Dusari Aurat in Hindi Love Stories by निशा शर्मा books and stories PDF | दूसरी औरत.. - (अंतिम भाग)

Featured Books
Categories
Share

दूसरी औरत.. - (अंतिम भाग)

"आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे,
बोलो देखा है कभी तुमनें मुझे उड़ते हुए!", गुनगुनाती हुई सुमेधा अचानक से चुप हो गई क्योंकि उसके पति सुकेत नें अभी-अभी ऑफिस से आकर घर में प्रवेश किया था और पिछले कुछ दिनों से उन दोनों के बीच बातचीत भी बंद थी जबसे सुकेत उस रात मयंक को बुखार में तपता हुआ छोड़कर अपनी किसी ऑफिशियल पार्टी में चला गया था और लौटा भी रात के तीन बजे और वो भी नशे में धुत्त होकर!!

इन दोनों पति-पत्नी के बीच चल रहे इस शीत युद्ध के बावजूद सुमेधा,सुकेत के प्रति अपना पूरा फर्ज निभा रही थी। उसका हर एक काम चुपचाप करने से लेकर उसकी हर एक ज़रूरत को पूरा करने तक सुमेधा कहीं भी नहीं चूक रही थी,यहाँ तक कि सुकेत की सबसे बड़ी ज़रूरत जिसके बिना वो एक दिन भी नहीं रह सकता था उसमें भी सुमेधा चुपचाप उसका सहयोग कर रही थी। एक तरफ़ जहाँ सुकेत अपने इस रिश्ते में सिर्फ शारीरीक ज़रूरतों को पूरा करने भर से ही खुश और संतुष्ट था तो वहीं दूसरी तरफ सुमेधा,सुकेत से भावनात्मक जुड़ाव भी चाहती थी मगर लगता था कि सुकेत तो स्त्री के इस पक्ष से बिल्कुल ही अनभिज्ञ था।

जब से संजय विदेश से लौटा था तब से वो अपने घर पर ही था। उसका एक कारण तो था उसे ऑफिस की तरफ़ से मिली हुई तीन दिन की छुट्टियाँ और दूसरा उसका वायरल फीवर। इस वजह से पिछले दो दिनों से सुमेधा की संजय से फोन पर कोई बात भी नहीं हो पाई थी। सुमेधा बस दिन में एक या दो बार ही संजय को वॉट्सऐप पर ऑनलाइन पाकर उसकी तबियत,उसका हाल-चाल पूछ लेती थी। इन दो दिनों में ही सुमेधा बहुत ही बेचैन और चिड़चिड़ी सी हो गई थी। एक तो संजय इतने दिनों बाद लौटा था और उसपर भी जब से वो आया था तब से उन दोनों की एक बार भी ठीक से बात तक नहीं हुई थी।

आज पूरे चार दिन बीत गए थे और इन बीते चार दिनों में सबसे आश्चर्यजनक बात ये हुई थी कि प्रतिदिन शराब पीने वाले सुकेत नें शराब या शराब पीने के किसी बहाने जैसा कि वो अक्सर अपनी ऑफिशियल पार्टी के नाम पर बनाया करता था,का उसनें नाम तक नहीं लिया था। सुमेधा भी सुकेत में अचानक आये हुए इस परिवर्तन को महसूस तो कर रही थी मगर उसनें इस बात को न तो सुकेत पर जाहिर ही होने दिया और न ही इस विषय में उससे कोई बात ही की!



हैलो! कैसी हो,जानेमन!!

तुम्हें क्या मतलब? मैं मर जाऊँ या जिऊँ!!

चुप,पागल! एक थप्पड़ मारूंगा जो दोबारा कभी ऐसी बात की!

अब परवाह करने का ज्यादा नाटक मत करो,समझे!

"अरे मैं समझा या नहीं समझा मगर तुम पहले मेरी बात सुनो", संजय ने सुमेधा को डपटते हुए अंदाज़ में कहा।

हाँ बोलो,क्या बात है?

