Corona is love - 11 in Hindi Love Stories by Jitendra Shivhare books and stories PDF | कोरोना प्यार है - 11

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कोरोना प्यार है - 11

(11)‌‌‌‌‌

"लाओ! मैं तुम्हारी कमर में आयोडेक्स लगा दूं।" पार्थ ने सुजाता से कहा।

सुजाता माहवारी के कठिन दिनों से गुजर रही थी। कमर और पेट के दर्द से वह बेहाल थी।

"पता है पार्थ। अभी आप सभी की छुट्टी है। मगर इन छुट्टीयों में घर की औरतों का काम तो और भी ज्यादा बड़ गया है।" सुजाता बेड पर उल्टे मुंह लेट गयी। पार्थ उसकी कमर पर बाम की माॅलिश करने लगा।

"सही है सुजाता। तुम भी कितना काम करती हो।" पार्थ ने सहमती जाहिर की।

"भगवान को पता था कि औरत को अपने जीवन में कभी आराम नही मिलेगा, इसलिए उसने हम औरतों को माहवारी जैसा स्थाई उपहार दिया। जिससे कम से कम महिने में तीन-चार दिन तो औरतों को आराम मिले।" सुजाता ने कहा।

"मगर इन दिनों में भी औरतों का आराम कहाँ मिलता है। महावारी के समय उसे किचन से दुर रखा जाता है मगर बाकी के सारे काम तो करवाये जाते है। कपड़े, बर्तन और झाडू, करना ही पड़ता है।" पार्थ ने बताया।

"इन दिनों महिलाओं के साथ छुआछुत का बर्ताव करने वाले कामातुर लोग ऐसे में उसके साथ संबंध बनाकर उसे और अधिक पीड़ा पहूंचाने से बाज नहीं आते।" सुजाता ने कहा।

"सुजाता। औरत बनकर संसार में आना बहुत चुनौतियों से भरा है। और यह काम तुम औरतें ही कर सकती है।" पार्थ ने कहा।

"अच्छा चलिये। अब बस भी किजिये। आप स्वयं इतने अच्छे हो की मेरी हर बात में हां में हां मिलाते हो।" बिस्तर से उठते हुये सुजाता ने कहा।

"मुझे तुम पर गर्व है सुजाता कि तुम मेरी बीवी हो। मैं भाग्यशाली हूं कि तुम मुझे मिली।" पार्थ ने सुजाता के चेहरे पर से बालों की लट हटाते हुये कहा।

"अब बहुत हुई मेरी तारीफ। चलिये सो जाइये। बहुत रात हो चूकी है।" सुजाता ने रोहित से कहा।

"ओके डीयर! गुड नाइट किस तो दो।" पार्थ बोला

"ओहहहो। तुम लव-कुश से भी छोटे बच्चें हो! जिसे हर रोज़ गुड नाइट किस देना पड़ता है।" सुजाता ने पार्थ के गाल को चूमते हुये कहा।

"कोरोना प्यार है।" सुजाता ने कहा।

"कोरोना प्यार है टू।" पार्थ ने कहा।

 

 

"पापा! इतनी जल्दी क्या है शादी की? समय रहते मैं शादी कर लुंगा।" अभिनव ने अपने पिता जगजीत राणा से कहा।

"तुझे शादी नहीं करनी तो न कर। मगर एक बार मेरे दोस्त की बेटी रेखा से मिल तो ले।" जगजीत राणा ने कहा।

"ये रेखा तो वही है न जिसने आजीवन शादी न करने का प्रण लिया है?" अभिनव ने हैरानी से पुछा।

"हां! ये वही है।" जगजीत राणा ने कहा।

"फिर आप ये देखने दिखाने का ढोंग क्यो कर रहे है? जब वह शादी ही नहीं करना चाहती।" अभिनव ने पुछा।

"दरअसल मदनमोहन चाहता है कि उनकी रेखा हमारे घर की बहु बने। इसलिए मैं चाहता हूं कि एक बार तुम दोनों मिल लो।" जगजीत राणा बोले।

"मगर पापा ये सब•••।" अभिनव बोल पाता इससे पहले जगजीत ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुये कहा-

"बेटा! एक बार मिलने में कोई हर्ज नहीं है। रेखा वैसे भी शादी करना नहीं चाहती। उसके पिता की के सामने मेरी बात रह जायेगी।" जगजीत राणा ने कहा।

रेखा और उसके पिता मदनमोहन दोनों जिद्दी स्वभाव के थे। रेखा जहां आजीवन विवाह न करने का प्रण ले चूकी थी तो वही मदनमोहन हर कीमत पर उसकी शादी करना चाहते थे। इसीलिए वे आये दिन रेखा के सम्मुख किसी न किसी लड़के का प्रस्ताव लेकर आ जाते। मगर रेखा भी कम न थी। वह न-न प्रकार से उन रिश्तों को ठुकरा देती।

