मेरी पहली होली
आर ० के ० लाल
होली को अभी दो दिन बचे थे कि शाम को मेरे दोनों देवरों ने अपनी बहनों के साथ मेरे कमरे में हल्ला बोल दिया । उस समय मैं एक नयी नवेली दुल्हन के रूप में अच्छे कपड़ों में सजी संवरी पलंग पर बैठी थी । उनके कपड़ों पर रंग लगे थे और हाथों में बाल्टियाँ थी । सब चिल्लाये, “भिगो दो, रेखा भाभी बहुत अच्छे कपड़े पहने हैं ” । मैंने घबरा कर कहा, ‘आज होली नहीं है, परसों है। वैसे भी मुझे रंग लगवाना पसंद नहीं है”। वे बाल्टी उड़ेलने को आतुर थे। मैंने कहा कि अभी बाबूजी को बुलाती हूँ। सभी ने कहा कि बुला लीजिए । होली में एक हफ्ते तक कोई कुछ नहीं कहेगा। मैं हाथ जोड़ने लगी तो वे बोले, “अगर रंग नहीं डलवाना तो एक डांस कर दीजिये और गाना सुना दीजिये जैसे गेहूं की बलियां झूमझूम कर खुशियों के गीत गाती हैं”। उनमें फगुवा की मस्ती चढ़ी साफ दिख रही थी इसलिए वे चाहते थे मैं भी फगुवा गाऊँ । फगुवा में बड़े उत्तेजनापूर्ण दोअर्थी बोल होते हैं जो गाँव में ज्यादा प्रचलित है । मुझे फगुवा नहीं आता था इसलिए मैंने एक डांस कर दिया फिर भी उन लोगों ने बाल्टी उड़ेलनी चाही । बचने के लिए मैं चिल्लाते हुये भागी तो एक देवर से टकरा गयी। वे बोले आप तो होली के बहाने हम पर लाइन मार रही हैं । मैं सबको बता दूँगा। । मैं सफाई देने लगी तो उन्होने भी अपनी बाल्टियाँ दिखाई जो खाली थी। सब मेरे पर हंस रहे थे।
मेरा चिल्लाना सुन कर ससुरजी और मेरे पति राकेश भी कमरे में आ गए थे। वे पूछ रहे थे कि क्या हुआ ,जबकि उन्हें सब पता था कि सब मेरे को परेशान करना चाहते थे। ससुर ने कहा कि यह तुम्हारी पहली होली है। तुम्हें पता होना चाहिए कि हर रंगों का अपना मतलब होता है- जैसे हरा रंग के मायने खुद में परिपूर्णता , लाल रंग आजादी, सफ़ेद सादगी, पीला आशावादी तो काला रंग प्यार बढ़ाने वाला होता है। इसलिए ससुराल में इन्हें लगा कर हम तुम्हें एक सुखी जीवन के लिए आशीर्वाद देना चाहते है।
मैंने अपने देवरों और छोटी ननदों की बातें सुन ली थी जो कह रहे थे कि इस बार भाभी का तो बुरा हाल होने वाला है, उन्हें तो बिल्कुल नहीं छोड़ा जाएगा। उन लोगों ने मेरे साथ हंसी ठिठोली करने के कई शरारत वाले प्रेंक भी तैयार कर लिए थे। उनकी बातों से मुझे तो सिहरन होने लगी थी क्योंकि लोग केमिकल वाला रंग लगा देते हैं और होली के बहाने लड़कियों से छेड़छाड़ करते हैं ।
फिर भी मेरे मन में पहली होली खेलने का एक चाव था । मैं पहले से ही रंग इकट्ठा करने लगी थी, ताकि पति के साथ सभी को रंग सकूँ। मगर हमें अपनी गुस्सैल सासु माँ का डर भी था। वे समझा रही थीं कि होली में मौज मस्ती में खुद को इतना न डूबो देना कि अपने आपको ही संभाल न पाओ। पहली होली के चक्कर में अपना इंप्रेशन खराब कर लेना सही नहीं होता । बाद में सब तुम्हारा मज़ाक उड़ाएंगे।
