Chat box.… - 5 in Hindi Moral Stories by Anju Choudhary Anu books and stories PDF | चैट बॉक्स.… - 5

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चैट बॉक्स.… - 5

भाग 5

वंदना ने अपनी सिसकियों में बात को जारी रखते हुए कहा, , ...दीदी....मैंने अपने रेप की बात भाभी से करना चाहती थी...पर नहीं कर पाई...भाई को बताना चाहती थी...पर नहीं बता पाई...मेरे माँ-बाबा नहीं है...ना कोई बहन...भतीजी या भांजी जिसे मैं अपने दिल के ज़ख्म दिखा सकती...मैं अन्दर ही अन्दर टूटती रही, पल पल मरती रही...मेरे चेहरे की हँसीं छिन चुकी थी कि नितिन  ने मुझे और मेरे दिल को क्यों नहीं समझा ...ऐसे कैसे मुझे किसी के भी हवाले कर दिया |

‘हाँ माना जिंदगी में प्यार के साथ सेक्स बहुत जरुरी है ...पर इतना भी जरुरी नहीं कि अपनी इज्ज़त बचाने के लिए उसने मुझे ही तार-तार कर दिया ...वो क्यों नहीं समझ सका कि इस तरह के अनजाने सेक्स के बाद मुझे उसकी सबसे ज्यादा जरुरत होगी..., मुझे बिना बताए हमेशा के लिए दुबई चला गया | नितिन के जाने के बाद मैंने बहुत सोचा, बहुत वक़्त दिया अपने आप को कि खुद को संभाल लूँ, अपनी आगे की जिंदगी के बारे में सोचूँ, अपनी कड़वी यादों को भुला कर मैं आगे बढ़ूँ पर मेरी किस्मत ने यहाँ भी साथ नहीं दिया |

हमेशा सोचती थी कि क्या विश्वास की वो भीनी सी लकीरी हम दोनों के मध्य कभी नहीं थी ?क्या नितिन ने शुरू से ही मुझे सिर्फ यूज़ किया था...तभी हमेशा उस से प्यार के साथ साथ परायापन  भी महसूस होता था | क्यों वो मुझ से ये नहीं कह सका कि हर सुख दुःख बाँटना ही हम दोनों के जीवन का धय है और वही इंसान मुझे इस तरह किसी के हवाले कितनी आसानी से सौंप कर भाग गया ...एक भगौड़े की तरह...छीईईईइ !

वंदना ने एक बार फिर से रोते हुए स्वाति की  गोद में सर रख दिया ताकि उसका दर्द थोडा सा कम हो सके ....उसके अन्दर इतना कुछ दबा हुआ था कि जिसके चलते वो अपने लिए जीना भूल चुकी थी ओर स्वाति छिप कर अपनी आँखें पौंछ रही थी |कभी कभी अपने दर्द को सुनाने वाला, सुनने वाले के दर्द को नहीं जान पाता, ऐसा भी कुछ नहीं था...दर्द दोनों तरफ बराबर ही था  क्योंकि वैसा ही दर्द स्वाति महसूस कर रही थी, अपनी गुड़िया के लिए |

तभी स्वाति भरे गले से अपनी कामवाली बाई को आवाज़ देती है  ''शल्लों आंटी !ज़रा दो कप चाय दे जाओ |बहुत तलब लगी हुई है |''.....

और कहीं अंदर से आवाज़ आई ''अभी लाई  बिटिया !हम तो कब से राह तक रहे थे आपके आडर का | आप ही देर से बोली है ...आपकी चाय का बखत तो कब से हो गया है |''

''ये तो गंदगी का एक ट्रेलर था तुम्हारे सामने.....मैं भी तुम्हारी बातें  सुनते हुए कुछ ऐसा ही सोच रही थी | पता है क्यों....क्यों कि हर इंसान को वही मिलता है जैसे उसके साथ अतीत में बीत चुका  होता है....बस तभी तो मैं तुमसे बात करने के बाद बरबस ही तुम्हारी ओर खिंचती चली जाती थी....मुझे शुरू से ही लगता था कि तुम्हारे साथ सब कुछ नार्मल नहीं है....तुम मेरे से तो बात करती थी पर वैसे नहीं जैसे एक नार्मल इंसान करता है |

तुम्हें  तुम्हारे पति ने धोखा दिया और मेरी कहानी भी मेरे पति की वजह से बनी, नहीं तो मैं अपनी जिंदगी में अपने बच्चों और बाकि घरवालों के साथ बहुत खुश थी |मुझे देखो ....मैंने तो अपनी मर्ज़ी से ये रास्ता चुना था ....जानती हो वंदु ....शरीर का जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल और बिलकुल भी इस्तेमाल ना होना दोनों ही सूरत में आप का मन भटकता है और मेरे साथ भी वही हुआ था |

