Vivek you tolerated a lot! - 3 in Hindi Detective stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | विवेक तुमने बहुत सहन किया बस! - 3

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विवेक तुमने बहुत सहन किया बस! - 3

अध्याय 3

रूपला बिल्कुल ऊंची चोटी पर चढ़कर खड़ी हुई तो नीचे उतर न पाने की वजह से तड़पने लगी। अपनी होंठों को बाहर निकाल कर बोली।

"वि....वि... विष्णु...! तुम यहां कैसे?"

"क्यों मैडम... मुझे मुन्नार आना नहीं चाहिए ?"

"तुमने तो नहीं आऊंगा बोला था...?"

"आप के साथ नहीं आऊंगा बोला था।"

रूपला विवेक को देखकर बोली "क्यों जी... यह कैसी बात कर रहा है?"

विवेक हंसा।

"क्यों जी हंस रहे हो ? इसके आने के बारे में आप को पहले से ही मालूम है लगता है?"

रूपला घूर कर देखीं। "इसका मतलब... यह आपका जौली ट्रिप नहीं है। ऑन ड्यूटी। किसी केस के विषय में ही आप मुन्नार आए हो?"

"वही वही....!"

"विष्णु !"

"मैडम..."

"कार में जो मेरा सूटकेस है उसको निकाल कर अलग रखो।"

"क्यों मैडम ?"

"मैं चेन्नई के लिए रवाना हो रही हूं ?"

"कैसे जाएंगी मैडम ?"

"यहां से कोयंबटूर के लिए बस.... कोयंबटूर से चेन्नई के लिए फ्लाइट।"

"एक मिनट मैडम....!"

"क्या है ?"

"बॉस और मैं यहां मुन्नार क्यों आए हैं पता चले..... तो आपका गुस्सा गायब हो जाएगा।"

"वही तो कुछ केस है बताया ना ?"

"इसको केस नहीं बोल सकते मैडम....."

"फिर ?"

"पहले आप होटल के अंदर आइए कॉफी पीते हुए बात करेंगे।'

"क्यों जी ! यह जो कह रहा है वह सच है क्या... झूठ ?"

"बिल्कुल सच !"

"ठीक है ! अभी होटल के अंदर आती हूं। आपके बोलने का कारण ठीक हो..... तो मुन्नार में रुकूँगी, नहीं तो मैं चली जाऊंगी।"

होटल के कर्मचारियों द्वारा लगेज को अंदर रखते ही.... विवेक, रुपला और विष्णु होटल के अंदर प्रवेश किया। फर्स्ट फ्लोर पर दो कमरे बुक थे।

कमरे में प्रवेश किया।

"रूम कैसा है मैडम....?"

"पहले तुम और तुम्हारे बॉस मुन्नार क्यों आए हो ? उसे बताओ!"

"बॉस ! आप बता रहे हो? नहीं तो.... मैं बताऊं?"

"नहीं मैं बताता हूं..."-कहकर विवेक कमरे में जो सोफा था उसके ऊपर आराम से बैठा और अपने सूटकेस को खोल कर उसमें ऊपर के चेन वाले खाने में एक ब्राउन कलर के लिफाफे को खोला और उसके अंदर जो फोटो था उसे निकाल कर दिया।

"इस फोटो को देखो !"

रूपला ने लेकर देखा।

करीब 60 साल के एक आदमी दिखें। उनका सर गंजा। मूंछे कसी हुई। पहने हुए चश्मे के अंदर से आंखें चमक रही थी। काली नीली ओवरकोट में गंभीर दिख रहा था।

"इनका नाम बालचंद्रन है। पिछले साल तक यह है केरल पुलिस में थे अभी रिटायर हो गए। वे एर्नाकुलम गांव के रहने वाले हैं। हर साल वे मई के महीने में मुन्नार आराम करने आते हैं। बहुत देर से शादी करने के कारण अभी शादी की उम्र में उनकी एक लड़की है। माझी डी.जी.पी. बालचंद्रन की पत्नी दो साल पहले ही एक रोड एक्सीडेंट में उनकी डेथ हो गई।"

"अभी भी आप विषय पर नहीं आए...."

"अभी आ गया !"- कहकर विवेक.... अपनी पॉकेट में मोड कर रखे हुए अपने फैक्स के कागज को निकाला और उसे दिया।

"यह लो और इसे ध्यान से पढ़ो। समझ में आएगा..."

रूपला ने पढ़ना शुरू किया। मन के अंदर तमिल दौड़ रहा था।

'आपके लिए एक जरूरी समाचार। इसे रहस्य ही रखना है। अभी मुन्नार में 'सिल्वर लाइन' पर 15 दिन ठहरने वाले हैं। वे आराम करने के लिए वहां नहीं गए यह हमने एक हद तक पता लगा लिया। वहां 15 दिन रहेंगे।

इन 15 दिनों तक रात में वह कुछ लोगों से वे मिलेंगे। उन लोगों में कुछ लोग आतंकवादी से संबंधित हैं। मोस्ट वांटेड हिटलिस्ट में उनका नाम है। इंटरपोल पुलिस उन्हें ढूंढ रही है। यह सब बातें सच हैं। इस बात की पुष्टि में अमेरिका के इंटेलिजेंस ने हमारे डिपार्टमेंट को चेतावनी दी है। इसलिए उन्हें संभालने की जिम्मेदारी आपको दी जाती है। इसके लिए दिल्ली के सी.पी.जी. ने आपको परमिशन दी है।

केरला के पुलिस विभाग को यह विवरण नहीं बताया गया है। यदि उन्हें बताते हैं तो यह विवरण बाहर फैल सकता है अतः सी.पी.जी. ऐसा सोचती है। आपके मुन्नार यात्रा को भी रहस्य में ही रहने दो।

फैक्स पत्र खत्म होते ही.... रुपला सीधी हुई। उसकी आंखों का गुस्सा खत्म हो गया।

"इस पत्र को आप घर पर ही दिखा सकते थे ?"

"दिखा सकता था । दिखाने के लिए सोचा भी । बट फैक्स के आते ही दूसरे ही मिनट सी.बी.जी. डायरेक्टर ने फोन पर मुझसे बात की। 'अभी यह बात किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए आपकी पत्नी को भी नहीं। आप और विष्णु सिर्फ मुन्नार जाकर इस ए.बी.सी.डी. ऑपरेशन को देखिएगा। आपकी पत्नी मुन्नार जाने के लिए जिद्द करें तो उसे भी लेकर जाइएगा।

"आप अपनी पत्नी के साथ मुन्नार एक जॉली ट्रिप में गए हो ऐसा डिपार्टमेंट को सोचने दो। मुन्नार में रहते समय यदि पत्नी को बताना ही पड़ेगा ऐसा लगे तो उस समय उस पोजीशन में सच को उन्हें बता दीजिएगा.... इस बात को हमें सम्मान तो देना पड़ेगा ना?"

विष्णु बीच में बोला "मैडम ! आपके मन्नार आने की बात कहते ही... मैं भी मुन्नार के बारे में अंडर एस्टीमेट करके आपको कुछ-कुछ बोला। आप नहीं मानी। बॉस के साथ आप भी रवाना होकर आ गई। यह अपना जॉली ट्रिप नहीं है। यह तो थ्रिल और डर वाला मिला हुआ ट्रिप है।"

"रात के समय आपको होटल के कमरे में ही रहना है। हम सिल्वर लाइन के अंदर छुप कर रहेंगे और गतिविधियों को देखते रहेंगे। "

"वह क्या है ए.बी.सी.डी. ?"