परेशान हो कर जब मैंने अपने पति से बात किया । वे भी बोले कि तुम्हारी पहली होली है तो रंग तो लगाना ही पड़ेगा। देखना तुम्हें बहुत मजा आएगा । मैं तो एकदम पक्का रंग लगाऊंगा कि महीनों तुम लाल-पीली और नीली-बैंगनी देखोगी। मेरे यहां तो मोहल्ले के लड़के-लड़कियां से भी तुम्हें दो-दो हाथ करना पड़ेगा ।
मेरे पति बोले अपनी शर्म और झिझक को भूल जाओ । एक अच्छी ड्रेस पहन कर थोड़ा मेकअप भी कर लेना । पुराने कपड़े नहीं चलेंगे । एक दुल्हन का लुक होना चाहिए । फिर समझने लगे कि होली की पूजा से वैवाहिक जीवन सुखमय हो जाता है। पहली होली के बाद ही लड़कियों के शरीर में निखार आता है। रंग भरे अनेक हाथों के स्पर्श जीवन के विभिन्न पहलुओं को तरंगित करते हैं। ससुर का आशीर्वाद बहू को गंभीर बनाता है तो सासु मां द्वारा सर पर रंग डालना मात्रत्व की इच्छा जागृत करता है। पति जब नैन पत्नी को रंगों से सराबोर करता है तो उसका अंग- अंग खिल जाता है । ननद और देवर की ठिठोलियाँ नारी में एक संकोच एवं लज्जा विकसित करती हैं। हमारे बुजुर्गों के रहते कोई डरने की बात नहीं है।
वह शादी के बाद पहली होली थी इसलिए मैं काफी एक्साइटेड थी । मैं ससुराल में पहली होली को यादगार बनाना चाहती थी । मुझे पता चला कि घर के लोगों में आपस के रिलेशन अच्छे नहीं थे, उनमें हमेशा मतभेद रहता था , लोग एक दूसरे से उखड़े-उखड़े रहते थे। इसलिए मैंने राकेश के साथ निश्चित किया कि इसे जरूर दूर करना चाहिए ताकि परिवार में शांति और भाई- चारा बना रहे। मैंने इसका कारण अपनी सासु से पूछा तो वे बिगड़ते हुए मुझसे बोली, “तुम्हें इन बातों में नहीं पड़ना है। तुम अभी नयी दुल्हन हो, जबरदस्ती बात का बतंगड़ हो जाएगा। हम लोग अपने घर में खुश है हमें दूसरों से क्या लेना देना”।
मैंने राकेश से पूछा कि उनका पूरा घर क्यों बिखरा पड़ा है? इतना बड़ा घर होते हुए भी सभी अलग-अलग क्यों रहते हैं? सब एक दूसरे से खिंचे खिंचे क्यों रहते हैं। राकेश ने बताया कि पुश्तैनी मकान को लेकर सभी में कुछ कहा-सुनी हो गई थी । वह बात अभी तक नहीं खत्म हुयी थी इसीलिए सभी अलग – अलग त्यौहार मनाते थे। मैंने सोचा कि क्यों न इस होली में परिवार के सभी लोगों को आपस में मिला दिया जाए और उनके बीच मनमुटाव की बातें दूर कर दिया जाए। इसके लिए मैंने सबको होली के दिन अपने घर बुला कर होली खेलने और उनका खाना-पीना करने की सोची । राकेश ने सभी के बारे में बताया में विधिवत बताया।
मैंने एक- एक करके फोन पर ही सब से बात किया। ज़्यादातर लोग तो खुश हो गए और कहने लगे कि नयी बहू ने मुझसे अच्छी तरह बात किया है और मुझे होली पर इनवाइट किया है। मैंने चाचियों और बुआ की भी प्रशंसा की कि वे बहुत अच्छा खाना बनाती हैं । अगर उनका स्पेशल डिश मिल जाए तो होली पर सभी को बुला कर उन्हें बता सकूँ कि है कोई आप जैसा गुणी? पहले तो उन्होंने साफ मना कर दिया कि वह सिर्फ मेरे लिए कुछ बना सकती हैं । सभी लोगों को वे नहीं खिला सकती क्योंकि खाने के बाद भी वे मेरी बुराई ही करेंगे। मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि ऐसा नहीं होगा। मैं किसी को पता ही नहीं लगने दूंगी कि किसने बनाया है? काफी प्रयास के बाद वे तैयार हो गयी थी । मेरी बातों पर सबने भरोसा किया और कार्यक्रम में मुझे सहयोग देने का आश्वासन दिया।
