Risky Love - 20 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | रिस्की लव - 20

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रिस्की लव - 20



(20)

अंजन अपने निर्माणाधीन रिज़ॉर्ट के उसी हॉल में बैठा था जहाँ उसने पंकज की हत्या की थी। उसकी आँखों से चिंगारियां निकल रही थीं।
तरुण काला उसके सामने खड़ा डरकर कांप रहा था। उसके हाथ पीछे की तरफ बंधे हुए थे। वह सर झुकाए हुए था। अंजन उठा और उसके बाल पकड़ कर उसका चेहरा अपनी तरफ करके बोला,
"हरामखोर मेरे साथ धोखा किया तूने।"
तरुण को लग रहा था कि शायद उसके और पंकज के बीच जो दोस्ती हुई थी उसी के कारण अंजन के आदमी उसे उठाकर यहाँ ले आए हैं। अंजन के गुस्से को देखकर वह थर थर कांप रहा था। उसने कहा,
"मैंने कोई धोखा नहीं दिया है। वह पंकज खुद मेरे पास आया था। पर मैंने कभी आपका कोई राज़ उसे नहीं बताया।"
अंजन ने उसके पेट में ज़ोर से अपना घुटना मारा। तरुण बिलबिलाता हुआ ज़मीन पर गिर गया। अंजन ने उसे बाल पकड़कर उठाया। तरुण दर्द से तड़प रहा था। अंजन ने उसकी आँखों में देखकर कहा,
"पता है... क्योंकी ऐसा करने के बाद तू अब तक ज़िंदा ना होता।"
"तो आप किस धोखे की बात कर रहे हैं ?"
तरुण ने दर्द से कराहते हुए कहा। अंजन ने उसके बालों पर अपनी पकड़ कस दी। तरुण चीख पड़ा। अंजन ने कहा,
"सच सच बताना नहीं तो मारने से पहले इससे बहुत ज्यादा दर्द दूँगा।"
तरुण को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अंजन किस विषय में बात कर रहा है। पर वह मजबूर था। उसने गिड़गिड़ा कर कहा,
"बताइए तो बात क्या है ? मैंने क्या धोखा किया है आपके साथ ?"
अंजन वापस जाकर कुर्सी पर बैठ गया। उसकी तरफ गुस्से से देखकर बोला,
"मानवी और उसके यार का क्या किया था तूने ?"
यह सवाल सुनते ही तरुण दहशत में आ गया। उस दहशत में सारा दर्द भूल गया। बरसों से कब्र में दफ़न बात अचानक सामने आ गई थी।
अंजन उसके चेहरे के भावों को पढ़ रहा था। उसने कहा,
"अब सिर्फ सच बाहर निकलना चाहिए। नहीं तो तुम्हारी चीखें देर तक गूंजती रहेंगी। सच तो मैं तुम्हारे मुर्दा जिस्म से भी निकलवा लूँगा।"
अंजन की आँखों में जो हैवानियत दिख रही थी उससे तरुण की रुह कांप गई थी। वह जानता था कि उसकी मौत अब तय है। सच बता देने से शायद कम तकलीफदेह हो। कांपते हुए उसके मुंह से निकला,
"दोनों बचकर भाग गए थे।"
अंजन के सामने सीसीटीवी फुटेज का वह चेहरा घूम गया। वह मानवी का था। लंबे बालों वाला आदमी उसका प्रेमी निर्भय वाधवा था। वह एक बार फिर उठा। गुस्से से तरुण के मुंह पर मुक्का मार दिया। उसके मुंह से खून का फव्वारा फूट पड़ा। वह ज़मीन में पड़ा तड़प रहा था। अंजन अपने आदमियों पर चीखा,
"उठाओ इसे...."
उसके आदमियों ने तरुण को उठाया। वह खड़ा नहीं हो पा रहा था। पैर से कुर्सी खिसकाते हुए अंजन बोला,
"इस पर बैठा दो।"
अंजन के आदमियों ने तरुण को कुर्सी पर बैठा दिया। तरुण बेहोशी की हालत में था‌। अंजन ने कहा,
"पानी डालो इस पर और होश में लाओ।"
तरुण पर पानी डालकर उसे होश में लाया गया। अंजन दूसरी कुर्सी खींचकर उसके सामने बैठ गया। तरुण खौफज़दा उसकी तरफ देख रहा था। अंजन उसे जिस तरह से घूर रहा था ऐसा लग रहा था कि उसकी आँखों से आग निकल कर तरुण को जला रही है। अंजन ने कहा,
"उस दिन जो हुआ सबकुछ सच सच बता दो। वरना ना मरने दूँगा और ना चैन से ज़िंदा रहने दूँगा।"
तरुण ने उस दिन जो घटा सब विस्तार से बताया।

