Half love in Hindi Fiction Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | अपरिपक्व प्रेम

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अपरिपक्व प्रेम

अपरिपक्व प्रेम

हरीश और रमेश जो कि अच्छे मित्र थे। अरूणाचल प्रदेश अपने व्यापारिक कार्य हेतु गये थे वहाँ कि प्राकृतिक सुंदरता को देखकर वे बहुत उल्लासित थे और वहाँ के लोंगो की निर्मलता] सद्व्यवहार एवं सादगी से वे बहुत प्रभावित हुये। अरूणाचल प्रदेश एक विकासशील प्रदेश है जिसमें आवागमन के लिये सार्वजनिक साधनों की कमी के कारण छात्र छात्राओं को अपने स्कूल या कालेज जाने हेतु निजी वाहनों से अनुरोध करके किसी प्रकार आना जाना एक सामान्य प्रक्रिया है।

हम लोग तवांग शहर से बोमबिला जा रहे थे तभी एक स्थान पर दो लडकियों ने हाथ दिखाकर वाहन रोकने का इशारा करते हुए रास्ते में पडने वाले महाविद्यालय तक छोडने का अनुरोध किया। हमने भी उनके अनुरोध को सहज स्वीकार करते हुए उन्हें गंतव्य तक छेाड दिया। इस बीच उनसे बातचीत होने पर उन्होंने बताया कि उनके शहर में विकास की गति धीमी है। उन्होंने बताया कि वे स्नातक की छात्राएँ है। पूर्वोत्तर राज्यों की संस्कृति कुछ भिन्न है यहाँ विवाह के उपरांत लडके को लडकी के घर जाकर रहना पडता है एवं गृहकार्य पुरूषों को करना पडता है तथा अर्थोपार्जन की जवाबदारी महिलाओं की होती है। यहाँ शादी के समय लडकी को यह बताना पडता है कि उसके पास कितनी संपत्ति है और क्या उससे पति की देखभाल संभव हैA यही विवाह का मुख्य केंद्रबिंदु रहता है। हिंदू एवं बौद्ध पद्धति से विवाह करना कम पसंद किया जाता है क्योंकि इसमें संबंध विच्छेद आसान नही होता है। यहाँ पर सामान्यतः शादी लंबे समय तक नही टिकती है एवं लडके लडकियों दोनो के बीच में बहुत खुलापन है। इस प्रकार बातों ही बातों में हमारी उनसे अच्छी मित्रता हो गयी। उन्होंने हमारा बोमबिला शहर को दिखाने का भी अनुरोध स्वीकार कर लिया।

दूसरे दिन वे नियत समय पर आकर हमें शहर दिखाने को ले गयी। हम दिनभर इतने आनंदित रहे कि दिन कब गुजर गया पता ही नही चला। शाम को उन लोगों ने विदा होने के पूर्व एक बात कहने की अनुमति माँगी। हमने पूछा कि ऐसी क्या बात है जिसके लिये आप अनुमति मांग रही है। यह सुनकर उनमें से एक लडकी रेखा ने बिना किसी संकोच के कहा कि मैं आपके मित्र रमेश से बहुत प्रभावित हूँ। उनका व्यक्तित्व बहुत आकर्षक है और मैं उनसे विवाह करने की इच्छुक हूँ। मैंने उसे बताया कि हम दोनो शादीशुदा है और हमारे कानून एवं सामाजिक परंपराओं के अनुसार दूसरा विवाह पहली पत्नी से तलाक अथवा उसकी सहमति के बिना नही हो सकता है। वह निर्भीक भाव से बोली कि मुझे इससे कोई फर्क नही पडता है। यदि रमेश जी चाहे तो वह माह में 15 दिन मेरे साथ एवं 15 दिन अपनी पहली पत्नी के साथ रह सकते है। उनकी पत्नी की यदि इच्छा हो तो हम दोनो बहनो की तरह साथ भी रह सकते है। मैं उन्हें सदैव बडी बहन की तरह आदर और मान सम्मान दूँगी।

