Dummy in Hindi Love Stories by Ajitabh Shrivastava books and stories PDF | कशमकश

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कशमकश

संगीता आज मन ही मन बड़ी खुश थी, यूँ तो उसके 12 वी बोर्ड के एग्जाम चल रहे थे, तैयारी भी अभी लगता नही की पूरी हो पाई थी, फिर भी मन कही और था, माँ की खाना खाने के लिए आवाज भी उसकी तंद्रा नही तोड़ पा रही थी, अभिनव जो आने वाला था, बहाना था सक्सेना सर से मिले इम्पोर्टेन्ट क्वेश्चन देने का।
ये तो वो खूब जानती थी कि दोनों एक दूसरे को देखने के लिए बेकरार थे, अभिनव के कई बार इज़हार करने के बावजूद वो कभी हाँ नही कहती, पर मन से तो वो भी यही चाहती थी।

बार बार दरवाजे पे जाकर देखती, फिर अपने कमरे मे आकर, किताब उठा पढ़ने की कोशिश करती, की फिर किसी आहट से एक उम्मीद की लहर दौड़ जाती।
कुछ देर बाद अभिनव को दरवाजे पर देख, उखड़ती साँसों और बढ़ती धड़कनों के साथ, उसे अंदर बुलाती, फिर यूँ जताती की जैसे उसकी पढ़ाई में खलल पड़ गया हो।
दोनों कभी एक दूसरे को देखते तो कभी नज़रें चुराते।

अचानक डोर बेल की कर्कश आवाज़ ने उसकी यादों पे एक तगड़ा प्रहार कर उसे वर्तमान में ला खड़ा किया, छोटू के पापा के आने का समय हो गया था, ये वही थे वरुण, संगीता के पति।
जल्दी ही किचन में जाकर, वरुण के लिए पानी ले आयी, फिर चाय - नाश्ता तैयार करने में लग गई, दिमाग मे वही पुरानी बातें चल रही थी, कैसे बात ही बात में 12 साल गुजर गए, अब तो ज़िन्दगी वही ढर्रे पे चल निकली, सुबह से सभी के लिए, चाय, नाश्ता, खाना बनाना, छोटू को स्कूल भेजना, वरुण का टिफ़िन लगा उसे आफिस के लिए विदा करना, फिर जल्दी जल्दी भागते दौड़ते अपने आफिस को जाना।
अब तो बस यही ज़िन्दगी थी, एक आह सी भारी संगीता ने फिर अपने कामों में लग गई।

रात के 1 बजने को थे नींद थी कि कहीं खो गई थी, कैसे कॉलेज पूरा कर वो अभिनव के साथ रहने की आकांक्षा में जी रही थी, अभिनव भी तो उसे गले लगाने को बेकरार था, वो दिल्ली में नौकरी कर रहा था, कितनी बार उसने कहा था, संगीता अब तुम आ जाओ मेरे पास, अब अकेले नही रहा जाता, पर लोक लाज और माँ पिता की इज़्ज़त के चलते वो कभी कह न पाई, की मेरे पंख होते तो अभी उड़ आती, हर बार बस एक ही जवाब देती, माँ से मांग लो मुझे, मेरा कुछ नही जैसा वो चाहेंगे मैं तो वही करूंगी।
अभिनव ने भी माँ से संगीता को मांगा, लेकिन अभिनव के माता पिता तो इस रिश्ते के सख्त खिलाफ थे।
दोनों के माता पिता की कभी सकारात्मक बात नही बनी, धीरे धीरे अभिनव- संगीता का संवाद कम होने लगा, पत्राचार तो कभी होता ही नही था।
विरह की अगन में जलता अभिनव, पास के STD वाले के पास अमूमन हर दिन पूछता, रॉबी भाई कोई फ़ोन आया क्या मेरे लिए, रॉबी हँसकर जवाब देता, मत परेशान हो भाई, मैं भी आपकी तड़प जानता हूँ, जैसे ही कोई फ़ोन आएगा, मैं खुद आपको बताऊंगा, कई बार यूँ ही बैठे बैठे कई घंटे निकल जाते, अंत मे रॉबी टोक ही देता था, भाई अब तो आपका फ़ोन नही आएगा, शायद कल आ जाये।
संवाद की न्यूनता और तन्हाई के आलम में, अभिनव खिन्न रहने लगा था।
यूँ ही वक़्त गुज़र रहा था, संगीता और अभिनव दोनों को ही एक सुखद कल की उम्मीद बड़ा सुख देती थी।
दोनों के माता पिता की 3-4 मुलाक़ातें भी बेनतीजा खत्म हो चुकी थी।
साल दर साल गुजर गए, एक दिन अचानक अभिनव के फ़ोन से संगीता में नवउर्जा का संचार हो रहा था, कुछ देर बाद अभिनव ने बताया कि वो शादी कर रहा है, ये सुनते ही संगीता पर जैसे वज्राघात हुआ, वो कुछ समझ ही नही पा रही थी, क्या सच है और क्या झूठ, उसने कई बार पूछा तुम मज़ाक कर रहे हो न, अभिनव ने भी समझाने की कोशिशें करी, उसने बार बार बताया यही सच है, में किसी और से शादी कर रहा हूँ।
फ़ोन पर संबंध विच्छेद हो गया, कुछ दिन बाद अभिनव के घर से विवाह समारोह का निमंत्रण भी आ गया, संगीता अपने आपको सम्हाल ही नही पा रही थी, दिन रात आंखों में आंसू रहते, न भूख, न प्यास, न अपनी सुध बुध, सारे घरवाले परेशान थे कि इसे कैसे समझाएं, माँ ने बहुत समझाया, बेटा ये तो नियति है, जिसके भाग्य में जो लिखा है वही मिलेगा।
6-7 साल ऐसे ही गुज़र गए, अब संगीता की भी शादी हो चुकी थी, वरुण उसे बहुत प्यार करते हैं, एक बहुत प्यार से बेटा भी हो चुका था छोटू।
एक दिन अचानक कुछ स्कूल के दोस्तों से मिलना हुआ, उसे ये जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ, की अभिनव अभी तक उसे बहुत याद करता है, कई रातों को अकेले में रोता भी है,
संगीता सोचने को मजबूर हो गई क्या उन दोनों के बीच अभी भी कुछ ऐसा है जिसे आत्मिक प्रेम की संज्ञा दी जा सके, क्या कारण है कि इतने वर्षों बाद भी एक दूसरे की भावनाओं को बिना बोले समझ लेते हैं, अमूमन हर रात्रि स्वप्न में एक दूसरे के साथ होते हैं, हमेशा एक दूसरे की खुशी की दुआ करते हैं, अब तो कभी कभार बात भी हो जाती है दोनों की।
दोनों के दिलों में बस एक ही प्रश्न बार बार कौंधता है, ये कैसी कशमकश है, क्या इसका कोई समाधान है, या ये जीवन और ये कशमकश साथ साथ ही चलेंगे।

अजिताभ श्रीवास्तव - अनजान