अरे बात ये है कि एक गड़बड़ हो गई है,यार! अच्छा उससे पहले तुम एक अच्छी खबर सुनो!

हाँ जी सुनाइये...

मैंने वो रिटर्न गिफ्ट का इंतजाम कर लिया है।

मतलब? सुमेधा नें आश्चर्य के साथ पूछा!

अरे मैडम मतलब ये कि मैंने आज से ठीक पाँचवें दिन की बुकिंग करवा दी है, होटल रैडिसन ब्लू में हमारा एक स्वीट बुक है। अब बस तुम तैयारी करो मुझे मेरा रिटर्न गिफ्ट देने की और मैं इंतज़ार करता हूँ तुमसे मेरा रिटर्न गिफ्ट लेने का!!

उफ्फ़,संजय...सुमेधा कुछ असहज हो गई! फिर अगले ही पल उसनें सहज होते हुए संजय से पूछा...

अच्छा अब बताओ कि तुम किस गड़बड़ की बात कर रहे थे? हुआ क्या? अब बताओ भी।

अरे भईया तुम बताने दोगी तब तो मैं कुछ बताऊँगा न!

अच्छा! बहन बताओ, हंसते हुए सुमेधा ने कहा!

और इस बात पर दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े!!

अरे याररर,हंसने की बात नहीं है। सीरियस मैटर है,यार...संजय की आवाज़ में अब गंभीरता आ चुकी थी जिसे सुमेधा ने भी महसूस कर लिया था।

बोलो संजय क्या हुआ?

अरे यार वो उस दिन तुम एयरपोर्ट से मेरे साथ कैब में आयी थी न!

हाँ,तो?

तो सुमि वो उस दिन तुम्हारा क्रेडिट कार्ड न जाने कैसे वहीं कैब में छूट गया था। ये तो अच्छा हुआ कि घर पर उतरते समय मेरी नजर तुम्हारे उस कार्ड पर पड़ गई और मैंने उसे अपने वॉलेट में रख लिया।

हाँ तो इसमें क्या हुआ? ये तो गड़बड़ होने से बच गई न!!

अरे सुमि तुम पहले मेरी पूरी बात तो सुनो!

अच्छा सॉरी,तुम बताओ!

हाँ तो यार फिर पता नहीं कैसे अनु ने वो कार्ड देख लिया और जब उसनें मुझसे पूछा तो मैंने कह दिया कि तुम मेरे साथ ऑफिस में हो और गलती से ये कार्ड मेरे पास रह गया,हालांकि मैंने उसे ये भी कह दिया कि तुम अब दूसरे ऑफिस में ट्रांसफर ले चुकी हो मगर तुम तो इन औरतों को जानती ही हो न!!

हाँ जानती हूँ,सुमेधा नें रूखी आवाज में कहा।

अरे याररर!! अब तुम वो औरतों वाला झंडा लेकर मत खड़ी हो जाना। एक तो वैसे ही मेरा मूड खराब है और ...

नहीं मैं कुछ नहीं कहूँगी। चलो ठीक है,तुमनें जो भी कह दिया अपनी वाइफ़ से!

अरे यार! ठीक तो है मगर वो जो महान औरत है न,उसे कौन समझाए???

मतलब?

मतलब ये कि परसों मेरी बेटी कियारा का जन्मदिन है और उसके लिए वो घर पर एक छोटी सी पार्टी प्लान कर रही है।

हाँ तो? ये तो बहुत अच्छी बात है न संजय। इसमें इतना परेशान होने वाली क्या बात है? प्लीज़ यार तुम क्यों मेरी धड़कने बढ़ा रहे हो? ज़रा साफ-साफ और जल्दी बताओ न पूरी बात!!

सुमि,डियर पूरी बात ये है कि इस पार्टी में मेरी श्रीमती जी नें आपका नाम भी गैस्ट लिस्ट में लिख रखा है।

संजय की बात सुनकर सुमेधा बिल्कुल चुप हो गई और फिर कुछ देर बाद खुद को सम्भालते हुए बोली कि सॉरी संजय लेकिन मैं वहाँ नहीं आ पाऊँगी। आय..आय कान्ट फेस योर वाइफ़!

