(8)
नीचे पहुंचा तो प्रकाश की मोटर स्टार्ट हो चुकी थी और सीमा अपनी कार में बैठने जा रही थी । फिर जैसे ही दरवाजा खोलकर ड्राइविंग सीट पर बैठी वैसे ही हमीद उसके सामने आ गया ।
“ओह कैप्टन ! हल्लो ! माई गाड... इस समय अगर मैंने कुछ और मांगा होता तो मुझे मिल गया होता... मैं आप ही के बारे में सोच रही थी ।”
“और मैं सारी दुनिया का चक्कर लगाकर यहां पहुंचा हूं ।” – हमीद ने मुंह बनाकर कहा – “आपने फोन के इंतज़ार में दिन सूख गया ।”
“दिन सूख गया या आप सूख गये ?” – सीमा ने शरारत भरे स्वर में कहा फिर गंभीर होकर बोली – “मैंने फोन किया था मगर आप मौजूद नहीं थे ।”
“क्या हम इसी प्रकार खड़े और बैठे बातें करते रहेंगे ?” – हमीद ने कहा ।
“ओह...! क्षमा कीजियेगा । आइये बैठिये ।”
“नहीं । मैं मोटर साइकल से यहां आया हूं और उसी से वापस जाऊँगा । आप आर्लेक्चनू पहुंचिये ।”
“आर्लेक्चनू !” – सीमा ने भयपूर्ण स्वर में कहा ।
“हां, डरने की आवश्यकता नहीं है ।” – हमीद ने कहा – “मैं तुम्हारे साथ ही चलूंगा । बहुत सारी बातों की सफाई वहीँ हो सकेगी ।”
सीमा ने फिर कुछ नहीं कहा और कार स्टार्ट कर दी । हमीद ने उसकी कार के पीछे अपनी मोटर साइकल लगा दी ।
एक जगह सन्नाटा पाकर हमीद ने मोटर साइकल रोक दी । जल्दी से कोट उलटकर पहना । नथनों में स्प्रिंग फिट किये फिर मोटर साइकल स्टार्ट कर दी ।
आर्लेक्चनू के गेट में दाखिल होने के बाद हमीद ने अपनी मोटर साइकल रोक दी और नीचे उतरकर सीमा की कार की ओर बढ़ा । सीमा कार रोककर नीचे उतर रही थी ।
हमीद झपटकर उसके सामने पहुंच गया । सीमा ने उसे देखते ही क्रोध भरे स्वर में कहा ।
“तुम फिर आ गये ! बड़े निर्लज्ज मालूम होते हो । शायद तुम मुझे जानते नहीं । क्या यही चाहते हो कि मैं यहीं सैंडिलों से तुम्हारी पिटाई आरंभ कर दूं ?”
हमीद ने भयभीत हो जाने का अभिनय करते हुए इधरउधर देखा । चारों ओर सन्नाटा था । उसने नथनों से स्प्रिंग निकाला और सीमा चौंककर एक क़दम पीछे हट गई । फिर विस्मय और भय से भरे हुए स्वर में बोली ।
“तो वह भी आप ही थे !”
“हां ।” – हमीद ने कहा – “शेष बातें मेज पर होंगी । कुछ मसलहतों के आधार पर मैं लोगों की नज़रों में आना नहीं चाहता ।”
बात समाप्त करके हमीद ने फिर नथनों में स्प्रिंग डाल लिये और सीमा को लिये हुए हाल की ओर बढ़ा ।
“मेरा विचार है कि कैबिन में बैठा जाये ।” – सीमा ने कहा ।
“यह उचित नहीं होगा ।”
“क्यों ?” – सीमा ने आश्चर्य के साथ पूछा ।
“मैं आपसे कुछ आवश्यक बातें करना चाहता हूं । कैबिन में बैठकर बातें करने से इसकी भी संभावना है कि कोई पर्दे से लगकर हमारी बातें सुन ले । लेकिन हाल में बैठने से इसकी संभावना नहीं रहेगी । इसलिये कि हम सबको देखते रहेंगे और इस प्रकार हमारी बातें सुनने का किसी को अवसर न मिल सकेगा । समझी ?”