उसकी इस हरकत से रेखा का छोटा भाई अनुज भी परेशान था। रेखा की मां ममता उसे हर प्रकार से समझा चूकी थी किन्तु रेखा मानने को तैयार नही थी। मदनमोहन जानते थे कि अभिनव एक होनहार युवक है। उसके आकर्षण व्यक्तित्व और चैलेंजिंग वर्क स्वीकार्य करने की प्रवृत्ति में उन्हें आशा की एक किरण दिखाई दी थी।

"अंकल मुझे चैलेंज लेना पसंद है इसका मतलब यह नहीं की मैं आपकी बेटी से शादी कर लूं।" अभिनव ने कहा।

अभिनव परिवार सहित रेखा को देखने उसके घर आया हुआ था। मदनमोहन ने एकांत में अभिनव को ले जाकर अपने विचार सांझा किये।

"देखो बेटा। आज नहीं तो कल तुम्हें शादी तो करनी ही है। फिर रेखा से क्यों नहीं। वह हर प्रकार से तुम्हारे योग्य है।" मदनमोहन ने कहा।

"अंकल आप सही कह रहे है। मगर रेखा की इच्छा के विरूद्ध मैं यह नहीं कर सकता।" अभिनव स्पष्ट वादी था।

"अभिनव! दरअसल रेखा के दिमाग में यह बातें घर गयी है कि शादी के बाद महिलाओं की अपनी कोई निजी जिन्दगी नहीं रह जाती। पति, सास-ससुर और बच्चों में उसका पुरा जीवन समाप्त हो जाता है। जबकी पुरूष शादी के पहले भी ऐशो-आराम से रहता है और शादी के बाद भी उसकी बादशाहत में कोई कमी नही आती। उसका यह भी मानना है कि विवाह के बाद औरत मात्र घर की नौकरानी बनकर रह जाती है। जिसे सिर्फ इसलिए याद किया जाता है कि वह घर में सभी के लिए कुछ न कुछ करती है। उसके हितार्थ कभी कोई नहीं सोचता। अगर सोचता भी है तो ये विचारों और बातचीत में ही सिमट कर रह जाता है। प्रत्यक्ष में उसके लाभार्थ कोई प्रभावी कार्य नहीं किये जाते। रविवार को सबका अवकाश होता है, मगर औरतों को इस दिन और भी अधिक कार्य करना पड़ता है। पारिवारिक सदस्यों के लिये मनपसंद व्यजंन बनाने के लिये पुरा दिन रसोईघर में घुसी रहती है। उसकी भूख प्यास के विषय में कोई नहीं पुछता। परिवार में सबको लगता है कि किचन में रहती है तो खां ही लेती होगी!" मदनमोहन ने विस्तार से रेखा के विचार बताये।

अभिनव के लिए ये सब बातें अचरज से भरी थी। उस दिन उसे वास्तव में यह आभास हुआ कि उसकी मां घर में जो काम-काज करती है उसका उसे कभी कोई वेतन नहीं मिला। न हीं कभी इसके लिये उसे किसी ने धन्यवाद दिया। वह निःस्वार्थ भाव से घर और परिवार की सेवा में वर्षों से लगी है।

उसने मदनमोहन को आश्वासन दिया। वह इस संबंध में विचार कर उन्हें अवगत करायेगा। अभिनव के वहां से जाते ही रेखा ने अभिनव के विषय में जानना चाहा। अनुज ने उदार मन से अभिनव के संबंध में सभी जानकारी रेखा को बताई। उसने रेखा को बताया--

