Atit ke chal-chitra - 6 in Hindi Moral Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | अतीत के चल चित्र - (6)

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अतीत के चल चित्र - (6)



अतीत के चलचित्र (6)

नीमा बहुत सारे सपने मन में रखे हुए मन को पढ़ने में लगाने का भरपूर प्रयास करती रही ।घर की परिस्थितियों को देखते हुए , घर के काम काज और पढ़ाई जारी रखी ।तभी एक संपन्न और पढ़ें-लिखे परिवार में शादी होने पर सपनों को साकार होने का आभास होने लगा ।

ससुराल में जाने के बाद कुछ दिनों तक लगा कि पढ़ाई आगे जारी रहेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।घर के कामों में ही इतनी उलझ गई कि समझ नहीं आ रहा था कि कैसे पढ़ाई को जारी रखा जाए ।


एक दिन कुछ हिम्मत करके घर में कह दिया कि मैं आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती हूँ ।यह कहकर नीमा को बहुत कुछ सुनना पड़ा ।


पढ़ाई की बातें करती हो एक काम तो ठीक से आता नहीं,क्या समझती हो ,तुम्हारे जैसी लड़कियों की लाइन लगा देंगे ।अपने आप को बहुत ही होशियार समझती हो।
यह सब सुनकर मन में बहुत दुख होता ।


नीमा की दिनचर्या सुबह से ही शुरू हो जाती ।सुबह घर की साफ़ सफ़ाई,चाय नाश्ता,उसके बाद भोजन बनाना फिर परिवार के बच्चों और बड़ों के कपड़े धोना ।दोपहर से सब का आना शुरू हो जाता ।सब की ज़रूरत के हिसाब से उनके कार्य किए जाते ।बच्चों का स्कूल से आने के बाद अल्पाहार,फिर शाम के भोजन की तैयारी में लग जाती ।

इस तरह परिवार के कामों में उलझ गई और कुछ सालों में अपने दो बच्चों की ज़िम्मेदारी भी संभाल ली ।
पूरा दिन ज़िम्मेदारी निभाते हुए कैसे निकल जाता पता ही नहीं लगता ।


जब भी नीमा घर में पढ़ने की बात करती तो उसकी अनेक कमियाँ गिना दी जाती।सबके कपड़े गंदे धुलते है ।उनके बटन टूटे हुए हैं देख नहीं सकती।कपड़े ठीक से तय करने नहीं आते उनपर प्रेस भी कभी ठीक से नहीं होती ।अनेक कमियों के साथ उसकी आवाज़ दबा दी जाती ।


ससुराल में जो बच्चे नीमा की शादी के समय छोटे थे वह स्नातक और परास्नातक कर रहे थे।उनका पूरा ध्यान रखा जाता ।


नीमा ने एक दिन हिम्मत करके कह दिया कि मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करनी है।अब यूनिवर्सिटी बदलने की वजह से माइग्रेशन की समस्या हुई ,कोई इस कार्य में रुचि नहीं ले रहा था।


नीमा ने बड़ी ही कठिनाई से अपने बहिन के बच्चों से कहकर ,उनके संपर्क से माइग्रेशन का कार्य पूरा किया ।परास्नातक का फार्म तो भर दिया,नीमा बहुत खुश थी।


परीक्षा क़रीब आ गई लेकिन प्रवेश पत्र नहीं आया,बहुत चिंता हो रही थी ।


एक दिन घर पर परिवार के बच्चों के अध्यापक का आना हुआ नीमा ने उन्हें अपनी समस्या बताई ।उन्होंने कहा प्रवेश पत्र की दूसरी कापी मैं निकलवा दूँगा आप विद्यालय में आ जाना ।

नीमा को प्रवेश पत्र की दूसरी कापी मिल गई ।परीक्षा की तैयारी शुरू करदी।काम के बाद जो समय मिलता वह मन लगा कर पढ़ाई करती।


परास्नातक प्रथम वर्ष रिज़ल्ट भी आ गया उसका रिज़ल्ट उसे नहीं पता लग पाया ।
वह सबसे मिन्नतें करती रही कि यूनिवर्सिटी जाकर पता कर लिया जाये जिससे वह द्वितीय वर्ष का फार्म भर सके।


किसी ने भी प्रयास नहीं किया क्योंकि कोई चाहता ही नहीं था कि नीमा की पढ़ाई उसकी इच्छानुसार पूरी हो ।एक दिन वह कुछ काग़ज़ देख रही थी उसने देखा कि एक लिफ़ाफ़ा रखा है खोल कर देखा तो ओरिजनल प्रवेश पत्र था ।नीमा देख कर आश्चर्य चकित रह गई।


घर की ज़िम्मेदारियों को सँभालते हुए उसने निर्णय लिया कि मैं अपने बच्चों को उनकी इच्छानुसार पढ़ने में उनकी पूरी सहायता करूँगी ...

✍️क्रमश:



आशा सारस्वत