haridwar to rishikesh in Hindi Travel stories by Astha S D books and stories PDF | हरिद्वार से ऋषिकेश

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हरिद्वार से ऋषिकेश

लगभग 3 से 4 महीने पहले ही मेरे मन में इस वर्ष उत्तराखंड जाने का विचार आया था वैसे तो यह विचार 2 वर्ष पहले से था परंतु मौका 2021 फरवरी में बना | यह संयोग था या किस्मत की हम सभी मित्र गणों को 12 वर्ष में होने वाले कुंभ में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | मैंने और मेरी छोटी बहन पिंकी ने पहले ही सोच रखा था कि हम इस विशेष कुंभ में अवश्य ही शामिल होंगे और जब हम दोनों बहनों की बात आती है तब स्वतः ही भगवती और मंगल का नाम भी जुड़ जाता है क्योंकि हम चार मिलकर four sisters को परिभाषित करते हैं | इस तरह हम एक सोच से प्रभावित चार बहनों का कारवां बन गया | जैसे ही पिंकी और भगवती के दोस्तों को इस यात्रा का पता चला उनमें से कुछ लोग हमारे साथ जुड़ने की इच्छा जाहिर किए जिनमें से धारणा एवं विनय सर्वप्रथम थे और इसी क्रम में बबीता आशा कान्हा अमरजीत शिवधारी एवं दुष्यंत भी शामिल हुए | जब यह समूह बना तब मुझे ऐसा लगा जैसे छत्तीसगढ़ के सभी दिशा से लोग शामिल हो गए और तीर्थ यात्रा का एक समूह बन गया अभी मैंने इसे तीर्थ यात्रा कहा जिसे आगे चलकर मैंने खुद ही किसी और नाम से परिभाषित किया है जो धीरे-धीरे सभी को पता चलता जाएगा |
तारीख 25 फरवरी हम सभी 12 मित्र रायपुर में हवाई यात्रा हेतु एकत्रित हुए मन में अथाह हर्ष एवं उल्लास के साथ 9:45 pm रायपुर से दिल्ली रवाना हुए और करीब 11:30 pm हम दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचे | रायपुर से दिल्ली यात्रा के बीच की खास बात यह थी कि कुछ लोगों के लिए यह हवाई यात्रा पहली बार थी इसलिए वह अति उत्साहित थे | हवाई यात्रा के दौरान हम सभी मित्रों का सीट थोड़ी - थोड़ी दूरी में था जिससे एक दूसरे से वार्तालाप करने में तकलीफ हो रही थी | इसी दौरान हमें भोजन परोसा गया और सभी ने इसका भरपूर आनंद उठाया और जैसे कि हम अन्न छोड़ना पाप समझते हैं हम में से धारणा ने मिठाई को अपने साथ लाना पसंद किया | उस समय हम सभी सोच रहे थे कि यह एक अजीब हरकत है परंतु उसी मिठाई को हम सभी थोड़ा-थोड़ा रेलवे प्लेटफार्म में बैठकर खाए | इस दौरान मुझे ही नहीं सभी को सीखना चाहिए कि खाना किसी भी परिस्थिति में छोड़ना नहीं चाहिए | दिल्ली कैंथ रेलवे स्टेशन में करीब ढाई घंटा इंतजार करने के बाद हम ट्रेन से हरिद्वार के लिए प्रस्थान किए | थोड़ी थोड़ी नींद लेने के बाद हम 8:30 बजे सुबह हरिद्वार पहुंचे हमने देखा लगभग सभी यात्री गेरुआ या लाल वस्त्र में थे | हमें यह समझते देर नहीं लगी कि इनमें से अधिकतम यात्रियों का उद्देश्य हरिद्वार कुंभ ही था | हमारा होटल पहले से ही बुक था जो रेलवे स्टेशन से 1 किलोमीटर की दूरी में ही था अतः हमने ज्ञातव्य स्थान पर टहलते हुए जाना ही उचित समझा | अंततः हम अपने होटल में थे परंतु थकान बिल्कुल भी नहीं था | सभी मित्र तुरंत ही तैयार हो गए और हम गंगा घाट पर पहुंचे | अपने पूर्वजों के नाम पर पूजा पाठ कराने एवं गंगा आरती हमारा आज का विषय था जो हमने