अभिनव पढ़ाई खत्म कर पिता के बिजनेस में हाथ बटा रहा था। वह समय व्यापार में मंदी का था। पिता जगजीत राणा बहुत प्रयास कर के भी अपने चाय पत्ती व्यवसाय को वो ऊंचाईयां नहीं दे पा रहे थे जिसके लिए दिव्या चाय का नाम जाना था। दिव्या चाय के दीवानों की कमी न थी। हजारों किलों चाय की प्रतिदिन खपत थी। जगजीत राणा के गोदाम से प्रति दिन ट्रक लोड होकर देश के विभिन्न शहर में सप्लाई होने जाते थे। अभिनव को आरंभ से ही अपने पैतृक बिजनेस को बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। किन्तु जगजीत राणा की दिनों-दिन बढ़ती परेशानी से वह भी चिंतित हो गया। अभिनव को चैलेंज लेने का श़ौक था। अपने चैलेंज को पुर्ण करने के लिए वह हर संभव कोशिश करता था। इसमें मिल रही निरंतर सफलता ने उसका आत्मविश्वास बड़ा दिया था। अपने पिता के व्यापार को पटरी पर लाने का काम भी उसने एक चैलेंज के रूप में ही लिया। जगजीत राणा ने अभिनव को दिव्या चाय की मार्केटिंग का काम सौंपा। अभिनव जितना अधिक परिश्रमी था उतना ही बुध्दिमान भी। उसने दिव्या चाय की दिनों-दिन कम होती खपत का आंकलन किया। दो वर्ष पुर्व जहां दिव्या चाय की खपत हजार किलों प्रतिदिन थी वहीं अब पचास प्रतिशत से भी कम चाय की मांग रह गयी थी। चार-पांच दिनों में केवल एक ट्रक चाय का आॅर्डर लोड होकर अन्य शहर को भिजवाया जा रहा था। अभिनव ने शहर में ही इसकी जांच-पड़ताल आरंभ की। वह शहर स्थित चाय होटलों पर सर्वे करने गया। वहां पुछताछ करने पर उसे अनुभव हुआ कि उसकी दिव्या चाय अभी भी प्रचलन में है। किराना दुकानों पर दिव्या चाय की मांग बराबर बनी हुई है। वह गहन सोच में डुब गया। जब मार्केट में दिव्या चाय पहले की तरह चलन में है तब उन्हें इसका वास्तविक लाभ क्यों नहीं मिल रहा? उसने शहर स्थित अलग-अलग किराना दुकानों से दिव्या चाय के कुछ पैकेट खरीद लिये। उन्हें ऑफिस आकर अपनी दिव्या चाय के अन्य पैकेट से मिलाया। उसे समझते देर न लगी कि जो पैकेट उसने किराना दुकानों से खरीदे है वे नकली थे, जो हूं ब हूं दिव्या चाय की नकल थी। उसने अपने पिता को इस संबंध में जानकारी दी। तब जाकर जगजीत राणा को समझ में आया कि पर्याप्त मार्केटिंग करने बाद भी उनकी चाय की खपत कम क्यों होती जा रही थी। उन्होंने तुरंत एक्शन लिया। शहर के सभी अखबारों में नक्कालों से सावधान का विज्ञापन दिया। तथा आवश्यक कानूनी कार्यवाही पुर्ण की। उन्होंने मार्केटिंग के लिये कुछ युवक-युवतियों को अपने यहां नौकरी पर रखा, जो असली और नकली चाय की गुणवत्ता शहर वासियों को बताकर उनसे सीधे ऑर्डर लेंगे। उन्होंने देश के विभिन्न कोनों में दिव्या चाय की सही मार्केटिंग का प्रयास आरंभ किया। डोर टू डोर सर्वे में अच्छे परिणाम सामने आये। लोगों ने ओरिजनल दिव्या चाय का ऑर्डर सीधे दिव्या चाय कम्पनी को देना आरंभ कर दिया। अभिनव ने वेबसाइट और टोल फ्री नम्बर जारी किये जिससे दिव्या चाय के ऑनलाइन ऑर्डर बुक किये जाने लगे। साथ ही नक्कालों की पहचान बताने वालों को उचित इनाम देने की व्यवस्था भी की गई। अभिनव चाहता था कि ग्राहकों के लिये एक इनामी योजना लायी जाये और यह कार्य कोई नामी हस्ती स्वयं अपने हाथों से लांच करे। जिससे दिव्या चाय की प्रसिद्धि चहूं ओर फेले। सब कुछ योजना बद्ध तरीके से चल रहा था। धीरे-धीरे दिव्या चाय की खपत बढ़ने लगी। जगजीत राणा को भरोसा हो चला था कि यही समय है जब अभिनव को दिव्या चाय कम्पनी का संपूर्ण दायित्व सौंप दिया जाये। इसी के साथ अभिनव की विवाह की बात भी उन्होंने अभिनव से कह दी।

रेखा अभिनव के विषय में सबकुछ जान चूकी थी। उसे यह ज्ञात था कि उसके पिता इस बार उसकी शादी अभिनव से करवाने के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगा देंगे लेकिन वह अभिनव से शादी नहीं करना चाहती थी। अतः उसने स्वतः संज्ञान से एक युक्ति निकालकर उस पर कार्य आरंभ कर दिया। अभिनव रात्री में चिंता मग्न था। मदनमोहन के मुख से रेखा के विचारों को सुन वह भाव विभोर हो चुका था। उसका अंतर्मन रेखा के प्रति सम्मान भाव से भर चूका था। नारी समुदाय की जो पीड़ा वह कभी विचार भी नहीं कर पाया उसे वह रेखा के मिलने के बाद जान सका। उसने अपने मन में रेखा की मन मोहक छवी बसा ली। वह रेखा को अपने जीवन साथी के रूप में अपनाने के लिये तैयार था। मगर रेखा को समझाना सरल कार्य न था। अभिनव ने स्वयं को पुनः तैयार किया। वह रेखा के प्रेम के प्रति स्वरूप अपना सबकुछ न्यौछावर करने का आतुर था।