देखो सुमि,आना तो तुम्हें पड़ेगा। खुद के लिए न सही पर मेरे लिए और फिर ये फ़ेस करने वाली बात कहाँ से आ गयी?? तुमनें कोई गुनाह किया है क्या और वैसे मैं भी कभी नहीं चाहता था कि तुम्हें लाइफ में कभी ऐसी कोई सिचुएशन फ़ेस करनी पड़े मगर जान अब जो हुआ है उसके बाद तो हमें समझदारी से काम लेना होगा न और फिर मैं हूँ न तुम्हारे साथ!

तुम्हारी बीवी को तुम पर शक हुआ है क्या?

क्या पता? वैसे ऐसा कुछ लगता तो नहीं लेकिन किसी के दिल में क्या है,वो तो नहीं पता न? तभी तो मैं कह रहा हूँ कि अगर उसे मुझपर शक भी है तो तुम्हारे एक बार वहाँ आ जाने से सब ठीक हो जायेगा न।

ठीक है संजय,मैं आऊँगी वहाँ।

लव यू जान!

"लव यू टू", कहते हुए सुमेधा नें फोन रख दिया!


बोझिल कदमों से सुमेधा संजय के घर की सीढ़ियाँ चढ़ती जा रही थी और अचानक ही उसके कानों में एक शोर सुनाई पड़ा जो शायद संजय के घर के अंदर से ही आ रहा था! संजय के घर के दरवाजे के बाहर पहुँचते ही सुमेधा के कदम अचानक ही ठिठक गए क्योंकि घर के अंदर से आ रही आवाज़ों में शायद उसका भी ज़िक्र शामिल था या फिर शायद सिर्फ उसका ही ज़िक्र था!!

तुम्हें क्या लगता है कि मैं कुछ नहीं समझती,कुछ नहीं जानती!क्या तुम्हारे मुझे अनपढ़ समझने लेने से मैं सचमुच में अनपढ़ हो जाऊँगी? अरे मैंने भी एम.ए किया है,होम साइंस में और तुम्हें पता है कि होम साइंस से एम.ए, एम.एस.सी होता है। अरे उस घटिया औरत के चक्कर में जो तुम आजकल देवदास बने फ़िर रहे हो न तो तुम्हें क्या लगता है कि मैं अन्धी हूँ या फिर पागल हूँ? बोलो-बोलो अब चुप क्यों हो?

अरे याररर,क्या बोलूँ मैं?

क्यों? तुम नहीं बोलोगे तो और कौन बोलेगा,हाँ!! तुम्हारी वो सो कॉल्ड...प्रेमिका!! अरे ये जो हर वक्त कान में हैडफोन लगाकर तुम वो सूफ़ी संगीत और रोमांटिक गज़लें सुनते हो न!क्या लगता है? मुझे कुछ पता नहीं है,हाँ!!

और वो जो तुम्हारे वॉट्सऐप मैसेज,जिन्हें तुम्हारे डिलीट करने से पहले ही मैं देख लिया करती थी! अरे वो तो भला हो मेरी किट्टू (कियारा)का जिसनें मुझे तुम्हारे फोन का पासवर्ड बताया वरना मैं तो अभी भी आँखें बन्द करके ही अन्धी बनी रहती और तुम उस बेशर्म औरत के साथ रंगरेलियाँ...छी:!!!
कितनी नीच है वो गिरी हुई औरत! थू..सुमेधा का नाम लेते हुए संजय की पत्नी अनुराधा नें ज़मीन पर थूक दिया!

