गांव की तलाश 7
काव्य संकलन-
वेदराम प्रजापति ‘’मनमस्त’’
- समर्पण –
अपनी मातृ-भू के,
प्यारे-प्यारे गांवों को,
प्यार करने वाले,
सुधी चिंतकों के,
कर कमलों में सादर।
वेदराम प्रजापति ‘’मनमस्त’’
-दो शब्द-
जीवन को स्वस्थ्य और समृद्ध बनाने वाली पावन ग्राम-स्थली जहां जीवन की सभी मूलभूत सुविधाऐं प्राप्त होती हैं, उस अंचल में आने का आग्रह इस कविता संगह ‘गांव की तलाश ’में किया गया है। यह पावन स्थली श्रमिक और अन्नदाताओं के श्रमकणों से पूर्ण समृद्ध है जिसे एक बार आकर अवश्य देखने का प्रयास करें। इन्हीं आशाओं के साथ, आपके आगमन की प्रती्क्षा में यह धरती लालायित है।
वेदराम प्रजापति - मनमस्त -
43- जीवन नृत्य –
विश्वम्भर रूप होकर भी, अब तक नाचते आया।
कभी नारद, कपिल बनकर, व्यास अवतार भी पाया।
कभी तो कच्छ बन भोगा, कभी तो मत्स्य बन करके।
बना बाराह, नरसिंह भी हरीबन, गज को भू लाया।।
बनाया मोहिनी चोला, भस्म करने को भष्मासुर।
बांटन सुरा- अमृत को, मोहिनी रूप ही धर कर।
नचा नारद की रक्षा हित, बना कर, श्री का चोला।
बामन रूप भी धारा, बली को छल लिया भू-पर।।
उदर बारह वर्ष भोगा, शुक का बना कर चोला।
द्रोपदी लाज रखने को, साड़ी रूप में खोला।।
मेरू का सहारा बन कर, कमठ के रूप में आया।
बना हूं, परसुरामा भी, विश्व रक्षा करन डोला।।
पढ़ाने पाठ मरियादा राम-सा रूप ही धारा।
करी लीला अनेकों ही, बना तब, कृष्ण ही प्यारा।
धर्म रक्षा करी आकर, बौद्ध भगवान कहलाया।
बनूंगा कल्कि कलयुग में सहारन दुष्टदल सारा।।
बाल गोपाल मैं ही था, हरण जो ब्रम्हा ने कीना।
गाय, बछड़ा बना मैं ही, किसी ने नहि मुझे चीना।
अरे बलराम मैं ही हूं, रोहिणी गर्भ में पल कर।
विराटी पुरूष था रण में, अर्जुन सारथी कीना।।
अनेकों रूप हैं प्रभु के, भरा ब्रम्हाण्ड है सारा।
नचाया खूब जी भरकर, अनेकों भोग कर कारा।
नाच ले और कहते हो कितना नाचना अब है।
नाच मनमस्त कब छूटे अनेकों जन्म ले हारा।।
यही है प्रार्थना प्रभु से, बंद हो नाचना मेरा।
बही सब, आज कर डालो, मिटै जन्मों के सब फेरा।
परीक्षित मोक्ष कारण ही, आप शुकाचार्य हो स्वामी।
न जाने कौन पुण्यों से, मुझको, आपने हेरा।।
वंदन क्या करूं स्वामी, समझ कुछ भी नहीं आता।
बुद्धि अल्प है मेरी, निभाया कौन-सा नाता।
धन्य मैं हो गया प्रभुवर, जिब्हा, आबाक है मेरी।
तुम्हारी गोद को पाकर, दुनियां से मिटा नाता।।
44- प्रभु का आभार -
स्वीकारिए आभार अभिनन्दन प्रभु।
दीन लघु उपहार को, स्वीकारिए।
आपकी वाणी मनोहर, सुमन गंधित,
व्यंजना, अभिव्यंजना संग, सुधा पागी।
तर-बतर होते हृदय के भाव-रंजित,
श्री चरण में, रम गए, बन कर अनुरागी।
हांस मुख सुन्दर, दमकती भाल आभा।
नयन से बरसे, स्नेही राग-रागी।
मधुर भावों से भरा सारा प्रबोधन,
चेतना मनमस्त, होती है विरागी।।
हो गए हैं आप हम सब की धरोहर,
सुचि-हृदय मनुहार को स्वीकारिए।।
सप्त दिवसों की कथा, नाचा मेरा मन,
बीत रागी-सा बना, आकुल हुआ है।
रट रहा, अन्दर ही अन्दर, कृष्ण–राधे,
चेतना ने, ज्यौं कहीं, इसको छुआ है।
कौन-सा जादू किया है, इस पर प्रभुवर,
बोलता ज्यौं-आश्रमी कोई सुआ है।
द्वार दशहों खुल गए, फिर भी उड़ा नहिं,
हो रहा मनमस्त, फल पाका छुआ है।
आपकी किरपा अनूठी, यहां पर बरसी,
हम सभी के नेह को, स्वीकारिए।।
आपसे उपकृत कभी नहीं हो सकेंगे,
पी-कथा अमृत, अमर से हो गए हैं,
याद आते ही रहेंगे, सदां ये पल,
पाप सारे ही, हमारे धो गए हैं।
कर रहा मन, आपके सम्मुख खड़ा रहूं,
लग रहा यौं, जगत क्रंदन सो गए हैं।
क्यों खड़े मनमस्त, पकड़ो गुरू चरण को,
सच समझ, पूर्वज यहां सब तर गए हैं।
आपकी किरपा इती, बस चाहते हैं,
सुमन पंखुडि़ सौगात को, स्वीकारिए।।
45- बोलना होगा -
मौन बनकर, क्यों खड़े हो, बोलना होगा।
इस धरा के राज सारे, खोलना होगा।।