हमारे यहाँ शादी के बाद पहली होली अपने मायके में ही मनाने का चलन है । कहा जाता है कि शादी के बाद पहली होली पर ससुराल में होलिका दहन देखना अशुभ होता है। लेकिन हमने दोनों जगह का आनंद लेने की सोची। होलिका दहन के समय हम अपने मायके चले गए । राकेश भी हमारे साथ गए। रात में सोते समय मेरी बहनों ने उनके चेहरे पर तरह तरह की डिजाइने बना दी । सुबह वे शीशे में देख कर बिगड़ रहे थे। रंग छूट नहीं रहा था। सबने कहा कि यह जीजा सालियों के प्यार की तरह पक्का है। सुबह हम ससुराल वापस आ गए थे।
मैंने उस बार का होली मिलन भी हाईटेक कर दिया था जिसमें कलर बम, सूखे रंग एवं गुलाल का स्प्रे हो रहा था। बीच-बीच में इत्र मिले जल का फुहार मन को आनंदित कर रहा था । रिकार्डिंग के लिए कैमरा और म्यूजिक की व्यवस्था की गयी थी।
सबने मिलकर होली खेली फिर मैंने सब के पैर छुये , सबको ठंडाई पिलाई। सास ने मुझे नेग दिया था और बोलीं थी कि प्यार का रंग ही पक्का होता है।
मैंने सभी के बनाए हुए भोजन को पहले ही मंगा लिया था । जब परोसा जा रहा था तो अपनी अपनी पसंद का डिश देखकर सब आचंभित थे कि नयी बहू को उनकी पसंद कैसे पता चली और कैसे उसने सब कुछ अकेले बना लिया। सबने हर एक स्वादिष्ट आइटेम की तारीफ की थी ।
मैंने हाथ जोड़कर सब से माफी मांगी और कहा कि मुझे कुछ भी खाना बनाना नहीं आता है। यह जो मालपुआ खा रहे हैं यह बुआ जी ने बनाया है, बिरयानी छोटी चाची ने और दही- बड़ा बड़ी चाची ने बना कर दिया है। आप लोगों ने जो तारीफ की है उसे मैं उन्हें समर्पित करती हूँ। मैंने तो सिर्फ बाजार से मिठाई मंगवाई है।
मैंने हिम्मत करके सबसे कहा कि आप लोगों का स्नेह देखकर मैं चाहती हूँ कि इस घर के लोग सदैव साथ-साथ सभी त्योहार मिलजुल कर मनाएँ। आपस में उनके बीच कोई मतभेद न हो। यदि कोई बात मन में आ गई हो तो खुल कर उसे दूर कर लें। आज मेरी पहली होली पर आप सभी को यह बचन देना होगा।
राकेश के बाबा ने मेरी तारीफ करते हुये कहा कि देखो कितनी अच्छी बहू है। कम से कम उसने सोचा कि हमारा परिवार एक हो जाए । इसलिए कम से कम उसके लिए हमें आपसी रंजिश को भूलकर एक परिवार की तरफ रहना शुरू कर देना चाहिए। सभी उनकी बातों से सहमत हो गए और एक दूसरे से गले मिले। मैं अपने मायके से सभी के लिए कुर्ता-पजामा एवं साड़ियां आदि लेकर आई थी जिसे सभी को देकर उनके आशीर्वाद लिये।
इस प्रकार रंग के गुबार में सभी का मन उल्लासित हो उठा और उनमे कोई द्वेष नहीं बचा रहा । आज भी सभी लोग हर होली में एकत्रित होते हैं मगर आयोजन की जिम्मेदारी मुझे ही देते हैं।
.......