Baingan - 30 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | बैंगन - 30

Featured Books
Categories
Share

बैंगन - 30

दो दिन बाद मैं वापस अपने घर लौट गया। सबसे तल्ख़ और तीखी पहली ही प्रतिक्रिया तो मुझे मेरी पत्नी से सुनने को मिली, बोली- अबकी बार क्या गुल खिलाए?
मैंने झेंप कर उसकी बात का अनसुना कर दिया क्योंकि मां और बच्चे आकर मुझे घेर कर खड़े हो गए थे।
- अबकी बार बहुत दिन लगाए बेटा... कहते हुए मां ने कुछ अविश्वास से देखा, क्योंकि जाते समय मैं उनसे कह गया था कि दुकान के लिए सामान खरीदने जा रहा हूं।
बच्चे गौर से मेरे बैग की ओर देखने लगे। वो अच्छी तरह जानते थे कि दुकान के सामान के सैंपल्स के साथ- साथ उनके लिए भी कुछ न कुछ नया मेरे सामान में ज़रूर होगा। उनका ये विश्वास मैंने तमाम भागदौड़ के बावजूद इस बार भी कायम रखा था।
नहा- धोकर खाना खाने के बाद मैं दुकान पर भी एक चक्कर लगाने के लिए निकल पड़ा। वैसे भी मुझे दोपहर को सोने की आदत नहीं थी अतः दुकान न जाने पर भी मैं घर पर कुछ न कुछ करता ही रहता था।
अपने मैनेजर को भी मैंने तन्मय के बारे में बता दिया था कि मैंने उसे स्थाई रूप से नौकरी में ले लिया है और वह तीन- चार दिन में आ जाएगा।
मेरी दुकान के ऊपर मैंने तीन- चार छोटे - छोटे कमरे बनवा रखे थे जो अपने कर्मचारियों को रहने के लिए ही दे रखे थे।
जो कर्मचारी अपने परिवार के साथ रहते थे वो तो शहर में किराए से जगह ले कर रहते थे किंतु जो अकेले अकेले थे वो दो दो, तीन तीन करके दुकान के ऊपर ही रह जाते थे।
एक और कर्मचारी के बढ़ जाने के बाद भी मेरा मैनेजर ज़्यादा खुश नहीं दिखाई दिया क्योंकि वह पिछले कुछ समय से स्टाफ और बढ़ाने के लिए कहता आ रहा था। तन्मय को लेकर भी वो ज़्यादा उत्साहित नहीं था क्योंकि वह जानता था कि शहर से बाहर रहने पर मैं अक्सर अपने साथ दुकान के किसी न किसी एक आदमी को लेकर ही जाता था। तो उस एक आदमी को तो मेरा मैनेजर स्टाफ में गिनता ही नहीं था। वह जानता था कि तन्मय अक्सर इसी ड्यूटी में रहने वाला है।
तन्मय एक समझदार और सलीके मंद लड़का है ये मैनेजर देख ही चुका था। तन्मय पहले भी काम मांगने आया था।
तन्मय आते ही घर पर मुझे मिलने आया। उसने मुझे उत्साह से बताया कि उसका तांगा बिक गया। मज़े की बात ये थी कि तांगे का केवल वो घोड़ा तो एक आदमी ने ख़रीद लिया था पर ख़ाली तांगा उसी आदमी, चिमनी के पिता को ही वापस सौंप दिया गया था।
- वो चिमनी का बाप ख़ाली तांगे का करेगा क्या? मेरे पूछने पर तन्मय ने बताया कि चिमनी के पिता ने ही उसे रख लिया। कहता था कि अब तांगा चलाना तो मेरे बस की बात नहीं है पर तांगे को रख ज़रूर लूंगा, क्योंकि वो चिमनी बिटिया को बहुत पसंद था, उसकी यादगार के तौर पर ही पड़ा रहेगा।
- चिमनी को पसंद था तो पहले क्यों दे दिया था तुझे? मैंने तन्नू से कहा।
वो कुछ सकपकाया फ़िर धीरे से बोला- उन्होंने तो बेटी के साथ ही दिया था।
हां - हां, मुझे सहसा अपनी भूल याद आ गई।
मैंने कहा- अरे पर वो लड़की गई कहां?
तन्नू बोला- कोई बता रहा था कि सब्ज़ी - मंडी में आने वाले एक आदमी के साथ ही चली गई। दोनों ने शादी कर ली है और गांव में ही साथ- साथ किसानी करते हैं।
- क्या उगाते हैं?
- बैंगन! किसी की बुलंद सी आवाज़ आई। इसके साथ ही आसपास से कुछ लोगों के हंसने की आवाज़ें भी आने लगीं। मुझसे मिलने दो - तीन दोस्त लोग आए थे जो मुझे तन्मय से बातें करते देख वार्तालाप के बीच में कूद पड़े।
तन्मय झेंप कर दुकान के भीतर चला गया जहां मैनेजर उससे कुछ पूछने के लिए काफी देर से उसका इंतजार कर रहा था।
मैंने अपनी कुर्सी के सामने पड़ी एक पुरानी सी बेंच को घसीटा और दोस्तों को बैठने का इशारा किया। मेरे कई दिनों से शहर से बाहर होने के कारण वो हालचाल जानने चले आए थे।
मेरा दोस्त इम्तियाज़ अपने हाथ में एक छोटा सा मिठाई का डिब्बा पकड़े हुए था। तुरंत उसे खोलकर मेरे सामने बढ़ाता हुआ बोला- ले, मुंह मीठा कर...!