तरुण, मानवी और उसके दोस्त निर्भय को मारने के इरादे से लोनावला पहुँचा। इंद्रयाणी नदी के किनारे कैंपिंग कर रहे मानवी और उसके दोस्त पर सारा दिन नज़र रखे रहा। उस समय वहाँ आसपास कुछ लोग थे। वह अंधेरा होने की राह देख रहा था।
शाम ढलने के बाद मानवी और निर्भय आग जलाकर उसके पास बैठे थे। दोनों शराब पी रहे थे। एक पेड़ के पीछे छिपा हुआ तरुण मानवी के सर पर निशाना लगाए हुए था। सही मौका देखकर तरुण ने ट्रिगर दबाया ही था कि ठीक उसी समय मानवी खड़ी हो गई। वह निर्भय की तरफ घूम गई। गोली उसके बाज़ू को छूकर निकल गई।
पहली बार तरुण की गोली निशाने पर नहीं लगी थी। दोबारा गोली चलाने से पहले ही निर्भय ने फुर्ती से मानवी का हाथ पकड़ा और जंगल में गायब हो गया। तरुण उनके पीछे भागा। जिस अंधेरे को वह अपना हथियार बनाना चाहता था वह अब उन दोनों के लिए सहायक हो रहा था। पर तरुण जानता था कि मानवी का एक बाज़ू घायल है। उससे खून निकल रहा है। उसका खून ही उसे खोजने में मदद करेगा।
टार्च की रौशनी में खून के निशान देखता वह आगे बढ़ रहा था। घायल मानवी के लिए बहुत दूर तक भाग पाना संभव नहीं था। खून के निशान देखते हुए वह एक जगह पहुँचा जहाँ मिट्टी का एक ढेर सा था। उसे लगा कि दोनों इसके पीछे ही छिपे होंगे। गन तानकर वह उस तरफ बढ़ा। तभी निर्भय ने पेड़ की टहनी से उस पर वार किया। वह गिर पड़ा। उसके हाथ से गन छिटक गई। निर्भय और वह दोनों गुत्थमगुत्था हो गए। दोनों ही गन उठाने की कोशिश कर रहे थे।
मानवी अपना घायल बाज़ू पकड़े हुए वहाँ आई। उसने वह गन उठा ली। पर उसके हाथ कांप रहे थे।
तरुण ने निर्भय को दूर ढकेला और तेज़ी से उठकर गन मानवी से छीन ली। अब दोनों तरुण की गन के निशाने पर थे। मानवी ने उससे पूँछा,
"तुम हमें क्यों मारना चाहते हो ?"
तरुण ने कहा,
"तुम्हारे पति अंजन का हुक्म है। उसके हुक्म पर ही मैंने तुम्हारे भाइयों को मारा था। अब तुम दोनों को मारूँगा।"
तरुण को लगा कि मानवी तो घायल है। कुछ कर नहीं पाएगी। लेकिन निर्भय अधिक खतरनाक है। उसने पहले निर्भय को मारने का निर्णय लिया।
पर वह गलत था। मानवी ने पास पड़ी टहनी उठाई और उस पर वार किया। हाथ हिल जाने से इस बार भी निशाना चूक गया। गोली निर्भय के कंधे पर लगी। गन दूर गिर गई। तरुण गन उठाने के लिए लपका।
अपना दर्द भूलकर निर्भय ने फिर मानवी का हाथ पकड़ा। दोनों फिर भाग निकले। तरुण गन छोड़कर उनके पीछे भागा। कुछ दूर जाने पर मानवी और निर्भय ऐसी जगह पहुँचे जहाँ नीचे इंद्रयाणी नदी बह रही थी। तरुण के सामने दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर नदी में कूद गए।