मेरे हसबैंड दिन रात सिर्फ मुझ से मेरा शरीर मांगता था, जिसे इस्तेमाल के बाद उसे मुझ से कोई वास्ता ही नहीं रहता था जैसे मैंने कोई खिलौना हूँ, खेला और मन भर जाने पर घर के कोने में रख दिया अगले इस्तेमाल के लिए|

मैं टूटती रही, बिखरती रही, उसके साथ की एक एक पल की भीख मांगती रही, उसके एक पल के साथ के लिए तरसती रही, पर उसने मेरी परवाह कभी नहीं की, उसे बस मेरे शरीर से मतलब होता था वो उसे इस्तेमाल करता और उसके बाद तब तक शांत रहता जब तक वो अगली बार के लिए खुद क तैयार न कर ले....घंटों मैं मरती रहती, वो जैसा चाहता मुझे वैसा ही करना होता था, उसकी मर्ज़ी के खिलाफ जाने पर अलग से चोटों के निशान पड़ने लगते थे |

मेरे शरीर के सम्मोहन में वो बार बार मुझे नोंचता था | सब कुछ मशीनी रहता था...स्वचालित सा, वही दोहराव....तंग आ चुकी थी मैं अपनी ऐसी लाइफ से जिस में मुझे कुछ बोलने की आज़ादी नहीं थी |वंदु मर्द बहुत अजीब प्राणी होता है...वो अपनी बीबी को मार सकता है, चिल्ला सकता है और धमकी भी दे सकता है पर वही मर्द किसी दूसरी औरत के सामने वो चाहे माँ हो, बहन हो या उसकी गर्ल फ्रेंड उसके सामने बोलने से भी डरता है |

मेरे मन की शांति ने मुझे भी भटका दिया था | जिस वक़्त मैंने घर से कदम बाहर निकाले  तब ये नहीं जानती थी कि किसी के लिए भी ''मन'' जैसी कोई चीज़ है ही नहीं इस दुनिया में कुछ वक़्त के लिए एक बाढ़ आई थी मेरे भी जीवन में |

मैंने एक ऐसे इंसान की खोजने  में निकली थी जो मुझे मेरे मन का सुकून लौटा सके.....पर ऐसा कुछ नहीं हुआ...और मैं वासना की अंधी गलियों में कुछ वक़्त के लिए भटक गयी थी |''

वंदना स्वाति की बात सुन कर एक पल के लिए ऐसे चौंकी जैसे उसे बिजली का जोर का झटका लगा हो और अपनी आवाज़ पर काबू रखते हुए बहुत मुश्किल से सिर्फ इतना ही बोल पाई ''क्या दी आप भी .......''?

वंदना की बात सुनने के बाद स्वाति ने अपनी बात जारी रखी और बोली ''नहीं रे! मेरे साथ रेप नहीं हुआ था, मैं अपनी मर्ज़ी से अपनी मर्यादा लांघ गयी थी |जिसे मैंने प्यार समझा पर उसका अंत वासना के खेल पर ही हुआ |उसके लिए भी मैं एक जिस्म ही रही...बिना भावनाओं के |

तुम्हें पता है, मेरे लिए जिंदगी में हर छोटी से छोटी बात बहुत मायने रखती थी है |बच्चे मैं बहुत सोचती हूँ रे ! कभी कभी लगता है कि मेरा दिमाग फट जायेगा....हर छोटी से छोटी बात ...क्यों...कब ...कैसे ....हर सवाल का जवाब चाहिए होता है मुझे तुरंत...नहीं तो दिन-रात बेचैन रहूंगी, वही बात मुझे  तेरे में भी दिखाई दी...तेरी बाते सुनते हुए मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं खुद को सुन रही हूँ वही सब फील कर रही थी जो मैं अपने वक़्त किया करती थी....बस मेरी एक स्थिति तेरे से थोड़ी सी फर्क थी |

''दी ! प्लीज़ मुझे यूँ घूमा कर मत बताओ...ये सब बाते मुझे बेकार की लग रही हैं...आप प्लीज़ पहले मुझे बताओ कि आपके साथ ऐसा क्या हुआ कि वो ज़ख्म आज आपको परेशान कर गए ''|

वंदना के शब्दों के साथ कमरे में एक गहरा सन्नाटा पसर गया

स्वाति ने प्यार से वंदना का हाथ पकड़ कर, प्यार से सहलाते हुए, उसके माथे को चुमते हुए और  उसे अपने करीब बैठाते हुए अपनी बात को आगे बढ़ाया '' वंदु, कबीर के व्यवहार से मन इतना बेचैन रहता था, जो ना घर पर लगता था, ना दोस्तों में और ना ही  घर से निकलने के बाद किसी भी जगह पर | घर होती तो मन करता बाहर जाऊं और अगर बाहर चली जाती तो मन करता भाग कर घर चली जाऊं| ज़रा सा गुस्सा कब चिडचिडाहट में तब्दील हो जाता था....सारा दिन की कुड-कुड और खुद के सर में दर्द लेकर घूमना आदत बन चुकी थी |

