दानी की कहानी
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महाशिवरात्रि पर कुछ प्रश्न !
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दानी हर घर में होती हैं यदि परिवार एकसाथ,एकजुट होकर रहे |बच्चों की उनसे बहुत अच्छी मित्रता होती है और वे बच्चों से घिरी रहकर कहानी या खेल के माध्यम से बच्चों को बहुत सी महत्वपूर्ण सूचनाएँ पहुँचाती रहती हैं --लेकिन यदि बच्चे एकल परिवार में पल रहे हों तो वे उस आनंद व ज्ञान से वंचित रह जाते हैं |
समझे न ? दानी का अर्थ है -----दादी-नानी ! और दादू-नानू भी ! ये ऐसे माया में डूबे बंदे हैं जो अपनी तीसरी पीढ़ी को न जाने कितना ज्ञान दे देना चाहते हैं ,बिना किसी फ़ीस के--साथ में अतुलनीय प्यार व शुभाशीष अलग से रुन्गे में !
दानी ने बच्चों को बताया था कि महाशिवरात्रि के दिन दयानन्द सरस्वती जी को भी 'बोध ज्ञान' हुआ था | अत: दोनों ही कारणों के लिए हमें महाशिवरात्रि का महत्व समझना होगा |बहुत कम लोग महर्षि दयानन्द सरस्वती से व उनके इस बोध-ज्ञान के बारे में परिचित हैं |
बच्चों में भारी बहस छिड़ रही थी कि शिव जी भाँग पीते हैं या नहीं ?दानी भी वहीं आकर बैठ गईं तो सवाल ही नहीं था कि दानी के पास बच्चों की चर्चा न पहुंचती !
"अच्छा , एक बात बताएं दानी जब शिव कल्याणकारी हैं ,तब वो भाँग क्यों पीते हैं ?"
"किसी ने देखा है क्या उन्हें भाँग पीते हुए ?" दानी ने पूछा |
" हमने तो नहीं दानी ,आपने देखा क्या ?"
"नहीं मैंने तो बिलकुल नहीं ,तुम लोग ही बात कर रहे हो ----"
"तो आज के दिन मंदिरों में भाँग क्यों दी जाती है ---वो भी प्रसाद में ?"
"मेरे ख़्याल से यह तो उन्हीं से पूछना होगा जो मंदिरों में भाँग बाँटते हैं ---" कुछ रुककर उन्होंने फिर कहा --
"भाँग पीने से कैसे किसीका कल्याण होगा ? यह सब बातें उन लोगों द्वारा चर्चित की गईं हैं जिन्हें पीने-पिलाने का शौक़ है ,वे उस दिन शराब न पीकर भाँग में डूबकर मस्त-मलंग हो जाते हैं | जो केवल अपना शौक़ पूरा करना व मज़ा करना चाहते हैं , उन लोगों ने ही इन बातों को फैलाया है |"
"तो --दानी ,फिर और लोग क्यों पीते हैं भाँग जो शराब नहीं पीते और लेडीज़ भी तो पीती हैं ---?"
"बेटा ! यह एक बहाना मिल जाता है उन्हें मौज-मस्ती का --" उन्होंने कहा --
"शिव जी तो मोह-माया से दूर थे ,योगी थे ,उन्हें भाँग पीते किसने देख लिया ? बात यह होती है कि हम अपने-अपने अनुसार मनघडंत किस्से बना लेते हैं | भांग ठंडी होती है जो किसी भी गर्म चीज़ का काट करती है |ये कथा तो तुम सबको पता है कि शिव जी ने समुद्र-मंथन में से विष का पान किया था | विष गर्म होता है इसलिए शायद कभी भाँग का प्रयोग किया गया होगा अथवा कुछ और कहानी होगी इसकी --लेकिन ये सब कपोल-कल्पित कथाएँ होती हैं --एक मुख से बात निकलकर सब जगह फ़ैल जाती है |"
"तो --मतलब हमें पूजा करने ,भक्ति करने नहीं जाना चाहिए ---मंदिरों में ?"
"मंदिर में जाओ या न जाओ ,ये सब अपने ऊपर है लेकिन भक्ति का अर्थ त्याग,तपस्या,व पवित्रता है | इसको उसी अर्थ में लेना चाहिए |सत्य,शिव व सुन्दर की कल्पना करो ,उसका अहसास करो और उसे समझने का प्रयास करो ---"
दानी की इस बात से सभी बच्चे सहमत थे और उनहोंने सोच लिया था कि अपने माता-पिता से भी इस विषय पर चर्चा करेंगे |
डॉ.प्रणव.भारती