"उस रिटायर का नाम बालचंद्रन। उनका इनिशियल 'ए', बाल 'बी' चंद्रन 'सी' है। वे जिस पद पर थे डी.जी.पी. उसके पहले शब्द डी को भी मिलाकर अपने सी.आई.डी. ने ए.बी.सी.डी. शब्द का आविष्कार किया है...."

"बड़ी पदवी पर पुलिस में रहे एक आदमी ने संसार के आतंकवादियों से संबंध रखा हुआ है ?"

"सब कुछ डॉलर के लिए.....! ये जब सर्विस में थे उसी समय राजनीतिज्ञों से मिलकर करोड़ों रुपया कमाया है‌। रुपयों को इन्होंने बेनामी स्टेट, शॉपिंग मॉल आदि लेकर जमा किया हुआ है। उनके पास आदमी और राजनीतिक आशीर्वाद रहने की वजह से आई.टी की तरफ से कोई समस्या नहीं आई।"

"बॉस ! इस तरह के आदमियों को सहारा मरुस्थल में ले जाकर छोड़ देना चाहिए बॉस। एक बूंद पानी के लिए भी इन्हें तड़प-तड़प कर... मरना चाहिए...."

"इस तरह के आदमियों को मरुस्थल में छोड़ दो.... तो भी क्या करेंगे... मालूम है ?"

"क्या करेंगे बॉस....?"

"रेलवे स्टेशन के पास, एयरपोर्ट्स पास है बोल कर.... उस मरुस्थल में ही प्लॉट बनाकर बेच देंगे....."

रूपला हंसते हुए पूछी "वह सिल्वर लाइन स्टेट्स कहां पर है?"

"यहां से पांच किलोमीटर दूर है। तेकड़ी जाने के रूट में है।"

"उस ए.बी.सी.डी. को तो देखने जा रहे हो?"

"हां !"

"मैं भी आऊं क्या ?"

"क्या तुम..…? फिर तो हो गया! वह किस तरह की जगह है हमें ही नहीं पता। विष्णु जाकर उस एरिया को देख कर आया है। स्टेट के अंदर ए.बी.सी.डी. का मकान कहां है अभी हमको ढूंढना है....-विवेक के बोलते समय विष्णु के मोबाइल पर- ‘आजा आजा ओ’ ऐसा एक लोक गीत! का रिंगटोन बाहर आया। उठा कर नाम देख वह घबराया।

"बॉस...."

"फोन पर कौन है ?"

"सी.बी.जी. डायरेक्टर बॉस..."

"बात करो...."

"विष्णु ने मोबाइल को कानों में लगाया।

"गुड आफ्टर नून... सर !"

"विष्णु ! मिस्टर विवेक का फोन क्यों स्विच ऑफ है...?"

"एक मिनट सर...?" -कहकर विष्णु विवेक की तरफ मुड़ा। "क्या है बॉस....! आपके फोन को स्विच ऑफ करके रखा है क्या....?"

रूपला जल्दी-जल्दी अपने पास विवेक के सेलफोन को निकाल कर विवेक को दिया। वह मुस्कुराया।

"देखा.... समस्या कैसे आती है....?"

"सॉरी जी...!"

विवेक ने विष्णु से फोन लेकर डायरेक्टर से बात की।

"सॉरी सर! मेरे मोबाइल में टावर नहीं था...."

"नो प्रॉब्लम ! हां आप पहुंच गए..."?

"जस्ट रिचर्ड सर....! विष्णु ए.बी.सी.डी. रहे हुए एरिया को जाकर देख कर आया है। फिर से मैं और विष्णु इवनिंग में उस स्पॉट को जाकर आने की सोच रहे हैं।"

"उसकी जरूरत नहीं होगी विवेक !"

"सर...! आप क्या कह रहे हैं?"

"अभी दो मिनट पहले ही मुझे यह न्यूज़ मिली है......!"

"क्या न्यूज सर ?"

"ए.बी.सी.डी. अभी जीवित नहीं हैं...."

"सर....सर...!"

"मर्डर... मर्डर.. बाय सम बड़ी....!"

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