बाहर खड़ी सुमेधा की आँखों से झरझर आँसू बहे जा रहे थे। सुमेधा को संजय की पत्नी द्वारा बुरा-भला कहे जाने का उतना अफ़सोस नहीं था जितना कि इन सब बातों को संजय द्वारा चुपचाप सुने जाने का कष्ट था। सुमेधा अपने गालों पर ढुलकते हुए आँसुओं को पोंछती हुई वापिस जाने के लिए पीछे की ओर मुड़ ही रही थी कि अनायास ही उसके कानों में पड़ी संजय की आवाज़ नें एक बार फिर से सुमेधा के कदमों को ठिठकने पर मजबूर कर दिया!

जान ये तो तुम भी अच्छे से जानती हो कि मेरी ज़िंदगी में तुम्हारी जो जगह है,वो कभी सपने में भी किसी और की नहीं हो सकती और फिर इन औरतों को तो तुम जानती ही हो न। वैसे भी डियर इन दूसरी औरतों का तो काम ही होता है,हम जैसे शादीशुदा शरीफ़ लोगों की ज़िंदगी में आग लगाना। न तो इनसे अपना खुद का ही घर सम्भाला जाता है और न हीं ये किसी दूसरे का घर सम्भलने ही देती हैं और तुमनें बहुत अच्छा किया जो उस औरत को आज घर पर बुला लिया। देखना आज मैं तुम्हारे सामने ही उस घटिया औरत को कैसे उसकी औकात दिखाता हूँ!! हाँ मैं पूरी तरह से अपनी गलती स्वीकारता हूँ कि मैं अपनी ज़िंदगी में जबर्दस्ती घुस आयी उस दूसरी औरत की मंशा नहीं भाँप पाया और जान मैं न जाने कब और कैसे उसकी बातों में आ गया मगर अब मुझे समझ में आ रहा है डियर कि तुम बिल्कुल सही कह रही हो।

सुमेधा के कानों में मानो कोई गर्म शीशा सा पिघल रहा था! तभी अचानक सुमेधा के फोन की घंटी बज उठी और इससे पहले की कोई उसकी आवाज़ सुनता,सुमेधा बड़े ही तेज कदमों से उल्टे पाँव संजय के घर की सीढ़ियाँ उतर गई।

जब सुमेधा नें नीचे आकर अपना फोन देखा तो उसमें उसके पति सुकेत की कई मिस्डकॉल्स पड़ी हुई थीं। सुमेधा वहाँ से थोड़ी दूर चलकर एक पार्क में बैठ गई और एक बार फिर से सुकेत का कॉल आ गया। इस बार सुमेधा नें कॉल उठा ली!

दूसरी तरफ से सुकेत की आवाज...

