Vivek you tolerated a lot! - 5 in Hindi Detective stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | विवेक तुमने बहुत सहन किया बस! - 5

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विवेक तुमने बहुत सहन किया बस! - 5

अध्याय 5

विवेक के पूरे चेहरे पर सदमे की रेखाएं फैल गई।

"आप क्या बोल रहे हैं ? ए.बी.सी.डी. का मर्डर? कैसे सर?"

दूसरी तरफ से सी.पी.जी. शर्मन बोल रहे थे। "मर्डर के बारे में पूरा विवरण मुझे पता नहीं। मुन्नार में हनी ट्री नामक एक स्थान है। उस जगह के पास में पहाड़ के ढलान पर चाय के बगीचे के अंदर एक बॉडी मिली है। बाड़ी अभी तक स्पॉट पर ही है ऐसा समाचार...."

"मैं अभी वहाँ पर जाऊं क्या सर ?"

"जाइए..... ए.बी.सी.डी. मर्डर क्यों हुआ इस कोण में यदि आप इन्वेस्टिगेट करें तो ही बहुत से विषय बाहर आएंगे। उनकी होशियारी और कार्य दोनों प्रकाश में आ जाएगा।"

"रवाना हो रहा हूं सर.....!" -विवेक ने फोन को बंद कर रुपला को देखा।

"रूबी ! तुम रूम में रहो... मैं और विष्णु जाकर एक घंटे के अंदर आ जाएंगे। हम जिसके बारे में जानने के लिए आए हैं ए.बी.सी.डी. अब जीवित नहीं है। मर्डर बाय सम बडी ... कोई 'हनी ट्री' जगह है। उसके पास है पहाड़ी ढलान पर यह घटना घटी है....."

"छी !" रूपला बोली। "मुन्नार आए तीस मिनट भी नहीं हुआ ‌उसके अंदर एक मर्डर!"

"बॉस ! मैडम गरम हो रही है हम रवाना होंए।"

"रूबी...! टेक केयर। टी. वी. देखो। भूख लगे तो कुछ आर्डर करके खा लेना.... फिर...."

"नींद आए.... सो जाऊंगी, बस...."

रूपला चिडचढ़ाते हुए बोल रही थी तभी.... विवेक और विष्णु कमरे से बाहर आए। लिफ्ट से उतर कर पार्किंग में खड़ी गाड़ी के पास जाते समय विवेक ने पूछा।

"क्या वह हनी ट्री एरिया.....?"

"मैं जानता हूं बॉस ! राजमलैय जाने के रास्ते में है बॉस! उस जगह पर बहुत सारे पेड़ होने पर भी सिर्फ एक ही पेड़ पर मधुमक्खियां अपना छत्ता बनाती हैं बॉस! पूरे साल में सिर्फ इसी पेड़ पर सैकड़ों मधुमक्खियों के छत्ते लटक रहे होते हैं। इसीलिए उस पेड़ का नाम ‘हनी ट्री’ है।"

विवेक ने कार स्टार्ट किया।

"बॉस...!"

"क्या?"

"मुझे एक संदेह है...?"

"बोलो....."

"हमारे मुन्नार आने का समाचार किसी को पता चल गया इसलिए ए.बी.सी.डी. की कहानी को खत्म कर दिया लगता है...."

"मुझे भी थोड़ा ऐसा संदेह है । सी.पी.जी. ने फोन पर जो बात हमें बताई थी उसके बाहर आने का कोई अवसर ही नहीं मैंने सोचा...."

"बॉस ! अब पुलिस डिपार्टमेंट साफ नहीं है। अंदर राजनीतिक कचरा बहुत है। आतंकवादियों को सहारा देने वाले अधिकारी किसी ना किसी पोस्ट पर रहते हैं। हमारे मुन्नार पहुंचने से पहले ही ए.बी.सी.डी. को खत्म कर दिया। सी.पी.जी. के अंदर ही कोई काली बकरी हो सकती है ऐसा मैं सोचता हूं, बॉस.....!"