बखूबी पूरा किया | इससे पहले एक महत्वपूर्ण स्थान के बारे में बताना तो भूल ही गई- मां मनसा देवी मंदिर | गंगा घाट में जाने से पहले हम मनसा देवी मंदिर गए| रोप -वे से जाना और प्रकृति के अद्भुत नजारे को ऊंचाई से देखना, भक्ति भाव को और भी ज्यादा सुदृढ़ करता है | मां मनसा देवी के दर्शन करके हमने कल्पवृक्ष में मन्नत के धागे बांधे | धागा बांधते वक्त एक विचार आया कि भक्ति मन में कितना विश्वास जगाता है जो इंसानों में उन चीजों के लिए चाह जगाता है जिसके पूरा होने और ना होने की आशंका बनी रहती है फिर भी भक्ति और प्रेम मन में रहता है | भगवान से कोई चाहे जो भी मांगे परंतु उन सभी में आशा बनी रहे यही भक्ति का प्रसाद है |
मनसा देवी की यात्रा एवं गंगा घाट के दर्शन करने के उपरांत रास्ते में मिलने वाले भोज्य पदार्थों का आनंद लेते हुए कुछ मित्रों ने वहां खरीददारी भी की जिनमें बबीता और दुष्यंत प्रमुख थे | आज फिर लंबी दूरी पैदल चलने के बाद भी हम थके नहीं थे | रात को होटल में सभी मित्र एक ही रूम में भोजन के लिए उपस्थित हुए और मिलकर खाने का आर्डर दिए | पूरे भोजन पर्यंत होटल वाले को हम सभी को खाना परोसना एक कठिन कार्य था क्योंकि सबको खाना कम ही पढ़ रहा था और हर 5 मिनट में कोई कुछ न कुछ आर्डर दे ही रहा था | आपसी बातचीत - अंताक्षरी हंसी - मजाक के बीच हम क्या और कितना खा रहे थे इसका पता ही नहीं था | अंत तक हम और खाना परोसने वाला दोनों ही खुश थे | अच्छा दिन बिताने और लजीज खाना खाने के बाद हम जल्दी सोना पसंद किए क्योंकि दूसरे दिन हमें पुनः घाट पर जाना था | हरिद्वार का दूसरा दिन हमारे मांग पूर्णिमा के अवसर पर कुंभ स्नान करने का था और हम बहुत ही श्रद्धा और भक्ति भाव से गंगा स्नान कर पूजा करके जल्दी होटल वापस आए क्योंकि हमको ऋषिकेश के लिए प्रस्थान करना था | पूरी हरिद्वार यात्रा हमारे भक्ति - प्रेम और विश्वास की यात्रा थी | अगर मैं केवल अपनी बात कहूं तो वर्षों पुरानी इच्छा मेरी इस यात्रा में पूरी हुई थी | मैं नहीं जानती कि आडंबर क्या है ? कौन करता है ? और क्यों करते हैं ? पर मैं यह मानती हूं कि मैंने गंगा की पवित्रता वहां की पुण्यता पर इतना ही विश्वास और भरोसा किया है जितना शास्त्रों में लिखा है |
अंत में मेरी माता गंगा से इतना ही प्रार्थना है कि मेरे दिल में भक्ति रखना , गद्दारी नहीं ....आस्था प्रेम में डूबी हुई रहूं और बस खुद्दारी रखना |
हरिद्वार से ऋषिकेश अपने गाड़ी में जाते वक्त हवा में शीतलता और शांति की अनुभूति हो रही थी | घुमावदार पहाड़ियां , रास्तों में पढ़ने वाली मंदिर, गंगा की पावन धार , हरियाली देश-विदेश के विभिन्न कोनों से आए लोग हमारी 1 घंटे की यात्रा के विशेष आकर्षण थे | शाम को करीब 5:00 बजे हम ऋषिकेश के तपोवन पहुंचे | हमारे रुकने का स्थान एक युवा गृह था | तपोभूमि के लोगों की विशेषता यह थी कि बड़े प्यार से मुस्कुराकर मिलते थे वहां के लोग | उनसे मिलकर हम भी थकान में मुस्कुराना सीख ही गए थे | मेरी तबीयत ठीक नहीं थी फिर भी रूम में आराम करने का मन नहीं किया | बाकी साथियों के साथ मेरा मन लोकल बाजार घूमने का था इसलिए मुझे उनके साथ जाना ही उचित लगा | थोड़ा इधर-उधर घूमते