Atonement - 12 in Hindi Adventure Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | प्रायश्चित - भाग-12

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प्रायश्चित - भाग-12

"दो दो जिंदगियां बर्बाद कर अब इतने भोले मत बनो, दिनेश बाबू!" कुमार उसकी ओर देखता हुआ व्यंग्य से बोला।

"आपकी पत्नी भले ही आपको माफ कर दे लेकिन मैं नहीं करूंगा। मैं पुलिस थाने जा रहा हूं, आपको आपके किए की सजा दिलवाने।"
जैसे ही वह बाहर जाने लगा, किरण ने उसके पैर पकड़ लिए और बोली "रुक जाइए। मैं इस सबकी कसूरवार हूं।सजा मुझे दीजिए। इनका कोई कसूर नहीं है।"

"वाह क्या आशिकी है।‌ इतना प्रेम कभी तूने हमसे नहीं किया छिनाल !!!! इतना दिल लगा बैठी इससे कि उसके किए का इल्जाम भी अपने सिर ले रही है!
अरे ,इधर उधर ही मुंह मारना चाहता था तो मुझसे शादी ही क्यों की। किसी कोठे पर बैठ जाती !!!!
पर मैं तेरी बातों में आने वाला नहीं। तुझे और तेरे आशिक को सरे बाजार नंगा ना कर दिया तो मेरा नाम कुमार नहीं !!!!"
कुमार उसे ठोकर मारते हुए बोला।

जैसे ही वह कमरे से बाहर निकल जाने लगा ,शिवानी की तेज आवाज ने उसके बढ़ते कदमों को रोक लिया।
"रुक जाओ कुमार!
यह सिर्फ तुम्हारे घर का मामला नहीं, मेरे घर की इज्जत भी दांव पर लगी हुई है।
किसी की करनी का फल मेरे बच्चों को मिले, यह मैं नहीं चाहती।
बताओ चुप रहने की तुम क्या कीमत लोगे!!"

"यह कैसी बात कर रही हो शिवानीजी आप!
आपने मुझे क्या दलाल समझा हुआ है। जो चंद पैसों से मेरा मुंह बंद करना चाहती हो। आग लगी हुई है, मेरे सीने में। जो इन दोनों को सजा दिला कर ही पूरी होगी!" कुमार दांत पीसते हुए बोला।

"कुमार, तुम्हारा तो मुझे पता नहीं लेकिन मेरा परिवार है। मेरे दो बच्चे हैं। अगर यह बात बाहर निकल गई तो समाज मेरे बच्चों को जीने नहीं देगा! उठते बैठते वह उन्हें ताने दे देकर मार डालेगा। मुझे अपनी नहीं, अपने बच्चों की फिक्र है। उन्हें गुमनामी के अंधेरे में मत धकेलो। उनका भविष्य अंधकारमय मत करो।
पता है मुझे, जो दाग हमारी जिंदगी पर लग गया है, वह पैसों से धुलनेवाला नहीं । फिर भी एक मां अपने बच्चों के जीवन की भीख मांगती है। अगर यह बात बाहर निकली, तो मैं अपने बच्चों के साथ जान दे दूंगी। यह सब करने के बाद हाथ तुम्हारे भी कुछ नहीं लगेगा। तुम्हें पता है इन मामलों में कोई सजा नहीं। हां जीवन भर की बदनामी जरूर मिलेगी।
अब तुम्हें सोचना है कि तुम्हें बदनामी चाहिए या रुपए!!!!
देख लो ,तुम्हें चुप रहने की मैं मुंह मांगी कीमत देने को तैयार हूं क्योंकि ये कीमत मेरी बच्चों की जिंदगी से बढ़कर नहीं!"

उसकी बात सुनकर कुमार ने अपने बढ़ते कदमों को वापस खींच लिए और बैठकर सोचने लगा!

उधर दिनेश शिवानी से बोला "शिवानी तुम पागल हो गई हो क्या! जो इसकी बातों में आ रही हो। अरे, यह सब झूठ है। यह हमसे पैसे ऐंठना चाहता है। तुम तो जानती हो इसकी फितरत! फिर क्यों इसकी बातों में आ रही हो। होश से काम लो शिवानी! इसकी चाल को समझो!!!
मैं हमेशा तुमसे कहता था ना कि इन लोगों से दूर रहो पर तुमने मेरी एक न मानी और आज देखो इन्होंने हमारी जिंदगी में कैसे आग लगा दी है! तुम समझ रही हो ना मैं क्या कहना चाहता हूं!!!!
यह हमें यह झूठा वीडियो दिखाकर ब्लैकमेल कर रहा है।"

"दिनेश क्या सच है, क्या झूठ! यह मुझे नहीं पता लेकिन इतना तो तुम्हें भी पता होगा कि ऐसी बातें अगर एक बार घर से निकल गई तो कहां तक जाएगी! सबूत तुम्हारे सामने हैं कैसे झूठलाओगे इसे ! तुम इसे झूठा कह रहे हो लेकिन लोग मानेंगे लोग तो वही सच समझेंगे जो दिख रहा है। झूठ को सच साबित करने में बरसो निकल जाएंगे। तब तक क्या मेरे बच्चे इस दाग को लेकर जी पाएंगे!
अरे, अभी तो वह इस दुनिया में आए हैं। तुम चाहते हो अभी से उन्हें बदनामी की दलदल में धकेल दूं। उन्हें जीते जी मार दूं। नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैं मां हूं।
मैं अपने बच्चों के दामन पर किसी की अय्याशियों के छींटें नहीं लगने दूंगी। इसके लिए चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े।"शिवानी अपने गुस्से को पीते हुए बोली।

"लेकिन शिवानी!!!!!!! "

"दिनेश, मैं इस बारे में तुमसे कोई बहस नहीं करना चाहती। बार-बार सफाई देकर मेरे दुखों को और मत बढ़ाओ!"

