Bird prowl in Hindi Comedy stories by Alok Mishra books and stories PDF | पंछी उवाच

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पंछी उवाच




पंछी उवाच

ये जंगल बहुत ही अच्छा और सुंदर था । कल-कल करती नदियॉ , हरे-भरे पेड़ों से लदे पहाड़ और जानवरों की बहुतायत । हम जानवरों को सब कुछ इसी जंगल से ही मिलता था । इस जंगल की खासियत यह थी कि अभी इसमें दो पैरों पर चलने वाले जानवरों की घुसपैठ कम ही थी । वैसे भी वे दो पैर पर चलने वाले जानवर अपने लिए अलग ही तरह के कांक्रीट के जंगल बना कर रहते है । हम जानवरों को यदि सबसे अधिक ड़र लगता है तो बस इन्हीं दो पैरों पर चलने वाले जानवरों से । ये जानवर सीमाऐं बनाते है , हथियारों का प्रयोग करते है और सबसे बड़ी बात वे हमारे साथ ही साथ अपनी जाति के भी दुश्मन होते है । इन जानवरों में से कभी कभार ही कुछ जानवर इस जंगल में दिखते थे । उनके दिखते ही हम सब जानवर एक दूसरे को इशारा कर देते और छुप जाते ।

हमारे जंगल में भालू दादा सबसे सयाने और विद्वान है । वे कभी दो पैर वाले जानवरों के इशारों पर नाचा करते थे फिर वहॉ से भाग कर हमारे बीच आ गए । वे बताते है कि जंगलों में जो कभी कभार दो पैर वाले जानवर दिखते है उन्हे सैनिक कहते है । सैनिक याने क्या ? हमें क्या मालूम ? इस पर उन्होने बताया कि दो पैरों के जानवरों में बहुत से भेद है जन्म से , पद से और नियमों से । ये सैनिक बड़े ही जांबाज दो पैरों वाले जानवर होते है ये उनकी सीमाओं की रक्षा और विस्तार के लिए हमेशा प्राण देने को तैयार रहते है । अब हम जानते है कि ये सैनिक हमारे लिए कम और अपनी जाति के लिए अधिक घातक है ।

एक दिन अचानक दोनों ओर से बहुत सारे सैनिक जंगल की ओर बढने लगे बड़ी - बड़ी गाडि़यों के साथ । भालू दादा ने बताया कि दो पैरों वाले जानवरों में सीमा को ले कर कुछ विवाद हो गया है इसलिए उनमें युद्ध हो सकता है । यह समझना तो कठिन था कि इस युद्ध में उनका कौन-कौन मरेगा परन्तु हम में से कोई भी मर सकता था । बस हम सब अपनी-अपनी जान बचा कर भाग लिए । हम ड़रे सहमे से छुपे रहे । हमें धमाकों की आवाजें और चीखों का शोर सुनाई देता तथा धुए का गुबार हम दिखाई देता । कुछ दिनों तक यह सब चलता रहा फिर रुक गया । तब हमें पता चला कि हमारे जंगल के बीचो बीच से दोनों ही देशों की सीमा जाती है । अब नदी दूसरे देश में थी और हमारे घोषले दूसरे देश में ।

समय बीतते न बीतते जंगल के बीचों बीच से कठीले तार लग गए । इस ओर कुछ दो पैरों वाले जानवर अपनी मांद में बैठ कर दूसरी ओर के दो पैर वाले जानवरों को ताकते , वहीं दूसरी ओर भी दो पैर वाले जानवर भी वैसा ही करते । हम जंगल के जानवर उन्हे देखते और हंसते रहते । अब हमें भी तकलीफ होने लगी । हाथीयों का झुण्ड़ जो पानी पीने नदी पर जाया करता था अब दूर के तालाबों पर जाने लगा । भालू दादा अब हमारे न रहे , वे अब तारों के उस पार नदी के छोर पर रहते है । इस बटवारे ने हमें भी बांट दिया । बस हम पंछी है जिन्हें इससे अधिक फर्क नहीं पड़ा । हम सुबह - सवेरे ही उधर चले जाते दाना चुगते और रात को अपने बसेरों पर लौट आते । हमें जाते और आते देख कर दोनों ही ओर के दो पैर वाले जानवर हमें भी शंका से देखते रहते ।

एक दिन हमारी वजह से भी दो पैर वाले जानवर लड़ने लगेंगे ये हमने कभी सोचा भी नहीं था । हुआ यूं कि एक अवाबील को शरारत सूझी । उसने दाना चुग कर लौटते समय एक अण्ड़ा सीमा पर ही छोड़ दिया । सुबह इस इलाके में गहमा- गहमी थी । उस अण्ड़े को ले कर सीमा पर दो पैर वाले जानवरों के बीच विवाद होने लगा । सीमा पर रखे उस अण्ड़े पर दोनों ओर के सैनिक अपना होने का दावा कर रहे थे । सैनिकों का जमावड़ा बढने लगा । दोनों ही ओर से अण्ड़े पर अधिकार करने के लिए तोप कहलाने वाली गाडि़यों बढने लगी । हम जंगल के जानवरों को लगने लगा कि ये दो पैर वाले जानवर इस छोटे से अण्ड़े के लिए हमारी भी शांति भंग कर देंगे । अब हम सब जानवर एक ओर जमा होकर आनी जान की सलामती के लिए विचार करने लगे । उधर वे जानवर अपने पूरे जानवरपन के साथ मरने - मारने को तैयार हो रहे थे । अब वो अण्ड़ा अण्ड़ा न हो कर दोनों देशों के लिए शान और विजय का प्रतीक बन गया था । धमाकों और गोलियों की आवाजों के बीच दोनों सेनाए अण्ड़े तक पहुॅचने का प्रयास करने लगी । एक देश की सेना कुछ ही घंटों में वहॉ पहुॅच भी गई लेकिन ...... लेकिन ..... अण्ड़ा कहॉ है ? अण्ड़ा तो एक नेवला ले भागा उसे मालूम जो था कि सारे फसाद की जड़ यही अण्ड़ा है । दोनों ही देश के बादशाहों ने इस युद्ध में अपनी फतह की घोषणा कर दी । अवाबील का असली अण्ड़ा तो चुपके से नेवला ले भागा था लेकिन दोनों ही देशों में और दो अण्ड़ें आज भी उस युद्ध की जीत की याद दिलाते है । हम जानवरों ने इस क्षेत्र की शांति के लिए संकल्प कर लिया कि कोई आस्तीन का सांप भले ही सीमा पर अण्ड़े दे तो दे परन्तु इस जंगल का कोई सांप भी वहॉ अण्ड़े नहीं देगा ।

आलोक मिश्रा " मनमौजी"