हुए दूसरे दिन की प्लानिंग करते हुए हमने एक होटल में खाना खाया | धारणा एवं विनय दोनों बाद में हम को ज्वाइन किए क्योंकि घूमते घूमते में थोड़ा दूर निकल गए थे | ऋषिकेश के पहले दिन की रात का खाना बड़ा ही निराशाजनक था हमने आज खाना बर्बाद किया था | हमेशा से मैंने यही सीखा है कि भूख से थोड़ा कम खाना, खाना बर्बाद करने या छोड़ने से कहीं बेहतर होता है और यह सीख सभी को लेना चाहिए - मैंने कूड़ेदान से खाना निकाल कर लोगों को खाते हुए देखा है | खाने के उपरांत हम सब वापस अपने रूम में आ गए | मुझे बुखार था और दूसरे दिन सभी का वाटर राफ्टिंग करने का मन था मैं रूम में ही रुक कर थोड़ा आराम करना उचित समझी और मेरे साथ मेरी देखभाल के लिए भगवती भी रुक गई| सभी मित्र सुबह 5:00 बजे ही अपने राफ्टिंग के लिए गए और 11:00 बजे तक वापस आ गए | मेरी सुबह, बुखार के कारण 8:30 बजे हुई | मुझे लगा नाश्ता करने के बहाने थोड़ा पैदल घूम आना चाहिए | मैं और भगवती आधा किलोमीटर दूर पैदल चलते हुए प्रकृति का आनंद लेने लगे | इसी बीच एक छोटे से होटल में हमने नाश्ता किया मेरी तबीयत बिगड़ रही थी इसलिए हमने होटल वापस लौटना बेहतर समझा | 11:00 बजे सुबह मेरी बहन मेरे लिए दवाई लेकर आई जिसे खाने के 1 घंटे बाद मुझे आराम महसूस हुआ अब मैं बाकी सभी के साथ घूमने के लिए तैयार थी | हम सब एक गाड़ी लिखी राय पर लेकर खेल के लिए पंचवटी गए जहां पिंकी कान्हा शिवधारी एवं दुष्यंत ने ईगल फ्लाइंग किया | उनके खुद के लिए तो यह बहुत रोमांचक था परंतु उनके साथ साथ उन सभी को देखना हमारे लिए भी अति रोमांचित था | जहां मैं भगवती आशा बबीता मंगल इन सभी को ईगल फ्लाइंग करते देख रहे थे वही अमरजीत विनय एवं धारणा गंगा के किनारे जंगल में घूम रहे थे | आज का पूरा दिन इसी में बीता और हम शाम को लोकल बस पकड़ कर वापस होटल लौट आए | दूसरे दिन ऋषिकेश से मसूरी जाना था परंतु मेरी तबीयत खराब हो जाने एवं यात्रा की व्यवस्थाओं के को देखते हुए ऋषिकेश में ही रुक कर मंदिरों का दर्शन करना ही उचित लगा | 1 मार्च 2021 ऋषिकेश में तीसरा दिन मेरी तबीयत आज ठीक थी सुबह जल्दी उठकर मैं तैयार हो चुकी थी और मेरे साथ बबीता भगवती एवं आशा भी पूरी तरह तैयार थे | सुबह हम 6 लोग नाश्ता करने पास के ही एक होटल में गए और आज हमने पोहा आर्डर किया था | अपना नाश्ता आधा खत्म होने के बाद मैंने देखा कि मेरे नाश्ते में एक छोटा कॉकरोच था पर मैंने उसे अपने प्लेट से हटाकर नाश्ता करना ही उचित समझा क्योंकि मेरा मानना था कि कोई भी इंसान जानबूझकर यह गलती नहीं करेगा इसलिए इस बात को नजरअंदाज करना ही उचित लगा | नाश्ता खत्म करके पिंकी एवं मंगल रूम लौट आए और मैं भगवती , बबीता एवं आशा लक्ष्मण झूला की ओर आगे बढ़ गए | राधा कृष्ण मंदिर के पास पहुंचकर एक गाइड की आवश्यकता महसूस हुई| हमने एक गाइड किया और उनसे हमें बहुत ही ऐतिहासिक धार्मिक घटनाओं की जानकारियां मिली | राधा कृष्ण मंदिर , रुद्राक्ष दर्शन , लक्ष्मण मंदिर , लक्ष्मण झूला आदि की विशेषताओं एवं धार्मिक मान्यताओं को जानते हुए हमने आस्था के साथ सभी मंदिरों का दर्शन किया | मंदिरों में दर्शन के बाद हम लोकल हाट बाजार घूमने लगे | कुछ अपने और कुछ अपनों के लिए खरीददारी कर बड़ा ही अच्छा लग रहा था | थोड़ी ही देर में बाकी सदस्य भी लक्ष्मण झूला के पास आ गए और हम सभी मिलकर 13 मंजिल मंदिर के दर्शन किए | दर्शन उपरांत वहां के प्रसिद्ध होटल चोटिवाला में खाना खाने पहुंचे | खाना खाने के उपरांत हम गंगा किनारे रेलिंग पर खड़े ही थे कि हमारी मुलाकात एक गाइड से हुई | हमें लगा कि हमको एक गाइड के दिशा निर्देश में ही घूमना चाहिए जिससे हमें तरह-तरह की धार्मिक कहानियां एवं मान्यताओं के बारे में पता चल सके | गाइड के द्वारा हमें स्वर्ग आश्रम, पंचानंद घाट , शिवलिंग का दर्शन कराया गया और हम सभी उन पवित्र स्थलों के पीछे धार्मिक मान्यताओं के बारे में भी जान पाए | अब शाम हो चुका था | घाट पर आरती का वक्त था | हम घाट पर गए जैसे ही घाट में शंख - घंटियों , मंत्रों की आवाज सुनाई देने लगी और धूप -अगरबत्ती , हवन की खुशबू जैसे ही हमें महसूस होने लगी , मन पावन हो चला था | शांत गंगा के किनारे मन शांत हो चला था | दिल वहां से वापस लौटने का नहीं था परंतु वापस लौटना ही था , यही क्रम होता है जीवन का कि हम कहीं ठहरते ही नहीं | निर्मल रहने के लिए बहना ही पड़ता है यही नदी को स्वच्छ बनाती है | अब हम वापस लौट रहे थे रास्ते में धार्मिक ग्रंथों का पुस्तक विक्रेता केंद्र था किसी ने गीता तो किसी ने भागवत पुराण खरीदा और राह में चलते हुए हमने स्ट्रीट फूड का भी आनंद लिया | कुछ ही देर अपने-अपने स्कूटी में घूमने के उपरांत हम अपने होटल में थे | आज खाना खाने का मन नहीं था मेरा इसलिए रूम में ही आराम करना बेहतर था | दूसरे दिन हमें नीलकंठ मंदिर झिलमिल गुफा जाना था एवं देहरादून के लिए भी निकलना था | मैं बहुत थक चुकी थी शरीर में दर्द के साथ बुखार था इसलिए मैं मंदिर नहीं जा पाई और मेरे साथ भगवती एवं बबीता भी रुक गए | सभी मंदिर चले गए मैं भगवती एवं बबीता कुछ खरीददारी करने पास के ही लोकल बाजार चले गए | लगभग 4:00 बजे शाम हम देहरादून के लिए रवाना हुए क्योंकि दूसरे दिन हमें 5:00 बजे सुबह दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़नी थी | देहरादून हमारी यात्रा का अंतिम पड़ाव था | लगभग 2 घंटे बाद हम देहरादून पहुंचे | जिस होटल पर हम गए वह होटल हमें बहुत पसंद आया क्योंकि उसकी सजावट अनुपयोगी वस्तुओं से की गई थी | होटल के द्वार पर दो बड़े बड़े शेर , सफेद फूल, हरे-भरे छोटे वृक्ष हमारा स्वागत कर रहे थे | मन उल्लासित हो गया | फ्रेश होकर हम सभी अच्छे अच्छे वस्त्र पहन कर फोटो खिंचवाए क्योंकि हम वहां की खूबसूरती को अपने यादों में फोटो के रूप में संजोना चाहते थे और हमने यही किया | करीब 9:00 बजे रात को डिनर किए | सब साथ में खाना खा रहे थे, एक दूसरे की टांग खिंचाई भी हो रही थी, थोड़ा छीना झपटी भी हो रहा था पर मजा बहुत था | सबके चेहरे पर खुशी थी थकान का नामोनिशान नहीं था , एक यात्रा थी जिसमें थोड़ा गुस्सा था ,कभी थोड़ा सा चिड़चिड़ा था , कभी एक दूसरे से शिकायत थी ,कभी एक दूसरे के लिए चिंता थी ,कभी प्यार कभी उम्मीद थी ,परंतु थकान नहीं था | पूरी यात्रा में मतभेद था परंतु मन भेद नहीं था | मैं उम्मीद करती हूं कि आगे की यात्रा भी सभी की ऐसी ही हो |
हर हर महादेव