विवेक कार को तेज दौड़ाया। मार्केट के बाहर आकर राजमलैय जाने की रोड को पकड़ा।

चाय के बागान के लिए दस मिनट की यात्रा थी। ‘हनी ट्री’ एरिया आ गया। टूरिस्ट बस, घूमने आए हुए यात्री सब उस ऊंचे पेड़ को गर्दन ऊंची कर वहां मधुमक्खियों के छत्ते को देख रहे थे।

विवेक और विष्णु गाड़ी को एक तरफ खड़ी करके उतरे।

"क्या है विष्णु ! इस जगह को देखो तो ऐसा कोई गड़बड़ घटना घटी है ऐसा नहीं लग रहा है? घूमने वाले यात्री ही हैं। पुलिस वाले नहीं दिखाई दे रहे हैं....?"

"वही मुझे भी संदेह हो रहा है बॉस ! डायरेक्टर इस हनी ट्री एरिया ही बताया ना?"

"हां...."

"दोबारा एक बार फोन करके पूछ लेते हैं बॉस !" - विष्णु के बोलते समय ही विवेक ने हाथ का इशारा किया।

"मुझे पता चल गया..... हां मेरे पीछे आ !"

"कहां बॉस ?"

विवेक ने सड़क के दूसरे घुमाव पर इशारा किया ।

विष्णु वहाँ देखने लगा..... एक पत्थर के पीछे केरला पुलिस की वैन दिखाई दी।

दोनों वैन की तरफ चलने लगे।

करीब 100 मीटर दूर चलने पर.... वैन के पास पहुंचे। वैन का ड्राइवर सीट पर आराम से बैठा हुआ था और बीड़ी के धुएँ को छोड़ रहा था..... विष्णु उसके पास जाकर उसके कंधे को छुआ।

वह पलट कर देखा। "क्या है...?"

"इस जगह पुलिस वैन का क्या काम है ?" विष्णु मलयालम जानता था उसमें बात करा।

वह गुस्से से देखा। "आप कौन हैं?"

विष्णु अपने नौकरी के कार्ड को उसके मुंह के सामने दिखाया।

चेन्नई क्राइम ब्रांच - नौकरी के कार्ड को देखते ही.... वह अपने होठों पर जो बीड़ी थी उसे दूर फेंका। घबराहट में सेल्यूट किया और भव्यता से खड़ा रहा।

विवेक उसके पास आया। "तमिल मालूम है?"

"मालूम है सर !"

"पुलिस वैन यहां क्यों खड़ी है....?"

"व...वह... जो है सर..." बोलने वाले ड्राइवर... "नीचे चाय के बगीचे में एक डेड बॉडी है ऐसी सूचना मिली। एक आधा घंटे पहले ही रवाना होकर हम आए। इंस्पेक्टर पंगजाटशन कॉन्स्टेबल के साथ उतर के गए हैं।"

"बॉडी पुरुष..... औरत...?"

"पुरुष सर.... वे रिटायर डी.जी.पी. बालचंद्रन की है पता चला सर ! आज मुन्नार में टूरिस्ट बहुत हैं। बात पता चले.... बेकार का सदमा और रुमर हो जाएगा। इसलिए बिना किसी शोर-शराबे के पुलिस और फॉरेंसिक के लोग स्पॉट पर आकर सीन ऑफ क्राइम देखकर इन्वेस्टिगेट कर रहे हैं।"

"डेड बॉडी मिलने वाली जगह यहां से कितनी दूर है.....?"

"वह पगडंडी में 200 मीटर दूर चाय के पौधों के बीच में चल कर जाना पड़ेगा...!"

