टिफिन में इतना खाना था कि हम तीन लोगों के भरपेट खा लेने के बाद भी टिफिन पूरी तरह ख़ाली नहीं हुआ था।
बैंगन का भरता अंगुलियों से चाट- चाट कर खा लेने के बाद भी बची एक पूड़ी और ज़रा सी गोभी की सब्ज़ी लड़के ने टिफिन धोने से पहले एक कुत्ते को डाली।
कुत्ता मानो तीन लोगों को खाना खाते देख आशा से भरा ही बैठा था, लड़के के ज़रा से पुचकारते ही जीभ निकालता दुम हिलाता चला आया।
चार प्राणियों का उदर भरते ही मानो उस अजनबी यजमान की मनोकामना- पूर्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ।
पुजारी जी तो झटपट हाथ धोते ही बिस्तर पर पहुंचने के अनुष्ठान में लिप्त हो गए। धोती- कुर्ता उतार कर खूंटी पर टांगे और सोने से पहले एक बार जनेऊ को कान पर लपेट कर अंतिम उपक्रम को अंजाम दिया। फ़िर कुछ खिसियाते हुए से मुझसे विदा लेकर बिस्तर पर लेट गए। मुझे मालूम था कि खाना खाते ही निंदिया रानी उन पर आक्रमण कर देती है।
मैं छत पर आ गया। लड़का भी मेरे पीछे- पीछे चलता हुआ ऊपर आया तो मैंने कुछ सवालिया निगाहों से उसकी ओर देखा। मेरे कुछ पूछने से पहले ही लड़के ने मुझे बताया कि पंडित जी ने मेरे कारण उसे भी रात में यहीं रुकने को बोला है ताकि मुझे चाय- पानी आदि की कोई तकलीफ़ न हो।
लड़का छत पर झाड़ू लगा कर सफाई पहले ही कर चुका था अतः अब झटपट मैं भी पुजारी जी की वेश भूषा में ही आ गया। मैं अपना सामान छोड़ आया था और तन पर पहने हुए कपड़े कल भी पहनने थे इसलिए उतार कर एक ईंट से दबा कर मुंडेर के सहारे रख दिए।
लड़के ने एक बार मुझसे पूछा कि अगर मुझे किसी तहमद या लुंगी की ज़रूरत हो तो वो नीचे से लाकर दे सकता है।
मेरे मना करते ही उसने पानी के जग से मुझे एक बार पानी पिलाया और बिस्तर पर मेरी बगल में ही आ लेटा।
मौसम में कुछ गर्मी ही थी। उसने भी अपनी कमीज़ और पायजामा उतार कर एक कौने में रख दिया, और लेट कर आसमान की ओर देखने लगा।
शाम को अचानक मची अफरातफरी और भगदड़ से मेरे दिमाग़ में भरी व्याकुलता अब कुछ कम ज़रूर हो गई थी लेकिन मैं कुछ बेचैन था।
लड़का तो थोड़ी ही देर में गहरी नींद में सो गया पर मुझे काफ़ी देर तक नींद नहीं आई।
सुबह मेरी आंख एक बाइक की तेज़ आवाज़ से खुली। बाइक तेज़ रफ़्तार से आकर नीचे खड़ी हुई थी। मैंने नीचे झांकने के लिए मुंडेर के पास से अपने कपड़ों को लेकर हाथ में उठाया ही था कि मुझे नीचे खड़े परवेज़ ने जल्दी से नीचे आने का इशारा किया। ये परवेज़ मेरे दोस्त इम्तियाज़ का वही छोटा बेटा था जो यहां कॉलेज में पढ़ रहा था।
रात को मेरे पास सोया लड़का रसोई में चाय बना ही रहा था कि परवेज़ ने मेरे कान में जल्दी से कुछ कहा।
मैं बेचैन हो गया। लड़के के हाथ से चाय का कप लेकर मैंने एक स्टूल पर रखा और उसे दो मिनट में आने का इशारा किया।
मुश्किल से मुझे दो- तीन मिनट का समय ही वहां लगा होगा कि मैं शौचालय की किवाड़ धकेल कर बाहर आ गया। लड़के के साबुन उठा कर देते- देते भी मैंने झटपट मिट्टी का एक ढेला उठाकर उसी से हाथ धो लिए।
मैं कुछ- कुछ ठंडी हो चुकी चाय को एक सांस में ही पी गया और शर्ट पहन कर बटन बंद करता हुआ ही परवेज़ के साथ बाइक पर सवार हो गया।
लड़का आश्चर्य से देखता रह गया क्योंकि वह तो मेरे लिए नाश्ता बनाने की तैयारी शुरू करने लगा था। मैंने इशारे से उसे मना किया और अब मेरे बाइक पर बैठे- बैठे कहीं जाने का इशारा करते- करते भी परवेज़ ने इतनी तेज़ी से बाइक स्टार्ट की, कि अगर मैंने अपना एक हाथ उसके पेट पर लपेटा हुआ न होता तो मैं ज़रूर पीछे गिरता।
लड़का मुंह बाए देखता रह गया और हम दोनों उड़नछू हो गए।
सुबह सुबह का समय होने से सड़क पर ज़्यादा भीड़- भाड़ नहीं थी। फ़िर भी बाइक की स्पीड देख कर मैंने परवेज़ को कस कर जकड़ा हुआ था। वह लगभग सौ की स्पीड से बाइक दौड़ा रहा था।
वो तो खामोश था ही, मैं भी कुछ बोल नहीं पा रहा था। हवा इतनी तेज़ थी कि रफ्तार से दौड़ती बाइक पर अगर चालक के कान में कुछ बोला भी जाता तो वो बिल्कुल भी सुनाई नहीं देता।
परवेज़ मुझे उसी फार्म हाउस की ओर भगाए लिए जा रहा था जहां ज़मीन के बड़े हिस्से में बैंगन की खेती हो रही थी।
मेरी नजरों के नीचे से सड़क इस तेज़ी से भाग रही थी मानो उसे हमें ज़मीन से आसमान को मिलाने वाले क्षितिज पर पहुंचा कर कोई फ्लाइट पकड़वानी हो!