Chat box.… - 2 in Hindi Moral Stories by Anju Choudhary Anu books and stories PDF | चैट बॉक्स.… - 2

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चैट बॉक्स.… - 2

भाग 2

एक ही झटके से स्वाति ने उसे अपने से अलग किया और कुछ देर गौर से देखने के बाद वो बोली ''ओह! वंदना ....मेरी गुड़िया'' और स्वाति का गला भर आया ,उसे चेहरे को पकड़ कर अपनी ओर झुका कर स्वाति ने उसका माथा चूम लिया और कुछ पलों के लिए वो आगे कुछ नहीं बोली पाई |पर उसने वंदना की सिर से पैर तक बहुत गौर से देखा...बहुत शालीन लग रही थी....जैसे स्वाति ने सोचा था ठीक वैसी ही थी उसकी वंदना |

वंदना ने सफ़ेद सूट, सफ़ेद दुप्पटे के साथ पहना हुआ था और पैरों में सफ़ेद चप्पल हाथों में सफ़ेद पर्स...एक दम हिम की चमक लिए हुए....सच में आज वंदना स्वाति के मन में अपनी जगह पक्की करने में कामयाब रही....अपनी हल्की मुस्कान के साथ वंदना बोली...

'' हाँ दी! आपकी गुड़िया...आपकी वंदना, जो फेसबुक की दुनिया से निकल कर....आज आपके सामने है |मैं हूँ आपकी वंदना...वन्दु और गुड़िया ''|

वंदना को एक दम अपने सामने देख स्वाति की धड़कन तेज हो गयी थी |वो नहीं जानती थी कि उसे इस तरह का सरप्राइज़ मिलेगा,पर वो अपने सामने वंदना को देख कर खुश भी बहुत थी |

''पर वन्दु ! तुम तो मुझे फोन करने वाली थी ना ?''

''हाँ दी ! पर मुझे आपको ऐसे देखना था ...एक दम अचानक से और ये जो आपका रिएक्शन था ना मुझे देख कर ....वो मैं कैसे मिस कर सकती थी ''|

''हट धूर्त!तुमने तो मेरी जान ही निकाल दी इन तीन दिनों में ,ना कोई फोन, ना कोई मेसज....मेरे पास सिवाए इंतज़ार के ओर था भी क्या करने को, अपना नंबर तक तुमने मुझे नहीं दिया था |जब भी फोन किया, PCO से किया,इतना सस्पेंस क्यों वन्दु''|

''अरे सोर्री ना दी ! वो क्या था कि शादी में आना तो एक बहाना था.....यहाँ मुझे कुछ जरूरी काम भी निपटाने थे...इस लिए आपसे कोई बातचीत नहीं कर पाई ''|

''पर गुड़िया! मेरा बच्चा ....तुझे अच्छे से पता था ना कि तेरी दी इन दिनों तेरा ही इंतज़ार कर रही होगी....फिर भी तूने मुझे परेशान किया ''

स्वाति ने एक नकली नराजगी वंदना को दिखाई तो वंदना माफी मांगती हुई स्वाति के गले फिर से लग गई| पर स्वाति को अब भी समझ नहीं आ रहा था कि वो वंदना के लिए इतनी बेचैन क्यों थी?ओर भी दोस्त है उसके, कुछ दोस्तों से मिल भी चुकी है पर इस बच्ची से उसका जुड़ाव अलग ही था....ये बात वो अच्छे से जान रही थी |

चाय-पानी और खाने पीने का दौर चला और उसके खत्म होते ही दोनों आराम से स्वाति के कमरे में जा कर पलंग पर बैठ गई |

दोनों ने भर पेट खाना खाया था और अब बारी हंसी-मज़ाक की थी पर स्वाति बार बार अपनी घड़ी देख रही थी तो वंदना ने मज़ाक में कहा '' क्या बात है दी ....मुझे घर से जल्दी भगाने का प्रोग्राम है क्या ? जो आप बार-बार टाइम देख रहे हो ''|

''नहीं वन्दु! मेरा बस चले तो मैं कभी तुम्हें जाने ही ना दूँ |मैं तो बस इस वक़्त को अपने में समेट लेना चाहती हूँ |''

" और अगर मेरा बस चले ना दी! तो मैं कभी आपको छोड़ कर ही ना जाऊँ "....वंदना ने अपनी ही बात पर एक फीकी और बुझी सी मुस्कान दी | वंदना ने फिर से कहा " दीदी आप मुझे गुड़िया बुलाते हो ना तो, मुझे अपनी माँ की याद आ जाती है |वो भी मुझे गुड़िया बुलाती थी ...अपने पास बैठा कर मेरे बालों में खुद से तेल लगा, मेरी बालों को बहुत तरीके से बांधती थी और आपको पता है दी ....हमारे यहाँ तेल लगे बालों पर आज भी रिब्बन लगाने का रिवाज है और ऐसा करना लड़की के कुवांरी होने की निशानी माना जाता है |''

