Choirs of that palace - 9 in Hindi Fiction Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | उस महल की सरगोशियाँ - 9

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उस महल की सरगोशियाँ - 9

एपीसोड – 9

अंदर जाते ही गेरूआ रंग का महल दिखाई देने लगा था । किसने सोचा था उस फ़ाटक के पार इतना भव्य महल होगा। महल के मुख्य द्वार तक जाने के लिए चार पांच सीढ़ियाँ बनी हुईं थीं जिनके दोनों तरफ़ थे दो मदमत्त शेरों के पत्थर के सिर। महल का लकड़ी का द्वार भी राजदरबारी था जिसके काले रंग पर पीतल से डिज़ाइन बनी हुई थी व पीतल के ही बड़े बड़े कुंडे व सांकल थीं। साथ में आये आदमी ने हत्थेदार सोफ़े पर बैठने के लिए इशारा किया और बाहर निकल गया. उसकी आँखें इस हॉल का जायज़ा लेने लगीं थीं ।

सोफ़े के सामने की दीवार पर हष्ट पुष्ट डील डॉल वाले, ऊँचे माथे वाली आर्मी की ड्रेस पहने एक मूंछों वाले व्यक्ति की विशाल पेंटिंग लगी थी . उस पेंटिंग पर माला चढ़ी हुई थी व लिखा था` हिज़ हाइनेस कर्नल सदाशिवलाल`।

स्वर्गीय हिज़ हाईनेस कर्नल सदाशिवलाल के महल के हॉल में छत के विशाल शेंडलियर्स व दीवारों पर एक कतार में लगे छोटे शेंडलियर्स की रोशनी की आभा में ये कक्ष लगता था किसी अतीत के पृष्ठ उसे दिखला रहा था। दोनों तरफ़ की दीवारों पर विशाल अंडाकार आईने लगे हुए थे जिनके फ़्रेम अखरोट की लकड़ी के महीन नक्काशी किये हुए थे। उनके सामने चाइना क्ले के फ़्लावर वास थे जिनमें माली के लगाए ताज़े फूलों की गमक से कमरा गमक रहा था। कोनों में कुछ कलात्मक मूर्तियाँ, राजघरानों के कुछ और व्यक्तियों की फ़ोटो लगी हुईं थीं। उसे लग रहा था कि उस गुज़र गए इतिहास की धड़कने यहीं कहीं धड़क रहीं हैं। गुज़र गए सरसराते इतिहास का क्या अनुमान लगाना आसान था ?

अंदर के द्वार से राजसी चाल से चली आ रही चंदेरी साड़ी से सिर ढके मध्यम कद की एक महिला को आते देख वह समझ गई कि यही रानी विभावरी देवी हैं .उनके आने से हॉल किसी महंगे सेंट से गमक गया था।वह उनके सम्मान में खड़ी हो गई थी।

उन्होंने सीधी कमर से ही सोफे पर बैठते हुए कहा था, "प्लीज़ !बैठिये। "

उसने बैठते हुए कहा था, `हम लोग आपके घर के पास ही रहते हैं लेकिन कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि यहां कोई महल है। "

वे धीमी स्मित से से मुस्करा दी थीं। यदि ये महल के बाहर मिलतीं तो वह कभी सोच ही नहीं पातीं कि ये आकर्षक लगती आम सी महिला कोई रानी हैं। हाँ, बोलती हुई आँखों का आत्मविश्वास कुछ अलग सा था।

उसने डायरी पेन सम्भालकर अपने प्रश्नों का पिटारा खोला था, जो सब रानियों से पूछती आ रही थी मसलन आपको आज के ज़माने में अच्छा लगता है या पहले अच्छा लगता था जब आम जनता सिर झुकाती थी। वह स्वयं आश्चर्यचकित हो गई थी सबको आज का समय या बिंदास घूमना पसंद है -एक आम औरत की तरह ।शहर के आस पास के छोटे मोटे राजघरानों की रानियां अपने बड़े बंगलों में बेहद खुश थीं क्योंकि महल के पिंजरे से उन्हें आज़ादी मिल गई थी। अधिकतर रानियां समाजसेवा से किसी ना किसी तरह जुड़ीं हुईं थीं क्योंकि रूपये कमाना उनकी मजबूरी नहीं थी। वही सवाल मैंने इन रानी से किया, "आपको अपना महल का जीवन कैसा लगता है ?"