कुछ अधिक ही कुलबुलाते साधना के पल
ज््यादा समय तक, रोकना संभव नहीं होगा।
बोलती सब कुछ यहां की मौन मिट्टी भी,
धूल कण के वजन को भी, तौलना होगा।।
झिल्लियों की चीत्कारें, दादुरों के गीत,
कीर की, उर पीर का भी, मोल तो समझो।
केकियों का नृत्य करना, क्यों हुआ है बन्द,
कोटरों के उल्लुओं के बोल को, समझो।
वृक्ष से झड़ते पर्ण् की, यात्रा कैसी,
और कितनी दूर गामी, देखना होगा।।।
रोकती हैं राह को, जो राह में अड़कर,
गुम्बजें, वे कौन की, क्या कह रही बोलो।
खाईयों, भरके, कगारै अरू सलिल धारा,
कौन से अनुराग में पग, इन्हें भी खोलो।
अन छुए कुछ प्रश्न पूंछे, मौन रजनी भी,
मधुमती और लवण सरिता, खोजना होगा।।
46- नसीबी लेख -
नसीबों में लिखे होते, बुरे दिन, भी सदां प्यारे।
हजारों कोशिशे करलो, कभी होते नहीं न्यारे।
कहानी कई अजूबां हैं, हमें दीदार जो होती,
भटकना पड़ा है वन में, किस्मत खेल है सारे।।
न सुनता कोई, सुनकर भी, समय से समय भी हारा।
नगिन शमशान में बैठी, नृपति हरिशचन्द्र की तारा।।
किले और महल, ये देखो, जिन पर घास, उग आयीं,
कभी मजलिश यहां होतीं, घने छाए हैं अंधियारे।।
अभी भी सोच ले प्राणी, जीवन वास्ते प्यारे।
मिटो तो, देश हित साथी, अटल होंगे, ज्यौं ध्रुव तारे।
ये जीवन, फिर नहीं मिलना, करो कुछ काम नेकी के-
नसीबी-जीवनी लिखते, कभी मनमस्त नहीं हारे।।
मिट गए देश हित जो भी, हमेशा याद ही रखना।
किसी से नहीं गिला-शिकवा, इसे भी, याद ही रखना।
तुम्हें किस ओर जाना है, दिशाएं बात करती हैं-
समझ से काम लेना है, समय को याद भी रखना।।
समय तासीर को समझो, समय बलवान होता है।
समय को जिन नही साधा, राहौं बैठ रोता है।
जमाना जिस तरफ बदले, जमाने साथ ही बदलो-
बदला जिन नहिं खुद को, जीवन आप खोता है।।
47- नव वर्ष -
नव मंगलम, नव वर्ष हो।
चहुं ओर में, नव हर्ष हो।।
नव भाव हों, नवचाव हों।
नव गीत हों, नव ख्वाब हों।
नव प्रात हो, नव रात हो।
नव गीत हों, नव बात हो।
नव प्रीति से, नव रीति से।
नभ छोर तक, उत्कर्ष हो।।
नव रश्मि संग, नव भानु हो।
नव भ्रमर के, नव गान हों।
नव नीति से, नव गीत हो।
नव साज संग, नव संगीत हो।
नव प्यार, नव व्यवहार में-
नहीं कहीं पर, संघर्ष हो।।
नव चाल हो, नव साल हों।
नव ताल संग, नव हाल हों।
नव रंगले, नव रंग हो।
नव मिलन में, सब संग हो।
इस ओर से, उस छोर तक-
नव प्रीति, पावन वर्ष हो।।
48- धाम नहीं श्मशान सा -
कई योनि में, भोगन-भोग चुका,
शुचि योग में, मानव जन्म लिया।
उल्टा होय, मां उदरान पला,
प्रभु का, कर जोरित, नाम लिया।
पाकर ऐहिलोक, भुलाया उन्हें,
जेहि साधन धाम का योग दिया।
जग-जन्म का लाभ, उसे ही मिला,
जिसने शमशान सुधार लिया।।
केहिपै, इतराबत, ओ मनबा।
घुरूबा, उटबा, हथियान चढ़ा।
फिर भी, सुख पूर्वक जी न सका,
निशि- दिन, विषयान के द्वार पड़ा।
रटना, प्रभु नाम को, भूल गया।
भरपूरि भरा, पापान घड़ा।
शमशान को, याद कभी क्या किया,
ऐहि द्वार, सभी कोई, आना पड़ा।।
जग में, जब से यहां जन्म लिया,
भटकान की राहौं से, नापी मही।
धन..धाम के तीरथ देखे सभी,
दुख का अवशान, न पाया कहीं।
संत, महंत, तपी-जपि, योगिन,
के उपदेशों की राह गही।
मन को विश्रान्ति मिली, बस यहां,
शमशान-सा, पावन धाम नहीं।।।
49- पहेली -
कैसी अजब पहेली है ।
सबसे, सदां अकेली है।।
बीहड़ों के भी कान होते हैं।।
वैसे, सुमशान होते हैं।
जो सच्चा सोध, होता है।
परीक्षा का भी, बोध होता है।।
भीड़ एक पहेली होती है।
खुद में, अकेली होती है।।
जिंदगी के, हालात कैसे हैं।
देखो तो, जैसे के तैसे हैं।।
गाय हमारी माता है।
पर दूध, दुहा ही जाता है।।
वे बहुत सच्चे हैं।।
पर कान के कच्चे हैं।।
बेचारा बे-चारा है।
जिंदगी से ही हारा है।।
सितारों की बारात है।
तारों को देती मात है।।