Choirs of that palace - 8 in Hindi Fiction Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | उस महल की सरगोशियाँ - 8

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उस महल की सरगोशियाँ - 8

एपीसोड - 8

"कोई ख़ास नहीं। "वह राजमाता के प्रश्न को टाल जाती है। वह नहीं बताती कि अक्सर आगरा के बाज़ारों में मटमैली साड़ी में, बिखरे बालों में घूमती हाल बेहाल सिगरेट पीती औरत को दिखाकर उसकी मम्मी कहतीं थीं, "देख वो राजा कासगंज की बेटी जिसकी शादी बड़ौदा के डॉक्टर से हुई थी। "

पहली बार तो ये जानकर वह हैरान हो गई थी, "आप मुझे बुद्धू बना रहीं हैं। ये अधपगली सी औरत कोई राजा की बेटी हो सकती है ?"

"सच ये वही है। तब इसके डॉक्टर पति मुंबई में थे लेकिन ये उन्हें तंग करती थी कि मेरे घर में दो नौकर मेरे आगे पीछे घूमते हैं। मुझे खाने में चार सब्ज़ी चाहिए। मेरे घर में मैं रोज़ नई चादर बिछाकर सोतीं हूँ। "

"बिचारे डॉक्टर साहब तो तंग आ गये होंगे। "

"वो क्या कोई भी तंग हो जाता। उन्होंने इसे छोड़ दिया तभी से पगलाई सी सिगरेट फूंकती घूमती रहती है। "

कैसी किस्मत थी उन डॉक्टर साहब की ?द्वितीय युद्ध के समय वियना एक कॉन्फ़्रेंस में गए थे। तभी डॉक्टर्स के बीच बात हुई कि उनकी कोई पैरा मेडीकल स्टाफ़ ज्यू है जिसके खानदान को हिटलर के सिपाहियों ने मार डाला है।कोई दूर का रिश्तेदार भी नहीं बचा है। यदि ये वियना रही तो मार डाली जाएगी। इसे यहां से हटाना ज़रूरी है। जब अन्य देशों का कोई डॉक्टर उसे अपने साथ ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ तो ये कुलश्रेष्ठ अपने साथ ले जाने को तैयार हो गए। पहले तो उन्होंने इन्हें `निर्मला` नया नाम दिया व वहाँ से लंडन भेज दिया और वे बड़ौदा लौट आये। दो तीन दिन बाद एनी अपने नए नाम निर्मला से बड़ौदा आ गईं। तीन वर्ष तक उन्हें एक अलग मकान में रक्खा था। कासगंज की पत्नी से पूरी तरह रिश्ता टूटने के बाद उन्होंने इनसे शादी कर ली। एनी ने भी निर्मला बनकर राजमाता के साथ व बाद में भी अपने को समाज सेवा से जोड़े रक्खा था। डॉक्टर साहब को वृद्धावस्था में दिखाई देना बिलकुल बंद हो गया था। सभी परिस्थितियों का निर्मला मुकाबला करतीं रहीं थीं।

राजमाता से बात करते हुये वह कहाँ खो गई थी ? फिर उसने कलम सम्भाली, " आपके राजपरिवार के कारण ही क्या बड़ौदा का शिक्षा, विशेष रूप से स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में बहुत नाम है ? "

राजमाता ने तुरंत मुंह बनाया था "हाँ, जिस बड़ौदा ने शिक्षा के क्षेत्र में इतना नाम कमाया था, लोगों को विद्वान बनाया उसका शैक्षणिक स्तर देखकर मुझे कष्ट होता है। "

वह हैरान है, "क्यों ?आज भी देश विदेश से लोग बड़ौदा में अपने बच्चों को पढ़ने भेजते हैं। "

"पता नहीं वे क्या सोचकर हमारी महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी में अपने बच्चों को पढ़ने भेजते हैं ? यू नो। इसकी पहली वाइस चांसलर हंसा बेन मेहता जापान से शिक्षा प्रणाली को समझकर आईं थीं। "

"उस ज़माने में एक लेडी वाइस चांसलर, वैरी स्ट्रेंज ?"