हैलो,सुमि! तुम हैरान हो रही होगी न अपने पति के मुंह से ये नाम सुनकर मगर सुमि आज से मैं तुम्हें इसी नाम से पुकारा करूँगा। सुमि मैं जानता हूँ कि मुझसे बहुत गल्तियाँ हुई हैं और जिन गल्तियों का शायद कोई प्रायश्चित भी नहीं है मगर मैं फिर भी उन सारी गल्तियों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ! तुम तो जानती हो सुमि कि मुझे ज्यादा बात करना या बातें बनाना बिल्कुल भी नहीं आता है और मुझसे जो तुम्हारी सबसे बड़ी शिकायत है वो यही है कि मैं तुमसे बात नहीं करता तो लो सुमि मैंने आज से ही कोशिश करना शुरू कर दिया। देखो न आज मैं कितना बोल रहा हूँ। सॉरी सुमि,आय एम रियली सॉरी! जो मैं उस दिन पार्टी में गया और शराब पीकर बहुत देर से घर लौटा जो कि मुझे नहीं करना चाहिए था,मेरा मतलब है कि बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए था और तुम उसके बाद भी पहले की तरह ही मेरे सारे काम,सबकुछ करती रही। तुमनें मुझे कभी भी किसी भी काम को करने से नहीं रोका मगर इस बात को समझने की बजाय मैंने हमेशा इसका नाजायज़ फायदा ही उठाया मगर बस अब और नहीं। सुमि तुम्हें पता है मैंने उस दिन के बाद से शराब को हाथ तक नहीं लगाया मगर इस सबमें अगर कोई सचमुच शुक्रिया का हकदार है तो वो हैं मेरे दोस्त,मेरे बॉस मिस्टर माहेश्वरी,जिन्होंने मुझे समय रहते मेरी गृहस्थी को बचाने की सलाह दी और पता है सुमि वो खुद बेतहाशा शराब पीते हैं और हर तरह का नशा करते हैं जिसका परिणाम आज वो अपने परिवार को खोकर भुगत रहे हैं और अभी पिछले ही हफ्ते पता चला कि उन्हें कैंसर हो गया है मगर इतने पर भी न तो उनकी पत्नी और न ही उनके बेटे या बेटी में से कोई भी उनसे मिलने आया। उन्होंने मुझे बताया कि कैसे सफल होने की अंधी दौड़ में उनका परिवार उनसे बहुत पीछे छूट गया,कहते-कहते सुकेत नें एक आह भरी और फिर आगे बोलना शुरू किया...मगर मैं उनकी गलती नहीं दोहराना चाहता। आय लव यू सुमि,आय लव यू एंड मयंक वैरी वैरी मच! तुम्हें पता है सुमि उस दिन के बाद जब मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मुझे भी सबकुछ बहुत धुंधला सा दिखाई दिया और फिर उस धुंधलके में मेरे लिए जो एक रौशनी की किरण बनकर उभरी,वो थी तुम्हारी पुरानी डायरी जो तुम शायद आज से तीन साल पहले ही लिखना छोड़ चुकी हो। हाँ मैं जानता हूँ कि किसी की डायरी पढ़ना गलत बात है मगर मेरे लिए ये एकमात्र विकल्प था मेरी गलती सुधारने का और बस वहीं से मुझे तुम्हारे सपनों और जज़्बातों का पता चला। सॉरी सुमि मैंने कभी तुम्हारी किसी भी फ़ीलिंग को नहीं समझा मगर अब मैं तुम्हें कभी भी शिकायत का कोई मौका नहीं दूँगा और अब से मैं तुम्हारे माँ-पापा की कमी भी पूरी करने की पूरी कोशिश करूँगा। तुम भी तो कभी मेरी माँ तो कभी मेरे पापा की तरह ही मेरा ख्याल रखती हो। मेरी हर एक जिम्मेदारी निभाती हो फिर मैं क्यों नहीं,कहते-कहते सुकेत का गला रूँध गया। आज से मैं भी तुम्हारे माँ-पापा की तरह ही तुम्हें प्यार से सुमि कहकर ही बुलाऊँगा। मुझे माफ कर दो सुमि।

सुकेत की बातों को सुनकर सुमेधा नें जैसे अपना आपा ही खो दिया और वो फूट-फूटकर रो पड़ी।

"सुमि! क्या हुआ सुमि? तुम हो कहाँ? मुझे बताओ मैं अभी तुम्हें लेने आता हूँ", सुकेत नें घबराकर कहा!

"नहीं,आप नही! मैं आ रही हूँ आपके पास!!", ये कहते हुए सुमेधा फुर्ती से बैंच पर से उठकर अपने आँसुओं को पोंछती हुई,पार्क से निकलकर अपने घर की ओर बढ़ गई।

शायद आज सुमेधा बहुत अच्छी तरह से समझ चुकी थी कि पति-पत्नी के बीच आने वाली स्त्री उस पति की नज़र में,उसकी पत्नी की नज़र में या फिर इस समाज की नज़र में दूसरी औरत से ज्यादा और कुछ नहीं हो सकती।

और दूसरी औरत बनना सुमेधा का हरगिज़ मंजूर नहीं था!!

समाज की सच्चाई को आईना दिखाने की मेरी एक छोटी सी कोशिश! मिलती हूँ फिर किसी और कहानी के साथ,तब तक अपना ख्याल रखें और खुश रहें! बाय-बाय!

निशा शर्मा...