उन्होंने बेहद नम्र होते हुए जवाब दिया, "मुझे तो छोटे छोटे घर बहुत अच्छे लगते हैं, जहां लोग अपने सुख दुःख बाँटते हैं लेकिन मेरे भाग्य में तो महल में ही रहना लिखा है। मेरे पिता व उनके भाई का महल पास ही था और अब -----."कहते हुए वह धीमे से हंस गईं।

" तब तो आप रेशम सी राजकुमारी बन गईं होंगी ? "

"नहीं जी, मैं खूब घूमी फिरी। मैं देहरादून के दून स्कूल के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ती थी . मैं किसी को बताती नहीं थी कि मैं राजकुमारी हूँ, मुझे बहुत शर्म आती थी। "

"आप अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए क्या कर रही हैं ?"

"मैं बच्चों से बहुत प्यार करतीं हूँ। मैं अनाथालय में अक्सर जाती रहतीं हूँ लेकिन मेरा सपना है कि इस महल के कुछ कमरों में बेसहारा महिलाओं के लिये आश्रम बनाउंगी। मुझे पेंटिंग करने का बहुत शौक है। कभी कभी आर्ट गैलरी में अपनी पेंटिंग्स की एग्ज़ीबीशन्स लगातीं रहतीं हूँ। "

` `ओ --ग्रेट। "

इंटर्व्यू समाप्त करके मैंने पेन बंद किया। वह तपाक से बोलीं, "आपने ये तो बताया नहीं कि आप कुछ कोल्ड लेंगी या चाय ?"

"ओ --नो, कुछ भी नहीं। मैं पास में ही रहतीं हूँ। "

"ऐसा कैसे हो सकता है ?आप पहली बार हमारे पैलेस में आईं हैं। कुछ तो लीजिये। "

" प्लीज़ नहीं !मेरे बेटे स्कूल से घर पहुँचने वाले होंगे और फिर उन्हें कोचिंग क्लास जाना होता है। "उसने उस हड़बड़ाई माँ की तरह कहा था जब उसके बच्चे दसवीं व बारहवीं में होते हैं। उस माँ की हर सांस पर, समय की हर घड़ी पर अलार्म बजता रहता है कि बच्चों की बोर्ड की परीक्षा हैं। स्कूल से आने के बाद उन्हें कोचिंग भेजना होता है और उसे लगता वह उन्हें सामने बैठकर खाना खिलाये।

"देखिये हम लोगों का कब मिलना होगा, प्लीज़ !"

उनके आग्रह पर उसने अपनी पसंद बता दी, "सिर्फ़ चाय। "

नौकर जब ट्रे से पाँच -छः प्लेट्स में नाश्ता व चाय मेज़ पर लगाने लगा तो उन्होंने शुगर पॉट में चम्मच डालते हुए पूछा, "शुगर कितनी ?"

फिर अपना बोन चाईना के कप, जिस पर रंगीन बोन चाइना से ही नक्काशी की गई थी लेकर कहने लगीं, "आपका टाइम ले रही हूँ, यू नो --सबसे कुछ कहना पॉसिबल नहीं होता। "

ज़ाहिर है वह गुमान से भर गई थी। उन्होंने संज़ीदा होते हुए कहा, "आप सामने लगी हिज़ हाइनेस की फ़ोटो देख रही हैं। ही वाज़ ब्लाइन्ड। "

"वॉट ?"उसके हाथ का प्याला काँप गया था, "कैसे ?"

रानी विभावरी राजा साहब के नेत्रहीन होने की बात बता रहीं थीं "सन १९६७ की पकिस्तान से जंग में एक बम्ब विस्फ़ोट में उनकी आँखें चली गईं थीं। "

" वैरी सैड, आप तो बहुत दुखी हो गईं हो गईं होंगी ?"

"तब हमारी शादी नहीं हुई थी। "

दोबारा प्याला छलछलाने की बारी थी, "वॉट यू वॉन्ट टु से ?आपने एक ब्लाइंड व्यक्ति से शादी कर ली थी? "

नीलम कुलश्रेष्ठ

kneeli@rediffmail.com