और निशा दरवाजा खोलकर चाय ले आयी।देवेन को जगाते हुए बोली,"चाय पी लो।"
"चाय रहने दो।कितनी अच्छी नींद आ रही है।सोने दो और तुम भी सो जाओ।"
"अब सोने का समय नही है।यंहा हम सोने नही घूमने के लिए आये है।"देवेन उठना नही चाहता था,लेकिन निशा ने उसे जबरदस्ती उठा दिया।
देवेन और निशा होटल से निकले तब सूर्य की किरणें माउंट की वादियों में अपने पैर पसार रही थी।सर्दियों के मौसम में कम ही सैलानी यहां आते है,लेकिन गर्मियी में बड़ी संख्या में लोग आते है।सर्दियों के मौसम में रात और भी ज्यादा ठंडी हो जाती है।
सुबह कि गुनगुनी धूप शरीर को अच्छी लग रही थी।निशा और देवेन पहाड़ी टेढ़े मेढे रास्तो पर सटकर चल रहे थे।वे घूमते हुए देलवाड़ा के जैन मंदिर पहुंच गए।
मन्दिर में सेकड़ो साल पहले बनाई मूर्तियों को वे देखने लगे।बनानेवाले मूर्तिकारो ने ऐसी कलाकारी दिखाई थी कि बेजान मूर्तियां भी सजीव जान पड़ती थी।निशा बड़े ध्यान से मंत्र मुग्ध होकर मूर्तियां देख रही थी।देवेन पत्नी को देखने लगा।ऐसा लग रहा था।उन मूर्तियों को देखते हुए निशा कंही खो गई है।देवेन उसे इस तरह भाव विभोर देखजर जोर से बोला,"निशा।"
"हां"निशा हड़बड़ाकर ऐसे बोली मानो गहरी नींद से जागी हो,"इतनी जोर से क्यो बोले।मुझे डरा ही दिया।"
"तुम थी कहाँ?"
"यंही तो खड़ी हूं तुम्हारे पास।"
"तुम्हारा शरीर यहाँ था लेकिन मन कही ओर
"मुझे क्या हुआ था।" निशा के चेहरे पर उत्सुकता के भाव थे।
"इन मूर्तियों को देखते हुए न जाने तुम कहाँ खो गई थी।"
"रियली,"हल्की सी हंसी हवा में बिखरी थी,"मैने इतिहास पढ़ा है।कला से मुझे प्रेम है।इस मंदिर के बारे में मैने पढ़ा था लेकिन साक्षात देखने का आज मौका मिला है।"
"मैंने तो इतिहास नही पढ़ा।इसलिए मुझे टी सारी मूर्तियां एक सी नज़र आती है।न जाने तुम्हे इन मूर्तियी मे ऐसा क्या नज़र आया कि इतनी भाव विभोर होकर देख रही थी कि अपनी सुध बुद्ध ही खो दी।।"देवेन आशचर्य से पत्नी को देखते हुए बोला।
"देखने के नज़रिए की बात है,"निशा उंगली का इशारा करते हुए बोली,"निर्जीव होते हुए भी कितनी सजीव है।एक एक मूर्ति देखकर ऐसा लगता है मानो कलाकार ने अपनी जान डीज़ल दी है।सदियां बीत जाने पर भी इनके ऊपर कोई फर्क नही पड़ा है।आज भी ये बेमिसाल है।"
"निशा तुम सच कह रही हो।"और देवेन भी पत्नी के साथ उन मूर्तियों में रुचि लेने लगा।निशा मूर्तियों की विशेषता,कलाकारी के बारे में पति को बताने लगी।देलवाड़ा के मंदिर देखकर वे वापस होटल लौट आये थे।लंच करने के बाद उन्होंने कुछ देर आराम किया था।चार बजते ही वे होटल से निकल पड़े।वे टहलते हुए सन सेट पॉइंट पहुंचे थे।
माउंट आबू का सन सेट का दृश्य देखने के काबिल होता है।माउंट आबू घूमने आने वाले इस दृश्य को देखने के लिए जरूर आते है।देवेन और निशा से पहले ही काफी लोग वंहा पहुंच चुके थे।कुछ प्रयास के बाद उन्हें जगह मिल गई थी।
मौसम बेहद सुहाना था।साफ खुला आसमान।धीरे धीरे भीड़ बढ़ती जा रही थी।एक लड़का वंहा आकर मूंगफली बेचने लगा।लोग उससे मूंगफली खरीद रहे थे।देवेन ने भी मूंगफली खरीदी थी।
दूर पहाड़ियों के पीछे नीले क्षितिज से सूरज धीरे धीरे नीचे ढल रहा था।ढलते सूरज से पूरा क्षितिज लाल ही गया था।