"वो हमारे राज्य के दीवान की बेटीं थीं। सन १९२३ में सैनफ्रांसिस्को में एक सभा में उन्होंने निडर होकर ब्रिटिश राज्य के अत्याचारों को बताया था। ये डर नहीं लगा कि उन्हें लौटना तो भारत ही है। "

"अच्छा इसीलिये यहां पर हँसा बेन गर्ल्स हॉस्टल, यूनिवर्सिटी में हंसा बेन लाइब्रेरी है। "

"जी हाँ."

"आपने तो अपने शासनकाल का सुख ख़ूब भोगा होगा। बाद के दौर में कुछ परिवर्तन हुये ?"

"मैं व मेरे पति लालबाग़ के चिमणाबाई पैलेस में रहते थे। महाराजा सयाजीराव लक्ष्मी विलास में रहते थे। जब मैं बड़ौदा की महारानी बनी तो मकर संक्रांति व दशहरा पर राजमहल में महिला दरबार लगता था। शहर भर की महिलायें मुझसे मिलने आतीं थीं। हमारे ऊटी, मंसूरी, पूना, बंबई में घर थे। मैं गर्मियों में बच्चों को लेकर चार महीनों के लिये ऊटी चली जाती थी। वहां भी नौकरों की फ़ौज़ थी लेकिन स्वातंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे बाहर के शहरों के घर बिक गए नौकर कम करने पड़े थे। "

इनके पति का पोलो प्रेम शहर भर में प्रसिद्द है। उनके पास बहुत से ऑस्ट्रेलियन घोड़े थे। बाद में एक एक करके मरते चले गये।

"सूना है आपकी बड़ी बहू को तोतों से बहुत प्रेम था। "

"हाँ वह उन्हें बच्चों की तरह प्यार करतीं थीं। शादी में अपनी मायके से तीस कुत्ते व चालीस तोते लेकर आईं थीं। "

"आपके दो बेटे संसद सदस्य रहे हैं। लेकिन आपके छोटे बेटे ने जल्दी ही क्यों राजनीति से संन्यास ले लिया था ?आपकी क्या भूमिका थी ?`

"हम लोगों ने बड़े बेटे का चुनाव में बहुत साथ दिया लेकिन राजनीति के सुनहरे जाल का भ्रम टूटते ही मैंने छोटे बेटे को राजनीति में जाने से मना कर दिया क्योंकि वह बहुत स्ट्रेट फ़ॉरवर्ड है। मुझे गर्व है अपने बड़े बेटे पर क्योंकि वो व महाराजा जम्बुघोड़ा दोनों देश की पहली पर्यावरण सरंक्षण के लिए स्थापित की गई डॉक्टर जी. एम .ओझा की संस्था `इनसोना `को भरसक सहायता करते हैं। "

"आपके जीवन का कोई बड़ा बदलाव ?"

"हमारा जीवन कितना बदला है इस बात से आपको पता लगेगा कि पहले परिवार के लोग व नौकर मिलाकर चार सौ लोग महल में रहते थे और आज इस विशाल महल में सिर्फ़ परिवार के चार लोग व चार नौकर रहते हैं। "

कभी सैकड़ों लोगों के शोरगुल के बीच रहने वाली राजमाता रात में टीवी ऑन रखकर सोतीं हैं जिससे उनकी कानों में शोरगुल जाता रहे .

***

इस परिवार के राजाओं की रंगीन मिजाज़ी की बात कहीं नहीं सुनी फिर भी उसकी बड़ी उम्र की ख़ूबसूरत मित्र भूतपूर्व शासन काल की बात बतातीं हैं, "जिस दिन महाराजा हमारे स्कूल के कार्यक्रम में मुख्य अतिथी बनकर आते थे।मेरी ख़ूबसूरती के डर के कारण मेरी माँ मुझे स्कूल नहीं जाने देतीं थीं। "

