Corona is love - 9 in Hindi Love Stories by Jitendra Shivhare books and stories PDF | कोरोना प्यार है - 9

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कोरोना प्यार है - 9

(9)‌‌‌‌‌

प्रिय! मैं कोई फिल्मी हिरो नहीं जो अकेले दम पर दस-बीस लोगों को पीटकर तुम्हें वहां से छुड़ा कर ले जाऊं! इसका मतलब यह भी नहीं की मुझे किसी का डर है। मैं मौत हासिल कर तुम्हें हासिल करना नहीं चाहता। मेरी ख़्वाहिश है कि हम दोनों जिन्दा रहे और एक साथ रहे।

तुम्हें याद है एक बार कितनी मुश्किल से अपने लबों से तुमने मेरा नाम लिया था। हालांकि मैंने ही तुम्हें इसके लिए जोर देकर कहा था। यकिन मानो तुम्हारे मुंह से अपना नाम सुनकर मुझे जो खुशी हुई थी उसको बयां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं थे। मैं अक्सर तुम्हारा नाम लेकर पुकारता हूं जिसकी खुशी मैंने तुम्हारे चेहरे पर साफ देखी है। इसी की उपज थी कि मैंने तुम्हें अपना नाम पुकारने को कहा।

तुमने आगे पुछा था कि अबकी मुलाकात पर क्या पहन कर आऊँ? कपड़ो की मुझे कोई ख़ास परख नहीं है। फिर भी तुम पंजाबी पिंक कलर का सुट पहन कर आना। तुम्हें याद है। पहली बार मैंने तुम्हें इन्हीं कपडों में देखा था और देखते ही रह गया था। चुड़ीदार पायजामें में तंग कम़ीज जो कुछ हद तक बेक लेस थी। उस पर काले घने लम्बे बालों की चोटी! जिसे एक हाथ से झटकते हुये तुम चली आ रही थी। लब सुर्ख होकर माहौल को रंगीन बना रहे थे। काली-कजरारी आंखों में जिसने भी देखा है, घायल हुये बिना न रह सका। रूख्सार पर बालों की लटे रह रहकर आती-जाती थी जिसे उंगलियों से तुम बार-बार हटा रही थी। टुपट्टें का एक सिरा जम़ीन से रगड़ खां रहा था। वहां मौजूद हर शख़्स उस टुपट्टे को अपने हाथों में थामना चाहता था। नीचे गिरे टुपट्टे की इत्तला देने सैकडों दीवाने तुम्हारी ओर लपके थे। मगर उसके पहले ही तुमने अपना टुपट्टा संभाल लिया। सभी को मुंह की खानी पड़ी थी। मायुसी उनके चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी। तुम्हारे आने से बाज़ार की रौनक कई गुना बड़ गयी थी। दुकानों पर खड़े ग्राहक जड़ हो चूके थे। सभी हैरानी में तुम्हें देखने पर मजबुर थे। शादीशुदा भी नज़रे बचाकर तुम्हें देखने से बाज नहीं आ रहे थे। यकीनन उस दिन बहुतों का तल़ाक हुआ होगा? आssहाss! क्या हसीन नज़रा था। आज भी दिमाग़ में किसी मुवी की तरह चलता है।

बाकी अगले खत में•••••

तुम्हारे जवाब के इंतजार में

सिर्फ तुम्हारा

अनिल

कोरोना प्यार है।

 

"वाव! जनाब तो श़ायर बन चूके है।" सुजाता ने कहा।

पलक मुस्कुरा रही थी।

"भाभी एक शेर भी लिखा है-

'श़ायर बना के पुछते है

खैरियत से तो हो ना।'

 

"मुझे नहीं पता की अनिल इतना रोमेंटिक भी है। मगर ये कोरोना प्यार है का क्या मतलब? सुजाता ने कहा।

"भाभी कोरोना महामारी के समय ही हमारी लव स्टोरी मजबुत हुयी है। इसीलिए हम कोरोना प्यार है कहकर अपने प्यार का इज़हार करते है। आई लव यू की तरह।" पलक ने समझाया।

"ये तो युनिक है। गुड।" सुजाता बोलो।

"मगर भाभी! अब इसका जवाब मैं क्या लिखूं? मुझे तो कुछ भी नहीं आता।" पलक ने निराशा जताते हुये कहा।

"देख पलक! प्यार में सब आ ही जाता है। जैसे अनिल को आ गया। तु भी बस जो दिमाग़ में आये लिख दे। वही तेरा लव लेटर बन जायेगा। समझी।" सुजाता ने कहा।

