“भगवान की लाठी “
रघुवन में कीटु लकड़बग्घा की धृष्टता प्रतिदिन बढ़ती जा रहीं थीं। धृष्टता क्या, सच कहें तो अपराध बढ़ते जा रहे थे। दूसरों को हानि पहुंचा कर स्वयं आनंदित होना उसका प्रतिदिन का काम था। परिचित और अपरिचित वो किसी को भी नहीं छोड़ता था। उसके कर्म से किसी को चोट लगे या कुछ कठिनाई या समस्या हो उसे कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता था। रघुवन के सारे जीव उससे दुखी थे। सबने उसे बहुत समझाया और ऐसी गन्दी आदत छोड़ने की बात करी। पर वो किसी की भी बात नहीं मानता था।
अब तो वह रघुवन से होकर निकलने वाले पथिकों तक को कष्ट देने लगा था। कभी किसी पे गुर्राता और डराके उनका भोजन या अन्य वस्तुएं छीन लेना। छोटे बच्चों पे तो वो हिंसक आक्रमण भी कर देता था। सभी उससे छुटकारा चाहते थे।
एक दिन रघुवन से एक साधु निकल कर जा रहे थे। वो बहुत शांत चित प्रतीत हो रहे थे। उनके कंधे पे एक पोटली टंगी हुई थी। कीटू लक्कड़बग्घा ने साधू को और उसके कंधे पे लटकी हुई पोटली को देखा। पोटली देखते ही कीटू के मन में लालच और धृष्टता दोनो आ गईं। अच्छे भोजन के लालच में वो किसी भी तरह उस पोटली को पाना चाहता था। वो साधू के पीछे हो लिया।
साधू रघुवन की सुंदरता का आनंद लेते हुए चले जा रहे थे। कीटू एक अवसर मिलने की आशा में छिपता हुआ उनका पीछा कर रहा था। एक घने पेड़ के नीचे वो विश्राम करने के लिए रुके। पेड़ के नीचे बैठे और पोटली को नीचे रखा। कीटू के लिए यही अवसर था। कीटू ने समय नहीं गंवाया और छलांग लगा कर पोटली अपने मूंह में दवा लिया। पोटली मूंह में दबाए वो दूर भागा। उसने जल्दी से पोटली के अंदर मुंह डाला ही था की किसी ने पोटली को कस के पकड़ के उसका मूंह पोटली के अंदर बांध दिया। उसको कुछ समझ आ सके पहले उसके ऊपर लाठियों के प्रहार होने लगे। जिधर भागता उसे उसी तरफ से प्रहार होते। मार खाते खाते वो नीचे गिर गया। उससे हिलते भी नहीं बन रहा था। आंखे भी नहीं खुल पा रही थीं।
फिर कोई पीछे से आया और पोटली लेके चला गया। उसे एक ध्वनि सुनाई दी " बाबा यह लो आपकी पोटली" । फिर कुछ पैरों के दूर जाने की आहट सुनाई दी। उसे जाल में बांध कर एक गाड़ी में डाल दिया। बस फिर उसके बाद ना उसे कुछ दिखाई दिया और ना सुनाई दिया।
चमेली चील यह सब देख रही थी। उसने सभी जानवरों को जाकर कीटू के बुरे हाल के बारे में बताया।
कीटू उस दिन के बाद किसी को भी दिखाई नहीं दिया। सारे जानवर को भी आश्चर्य था की वो कहां गायब हो गया। परंतु सब प्रसन्न थे। अब उन्हें प्रतिदिन की कठिनाई से छुटकारा जो मिल गया था। यह सब भगवान की लाठी का कमाल था। जो दिखती नहीं बस पड़ती है।
जब सबको भरोसा हो गया कि अब कीटू लक्कड़बग्घा कभी नहीं आएगा तो सबने मिलकर पार्टी करी।