कस्बे का आई.सी.यू. in Hindi Comedy stories by Alok Mishra books and stories PDF | कस्बे का आई.सी.यू.

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कस्बे का आई.सी.यू.

कस्बे का आई.सी.यू.
ये एक छोटा सा कस्बा है । इस कस्बे में एक सरकारी अस्पताल भी है । जहॉं कुछ डॅ़ाक्टर केवल इसलिए आ जाया करते है कि उनकी तनख्वाह के साथ-साथ घरेलू दवाखाना भी चलता रहे । अस्पताल की स्थिति ऐसी है कि मरीज बस आ कर भर्ती होता है , उसे दवा ,डॉक्टर और नर्सों का खर्च स्वयं ही उठाना होता है । खैर ... ये तो हमारे कस्बे के गरीब लोगों के लिए व्यवस्था है । अमीर लोगों के साथ ही साथ अमीर दिखने की चाहत रखने वाले मध्यमवर्गियों के लिए कस्बे के सरकारी डॉक्टरों के बडे़-बड़े दवाखाने है। ये दवाखाने सरकारी अस्पतालों की बदहाली , दवाओं और पैथेलॅाजी आदि के कमीषनों से खड़े है ।
कुछ समय पहले हमारे शहर का एक छुटभईया सरकारी अस्पताल में मर गया। बड़े नेताओं ने आंसू बहाए । कुछ ने कहा ‘‘गरीबों के लिए सरकारी अस्पताल में आई.सी.यू. होना चाहिए। ’’ किसी ने पता करके बताया कि सरकारी अस्पताल में पिछले दस वर्षों से आई.सी.यू. है , उसका उद्घाटन भी मंत्री जी ने किया था। कुछ को तो ये भी याद आ गया कि मरे हुए छुटभईये ने उसमें कितना कमीशन खाया था । आज इस सरकारी आई.सी.यू. के उपकरण खराब पडे़ है या अस्पताल से बाहर कही है । इन सब बातों के बीच एक डॅाक्टर साहब को अंदाज हो गया कि यदि उनकी क्लीनिक में आई.सी.यू. की सुविधा हो तो कितना लाभकारी व्यवसाय हो सकता है। सरकारी अस्पताल का आई.सी.यू. तो आज भी बंद पड़ा है । डॅाक्टर साहब ने अपने एक हाल को आई.सी.यू. में बदल ड़ाला । अब इस आई.सी.यू. में दस-बारह मरीजों को किसी जनरल वार्ड की ही तरह रखा जा सकता है ।
इस आई. सी.यू. का बड़े ही भव्य तरीके से शुभारम्भ हुआ । इसमे बड़े-बड़े नेता और अधिकारी भी पधारे । इसे कस्बे की शान निरुपित किया गया । खैर साहब ... अब हमारे कस्बे को भी अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएॅं प्राप्त होने का भ्रम होने लगा है । अब बीमारी कोई भी हो डॉक्टर के अस्पताल में मरीज को कम से कम तीन दिन आई.सी.यू. में रहना ही पड़ता है । एक साहब की उंगली में फांस गड़ गई , वे उसे साधारण तरीके से नहीं निकाल पाए । वे जैसे ही क्लीनिक पहुँचे डॅाक्टर साहब ने उन्हें बताया कि मामला बहुत ही गंभीर है । यदि शाम तक अॅापरेशन नहीं हुआ तो वे अल्लाह को प्यारे हो सकते है । मरीज जो चलता हुआ आया था और अपने आपको तंदरुस्त समझ रहा था , अब घबरा गया । उसे डॉक्टर साहब में खुदा दिखने लगा । डॉक्टर साहब ने सबसे पहले मरीज को आई.सी.यू. के हवाले किया ; फिर ढेर सारे टेस्ट लिखे और बताया कि कहॉं से करवाने है । फिर दवाओं कि एक लम्बी लिस्ट लिख दी। डॅाक्टर साहब जानते है कि जितनी अधिक दवाएॅं उतना अधिक कमीशन के साथ-साथ मरीज और उसके रिष्तेदारों के लिए अधिक गंभीर रोग । अब मरीज आई.सी.यू. में और उसके रिश्तेदार बाहर मोबाइल पर सब को खबर कर रहे है कि ‘‘लाला आई.सी.यू. में भर्ती है ।’’ यह खबर दूसरे शहर के रिश्तेदारों को भी की गई । कुछ तो आई.सी.यू. सुन कर तेरह दिन के लिए घर से फुर्सत हो कर निकले । कुछ बेमन से मोबाइल को कोसते हुए मजबूरी में चल दिए । कुछ आस-पास के लोग मरीज को देखने से अधिक आई.सी.यू. को देखने के लिए भागे-दौड़े से पहुँचे ।
‘‘ देखो भाई मरीज को डिस्टर्ब नहीं करना है ,मिलने का समय है एक घंटा शाम को; तभी सबको मिलने दिया जाएगा ’’ नर्स ने बताया । अब बाहर भीड़ लगने लगी एक बोला ‘‘ बताइए.... छोटी सी फांस से भी कितनी परेशानी हो गई ।’’ सबको अपनी-अपनी ही पड़ी है दूसरा बोला ‘‘ सही कहते है आप फांस तो इन्हे गड़ी है और हम आ रहे है परेशान हो के दो सौ किलो मीटर से। लोग बातचीत करते बैठे रहे । कोई ऐसी बीमारियों से मरने वालों के बारे में बता कर ड़राता ,तो कोई हिम्मत बढ़ाता और कोई अपने को डॉक्टर से काबिल मानते हुए इलाज के अपने नुस्खे बताता ।
आई.सी.यू. के अंदर केबिन में कुछ जूनियर डॅाक्टर नर्सों के साथ समोसे खाते और ताश खेलते हुए बात कर रहे थे ‘‘ वो एक नंबर वाला है न उसे कोई परेशानी नहीं है डॅाक्टर का कहना है उसे ड़रा कर रखो मोटा आसामी है ’’ एक बोला । दूसरा बोला ‘‘ सात नंबर वाला तो खुद ही जाना नहीं चाहता सुना है गिरफ्तारी वारंट निकला है ।’’ तीसरा बोला ‘‘डॉक्टर तो मरीज लाने पर भी कमीशन की बात कर रहे थे लेकिन कोई भी बेड खाली नहीं रहना चाहिए । खैर .....शाम को बाहर से आए लोगों ने मरीज को कम आई.सी.यू. को अधिक देखा । बाहर आए तो किसी ने पूछा ‘‘ क्या हाल है ... लाला के ?’’ वे बोले ‘‘ ठीक है ... लेकिन क्या मस्त ठंडी हवा है , क्या मषीनें ,दिन रात नर्से और डॅाक्टर .... इसे कहते है आई.सी.यू.... सब रईसी के चोचले है भाई ।’’
अब आई.सी.यू. रुपी छूत की बीमारी पूरे कस्बे के प्राइवेट क्लीनिकों में फैल गई । अब जनरल वार्ड की तरह ही हमारे कस्बे में लोग आई.सी.यू. में भर्ती होते है । ऐसा लगने लगा है कि आई.सी.यू. क्लीनिक की सीमाआें को लांघ कर पूरे कस्बे में छा गया है । अब आम आदमी आई.सी.यू. को हिन्दी में डॉक्टरों का कथन ‘‘मैं देख लुंगा’’ समझने लगे है ।
आलोक मिश्रा " मनमौजी"