मैं दिन या रात के पंद्रह-पंद्रह मिनट के सहवास से थक चुकी थी, उसके लिए भोगने का सामान बन कर रह गयी थी |

जिस इंसान ने मुझ से शादी की, उसने मुझे कुछ भी मागंने के नाम पर महंगी से महंगी चीज़े परोस दी |महंगे पर्स, साड़ी, सूट, कॉस्मेटिक, चप्पल हर चीज़ ब्रेंडिड |पर जो मुझे चाहिए था, वो साथ रहते हुए भी मुझे ना दे सका और मेरा अकेलापन दिनों-दिन बढ़ता रहा |

और कहीं ना कहीं शायद आगे चल कर मैं भी पैसे को लुटा  कर अपने मन के दर्द को शांत करने की कोशिश में पैसे बर्बाद करती चली गई...पर मुझे तब भी शांति और सुकून नहीं मिला |

तभी मेरे अकेलेपन को मेरे पापा ने समझा और मुझे ये बुटिक खुलवा के दिया |बुटिक के खुलते ही पैसे के साथ साथ मेरा वक़्त भी मेरा होने लगा और जैसे ही वक़्त मेरा हुआ इनका गुस्सा मेरे प्रति ज्यादा बढ़ने लगा क्योंकि अब मेरे पास ओर भी बहुत काम रहते थे इनकी बात सुनने के अतिरिक्त, उसी चिडचिडाहट की वजह से पहले पहले तो ये मुझ पर हाथ उठा देते थे, पर धीरे-धीरे मैंने इनका हाथ उठाने पर, रोकना शुरू कर दिया |जिस दिन इनका हाथ उठना बंद हुआ उसी दिन से मैं भी इनके प्रकोप से आज़ाद हो गयी |

बुटिक की वजह से एक नई दुनिया से मेरा वास्ता पड़ा, ये दुनिया मर्दों की थी |पहले-पहले तो यहाँ बहुत से लोग मिले जो कुछ वक़्त साथ देकर अगल हो गए और कुछ का साथ वक़्त के साथ ओर गहरा होता गया |एक से दोस्ती हुई और वो कब आकर्षण में बदल गयी ये मैं भी नहीं जान पाई | मुझ पर मेरे बच्चों और घर की जिम्मेवारी थी ये मुझे पता था पर पति के व्यवहार से में दुखी थी शायद ये ही बात उस दोस्त ने भांप ली थी या मेरी ही कमजोरियों ने उसे बता दिया था |

आकर्षण कब बिस्तर तक पहुँच गया ये मैं भी नहीं जान पाई, उस दोस्त के साथ हमबिस्तर हुई, सहवास के नाम से कोसों दूर भागने वाली ''मैं'' ना जाने कैसे उसके आगे समर्पण कर बैठी |मैंने उसे दिल की गहराईयों से प्यार किया था...पहले पहले तो उसने मुझे इतना प्यार दिया जिसकी कल्पना मैंने अपने जीवन में तो नहीं की थी...लगातार पांच घंटे के सम्भोग ने मुझे नई जिंदगी से रूबरू करवाया | मैं अब भी उसे प्यार करती हूँ भले ही उस इंसान ने मुझे, मेरे पति की तरह ही इस्तेमाल किया, दो साल के सम्बन्ध के बाद एक दिन वो अचानक ही मुझ से ये कह कर अलग हो गया कि ‘मन से अभी भी अकेला हूँ...अज्ञातवास पे जा रहा हूँ अगर वापिस आया तो तुम्हारे ही पास आऊँगा ‘’

और वो आज तक अपने अज्ञातवास से वापिस ही नहीं आया |

पहले पहले तो मैंने लगातार उस से बात करने की कोशिश करती रही, पर नाकाम रही...कुछ ही महीनों के बाद उसके ही मोबाइल से मुझे उसकी पत्नी या पता नहीं वो औरत कौन थी ...की तरफ  से धमकी वाले कॉल आने लगे...मैं बेकसूर होते हुए भी कसूरवार बन गई....पर कहीं बहुत पहले से मैं अपनी ही नज़रों में तो कसूरवार तो बन ही चुकी थी |

उस से अलग हुए मुझे एक साल से भी ज्यादा हो चुका था |मैंने मुड़ कर कभी उस से सम्पर्क नहीं किया और ना ही उसने चले जाने के बाद कभी मुझ से मेरा हालचाल लिया |उसके जाने एक ठीक एक साल के बाद एक ज्योतिषी (astroleger) से दोस्ती हुई..वो मेरे बुटिक पर अपनी बीबी के साथ रेगुलर आता था..उम्र में मुझे से छोटा था |

क्रमशः ...