कुछ देर तक तरुण गुस्से में हाथ मलता रहा। उसके शिकार उससे बचकर भाग गए थे। बहुत देर तक वहीं बैठा वह सोचता रहा कि अंजन से क्या कहेगा। उसे लगा कि दोनों ही घायल थे। नदी के तेज़ बहाव में उनका बचना कठिन है।
तरुण ने आकर अंजन से कह दिया कि उसने दोनों को मारकर शव इंद्रयाणी नदी में बहा दिए। कुछ दिनों तक वह डरता रहा कि कहीं उन दोनों में से कोई ज़िंदा ना बच गया हो। लेकिन जब कोई नहीं आया तो उसे पूरा यकीन हो गया कि दोनों नदी में डूबकर मर गए।

सारी सच्चाई बताने के बाद तरुण अब उस पल के इंतज़ार में था जब अंजन झूठ बोलने के लिए उसे मार देगा। वह कल्पना कर डर रहा था कि उसकी मौत ना जाने कितनी दर्दनाक होगी।
सच्चाई जानकर अंजन कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया। वह गुस्से से पागल हो रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी नसों में लावा बह रहा हो। वह वापस तरुण के पास आया। कुछ देर तक उसे घूरता रहा। तरुण को वह साक्षात यमराज नज़र आ रहा था।
अंजन ने तरुण का सर अपने हाथों में पकड़ लिया। ज़ोर से चिल्लाया और उसकी गर्दन तोड़ दी।
तरुण के मुर्दा जिस्म को घसीटते हुए अंजन के आदमी ठिकाने लगाने ले गए।

अपने घर के बार में बैठा अंजन शराब के नशे में चूर था। गुस्से में उसने आज बहुत अधिक पी ली थी।
मानवी और उसके प्रेमी ने मिलकर उस पर हमला किया। यह सोचकर वह अपने आप पर काबू नहीं रख पा रहा था। उसे यह अपनी हार की तरह लग रहा था। हाथ में पकड़ा गिलास गुस्से में ज़मीन पर फेंकते हुए बोला,
"छोडू़ँगा नहीं तुम दोनों को। तुमने मुझसे टकराने की कोशिश की है। मुझे मारना चाहते थे। अब तुम दोनों को भागने के लिए दुनिया छोटी पड़ेगी।"
वह उठा और लड़खड़ाता हुआ अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गया। वह सोच रहा था कि उस दिन अगर मुकेश ने उसे सही समय पर हॉस्पिटल ना पहुँचाया तो उसका बचना मुश्किल हो जाता। वह मन ही मन मुकेश के लिए कृतज्ञता का भाव महसूस करने लगा।
मुकेश के बारे में सोचते हुए उसके मन में एक सवाल उठा। उस दिन उसके शिमरिंग स्टार्स जाने का प्रोग्राम पहले से तय नहीं था। वह तो उसने शाम को बनाया था। ऐसे में उसके बीच हाउस पर होने की खबर मानवी और निर्भय तक कैसे पहुँची थी ? कौन था जिसने यह खबर उन दोनों तक पहुंँचाई ?
यह सवाल उसके मन को परेशान करने लगे। पंकज ने मरने से पहले कहा था कि उसने हमला नहीं करवाया। पर ऐसा हो सकता था कि उसने तरुण को बताया हो कि वह बीच हाउस जा रहा है। तरुण ने इसकी सूचना दी हो।
पर मानवी और निर्भय के जीवित रहने की बात सुनकर जिस तरह वह चौंका था उससे नहीं लगता था कि उसे पहले से उनके जीवित होने के बारे में पता था। इस स्थिति में वह उन्हें सूचना कैसे दे सकता था।
वह व्यक्ति कौन था जिसने उसके बीच हाउस जाने की सूचना मानवी और निर्भय को दी होगी। यह प्रश्न अब उसके मन को मथ रहा था। वह जो भी था उसके आसपास रहकर उसके साथ गद्दारी कर रहा था।
यह सोचकर कि उसके आसपास पंकज, तरुण और मुखबिरी करने वाले उस शख्स जैसे गद्दार थे उसका खून खौल उठा। पंकज और तरुण को तो उसने उनके किए की सजा दे दी थी। अब वह उस मुखबिर को सजा देना चाहता था।
वह परेशान था। तभी उसके दिमाग में एक विचार आया। यदि वह मानवी और निर्भय तक पहुंँच जाए तो वह गद्दार अपने आप ही उसके सामने आ जाएगा।
उसने तय कर लिया कि वह जल्दी से जल्दी उन दोनों तक पहुँचेगा।