वंदना ने आगे कहा " दीदी आप तो कितनी बिज़ी रहती हो, मैंने ऊपर आते हुए देखा नीचे आपने कितना बड़ा बुटीक खोल रखा है, फिर भी आप मेरे लिए कितना वक्त निकाल लेते थे। तो मुझे बहुत अच्छा लगता था,दी! मेरे मम्मी-पापा तो थे नहीं ....भैया- भाभी है फिर भी आपसे बातें करना मुझे हमेशा से ही अच्छा लगता आया है |’’

 

वंदु ने अपनी बात को थोड़ी देर के लिए रोका तो स्वाति बोल पड़ी ‘’अरे,अरे थोडा आराम से बात करो....मैं कहीं नहीं जा रही हूँ .....और तुम तो जानती हो गुडिया!मेरे दोनों बच्चे बाहर पढ़ते हैं,मेरे पास अपने काम के बाद का वक़्त मेरे दोस्तों के लिए रहता है...इस लिए मेरा वक़्त सही से कट जाए...मैंने फेसबुक ज्वाइन कर लिया....वैसे भी जो भी कस्टमर आता है वो सबसे पहले फेसबुक की ही बात करता है...वैसे मेरे लिए इन्स्टाग्राम और फेसबुक बहुत अच्छा ऑप्शन साबित हुआ है|मैं अपने बुटिक के नए डिज़ाइन वहां अपलोर्ड कर देती हूँ,जिसकी वजह से मेरी सेल ओर भी अच्छी हो जाती है|’’

फेसबुक पर बात चली तो लगे हाथ वंदु ने लगे हाथ एक प्रश्न ओर पूछ लिया....

‘’पर दी... इस जीवन में एक औरत होना ही अपने आप में एक जटिल सवाल है...आप अपने लिए तो कभी अपनी जिंदगी जीते ही नहीं हो ...सारी उम्र तो आप, किसी ना किसी के लिए बंधे हुए हो और यहाँ फेसबुक की वाल पे जब देखो तो औरत ही औरत को बदनाम और नीचा दिखने का काम करती नज़र आती है, शोषित करती,गाली देती दिखाई दे जाती हैं , तो कहीं औरत ही औरत के प्रेम प्रसंगों को उछालती हुई ही नज़र आती है....छीईईई.....

मुझे तो ऐसा लगता है जैसे यहाँ कुछ ऐसी औरतों का गेंग सक्रिय हैं जिसका काम सिर्फ हर किसी की गलती निकालना है दीदी...उन्होंने औरत की कमर के गोलार्ध तो देख लिए, फैली हुई कमर भी दिख गयी पर उसके पीछे का संघर्ष नहीं देखा या वो लोग देखना ही नहीं चाहती कि उनकी कही बात से किसी औरत का घर भी ख़राब हो सकता है | औरत का शोषण पुरुष करें तो समझ आता है क्योंकि वो अपने से आगे किसी को देख ही नहीं सकते पर यहाँ तो औरत ही अपनी स्टेटस से औरतों का शोषण करने पर उतारू हैं,उसकी शारीरिक कमियों को सरे आम उजागर करके पता नहीं वो क्या साबित करना चाहती हैं....

बहुत बुरा लगता है दी...जब एक औरत को अपने आप को साबित करना पड़ता है वो भी अपनी जैसी औरतों के आगे |’’

वंदना की मासूम सी बातें सुन कर स्वाति की आँखें भर आई,उसने वंदना का हाथ खुद के हाथों  में पकड़ कर चुम लिया, उसके माथे पर प्यार किया और बोली ‘’वंदु! क्यूँ सोचती हो इतना सब कुछ,यहाँ ऐसी बातें बहुत आम बातें हैं बच्चा | इसमें संदेह नहीं कि आज फेसबुक भ्रम ज्यादा और हकीक़त कम है...लोग होते कुछ ओर हैं और खुद को दिखाते कुछ ओर हैं| ४० से ५५ के बीच की उम्र बहुत खराब और खाली-खाली सी होती है..ऐसा मैंने अपने साथ भी महसूस किया है| यहाँ अगर एक पीड़ित है तो उसे पीड़ा देने का काम दूसरा शख्स बख़ूबी से कर लेगा..उसके लिए उसे कुछ समझाने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी|

वो हर किसी के दर्द से बेखबर सिर्फ अपनी बात को लिखना और पोस्ट करना जानती है जबकि सब कि सब इस बात से अनजान है कि उनकी लिखी एक ही बात किसी के घर में कितना बड़ा तूफ़ान मचा सकती है|

घर टूट रहे हैं, विश्वास की दीवारें गिर रही है |ये लोग नहीं जानती कि आज घर के मर्द ही अपने घर की औरतों को शक की नज़रों से देखने लगे हैं....और ये औरतों के ऋतुस्राव से लेकर मोनोपोज़ तक की बातें कितने ही आराम से हज़ारों के आगे लिख कर पोस्ट कर देती हैं...ये जाने बिना कि किसी के लिए ऋतुस्राव कितना कष्टदाई हो सकता है....ये कभी महसूस नहीं कर सकती और मोनोपोज़ की स्टेज किसी के लिए कितनी तकलीफ लेके आती है....किसी के दर्द से अनजान है ये मूर्ख औरतें |हर किसी की अपनी सोच है और वो उसे ही सही ठहराती हैं...

