Featured Shortcuts - Part 2 - 2 in Hindi Short Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | चुनिंदा लघुकथाएँ - भाग 2 - 2

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चुनिंदा लघुकथाएँ - भाग 2 - 2

6

शह

अठारह-बीस वर्ष की एक युवती, बाल बॉयकॉट, जींस और टॉप पहने, हाथ में पर्स झुलाती, सड़क पर मटकते हुए जा रही थी। सामने से आते बाइक-सवार युवकों ने बाइक रोकी और उनमें से एक बोला - ‘हम तैयार हैं। चलो बैठो बाइक पर।’

युवती - “ख़ैर चाहते हो तो खिसक लो, वरना शोर मचा दूँगी।’

‘ग़र शोर ही मचाना था तो निमन्त्रण क्यों दिया?’

‘मैंने तुम्हें कोई निमन्त्रण नहीं दिया।’

यह वार्तालाप चल ही रहा था कि एक बुजुर्ग जो वहाँ से गुजर रहा था, ने रुककर युवकों से कहा - ‘बच्चो! क्यों परेशान कर रहे हो लड़की को?’

‘अंकल, इसके निमन्त्रण पर ही हम इसे अपने साथ चलने को कह रहे हैं,’ एक युवक बोला।

बुजुर्ग की उपस्थिति से युवती ने साहस बटोर कर कहा - ‘अंकल, मैं अपने राह जा रही थी। ये मुझे बेवजह परेशान कर रहे हैं।’

पहले वाला युवक - ‘अंकल, इसके टॉप को देखो, क्या लिखा है?’

बुजुर्ग ने युवती के टॉप पर दृष्टि डाली। अंग्रेज़ी में लिखा था - कम एण्ड एन्जॉय। उसने युवकों को कहा  - ‘तुम लोग जाओ। मैं इससे बात करता हूँ।’

‘बेटी, यदि तुम इस तरह के कपड़े पहनकर निकलोगी तो लड़कों को दोष नहीं दे सकते।’

युवती ने सिर झुकाकर कहा - ‘सॉरी अंकल’, और खिसक ली।

॰॰॰॰॰

7

"भीड़ का मज़हब"

 

'सर, इस दु:ख की घड़ी में मैं किन शब्दों में संवेदना प्रकट करूं, समझ में नहीं आ रहा? आपके छोटे भाई की हत्या....वह भी तब जबकि उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। घोर अनर्थ......। वे तो वहाँ समझाने-बुझाने के लिए ही गये थे।' प्रदेश के गृहमंत्री मान्यवर रफी साहब के पी.ए. ने सांत्वना जताने वालों से मंत्री जी के फारिग होने पर कहा।

'विनोद, असलम का हमारे साथ इतना ही सम्बन्ध था। भीड़ में उसका कत्ल न भी होता तो कोई और कारण बनता। मौत का वक्त नहीं टलता।'

'सर, आपकी बात बिल्कुल ठीक है। फिर भी एक बात कहे बिना नहीं रहा जा रहा। बहुत-से चश्मदीद गवाह कह रहे हैं कि बर्छी फेंकने वाला हिन्दू था। ठीक है, आप प्रदेश के गृहमंत्री हैं। कानून अपना काम करेगा। सर, एक बार एस.पी. को बुला कर चश्मदीद गवाहों के बयान रिकॉर्ड करने की ताकीद तो कर देनी चाहिए।'

'नहीं। मैं अपनी ओर से ऐसा कुछ नहीं करूंगा। साम्प्रदायिक भीड़ में भावनाओं को भड़काया गया। जिस किसी ने भी बर्छी फेंकी, उसका निशाना असलम कतई नहीं था। वह उन्माद में था। बर्छी असलम को न लगकर भीड़ में उसके साथ खड़े किसी भी आदमी को लग सकती थी, किसी हिन्दू को भी।.... भीड़ का कोई मज़हब, धर्म नहीं होता। सही-गलत का फैसला करने की किसी को अक्ल नहीं रहती। इसलिए मैं इस मामले को तूल देकर हालात को और बिगाड़ना नहीं चाहता।'

॰॰॰॰

 

8

" उऋण "

 

श्रीमद् भागवत कथा चल रही थी। व्यास पीठासीन महाराज जी ने ज्यों ही अपनी वाणी को  विश्राम दिया कि श्रोताओं में से जालीदार टोपी पहने एक व्यक्ति ने उठकर व्यासपीठ को दण्डवत प्रणाम किया और व्यासपीठ पर चौकी पर रखी श्रीमद् भागवत पुराण के साथ रखे माईक को उठाकर बोलना आरम्भ किया तो श्रोताओं में खुसर-पुसर होने लगी।

माईक हाथ में लिये जब उस व्यक्ति ने गौमाता का जयकारा लगाया तो सभी स्तब्ध। खुसर-पुसर एकदम बंद। उसने कहना आरम्भ किया - 'आज की कथा में गोपाष्टमी का महत्त्व बताते हुए महाराज जी ने आप सभी भक्तों से निवेदन किया है कि प्रत्येक सद्गृहस्थ को घर में भोजन बनाते समय सर्वप्रथम गौमाता के लिये एक-दो चपातियाँ अवश्य बनानी चाहिएँ, क्योंकि गौमाता के अतुल्य अवदान का इस प्रकार थोड़ा-बहुत ऋण उतर जाता है। महाराज जी के निवेदन के साथ मैं अपनी ओर से इतना और जोड़ना चाहूंगा कि अक्सर देखा गया है कि गौमाता के लिये हम आहार की व्यवस्था तो कर लेते हैं, किन्तु उनके लिये पानी की आवश्यकता को भूल जाते हैं। अतः मेरा आप सभी भक्तों से निवेदन है कि अपने गली-मोहल्लों में पानी की खरल अवश्य बनवायें।'।