"ठीक है.... हम स्पॉट पर चलते हैं।"

विवेक और विष्णु.... दोनों नीचे ढलान के पगडंडी से चलना शुरू किया। एक पांच मिनट चले होंगे।

थोड़ी दूर पर एक पेड़ के नीचे पुलिस की यूनिफॉर्म दिखाई दी। चाय के पौधों के बीच में सतर्कता से चलते हुए वे स्पॉट पर पहुंचे .... हीरो सुमनी के जैसे गोरा.... ऊंचा.... ऊपर के होंठ के ऊपर घनी मूछें उस इंस्पेक्टर ने रखी थी - विवेक को देखते ही... माथे पर आश्चर्य दिखाया।

"स...सर... आप... चेन्नई क्राइम ब्रांच ऑफिसर मिस्टर विवेक....?"

"यस....."

"आई एम पंकज पंगजाटशन सर ! इंस्पेक्टर ऑफ पुलिस - मुन्नार हाईस्पॉट पुलिस स्टेशन!"

"सर... आप यहां कैसे ? इज देअर एनी परपज टू विजिट ईयर....?"

"यस....! आपसे बहुत बातें करनी है मिस्टर पंकज पंगजाटशन! पहले रिटायर डी.जी.पी. बालाचंद्रन मर्डर के बारे में थोड़ी देर पहले पता चला। यह घटना कब घटी? कैसे घटना घटी मुझे नहीं पता। आप स्पॉट पर कब आए.....?"

"एक घंटे पहले ही आ गए सर ! इस जगह के ओनर नारायण मेनन हैं। उन्होंने पहले बॉडी को देखकर सूचना दी। आकर देखने के बाद ही रिटायर डी.जी.पी? बालचंद्रन हैं मालूम हुआ। तुरंत तिरुवनंतपुरम के पुलिस हेड क्वार्टर को सूचना दे दी।"

"बॉडी कहां है ?"

पंकज पंगजाटशन! मुड़कर सफेद कपड़े में ढकी हुई एक बॉडी को दिखाया... विवेक और विष्णु दोनों उसकी तरफ मुड़ गए।

एक पुलिस कांस्टेबल चद्दर को हटाकर... बालचंद्रन के जकड़े हुए शरीर को देखा। शरीर में खूनी घाव कुछ भी नहीं था। वे जो पजामा पहने थे वह मिट्टी से सना था ।

"मर्डर कैसे ?"

"पता नहीं सर ! शरीर से एक कतरा खून भी बाहर नहीं आया। पॉइजन की वजह से मौत आई होगी...."

"एक डॉक्टर को बुलवाकर.... बाड़ी को चेक करवाया ?"

"दो डॉक्टरों को सूचना दे दी। दोनों जने ही आउट ऑफ स्टेशन है। सो.... बॉडी को सीधे ही पोस्टमार्टम के लिए ले जाएं...…मौत कैसे हुई रिपोर्ट मिल जाएगी। अभी मोर्चरी वैन के लिए ही वेट कर रहे हैं... सर!"

"बॉडी के पीठ की तरफ कोई घाव है क्या ?"

"नहीं है सर....."

"बॉडी को एक बार मैं देख लूँ ऐसा सोचता हूं। ड्रेस को रिमूव कर दो...."

बालचंद्रन के शरीर से पजामा और अंडर गारमेंट खोला। विवेक बाड़ी के पास जाकर घुटने के बल पर बैठा।

"विष्णु!"

"बॉस....!"

"बॉडी को दाहिनी ओर से घुमाओ...."

घुमाया।

विवेक बालचंद्रन के बगल के तरफ कुछ देर तक घूर कर देखता रहा फिर.... वहां चिपके हुए मिट्टी को झटकारा।

आंखें आश्चर्य में पड़ गई।

पंकज पंगजाटशन....!"

"सर......"

"बॉडी के साइड में जरा ध्यान से देखिए...."

वे घूर कर देखें।

"क्या कुछ दिखाई दे रहा है ?"

"दिखाई दे रहा है सर.....!"

पंकज पंगजाटशन... की आवाज में कुछ घबराहट दिखी।

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