फिर शिवानी, कुमार की ओर देखते हुए बोली "बताओ कुमार क्या सोचा तुमने, मेरे प्रस्ताव के बारे में!!"

कुमार कुछ देर चुप रहा और फिर चुप्पी तोड़ते हुए गंभीर आवाज में बोला
"शिवानी जी जितना बुरा इंसान आप मुझे समझते हो, उतना बुरा मैं हूं नहीं। मेरे सीने में भी एक अच्छा इंसान छुपा है। जो मुझे समय-समय पर सही राह दिखाता है।
मैंने बहुत सोचा और मुझे आपका प्रस्ताव सही लगा। बाप के कर्मों की सजा इन मासूमों को तो बिल्कुल नहीं मिलनी चाहिए। इनके पिता ने तो इनके भविष्य के बारे में नहीं सोचा लेकिन मुझे इनकी फिक्र है। आपने हम पर इतने उपकार किए हैं कि मैं उन्हें मरते दम तक नहीं भूल सकता। इसलिए मुझे आपका प्रस्ताव मंजूर है।
आपसे पैसे लेकर मैं मानवता को शर्मसार नहीं करना चाहता लेकिन आपको तो पता है ना कि यह मेरी मजबूरी
है!! सुबह कमाता हूं तो शाम का चूल्हा जलता है। अगर मेरे पास थोड़े भी पैसे होते तो मैं आपसे ₹1 भी नहीं लेता लेकिन क्या करूं!!!!
वैसे भी अब मैं इस शहर में नहीं रहूंगा। चला जाऊंगा यहां से। वरना हमेशा बदनामी का डर सताता रहेगा।
दूसरे शहर में फिर से जिंदगी शुरू करने के लिए, कुछ तो रूपए पैसे चाहिए ना! बस इसलिए ना चाहते हुए भी आपसे एक छोटी सी रकम चाहता हूं। इसकी एवज में, मैं आपको यह वीडियो दे दूंगा और मरते दम तक भी इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहूंगा!"

"बताओ तुम्हें कितने रुपए चाहिए!" शिवानी गंभीर आवाज में बोली।
"10 लाख!!!!!!"
"क्या!! !!!!पागल हो गए हो क्या तुम !" दिनेश चिल्लाता हुआ बोला।
"दिनेश बाबू, इतना चिल्लाओ मत। दीवारों के भी कान होते हैं। ऐसा ना हो कि मेरे कहने से पहले ही यह बात बाहर निकल जाए इसलिए चुपचाप बैठे रहिए!" कुमार ढीठता से बोला।

"मंजूर है ! पैसे तुम्हें शाम तक मिल जाएंगे। लेकिन पैसे मिलते ही तुम यह घर और शहर छोड़कर चले जाओगे।"

"बिल्कुल मैंने तो पहले ही आपसे कहा कि मैं यहां रहना ही नहीं चाहता!"
"ठीक है। शाम को आकर पैसे ले जाना लेकिन तब तक तुम
घर से बाहर मत निकलना ।"
कुमार व किरण जाने लगे तो शिवानी ने कहा "कुमार यह फोन मुझे दे दो!"
"लेकिन आप इसका क्या करोगे। मैं सिम दे देता हूं आपको!"
"मैं इसके भी दाम तुम्हें दे दूंगी ,बेफिक्र रहो।"
कुमार ने चुपचाप फोन शिवानी को दे दिया और दोनों बाहर निकल गए।
उनके जाने के बाद दिनेश ने शिवानी से कहा " शिवानी यह क्या बचपना है!! क्यों तुम उसकी बातों में आ रही हो! ब्लैकमेल कर रहा है वो हमें! अरे, कहां से लाओगी इतना पैसा! क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं। बोलो ना!!"

" दिनेश यहां सवाल विश्वास या अविश्वास का नहीं ! मैं बार-बार तुमसे कह रही हूं कि कुछ भी कहकर मेरे दर्द को और मत बढ़ाओ। क्या सही ,है क्या गलत है! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा और अभी मैं समझना भी नहीं चाहती। मुझे बस इतना पता है कि मुझे अपने बच्चों का भविष्य बदनामी से बचाना है। और इस बदनुमा दाग से उनको बचाने के लिए चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े, मैं करूंगी। "
कहते हुए शिवानी अपनी अलमारियां टटोलने लगी और उसने सारे गहने व जमा पूंजी बाहर निकाल ली।

"यह क्या शिवानी! मैं तुम्हीं यह गहने नहीं देने दूंगा। अरे, यह तो तुम्हारा सिंगार है और मुझे पता है तुम्हें इन गहनों से कितना प्रेम है। अगर तुमने मुझे अपनी नजरों से गिरा ही दिया है तो मैं बैंक जाकर पैसे निकालकर ला देता हूं। पर तुम इन गहनों को वापस रख लो।"
"नहीं दिनेश, मुझे अब इनकी जरूरत नहीं । औरत का असली सिंगार उसका पति होता है और वो ही...!!!!!!" कहते कहते शिवानी चुप हो गई।
दिनेश भी आगे कुछ नहीं बोला। बोलता भी क्या!!!!

पूरा दिन घर में सन्नाटा पसरा रहा। नन्ही रिया को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि घर में यह सब क्या हो रहा है! हां, घर में तनाव के माहौल को देख वह पूरा दिन उदास चुपचाप अपने भाई के पास बैठी रही।

क्रमशः
सरोज ✍️