इन दोनो की प्रेम कहानी का प्रारंभ हो चुका था और मुझे इसके अंत की भयानकता का अहसास हो रहा था। मैंने अपने मित्र को समझाने की बहुत कोशिश की कि रेखा 20 वर्ष की नासमझ लडकी है और उसकी जवानी हिलोरे मार रही है परंतु तुम तो 40 साल के समझदार व्यक्ति हो, उसे समझाकर जल्दी से जल्दी किसी प्रकार की अवांछित घटना घटने से पूर्व वापिस अपने गृहनगर चलो किंतु उसने मेरी नही सुनी और मुझे भी वही रोक लिया। दो तीन दिन उसके साथ समय बिताने के उपरांत उसने रेखा से विवाह कर लिया। मेरे लाख समझाने एवं गुस्सा होने का भी उस पर कोई असर नही हुआ। इस बीच हमारे गृहनगर से फोन आने पर मैं व्यापार का हवाला देकर वहाँ से निकल गया। वापिस जाते समय रमेश ने घर पर कुछ भी बताने के लिए मना कर दिया। रमेश के परिवारजनों के द्वारा जानकारी लेने पर मैंने उसके परिवार को यह बताकर कि उसे व्यापार संबंधी कुछ काम निपटाने में समय लग रहा है इसलिये वह कुछ दिनों बाद आयेगा ] बात टाल दी। कुछ दिनों के उपरांत रमेश वापिस आ जाता है और अपने कार्यक्रमों को इस प्रकार बनाता है कि हर 15 दिन बाद उसे किसी ना किसी कार्य हेतु बाहर जाना आवश्यक हो और वह इस प्रकार दोनो के साथ हर्ष पूर्वक जीवन जीने लगा।

ऐसी कहावत है कि इश्क और मुश्क छिपाए नही छिपते है और एक दिन रमेश की पत्नी ने उसे चुपचाप अकेले में रेखा से फोन पर बात करते हुए सुन लिया। अब रमेश को कडी पूछताछ और दबाव के बीच वास्तविकता स्वीकार करनी पडी। हरीश को भी पूछताछ हेतु बुलवाया गया। हरीश ने सभी बातें सच सच बता दी। यह जानकर कि रमेश ने गुप्त रूप से दूसरा विवाह कर लिया हैA घर में कोहराम मच गया। घर के बडे बुजुर्गों ने यह फैसला किया कि उस लडकी रेखा को एक बार घर बुलाया जाए और उसके बाद ही कुछ सोच समझकर समझदारी पूर्वक फैसला लिया जाए। रमेश रेखा को अपने गृहनगर लेकर आता है। रेखा के रूप] सौंदर्य] वाकपटुता को देखकर सभी हक्के बक्के रह जाते है। वह सभी को इतना प्रभावित करती है कि उसकी चकाचौंध में रमेश की पहली पत्नी की कोई पूछ नही होती और एक प्रकार से 15-15 दिन दोनो के पास रहने का प्रस्ताव रमेश के माता पिता द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है परंतु उसकी पहली पत्नी को यह स्वीकार नही था। वह इसे अपने स्वाभिमान के खिलाफ मानती थी।

अब रमेश को रेखा को वापिस उसके गृहनगर ले जाने हेतु कहा जाता है और वह उसे प्रसन्नता पूर्वक लेकर चला जाता है। अब रमेश का जीवन आनंद पूर्वक बीतने लगा। कुछ दिनों बाद एक दिन रेखा के पिताजी का फोन आता है। वे बहुत घबराए हुए थे] उनकी आवाज कांप रही थी। उन्होंने बताया कि रमेश का अचानक गोली लग जाने से निधन हो गया है। रमेश] रेखा के साथ अपने बगीचे में व्यापारिक चर्चा में व्यस्त था तभी उसे किसी ने गोली मार दी और उसकी वही मृत्यु हो गयी। यह बात सुनकर रमेश का परिवार अत्यंत दुखी मन से बोमबिला की ओर निकल पडता है। वहाँ पहुँचने के उपरांत परिजनों को पता हुआ कि किशन नाम के एक छात्र के द्वारा यह दुष्कृत्य किया गया है। वह वास्तव में रेखा को मारना चाहता था क्योंकि वह रेखा को स्कूल के समय से ही एकतरफा प्रेम करता था परंतु गोली का निशाना चूक जाने के कारण वह रमेश को लग गयी और उसकी मृत्यु हो गयी। सभी लोगों ने बहुत गमगीन माहौल में उसका अंतिम संस्कार संपन्न किया। अंतिम संस्कार से लौटने के उपरांत ही रमेश के परिवारजनों को एक लिफाफा प्राप्त होता है जिसे उसकी पहली पत्नी कामिनी ने भेजा था। लिफाफा खोलने के उपरांत उसमें आपसी सहमति से संबंध विच्छेद होने के कागजात थे जिन पर रमेश के हस्ताक्षर होने थे।

इस घटना ने हरीश को भीतर तक हिला दिया। वह सोच रहा था बिना विचारे जो करे सो पाछे पछिताए] काम बिगारै आपनो] जग में होत हसाए। जीवन में कोई भी महत्वपूर्ण कार्य गंभीर विचार विमर्श के उपरांत ही करना चाहिए। अन्यथा उसके भयानक परिणाम भी हो सकते है। न केवल हमारा जीवन बल्कि परिजनों का भी जीवन कष्टकारी हो जाता है। मनुष्य सोचता कुछ है परंतु उसकी नियति कुछ और ही होता है।