Baingan - 35 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | बैंगन - 35

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बैंगन - 35

कितनी विचित्र बात थी। जब मैं भाई के विदेश से लौटने के बाद पहली बार उसके परिवार से मिलने के लिए ट्रेन से यहां आया था तो भाई के ही शो रूम में काम करने वाले दो लड़कों ने मुझसे ज़बरदस्त मज़ाक किया था। एक रिक्शावाला बन कर मेरा सामान ले भागा था तो दूसरा मेरा ख़ैरख्वाह बन कर स्कूटर से रिक्शे का पीछा करते हुए मुझे यहां लाया था।
लेकिन इस रिक्शा चालक बने हुए लड़के के पिता ने ही एक दिन मुझे ये दिलचस्प घटना सुनाई थी।
लड़के के पिता को जब इस मज़ाक के बारे में पता चला तो वो अपने लड़के की ओर से माफ़ी मांगने के नाम पर मुझसे मिलने आए, आखिर मैं उसके मालिक का भाई था। और तभी से उनके आत्मीय व दोस्ताना व्यवहार के कारण मेरा उनसे मिलना जुलना होता रहा।
वो शहर के एक बड़े होटल के छोटे से मुलाजिम रह चुके थे। अब सेवानिवृत्ति का जीवन बिता रहे थे।
अपने होटल की नौकरी के टाइम का ये किस्सा शायद अब उनकी ज़िंदगी का एक बड़ा हासिल था।
वर्षों पहले एक बार एक फ़िल्म शूटिंग के सिलसिले में एक बहुत बड़ा एक्टर उनके होटल में रुका था। कोई नहीं जानता था कि ये साधारण सा दिखने वाला आदमी फ़िल्मों का एक बड़ा अभिनेता है। खुद उसने भी अपनी पहचान भरसक छिपाई थी और चुपचाप एक पर्यटक की भांति एक सप्ताह तक वहां रुका रहा। रोज़ सवेरे होटल की टैक्सी लेकर किसी सैलानी की भांति निकल जाता और देर रात कमरे पर लौटता था। पर अचानक उसके वापस जाने से कुछ ही दिन पूर्व उन्होंने किसी तरह उसे पहचान लिया।
वह देर रात लौट कर कपड़े बदल रहा था कि एक फ़ोन पर उसकी बातचीत सुन कर लड़के के पिता का अचानक सिर चकरा गया जब उन्हें ये अहसास हुआ कि अरे, ये तो मशहूर एक्टर आसिफ़ है। उन दिनों वेटर के रूप में काम करने के कारण कमरे में पानी और बर्फ़ रखने आए उनके बदन में तत्काल कोई बिजली सी दौड़ गई। अभी चंद दिनों पहले देखी पिक्चर में जिसे हीरोइन के पिता के रूप में घोड़े पर सवार होकर एक युवक को घसीटते हुए देखा था वो बलिष्ठ सा आदमी तो नंगे बदन सामने खड़ा फ़ोन पर झुका हुआ किसी से बात कर रहा है। इस समय उसका चेहरा ही गौर से देख कर उसे पहचाना जा सकता था क्योंकि बालों का विग तो उसने उतार कर अलमारी में रखा हुआ था।
पहचान लिए जाने पर दोनों में खूब जमी। एक्टर ने केवल एक विनती की, कि वो यहां किसी को भी उसकी असलियत के बारे में कुछ बताए नहीं, और ऐसा ही करने का आश्वासन देने के बाद युवा वेटर के पौ बारह हो गए। दोनों में पलभर में दोस्ती हो गई।
एक्टर ने उन्हें मोटा इनाम और भारी टिप दिया और एक दिन बढ़िया शराब भी पिलाई।
अब अच्छे खासे बूढ़े हो चुके उस व्यक्ति ने बेहद खुफिया तरीके से मुझे एक राज की बात भी बताई। एक्टर के चले जाने के बाद उसके दिमाग़ में एक आइडिया आया कि उस एक्टर के नाम पर पैसे कमाए जा सकते हैं क्योंकि वो पंद्रह दिन बाद फ़िर आने के लिए कह गया था।
इन्होंने अपने होटल के एक और सीनियर कर्मचारी के साथ मिल कर कुछ युवाओं को उस एक्टर से मिलाने का प्लान बना लिया और उन लोगों से पैसे भी ले लिए। कहा गया कि एक्टर आसिफ़ साहब के साथ यहां एक एक्सक्लूसिव डिनर पार्टी होगी जिसमें चुनिंदा लोगों को ही प्रवेश दिया जाएगा।
बाद में आसिफ़ साहब तो दोबारा आए ही नहीं परंतु कुछ लोगों का एक क्लब ज़रूर उनके इंतजार में बन गया। होटल के ये दोनों कर्मचारी बाद में उन लोगों को किसी नशे की सप्लाई करने लगे जिन्होंने एक्टर से मिलने के लिए पैसे दिए थे। ये सिलसिला चल निकला।
लोगों को भी ज़िन्दगी कैसे - कैसे खेल खिला कर तरह तरह के अनुभव देती है, यही सोचता हुआ मैं घर लौटा।
इस घटना से मुझे ये अनुमान भी हो गया कि भाई के स्टाफ में काम कर रहे लोगों की अपनी कहानियां भी निराली हैं।
भाई के बंगले पर अब तक मुझे ऐसी कोई बात या सबूत तो नहीं मिल पाया था कि भाई विदेश से लौटने के बाद कोई ख़ुफ़िया कारोबार में लिप्त है पर ये छोटी- छोटी बातें और अनुभव ही कभी- कभी संदिग्ध से लगने लगते थे।
मैंने भाई के बंगले के उस वाशरूम का कोई ग़लत या संदेहास्पद उपयोग भी अब तक नहीं देखा था और इसीलिए इस बारे में भाई को या घर के किसी भी सदस्य को कुछ बताया नहीं था।
मैं शायद इस इंतजार में था कि यदि इस तकनीकी अजूबे की जानकारी घर में किसी को है तो वह खुद ही मुझे ये बात बताये!