What can I say… Part 4 in Hindi Love Stories by Sonal Singh Suryavanshi books and stories PDF | क्या कहूं...भाग - ६

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क्या कहूं...भाग - ६

विवान को आॅफलाइन देखकर स्मृति फिर से मायूस हो जाती है। वो बात करने के लिए जितनी उत्सुक थी, उसकी सारी उत्सुकता उदासी में बदल गई।

"मैंने बहुत जल्दबाजी में उससे सवाल पूछ लिया...धत्त.. मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। शायद उसे ये अच्छा नहीं लगा या फिर उसने एटीट्यूड दिखाया?" शंकालु स्मृति जी को फिर एक और शंका उत्पन्न हो जाती है।

वह गुस्से में सो जाती है इस दृढ़ निश्चय के साथ कि वो अब मैसेज नहीं करेगी।

सुबह उठकर स्मृति फेसबुक पर जाती है। उसे लगता है कि विवान ने रिप्लाई किया होगा। पर स्मृति को फिर से उदासी हाथ लगी और वह उदास मन से अपने काम में लग जाती है। सुबह से शाम फिर शाम से रात हो जाती है इंतजार करते करते पर विवान का रिप्लाई नहीं आता है।

इधर विवान रात को आॅनलाइन आता है। उसे पिछली रात की घटना याद आती है। वह देखता है कि उस लड़की ने दुबारा कोई मैसेज नहीं किया। अगर वो मेरा कोई दोस्त होता तो मैसेज जरूर आना चाहिए। यह सोचते हुए विवान स्मृति का अकांउट चेक करने लगता है। अकाउंट बिल्कुल नया था। स्मृति ने प्रोफाइल फोटो में पिकाचू रखा था। उसने अपनी एक भी तस्वीर अपलोड नहीं की थी। उसने दूसरे काॅलेज का नाम दिया था जो भोपाल में ही था। (फेसबुक बनाते वक्त स्मृति की दोस्त ने उसे ग़लत जानकारी लिखने को कहा था क्योंकि आय दिन फेसबुक पर अप्रिय घटनाएं होती रहती थी)

अगली सुबह स्मृति को फिर मन होता है कि वह फेसबुक पर जाए् लेकिन पिछले दो दिन से फेसबुक पर जाकर उसका दिन खराब हो रहा था इसलिए वो नहीं जाती है। बाकि दिनों की तरह वह काॅलेज जाती है। दोपहर के समय कैंटीन में उसके सभी दोस्त लंच कर रहे थे। स्मृति भी टाइमपास के लिए फोन चलाने लगती है।

"एमबीबीएस कर रहा हुं आरएसएस विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से।" विवान ने रात में ही रिप्लाई किया था।

यह पढ़कर स्मृति बहुत खुश होती है क्योंकि यह वही काॅलेज है जिसमें वो पढ़ रही है। दोस्तो के साथ होने की वजह से वो अपनी हंसी सबसे छिपाती हैं।

"डाॅक्टर साहब है। तभी इंजीनियरिंग विभाग में मुझे कोई नहीं मिला।" स्मृति सोचती है।

"आप किस वर्ष में हो?" स्मृति उसे रिप्लाई करती है।

स्मृति कुछ काम कहकर कैंटीन से चली जाती है और मेडिकल विभाग के बाहर खड़ी रहती है और बार बार इंबोक्स को रिफ्रेश करती है यह देखने के लिए कि विवान ने कुछ मैसेज किया है या नहीं।

कुछ देर इंतजार करके स्मृति को लगता है कि वह अभी आॅनलाइन नहीं आएगा। इसलिए वो छात्रावास चली जाती है। ऐसे ही शाम हो जाता है। इस बीच स्मृति ना जाने कितनी बार फेसबुक से चक्कर लगाकर आ चुकी थी।

स्मृति बिल्कुल उसी तरह इंतजार कर रही थी जैसे पुराने जमाने में लोग चिट्ठी का इंतजार करते थे। जमाना बदल गया पर एहसास नहीं बदलेंउसकी उत्सुकता बता रही थी कुछ नया होने वाला है उसकी जिदगी में जिसके तरफ वह खुद कदम तो बढ़ा रही थी पर रास्तों से अंजान थी।

आज स्मृति रात्रिभोजन जल्दी कर लेती है और फेसबुक पर चली जाती है। टाइमपास के लिए वह कभी किसी पेज पर कहानियां पढ़ रही थी, तो कभी चुटकुले पढ रही थी। इन सबमे भी उसका ध्यान था कि विवान का रिप्लाई आया या नहीं। काफी इंतजार करने के बाद विवान बाबू पधारते हैं। सारे नोटिफिकेशन चेक करने के बाद वह इनबॉक्स में जाकर स्मृति का मैसेज देखता है। इस बार फिर उसके प्रश्न देखकर उसे शक नहीं होता बल्कि वह मुस्कुरा देता है और मन में सोचता है ये लड़की थोड़ी अलग लगती है।


" द्वितीय वर्ष में" विवान रिप्लाई करता है।


स्मृति - "धन्यवाद।"


विवान - "और कोई सवाल है तो पूछ लिजिए।"


स्मृति - नहीं, वो तो मैं बस इसलिए पूछ रही थी कि आप मेरे दोस्त बने हो और दोस्त के बारे में इतनी जानकारी तो रखनी पड़ती है ना‌।


विवान - तो अबतक कितने दोस्तों की जानकारी ले चुकी है आप ?


स्मृति - वास्तव में, सब मेरी जानकारी लेते हैं पर आप मुझे थोड़े अलग लगे इसलिए आपके बारे में जानना चाहती थी।


विवान - "आपको क्या अलग लगा मुझमें ?"


स्मृति - आप सिर्फ चुटकुले भेजते थे। आपने कभी मुझसे बात ही नहीं किया ना मेरे बारे में पूछा।


विवान - चुटकुले पढ़ना मुझे पसंद है। सोचता हुं अकेले क्यों हंसू इसलिए सबको भेज देता हुं।


स्मृति - और चैटिंग?


विवान - मुझे नहीं पसंद।


स्मृति - ठीक है।


"आजकल भला चैटिंग किसे नहीं पसंद? ओवरस्मार्ट बन रहा है और एटीट्यूड तो खूब है" स्मृति यह सोचकर सोने चली जाती है।