बालू और पत्थर के विषयों पर गौर करते हैं

तो देखते हैं कि बालू और पत्थर ना मिले तो जमता नहीं है।

जब भी हमारे घर के पास बालू का ट्रक आता था ।मैं दौड़कर

देखने जाती ‌। ‌ ये मेरे बचपन की बातें हैं जो मैं आप सबों के

साथ चर्चा कर रही हूं ।।

बालू को गिराने हेतु ट्रक का एक ऊपरी हिस्सा खोल दिया

जाता और सर सर बालू गिरता फिर बालू की ढेरी बन जाती।

जैसे ही ट्रक वाले गये मेरा बालू पर कूदना शुरू हो जाता।

फिसलती रहती ठंडे ठंडे बालू की ढेरी पर ।। जब देखती

कि बालू नीचे की ओर ज्यादा गिर गया है तो तुरंत बालू को

धरातल से ऊपर की ओर हाथों से उठाने की कोशिश में

लगी रहती । सखि सहेलियां सब मिलकर बालू का घरौंदा

बनाते उसे पत्तों से सजाते और पुटूस के फूलों को घरौंदा

के सामने लगा देते । इस तरह हम सबों का बालू की ढेरी

पर उछल कूद निरंतर चलता रहता। क्योंकि पास में ही

भवन निर्माण हो रहा था। बालू की अहमियत हम तब समझते हैं जब भवन या और भी निर्माण कार्य होते हैं।
सीमेंट में मिला दिए ये मिलकर लेप बन गया और भवन
की ईंटों को सुरक्षा प्रदान करते हुए एक आलीशान महल
का स्वरूप और भी जितनी बिल्डिंग बनती है।सब बालू
ना हो तो कैसे बने। तो बालू को जब हम बिखेर देते हैं।
उस समय ये विलाप करती है कहती है कि में तो अब
बिखर गरी तो तुरंत तो नहीं पूरा का पूरा उठ सकता है।
ये बिल्कुल समतल हो जाता है बिखेरने के बाद। तभी
उठाने वाले को वक्त लग जाता है।

तभी बालू रोती है। कहती है देखो मानव मैं तो तुम्हें
मिलना और मिलाना सिखाने की हूं। तुम लोग तो
सीखना चाहते ही नहीं। बस यूं ही मुझे बिखेरकर मेरा
तमाशा बना देते हो ।। सुन लो यदि मैं सीमेंट और गिट्टी
के साथ नहीं मिलूं तो क्या तुम भवन बना लोगे ।
बिल्कुल नहीं तो मुझसे भी प्रेम करो ।मेरा आदर करो।
मेरे मोल को समझो। यूं ही व्यर्थ मत बर्बाद करो।
यही मेरा अनुरोध है और कुछ नहीं।

बालू पर खेले सब कोय । जब बालू बिखर जाए तो

समेटे ना कोय। क्या मुझे दर्द नहीं होता ।मेरा दर्द

न जाने कोय ।

अब पत्थर की बात करते हैं । बालू से जब हम सब घरौंदा

बनाते तो उस समय पत्थर हाथों से आते तो उस पत्थरों

को मैं अलग-अलग चुनकर रखती ।। कभी सीप भी मिलते।

कभी धारदार पत्थर मिलते तुम कभी छोटे छोटे गोल गोल

पत्थर मिलते। कोई पत्थर काले तो कोई बिल्कुल सफेद

एवं कोई बिस्कुट कलर के होते ।

कभी बहुत ही छोटे पत्थर तथा अंडाकार पत्थर भी मिलते ।

मेरे पापा जब अंडाकार पत्थर मिलता तो उसे पास में

रख लेते और कहते कि ये शालिग्राम शिला है। इसे लो

अच्छे से रखना और मैं जाकर अपनी अलमारी में रख आती।।

इतने खुबसूरत चमकीले पत्थर धूप में और उनकी चमक

बढ़ जाती । मैं जितने पत्थर अंडाकार और गोल छोटे

साइज के होते वो जमा करती । अट्ठा गोटी खेलती आंगन में।

तो पत्थर खुबसूरत इतने होते हैं कि मन को लुभाते हैं।

पत्थर बालू के साथ मिलकर शोभा पाता है। ये भी संदेश

देता है कि देखो मैं बालू के साथ ही था और मेल मिलाप मैं

पसंद करता हूं। एकता मेरा गहना है। मुझे तो बालू के साथ

ही रहना है तभी मेरी भी अहमियत है। बालू पत्थर और

सीमेंट मिलाकर ही तो भवन के छत ढलाई होते हैं। ताकि

मजबूती बनी रहे। भवन की नींव में पत्थर लगाया जाता है है। बीच-बीच में मिट्टी भराई करतें हैं। तो पत्थरों का
बहुत उपयोग है।

पत्थर से हम मिलना मिलाना सीखते हैं। पत्थर छूने से
कठोर तो लगता है पर ये कठोर दिल का नहीं। पत्थर भी
रोते हैं। जब इन्हें ठोक पीट कर मूर्तियां बनाई जाती हैं।तब
कितनी बार तोड़ी जाती है। पत्थरों में भी दर्द छिपा हुआ
होता है। पत्थर से हम सहनशीलता का पाठ पढ़ सकते हैं।
कोई होता साधारण पत्थर तो कोई चमकते और बेशकीमती
होते हैं। पत्थर तकलीफों को सहकर भी शिकायत नहीं
करते हैं। तभी पत्थरों की मांग बहुत है । पत्थरों की सीढ़ियां
बनवाते हैं। पत्थर कोठी भी बनाते हैं। पत्थरों की मूर्ति वीर शहीद बलिदानियों की बनती है जो चौराहे और मुख्य व्यस्त स्थलों पर लगाई जाती हैं । पत्थऱों की युगल
प्रेम की अपूर्व निशानियां बनाकर महानगरों या शहरों के
मुख्य द्वार या ऐसे जगहों पर लगाते है जो आते जाते
मनुष्यों की अनायास नजर पड़ जाए। स्तूप और शिला लेख
बनाने में प्रयोग होता है ।

कहने का तात्पर्य यह है कि पत्थर अथाह दुखों को सहकर
अपनी ख्याति प्राप्त करता है ।। पत्थरों से भी प्यार करें।
पत्थर कलाकारी को चित्रित कर एक बेहतरीन प्रस्तुति
करता है।

तो निष्कर्ष यह है कि प्रकृति प्रदत्त चीजों की हम मूल्य
समझे और बर्बाद नहीं करें ।।