वह कैसे भूल सकती है यह मंज़र महाराजा रणजीत सिंह गायकवाड़ की षष्ठिपूर्ति समारोह का ?बड़ौदा नगर समन्वय समिती ने नगर के विशाल मैदान में उनके सम्मान का कार्यक्रम रक्खा था। नगर की एक सौ पांच स्वयंसेवी संस्थायें व संगठन के प्रतिनिधि मंच पर एक के बाद एक आकर उनका पुष्पगुच्छ देकर सम्मान कर रहे थे.मंच पर माँ राजे शांता देवी व महारानी शुभांगिनी देवी गायकवाड़ विराजमान थीं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पचास वर्ष बाद भी इस शहर की धड़कन में राजकीय परिवार के लिए सम्मान ऐसे नहीं धड़क रहा था। ये राजपरिवार भरसक जनता के सुखदुख से जुड़े रहने का प्रयास करता रहता था।

महारानी व राजे माँ से ही पता लगा था कि इस नगर में अनेक छोटे मोटे राजा अपना भूतपूर्व रियासत छोड़ कर रहने लगे हैं। उनसे ही दूसरी रानियों के पते मिले थे . वह सर्वे करने की बाद अचरज में पड़ गई थी कि सभी महारानियाँ व रानियां राजघरानों से सम्बन्धित थीं और जो सबसे लावण्यमयी सोने के तार जैसी महारानी थीं, वे राजघराने की नहीं थीं, एक अभिजात्य परिवार की थीं।

इस सर्वे के दौरान ही पता लगा कि छोटा उदेपुर, भादरवा स्टेट, लिम्बड़ी और भी कुछ से राजपूती राज्य व रजवाड़ों के परिवार यहां आ बसें हैं। सर्वे के दौरान किसी रानी से ही पता लगा था कि उसके अपने घर से घर से डेढ़ किलोमीटर दूर उस बड़े फ़ाटक पर लगे `सदाशिवलाल"की नेमप्लेट के पीछे एक भूतपूर्व रानी विभावरी देवी रहतीं है। हद हो गई उसके घर से थोड़ी दूर ही एक महारानी रहतीं हैं ?

जबसे वह यहां बसी है शहर से बाहर जाने के पास के चौराहे पर सामने एक तरफ़ बने बड़े अहाते के बंद बड़े फ़ाटक पर लगी बड़ी नेमप्लेट पर लिखे नाम पर नज़र पड़ ही जाती थी ----`सदाशिवलाल `.अंदर के अहाते से अपनी गर्दन उचकाए नीम, पीपल के पेड़ों की झूमती कतारबद्ध मोहक लगती डालियों की पंक्तियाँ भी आँखों की दृष्टि को खींच ही लेतीं थी। बड़े अहाते का रईसी रौब हमेशा पड़ ही जाता है. दरअसल वह सोच भी नहीं पाई थी जिस सड़क से वह बरसों से गुज़रती इस भव्य फ़ाटक से प्रभावित होती रही है, इस बड़े फ़ाटक के अंदर एक छोटा मोटा महल है। इसमें एक भूतपूर्व रानी रहतीं हैं ।

उसे कहीं ज़रूरी शॉपिंग करने जाना था। उसने पहले से फ़ोन करके उन रानी से इंटर्व्यू लेने के लिये समय नियत कर लिया था। उस बड़े फ़ाटक पर एक मूंछों वाला चौकीदार खड़ा था जिसने उसके आने का मंतव्य पूछा व रजिस्टर पर खाना पूरी करके साथ वाले चौकीदार को उसे आदर से अंदर ले जाने के लिए कहा व शॉपिंग बैग्स अपने केबिन में रखवा लिए. किसी महल में जाते ही उसकी चाल भी वैसी अकड़ भरी राजसी हो गई थी। वह भी लम्बे डग भरती उसके पीछे चल दी। जब उसे गंतव्य की तरफ़ आदर देने के लिए कोई एस्कॉर्ट कर रहा होता है तो वह और भी अकड़ जाती है वर्ना घर पर तो गृहणीनुमा पड़ी फ़ालतू जैसी चीज़ का अहसास होता रहता है।

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नीलम कुलश्रेष्ठ

kneeli@rediffmail.com