"जी भाभी।" पलक ने सहमती में सिर हिलाया।

 

मेरे प्यारे अनिल

कोरोना प्यार है टू

 

तुम्हारा ख़त मिला। जितना तुमने लिखा उतना मैं कभी नही लिख सकती। हां मगर तुम्हारे लिए मेरी जो भावनाएं है उसे शब्दों का रूप दे रही हूं। मेडिकल कॉलेज में नर्सिंग का कोर्स करते समय तुमसे मुलाकात हुयी थी। मुझे शुरू से ही तुम्हारा हेल्पिंग नेचर अच्छा लगा। इसी कारण हमारे कॉलेज की ओर भी लड़कीयां तुम्हारे आसपास बनी रहती थी। बाकियों की तरह मुझे भी लगा था कि तुम रक्षा से प्यार करते हो। क्योंकि तुम दोनों अक्सर साथ ही दिखाई देते थे। रक्षा जितने तुम्हारे करीब थी उतनी कोई लड़की नहीं।

मगर उस दिन तुमने मुझे प्रपोज कर सभी को चौंका दिया था। मैं मन ही मन तुम्हें पंसद करती थी। मगर इतनी हिम्मत नहीं थी कि तुम्हें अपने दिल की बात बता सकूं। कैसे भुल सकती हूं वो दिन। वेलेनटाइन डे था उस दिन। नीले रंग की शर्ट और ब्लेक जींस में तुम किसी हिरो से कम नहीं लग रहे थे। उस पर तुम्हारे चेहर की बियर्ड तो ऐसे लग रही थी की दौड़कर तुम्हें चूम लूं।

हां! वह हमारे प्यार का पहला किस था। डरी सहमी में तुम्हारी बांहों की कैद में थी। तुमने पुरी तरह से मुझ पर पकड़ बना ली थी। मैं चाह कर भी तुम्हारी मजबुत बाहों से छुट नहीं पा रही थी। दिल जोरो का धड़क रहा था। सासों की आवाजाही ने अंदर तुफान मचा रखा था।

मेरे होठ कंपकपा रहे थे। तुम तेजी से मेरी चेहरे पर गिरे जा रहे थे। अनहोनी की आशंका ने मेरी चेतना शुन्य कर दी थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इस परिस्थिति में क्या करूं? तुम्हें रोकूं या मनमर्जी करने दूं। चूंकि मैं मिडील क्लास की एक सभ्य परिवार की लड़की हूं सो अनिष्ट की आशाओं से पुरी तरह घिर चूकी थी। तुमने शायद मेरी आंखें पढ़ ली थी। जिनमें आसुंओं के बुदं तैर आयी थी।

फिर तुमने जो किया उसकी मुझे आशा नहीं थी। तुमने मेरे मस्तक को चूम लिया और पीछे हट गये। यह मेरे लिए एक निशब्द कर देने वाली परिस्थिति थी। लेकिन मुझे उस दिन यह विश्वास हो गया कि तुम्हें अपना होने वाला जीवन साथी चूनकर मैंने अपने जीवन का सबसे बड़ा और सही फैसला लिया है। उस दिन तुम मेर घर भी आये थे। मुझे छोड़ने। परिवार के सभी लोग तुमसे मिलकर प्रसन्न थे। भाभी को मैंने तुम्हारे विषय में बता दिया था। और उन्होंने पुरे परिवार को यह सब बताया था। सभी को मेरी पसंद पर गर्व था। वे मेरे इस निर्णय पर प्रसन्न थे।

अनिल! मुझे यह जानकर खुशी हुयी की तुमने अपनी मां से मेरे विषय में बात की और मुझे स्वीकार करने की पहली बार वकालत की। मुझे इस बात की खुशी है मगर मैं यह भी नहीं चाहती की मां-बेटे के झगडे की वजह मैं बनूं। चाहे जितना समय लगे। मगर जब तक तुम्हारी मां हमारे रिश्ते को स्वीकार नहीं कर लेती हम शादी नहीं करेंगे। फिर भले ही आजीवन हमें कुंवारा क्यों ना रहना पड़े।

 

शेष अगले ख़त में

कोरोना प्यार है

 

सिर्फ तुम्हारी

पलक

 

अनिल पलक के इस संदेश को पढ़कर प्रसन्न था। दोनों का प्यार इन संदेशों के आदान-प्रदान से और भी ज्यादा परवान चढ़ रहा था।

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"अनिल, तुम्हें वंश और उसकी बहन गौरी याद है?"