इन सज्जन का इतना कहना था कि महाराज जी व्यासपीठ से उठे और उन्हें दण्डवत प्रणाम कर आलिंगनबद्ध कर लिया। इस अद्भुत नज़ारे को देख सारा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।

॰॰॰॰॰॰

9

"इच्छाशक्ति "

 

लड़के-लड़की ने जब एक-दूसरे से बातचीत करने के उपरान्त अपने-अपने माता-पिता को अपनी स्वीकृति दे दी तो समधियों-समधनों में बधाइयों का आदान-प्रदान हुआ, एक-दूसरे का मुँह मीठा करवाया गया।

तदुपरान्त लड़के के पिता बालमुकुंद ने लड़की के पिता मनोहर श्याम को संबोधित करते हुए कहा - 'शाह जी, बच्चों को आपस में भाषा की कोई दिक्कत नहीं आएगी, यह मैं जानता और समझता हूँ, किन्तु बिटिया को मेरी श्रीमती जी से तालमेल बिठाने में जरूर दिक्कत का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि वह तो केवल तेलगु ही जानती है, हिन्दी बिल्कुल नहीं।'

मनोहर श्याम ने बालमुकुंद का हाथ अपने हाथों में लेकर उसे आश्वस्त करते हुए कहा - 'शाह जी, आप निश्चिंत रहिए। जैसा आपने फ़रमाया, बच्चों को आपस में कोई दिक्कत नहीं आने वाली तो मीना बिटिया अपनी सासू-माँ से तालमेल बिठा लेगी, ऐसा मैंने यहाँ आने से पहले ही कन्फर्म कर लिया था। चाहे हम घर पर पंजाबी ही बोलते हैं, मीना हिन्दी, पंजाबी, अंग्रेजी सब जानती है। वह जल्दी ही आपकी श्रीमती जी को पंजाबी बोलना-समझना सिखा देगी। यह गुण इसने मुझ से पाया है। आपको बता दूँ कि आज से कोई चालीस साल पहले मुझे पत्र-मित्रता का शौक था। उस समय चेन्नई में मेरा एक पत्र-मित्र था, जिसे मैंने पत्रों के माध्यम से ही पंजाबी सिखा दी थी। यह अलग बात है कि मैं उससे तमिल नहीं सीख पाया। शायद मेरी इच्छाशक्ति में कमी रही होगी।' बात पूरी होते ही बालमुकुंद ने ठहाका लगाते हुए कहा - 'वाह, भाई साहब, इच्छाशक्ति में कमी, और आपकी? हो ही नहीं सकता। अवश्य कोई अन्य कारण रहा होगा!'

॰॰॰॰॰॰

 

10

" कागज़ का लिफाफा "

 

महेन्द्र घर पहुंचा तो पसीने से तर-बतर हो रहा था। उसकी ऐसी हालत देखते ही उसकी पत्नी सुनीला बोली - 'आपको जाते हुए कहा था कि स्कूटर ले जाओ, लेकिन मेरी सुनता कौन है?'

'भागवान, यह तो तुम से हुआ नहीं कि हांफता हुआ आया हूं कि हाथ से सब्जी का थैला ही पकड़ लूँ और लगी हो अपनी बात को सही ठहराने!'

महेन्द्र थैला रसोई में रखकर आर.ओ. की तरफ बढ़ा। उसे ऐसा करते देख सुनीला बोली - 'थोड़ी देर पंखे की हवा ले लो, फिर पानी पीना वरना जुकाम लगते देर नहीं लगेगी।'

महेन्द्र के आर.ओ. की तरफ बढ़े हाथ वहीं रुक गये और वह लॉबी में आकर पंखे के नीचे बैठ गया और सुनीला रसोई में जा पहुंची। थैले में सारी सब्जियों को गुत्थम-गुत्था हुए देखकर बड़बड़ाने लगी - 'लो, एक और मुसीबत खड़ी हो गयी। ये मुए अखबारी कागज़ के लिफाफे किलो-किलो वज़न भी नहीं सँभाल सकते। अब सारी सब्जियों को पहले अलग-अलग करना पड़ेगा, फिर उनको टोकरियों में रखकर फ्रिज में रखूंगी तो और चीज़ों को रखने के लिये जगह कहाँ बचेगी? सरकार भी हम जनानियों के लिये आये दिन कोई-न-कोई मुसीबत खड़ी कर देती है। पोलीथीन के लिफाफों में सब्ज़ियाँ ताज़ा भी रहती थीं और फ्रिज में कम जगह में काम चल जाता था। बैठे-बिठाये पोलीथीन बन्द कर दिये।'

'देख भागवान, सरकार ने तो अच्छा काम ही किया है। पोलीथीन फटने के बाद जब कचरे में फेंके जाते थे तो उस कचरे से कितना नुक़सान होता था, कभी उसके बारे में भी सोचा है? अपनी थोड़ी-सी सहूलियत के लिये आने वाली पीढ़ियों का भविष्य दाँव पर लगाना कहाँ की अक्लमंदी है? हाँ, सब्जी वालों को जरूर अच्छे कागज़ के लिफाफे देने चाहिएँ, चाहे रुपया-दो रुपए फ़ालतू ही ले लें।'

'अपनी बात को सही ठहराना तो कोई आपसे सीखे।'

'धन्यवाद भागवान। तेरे मुँह से तारीफ़ के दो बोल तो निकले। अब दिन बढ़िया गुजरेगा वरना तो कुछ देर पहले की तेरी बड़बड़ सुनकर लगने लगा था कि आज सारा दिन बेकार ही जायेगा।'

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