उसने पूरे कमरे को उथलपुथल कर डाला, एक एक कपड़ा और अलमारी को हर तरह से चेक कर डाली, न जाने कितनी बार अपने पर्स को खोल के देख डाला। बिस्तर को भी कई बार झाड़ झाड़ चेक किया। कमरे को कोने कोने में कई कई बार ढूंढ डाला पर उसके गले की चेन कंही न मिली। आज ससुराल में वैभवी का दूसरा ही दिन था और न जाने चेन कँहा चली गयी, वो तो हमेशा उसके गले मे ही रहती थी।
घबराहट के मारे उसका गला बार बार सुख रहा था।समझ नही आ रहा था क्या करे, क्या जवाब देगी वो सबको, सास न जाने क्या क्या कहेगी, उसकी सहेलियों ने बताया था कि ससुराल में सास का ही शासन चलता है , बड़ी ही खतरनाक होती हैं वो बिल्कुल ललिता पवार जैसी...ये ख्याल आते ही उसे ठंड में भी पसीना सा आ गया....
कैसी लड़की मेरे घर आई है...आते ही इतनी लापरवाही...क्या सिखाया है इसके मायके वालों ने.........सास न जाने क्या क्या कहेगी.....
हे ईश्वर plz मदद कर! वो बार बार भगवान को याद कर रही थी कि कोई चमत्कार हो जाये और चेन मिल जाये।
तभी अचानक कमरे के दरवाजे पर थपथपाहट हुई। उसने झट से अपने चहरे के भावों को नॉर्मल करने की कोशिश करते हुए, अस्त व्यस्त कमरे को व्यवस्थित करने की कोशिश की पर दरवाजे की तेज होती आवाज़ों के साथ आई सास की आवाज़....बहू...ओ बहू ने उसे दरवाज़ा खोंलने को मजबूर कर दिया। दरवाजा खोला तो सामने सास खड़ी थी। उसे सास में साक्षात ललिता पवार नज़र आने लगी थी।
बेटी काफी देर से तुम कमरे से निकली नही तो सोचा देख आऊँ।
बड़े ही अपनत्व से सास ने उससे कहते हुए कमरे में कदम रखा और कमरे में नज़र पड़ते ही अचरज से थोड़ी तेज आवाज में बोली
अरे ये सब क्या है, क्या हाल बना रखा है कमरे का और ये सारे कपड़े अलमारियों से बाहर क्यों पड़े हैं?
हुआ क्या ?...सास ने पलटते हुए उससे पूंछा
तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो, तबियत तो ठीक है..उसकी चेहरे से उड़ती हवाइयां देख सास ने उसके माथे पे हाँथ रखते हुए पूंछा
वैभवी घबराहट और डर से सूखते गले से रुंधे हुए स्वर में रुकते रुकते बोली...
वो...मम्मी....मम्मी जी...मेरी...चेन... कहते कहते वो रो पड़ी
चेन...अरे! तो रो क्यों रही है, वही बताने ही तो आयी थी।एक बार पूंछ तो लेती। तेरी चेन मेरे पास है...रो क्यूँ रही है पगली...
सास उसको अपने गले से लगाती हुए बोली।
मेरी चेन इनके पास कैसे ? वैभवी के दिमाग मे ये सवाल आया ही था कि उत्तर भी मिल गया
तू अपनी चेन गलती से बाथरूम में भूल आयी थी, शायद! सुबह नहाते वक्त उतारा होगा और पहनना भूल गयी। वो तो अच्छा हुआ तेरे बाद मैं नहाने गयी थी तभी नज़र पड़ गयी और मैं ले आयी। सोचा जब तू कमरे से बाहर आएगी तो बता दूंगी और तूने तो पूरे कमरे को महाभारत का युद्ध मैदान से बना डाला........सास ने हंसते हुए कहा
बस इतनी सी बात थी और तुमने न जाने मेरे बारे में और ससुराल वालों के बारे में क्या क्या सोंच डाला होगा, तुम यंहा बहू नही हमारी बेटी बनकर आयी हो। उत्कर्ष हमारा एकलौता बेटा है और तुम उसकी पत्नी हो यानी कि हमारे युवराज की महारानी... तुम्हे यंहा कोई तकलीफ नही होगी। तुम यंहा बिल्कुल अपने मायके जैसा ही पाओगी। किसी से डरने की कोई ज़रूरत नही बस संस्कार और परम्पराये हर घर की पहचान होती है जो कभी न खोने पाए।
मैं जानती हूँ कि हर लड़की कुछ अरमान सजा के ससुराल आती है और साथ में ससुराल वालों, ख़ास कर सास के बारे में न जाने क्या क्या तस्वीरे मन मे बना लेती है। मैं भी जब यंहा आयी थी तो अपनी सास को ललिता पवार जैसी सोच के आयी थी पर वो तो निरूपा राय से भी अच्छी निकली..उसकी सास ने माहौल हल्का करते हुए मुस्कुराते हुए बोला...सास के मुंह से ललिता पवार का नाम सुनते उसे अपने मन की बात याद आ गयी और वैभवी के होंटो में मुस्कुराहट तैर गयी।
मैंने भी जो सीखा है उनसे ही सीखा है, मैं नही जानती की मैं उनके जैसी हूँ या नही पर तुम्हारी माँ के जैसी जरूर बनने की कोशिश करूंगी...तुम अभी नई हो इस घर के लिये और घर तुम्हारे लिए पर अगर तुम इस घर को अपना समझोगी तो ये घर भी तुम्हे अपनापन का अहसास कराएगा। तुम्हे यंहा एडजस्ट होने में थोड़ा वक़्त लगेगा पर हम मां बेटी मिलकर सब संभाल लेंगे....ये लो अपनी चेन, चलो हम मां बेटी इस महाभारत के मैदान को खूबसूरत कमरा फिर से बनाते हैं।
वैभवी के हांथ में चेन रखते हुए सास ने कहा...इतना सुनते ही वैभवी मुस्कुराते हुए अपनी सास से लिपट गयी। उसके मन मे बनी सास और ससुराल की डरावनी तस्वीर न जाने कँहा खो गयी और वँहा पर अपनत्व और ममता ने डेरा डाल लिया था। अब ससुराल उसे घर जैसी लग रही थी जैसे बिल्कुल उसके मायके की क्यारी में लगा खूबसूरत गेंदा फूल....
#एकाकी