फोन पर पलक और अनिल बात कर रहे थे।

"अरे! उन्हें कैस भूल सकते है। कमाल के भाई-बहन थे दोनों। वंश जहां लापरवाह और आवारा किस्म का था तो वही गौरी समझदारी की जीती-जागती प्रति मुर्ति थी।" अनिल ने कहा।

"इन सबके बाद भी दोनों में कितना प्यार था। गौरी कितना ख़याल रखती थी अपने भाई का। उनके पिता ने प्राॅविडेंट फंड का पैसा निकाल कर दोनों का नर्सिंग कॉलेज में दाखिला करवाया था। गौरी यह जानती थी इसलिए वह बड़े सावधानी से पढ़ाई कर रही थी।" पलक ने कहा।

"हां! मगर वंश अपनी छोटी-मोटी हरकतों से कुछ न कुछ बखेड़ा अवश्य खड़ा कर देता था और गौरी ही आकर उसे बचाती थी।" अनिल ने कहा।

"तुम्हें याद है अनिल! वंश ने कॉलेज क्वीन सुप्रीया को प्रपोज कर दिया था। तब सुप्रिया ने एक जोरदार थप्पड़ वंश को पुरे कॉलेज के सामने जड़ दिया था। वो तो वंश की शिकायत कॉलेज प्रिन्सिपल से भी करने वाली थी लेकिन गौरी ने बड़ी खुबसूरती से न केवल सुप्रीया को समझाया बल्कि वंश को सही रास्ते पर चलने की सख्त हिदायत भी दे डाली।" पलक बोली।

"और वो गौरी का लवर विशाल। कॉलेज का सबसे खुबसूरत नौजवान था विशाल। बहुत-सी लड़कीयां मरती थी उस पर। मगर वो तो गौरी पर जान छिड़कता था। एक दिन जब विशाल ने अपने दिल की बात गौरी को बतायी तब गौरी ने उसे कितना लम्बा-चौड़ा लेक्चर दिया था। विशाल के कान खड़े हो गये थे गौरी की बातें सुनकर।"

"उसने विशाल से कहा था कि तुम लड़कों की यही आदत बुरी है। जहां कोई लड़की मिली उसे प्रपोज कर दिया। अरे! पहले पढाई पुरी करो, कुछ बन जाओ, प्यार मोहब्बत तब कर लेना। मगर नहीं। कॉलेज में आते ही लड़कीयों पर डोरे डालना शुरू कर देते है। कॅरियर बनाने का महत्वपूर्ण समय फिजूल की बातों में और घुमने-फिरने में नष्ट कर देते है।"

अनिल ने कहा।

"कितने दिनों तक तो विशाल कॉलेज ही नहीं आया। और जब आया तो वह सबसे अलग था। शांत और धीर गंभीर। गौरी को अपने किये पर आत्मग्लानी तो थी मगर उसने विशाल से कुछ नहीं कहा।" पलक ने बताया।

"वंश की दोस्ती शहर के कुछ आवारा लड़कों से थी। जो दुनिया भर के नशे करते थे। वंश भी नशे की गिरफ्त में था। गौरी इस बात के लिए चिंतित रहती और हर समय वंश को समझाया करती। मैंने सुना था कि वह वंश के आवारा दोस्तों से जाकर मिली थी। उसमें गज़ब का हौंसला था। उसने बिना डरे गुड्डू नाम के युवक को धमकी दी थी कि वह उसके भाई वंश से दुर रहे अन्यथा गौरी उसकी पुलिस में शिकायत कर देगी। क्योंकी गुड्डू ही वंश को नशे की सामग्री सप्लाई करता था। वंश नशे के लिए घर में चौरी भी करने लगा था। उसने अपने कॉलेज के बहुत से दोस्तों से पैसे उधार लेकर नशे में बर्बाद कर दिये थे। गौरी पार्ट टाइम एल आई सी एजेंट थी। अपनी अतिरिक्त कमाई से वह वंश की उधारी चूकाते-चूकाते थक गयी थी। मगर वंश अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था। थक हारकर गौरी ने गुड्डू और उसके दोस्तों की अवैध नशा सामग्री बेचने की शिकायत कर दी। पुलिस ने गुड्डू और उसके दोस्तों को गिरफ्तार कर लिया।" पलक ने बताया।