Baingan - 32 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | बैंगन - 32

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बैंगन - 32

हम लोग भाई के बंगले की बड़ी छत से पतंग उड़ा रहे थे। भतीजा तो ग़ज़ब जोश में था क्योंकि सुबह से लगभग एक दर्जन पेंच काट कर उसने अपने हिस्से के आकाश में अपना एकछत्र सम्राज्य स्थापित कर लिया था।
आसपास से आकर जमा हुए जमघट के बीच मैं और भाभी भी मानो बच्चे ही बन गए थे। भाभी की रसोई से निकल कर तरह- तरह के पकवान आते ही जा रहे थे। भाई के शो रूम के दो- तीन नौकर भी इस मुहिम में हमारे साथ ही आ जुटे थे। पकौड़ों की गरमा- गरम भाप उड़ाती प्लेट छत पर आती और देखते- देखते ख़ाली हो जाती।
तभी अचानक सड़क पर कुछ ही दूर एक गली के नुक्कड़ पर खड़े बच्चों की ज़ोर ज़ोर से हंसने और सीटियां बजाने की आवाज़ें आने लगीं। ये आवाज़ पतंग काटने पर होने वाली "वो काटा" की आवाज़ से कुछ अलग थी।
मैं किनारे पर मुंडेर के सहारे खड़े होकर उधर देखने लगा। नुक्कड़ पर एक छोटे से घोड़े की मोटर बाइक से टक्कर हो गई थी। सब तमाशबीन बने हुए थे।
घोड़ा क्या था, बल्कि सफ़ेद गधे जैसा कोई टट्टू दिख रहा था। उस पर कोई भारी सा बोरा लदा हुआ था। टक्कर से बोरा खिसक कर एक ओर को लुढ़क गया था और शायद थोड़ा फट भी गया था। उसमें से कुछ सब्जियां सड़क पर बिखर कर फ़ैल गई थीं।
तभी दौड़ता हुआ भाई की दुकान का एक लड़का छत पर आया और उसने आकर पूरी बात बताई।
घोड़ा सड़क पर लीद और पेशाब करता हुआ चल रहा था जिसके बहने से सड़क चिकनी हो गई थी। तभी बहुत तेज़ी से आता हुआ एक बाइक सवार उसके पास आकर स्लिप हो गया। घोड़े पर लदे हुए बोरे में बैंगन थे। शायद वो कहीं बेचने के लिए ले जा रहा था।
आसपास वाले लोग सड़क को घेर कर लीद और गंदगी से बचा बचा कर बैंगन उठा रहे थे। घोड़े वाला दांत किटकिटाता हुआ उन शैतान लड़कों के पीछे भाग रहा था जो बैंगन उठाने में उसकी मदद करने की बजाय उन्हें उठा- उठा कर भाग रहे थे।
वो लड़का हाथ में हाथ में एक छोटी सी पुड़िया लिए हुए उससे खिलवाड़ कर रहा था।
मैंने उससे पूछा- ये क्या है?
- क्या पता? शायद नमक होगा। वह अनभिज्ञ सा बोला।
- अरे, तू हाथ में लिए घूम रहा है और तुझे पता ही नहीं है कि ये क्या है? मैंने कहा।
वह बोला- मैंने तो वहीं सड़क से उठाया। बैंगन के साथ पड़ा था, मैंने बैंगन तो उठा कर उस घोड़े वाले को पकड़ा दिया और ये मेरे पास रह गया। कहते हुए उसने लापरवाही से उसे छत से नीचे फेंक दिया।
मैंने कहा- ये भी घोड़े वाले का ही होगा?
- क्या पता? उसे अब कुछ खीज सी हो रही थी क्योंकि वह ये भूल गया था कि उसे भाई ने मुझे बुलाने के लिए भेजा है। उसने हड़बड़ा कर मुझे बताया।
- अच्छा, तू चल, मैं आता हूं। कह कर मैंने दो तीन पकौड़े हाथ में उठाए और उसके पीछे पीछे सीढ़ियां उतर गया।
भाई शायद शो रूम में साथ में चाय पीने के लिए ही मुझे याद कर रहा था।
भाई ने सोचा था कि शायद बच्चों के घर की छत पर पतंग उड़ाने में व्यस्त होने के कारण मैं अकेला बैठा बोर हो रहा होऊंगा। उसे मालूम नहीं था कि मैं भी छत पर बच्चों के साथ ही पतंगबाजी का मज़ा ले रहा हूं।
भाई के शोरूम में शायद अभी अभी किसी ट्रक से कोई माल आकर उतरा था। उसे ही उठा उठा कर भीतर लाने और करीने से जमाने में दुकान के सब लड़के लगे थे।
भाई के शोरूम से बहुत सा माल बाहर से इंपोर्ट होकर भी आता था। यहां से भी बहुत सी चीजें एक्सपोर्ट होती थीं।
मौसम काफ़ी अच्छा हो गया था, कुछ देर पहले तक लग रहा था कि शायद बरसात हो जाए पर अब बादल हट गए थे।
भाई ने बताया कि शायद उसे कल दिल्ली जाना पड़े। उसे कस्टम ऑफिस में कोई काम था। भाई ने मुझे भी कहा कि अगर मुझे कोई विशेष काम न हो तो मैं भी साथ चलूं। पर मैं जानता था कि भाई वहां काम में लगातार व्यस्त रहेगा और मेरा मन इस काग़ज़ी कार्यवाही और दफ़्तरी उबाऊ काम में नहीं लगेगा इसलिए मैंने मना कर दिया।
मैं भाई से बोला- तुम जाओ, हम तो कैरम खेलेंगे!
भाई गंभीर हो गया। उसका हंसने का भी शायद यही तरीका था।