Vivek tumne bahut sahan kiya bas - 1 in Hindi Detective stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | विवेक तुमने बहुत सहन किया बस! - 1

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विवेक तुमने बहुत सहन किया बस! - 1

मूल लेखक राजेश कुमार

इस उपन्यास के मूल तमिल लेखक राजेश कुमार है। आपने 50 वर्षों में डेढ़ हजार उपन्यास लिखे और 2000 कहानियां लिखी। आपकी उपन्यास और कहानियों के पाठकों की संख्या बहुत ज्यादा है। अभी आपका नाम गिनीज बुक के लिए गया हुआ है। चाहे आपके उपन्यासों हो या कहानियां दोनों ही एक बार शुरू कर दो खत्म किए बिना रखने की इच्छा नहीं होती उसमें एक उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या होगा |

तमिलनाडु में इनकी कहानियों और उपन्यासों की बहुत ज्यादा मांग है |

इसीलिए मैंने भी इनकी कहानियों का और उपन्यास का अनुवाद करती हूं।

एस. भाग्यम शर्मा

 

सारांश

यह एक जुर्म और हत्या की जासूसी उपन्यास है एक के बाद एक हत्या पुलिस रिटायर्ड बड़े अधिकारी की हत्या, बड़े राजनीतिक की हत्या, और इन हत्याओं में तरीके एक ही। पोस्टमार्टम में पता चला दिल की जगह पत्थर रखा हुआ है। ऐसा क्यों? किसने किया? कैसे हुआ? इसका रहस्य जानना चाहते हैं तो आप पढ़िए विवेक बहुत सहन किया बस!

*****

 

विवेक तुमने बहुत सहन किया बस!

अध्याय 1

विवेक "आहा !" बोला।

मुन्नार जाने वाले पहाड़ी रास्ते में बडी तेजी से कार दौड़ रही थी.... पास में बैठी हुई रूपला, विवेक के कंधे को धक्का दिया ‌। उसके चेहरे पर हल्का गुस्सा था।

"क्या आहा ?"

"जिस तरफ भी निगाहें डालो आंखों में बर्फ का पानी के छींटे मारे जैसे है..... रूबी! इतने चाय के बगीचों को हम किसी भी हिल स्टेशन में चलें जाए तो नहीं देख सकते...! हां पेंट किया जैसे एक रमणीक नेचुरल पोट्रेट! इसे देखते रहे ऐसा लगता है।"

"मुझे अच्छा नहीं लग रहा...."

"क्या ! अच्छा नहीं लग रहा ?"

"मुन्नार आना ही मुझे पसंद नहीं.... इसके बदले ऊटी, कोडेकेनाल जा सकते थे....."

"हर साल ऊटी.... नहीं तो कोडे़केनाल ही जाते हैं। इस बार एक बदलाव होना चाहिए.... ऊटी और कोड़ेकेनाल को भूलकर मुन्नार के लिए आए हैं। एंजॉय करो रूबी....!"

"मुन्नार में देखने के लिए कुछ भी नहीं है ऐसा विष्णु ने बोला था....."

"उसने बोला... तो तुम विश्वास करोगी ? मुन्नार कौन से स्टेशन पर है उससे पूछ कर देखो.... जवाब ना दे पाने से आंखें फाड़ेगा। मुन्नार में देखने लायक बहुत सी जगह हैं। राजमलैय, एलीफेंट राइट, माटूपट्टी डैम.... फिर नेशनल पार्क, एको प्वाइंट...."

"ऊटी जैसे बॉटनिकल गार्डन होगा क्या ?"

"ऐसा सब नहीं होगा।"

"यह देखो रूबी...! एक शहर जैसा दूसरा शहर हो.... उसमें क्या त्रिल है? मुन्नार इज समथिंग डिफरेंट। तुम आकर देखो... तुम भी समझ जाओगी....."

"मुन्नार जाना चाहिए ऐसा आपको क्यों लगा ?"

"पिछले हफ्ते टूरिज्म वेबसाइट को देख रहा था। एक-एक फोटो को देख-देख कर मैं अपने आप में स्तंभित रह गया ! अरे इतनी एक अच्छी जगह को अभी तक हमने देखा नहीं? मेरे मन को यह बात परेशान करने लगी। तुमसे पूछे बिना ऑनलाइन से मैंने कमरा बुक करा दिया।"

"हम किस होटल में ठहरेंगे ?"

"होटल डीप ब्लू स्काई। वह थ्री स्टार होटल है। स्पाइन ट्री फॉरेस्ट के अंदर है.... ब्यूटीफुल स्पाट...."