औरत कितने संघर्षों के बाद अपनी जगह सबके दिलों में बनाने में कामयाब हो पाती है,ये लोग नहीं जानती |सस्ती प्रशंसा ने इन सबके दिमाग खराब कर दिए है और सब की सब तारीफ़ के सातवें आसमान पर उड़ रही हैं |

जिसने कभी संयुक्त परिवार नहीं देखा वो क्या जाने उसके तौर-तरीके....आँख खोलते ही आज़ादी देखने वाले जंजीरों की कैद को कैसे महसूस करेंगी यार !

डिस्कस्टिंग...पागल है ये सब....लड़की से औरत बनने के बदलाव को कितना गलत परिभाषित करती है |वो बात करती है औरत के शोषण की ये जाने बिना कि वो खुद ही औरतों का शोषण कर रही हैं....किसी एक औरत की मौत की वजह वो है...इस बात से तो वो एक दम अनजान है.....समाज सिर्फ इनके लिखने से नहीं बदलने वाला ये इन्हें समझना होगा वो अपनी ईगो के आगे ये किसी की बात ना तो सुनेंगी और ना ही समझेंगी |

छोड़ो रहने दो इन्हें ऐसे ही....अपनी बातों से ये घरों को तोड़ रही है उसकी आंच इन तक भी आएगी, ये लोग अभी इस बात से अनजान है |मुझे तो बस आज अपनी गुडिया को सुनना है....समझना है....’’| इतना कहने के बाद स्वाति ने आगे बढ़ कर वंदना को प्यार से गले लगा लिया |

बस वंदना को तो जैसे मौका मिल गया हो अपनी पूरी बात स्वाति के आगे रखने का, जो मन बना कर ही आई थी...वंदना को अपना दिल खाली करना था और स्वाति को वो सब सुनना था जो अब तक अधूरा था |

वंदना ने कहा " दीदी आपको अगर मैं, मेरे बारे  में कुछ भी चैट में बताती तो शायद आप मुझे गलत समझ लेते.शादी तो बस एक बहाना था,मैं दिल्ली अपनी ज़िद्द की वजह से और सबको झूठ बोलकर आई हूँ |मुझे पता है कि आपको झूठ बोलना पसंद नहीं है, पर मेरा मकसद आपसे झूठ बोलना नहीं है, मेरा मकसद आपको,अपनी जिंदगी के सच को बताना है |

दी मैं अपनी जिंदगी में अंदर ही अंदर घुट रही हूँ, मैं अपने बारे में किसी के साथ डिटेल से बात करना चाहती थी कि कोई हो जो मेरी सुने,जिसको मैं दिल खोल कर अपनी जिंदगी के बारे में बता सकूँ | दी मैं आपके आगे किस तरह की कोई भूमिका नहीं बाँधूगी |

दी.. मेरी कहानी की शुरुआत उसी दिन से हुई थी जब मैं भैया भाभी के पास रहने चली आई थी | भाई मुझ से १० साल बड़े हैं |ठीक 12th के रिज़ल्ट वाले दिन बाबा के स्कूटर को एक ट्रक ने टक्कर मारी तो माँ-बाबा दोनों ने सड़क पर ही मदद के इंतज़ार में दम तोड़ दिया.....पुलिस केस ना बन जाए इसी वजह से किसी ने उन्हें हॉस्पिटल तक ले जाने की कोशिश भी नहीं की थी |

छोटा शहर और कम साधन | अगर वक़्त पर  मदद मिल गयी होती तो शायद उन दोनों में से एक तो कोई जिंदा होता | उठाले की रस्म के बाद भाई मुझे अपने साथ राजकोट(गुजरात) ले आया | मैं बारहवीं कर चुकी थी और आगे अभी पढ़ने का मन भी था पर भाभी के डर और उनकी बद-ज़ुबानी की वजह से मैं कभी उनसे ये नहीं कह पाई की मुझे अभी आगे पढ़ना है |

हाँ! एक दो बार मैंने पढ़ने के लिए आवाज़ उठाई तो भाभी ने पूरा घर सर पर उठा लिया.....इतना हो-हल्ला , इतना शोर,खुद को मार देने की धमकी....इस से मैं डर गई और फिर कभी उनके साथ रहते हुए मैंने अपने किसी भी हक  के लिए कभी कोई आवाज़ नहीं उठाई | मैंने कभी अपनी माँ के मुंह से एक गुस्से का शब्द नहीं सुना था.....और यहाँ भाभी ने वो सब बोला जो मैंने कभी सुना भी नहीं था |वो गुस्से में कब गालियाँ  निकालने लग जाती थी ये उनको भी पता नहीं चलता था और भाई अपने घर की इज्ज़त बनी रहे इसके चलते हमेशा चुप रहते थे कि घर की बात घर में ही दबी रहे |मैं उसी दिन समझ गई कि भाभी के घर में आते ही हमारे घर के दो हिस्से क्यों हो गए थे |

क्रमशः ......