"जाकर देखेंगे तभी पता चलेगा ?"

"देखने तो जा रहें हैं ?"- विवेक के बोलते समय ही उसका सेलफोन बजा।

"देखो रूबी कौन है ?"

विवेक के शर्ट की जेब में से मोबाइल निकाल कर.. रूपला ने देखा।

विष्णु।

"क्यों जी.... बुलाने वाला कौन है पता है ? दक्षिण का रोमियो!"

"क्या बात है पूछो...."

रूपला ने मोबाइल को अपने कान में लगाया। "बोलो विष्णु! तुम्हारे बॉस कार ड्राइव कर रहे हैं। क्या बात है?"

"मैडम.... मुन्नार पहुंच गए क्या?"

"जा रहे हैं...."

"कांट रोड कैसे हैं मैडम ?"

"तुम्हारे बॉस रसिक बने हुए बड़े प्रसन्न हो रहे हैं। मुझे तो बिल्कुल अच्छा नहीं लगा..... क्लाइमेट भी इतना अच्छा नहीं है। धूप भी चेन्नई जैसी है.... रात में ही ठंड होती है। अभी तो बहुत तकलीफ है.... तूने जो बोला वह सही था!"

"मैंने तो पहले ही बोल दिया था ना मैडम ! मुन्नार आपको पसंद नहीं आएगा.... आप ही नहीं मानी। बॉस के साथ जिद करके आ गईं। रास्ते में हाथी को देखा मैडम?"

"एक बिल्ली को भी नहीं देखा। हाथी को देखने के लिए क्यों मुन्नार आते हैं पता नहीं। किसी जू में चले जाओ तो बहुत है।"

"मैडम बहुत गुस्से में हो लगता है !"

"फिर क्या ? मैंने जो सोचा वह मुन्नार दूसरा है....."

"मैडम ! मुन्नार जाने का रास्ता कैसा है? ऊपर जाकर देखो... कुल्लू मनाली जैसे होगा....."

"जाकर देखे तभी तो पता चलेगा ? ठीक है अभी तुमने क्यों फोन किया?"

"बॉस से कुछ बात करनी है मैडम !"

"क्या बात करनी है ?"

"सॉरी मैडम ! वह डिपार्टमेंटल मैटर है। बाहर किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए। पता चले तो मनमोहन सिंह को गुस्सा आ जाएगा।"

रूपला अपने हाथ के मोबाइल को विवेक को दिया। "कोई डिपार्टमेंटल मैटर है बोल रहा है।"

विवेक कार को पहाड़ी रास्ते से एक तरफ चाय के बगीचे के पास खड़ा कर बात करने लगा।

"बोलो विष्णु !"

"क्या है बॉस ! मैडम बहुत गर्म है लग रहीं है...."

"ऊपर जाने के बाद गर्मी खत्म हो जाएगी..... तुम विषय पर आओ। ए.बी.सी.डी. पढ़ा क्या?"

"पढ़ा बॉस !"

"कुछ समझ में आया क्या ?"

"नहीं समझ में आया...."

"मेरे आने तक ढंग से पढ़ कर रखो...."

"पढ़ना बहुत मुश्किल लग रहा है बॉस !"

"मुश्किल है ! कोई और रास्ता नहीं है। इस चार अक्षर को पढ़ो तो ही दूसरे अक्षरों को पढ़ सकते हो।"

"ट्राई करता हूं बॉस !"- दूसरी तरफ से सेलफोन को विष्णु ने बंद कर दिया.... विवेक ने भी बंद किया।

रूपला ने घूर कर देखा।

"विष्णु कब एल.के.जी. में भर्ती हुआ?"

"टेंशन मत करो रूबी..... यह डिपार्टमेंटल मैटर है।"

"डिपार्टमेंट के संबंध में कोई भी परेशानी ना हो इसीलिए तो हम दोनों मुन्नार आए हैं।"

"हां..."

"अभी क्यों बिना पूंछ के पाँच फुट वाला बंदर आपको फोन करके डिपार्टमेंट के बारे में क्यों बात कर रहा है ?"

"वह एक इंपॉर्टेंट मैटर है रूबी....."

"उसे उसी को हैंडल करने दो। हम मुन्नार से चेन्नई वापस जाएं तब तक आपका सेलफोन और मेरा भी.... स्विच ऑफ रहेगा। आपका फोन भी मुझे दो !"

रूपला ने विवेक के सेल फोन को भी ले लिया।

"रूबी... प्लीज !"

"नो..... और एक हफ्ते के लिए आपका मोबाइल गूंगा ही होगा। सेलफोन का मौन व्रत है।"

"रूबी ! बीस दिन में एक घंटे का तो मुझे परमिशन दे दो।"

"एक मिनट भी नहीं दूंगी। मुन्नार में जो हम सात दिन रहेंगे आप सिर्फ मुझसे ही बात करोगे। हंसोगे...."

"विष्णु तड़प जाएगा।"

"वह और तड़पेगा...? बिपाशा बसु, मल्लिका शेरावत हॉट वेबसाइट में देख-देख कर... पुण्य कमायेगा । आप पहले कार चलाओ। मुन्नार पहुंचते ही गर्म कॉफी पीनी है।"

विवेक मुस्कुराया।

"रूबी ! तुम्हारे और मेरे बीच में एक शर्त है..."

"क्या ?"

"हम और आधे घंटे में मुन्नार होटल में पहुंच जाएंगे। होटल जाने के दूसरे मिनट में ही तुम मेरे सेलफोन को मुझे वापस दे दोगी !"

"नहीं दूंगी !"

"बिल्कुल पक्का दे दोगी !"

"नेवर !"

"देखते हैं ?"

"हां... देखेंगे।"

कार पहाड़ी रास्ते के ऊंचाइयों पर जाने लगा। चाय की पत्तियां और ज्यादा हरे रंग में दिखाई दी | ठंड लगने लगी... आंखें ठंडे बर्फ के पानी के छींटे से भर गईं।

"अभी मुन्नार अच्छा है..…"

"ऊपर जाते-जाते और देखो....! मुन्नार का एक-एक सेंटीमीटर तुम्हें पसंद आएगा।"

रूपला विवेक के बाएँ कान को धीरे से पकड़ा।

"मुझे मुन्नार की अपेक्षा आपके साथ अकेले में यह सात दिन रहना ही पसंद है। आपके डिपार्टमेंट चेन्नई से, यहाँ रहने वाले विष्णु से इन सात दिनों तक आपकी कोई बातचीत नहीं होनी चाहिए।"

"ठीक.... जो आज्ञा !"

कार दौड़ रही थी। अगले 20 मिनट में 'वेलकम टू मुन्नार' ऐसे एक बोर्ड को पार किया।

छोटा एक बाजार आया। बिस्किट की खुशबू बेकरी, खुशबू वाले सामान स्पाइसी दुकानें आई। तमिल और मलयालम मैं कॉम्पटीशन के साथ विज्ञापन बोर्ड लगे हुए थे।

"हम स्टे करेंगे उस होटल का नाम आपने क्या बताया ?"

"होटल डीप ब्लू स्काई। उसके लिए यहां से दो किलोमीटर जाना है। यहां... वह जो यूकेलिप्टस के पेड़ दिखाई दे रहे हैं....?"

"हां..."

"उसके बीच में ही होटल है। शाम होते ही उस होटल के छूते हुए बादल ऐसे जाते हैं जैसे कोई बरात जा रही हो।"

"सुपर....!"

कार, बाजार के ट्रैफिक वाले जगह को समाप्त कर थोड़े और कोच्चि रोड पर चढ़कर यूकेलिप्टस पेड़ों की तरफ जाने लगी।

'होटल डीप ब्लू स्काई वेलकमस '- फ्लेक्स बोर्ड पर स्वागत के लिए एक लड़की हाथों को जोड़कर खड़ी हुई थी। पेड़ों के पीछे होटल पाँच मंजिल इमारत नीले रंग के स्नोसम में चमचमा रहा था।

"वाओ !" रुपला बोली। "इस होटल को आपने कैसे ढूंढ निकाला ?"

"गोकुलनाथ एक बार इस होटल के बारे में बताया था। वेबसाइट में देखकर ऑनलाइन बुक करा दिया।"

"बड़ा उत्तम कार्य किया !"

कार होटल के पोर्टिको में जाकर खड़ी हुई।

रूपला कार से उतरने..... हैंडल को पकड़ने के लिए हाथ रखा ही था...

बाहर से किसी ने दरवाजे को खोल दिया...

रूपला ने देखा।

बाहर...

स्वेटर पहने, सिर पर मंकी टोपी लगाए विष्णु...…अपने दोनों हाथों को जोड़कर, "नमस्कार मैडम! मुन्नार में आपका हार्दिक स्वागत करता हूं। ऐसा एक बिना पूंछ का बंदर।"