“ठीक कह रहे हैं आप ।”
दोनों हाल में आकर एक मेज पर बैठ गये । गत रात्रि के उत्पात का प्रभाव अब भी नज़र आ रहा था । बहुत ही कम लोग दिखाई दे रहे थे और बैरे भी भयभीत नज़र आ रहे थे ।
हमीद ने एक बैरे को संकेत से बुलाकर पहले आर्डर दिया फिर पूछा ।
“मादाम ज़ायरे की दशा अब कैसी है ?”
“डाक्टर ने कहा है कि अब खतरे से बाहर है ।”
“कहां गोली लगी थी ?”
“बाईं भुजा पर ।”
“और किसी को भी गोली लगी थी ?”
“जी नहीं । केवल छर्रे लगे थे जिनके कारण साधारण ज़ख्म आये थे ।”
“गोली चलाने वाला तो पकड़ लिया गया होगा ?” – हमीद ने पूछा ।
“जी नहीं – अभी तफ्तीश हो रही है ।”
“पुलिस वाले यहाँ नहीं दिखाई दे रहे है ।”
“जी – सवेरे कोतवाली इन्चार्ज इन्स्पेक्टर जगदीश और इन्स्पेक्टर आसिफ़ साहब आये थे ।”
“मगर यह तो पता चल ही गया होगा कि गोली कहां से चलाई गई थी ?”
“जी हाँ – ग्रीन रूम के साइड स्क्रीन वाले भाग से चलाई गई थी ।”
“बेचारी मादाम ज़ायरे ।” – हमीद ने ठराडी सांस खींच कर कहा – “भला उनसे किसी की क्या दुश्मनी हो सकती थी । उन्होंने किसी का क्या बिगाड़ा था ?”
“ऐसा न कहिये साहब ।” – बैरा ने कहा – “कभी कभी ऐसा भी होता है कि देखने में भोले लगने वाले आफ़त के परकाले साबित होते है ।”
“तो क्या मादाम जायरे भी......।”
“मैं नहीं जानता साहब कि उनकी किसी से शत्रुता थी या नहीं ।” – बैरा ने बात काट कर कहा – “या उन्होंने किसी को हानि पहुँचाई थी या नहीं मगर इतना अवश्य जानता हूँ कि लोग उनसे प्रसन्न नहीं थे – उनकी ओर से संदिग्ध थे.....हां साहब....केवल काफ़ी हो या कुछ और भी ?”
“सैंडविचेज़ ।” – हमीद ने कहा और बैरा चला गया ।
“हाँ देवी जी ।” – हमीद ने सीमा से कहा – “अब आप सुनाइये ! कल रात आप यहाँ से अपने कैसे पहुँची थी ?”
“मैं बहुत परेशान हूँ कैप्टन !” – सीमा ने कहा फिर बड़ी बेतकल्लुफी से बोली – “फिर किसी वक्त मज़ाक कर लेना ।”
“कमाल है – भला इसमें मज़ाक की क्या बात है ।”
“फिर क्या है – क्या आपने मुझे मेरे घर नहीं पहुँचाया था !”
हमीद खिल खिला कर हंस पड़ा फिर बोला – “मैं तो यह समझ रहा था कि तुमने मुझे मेरे घर पहुँचाया होगा ।”
“क्या बात हुई ?” – सीमा उसे विचित्र नज़रो से देखने लगी ।
“शायद तुम अब तक मेरी बातों को मज़ाक ही समझ रही हो ।”
“तो फिर क्या समझूं ?”
इस पर हमीद ने कल रात वाली बातें बताते हुए कहा ।
“तुम्हारी चीख सुनकर मैं तुम्हें बचाने के लिये दौड़ा था मगर इस बुरी प्रकार मार खाकर गिरा था कि बेहोश हो गया था । मगर जब आंख खुली थी तो मैंने अपने आपको अपने घर के स्लीपिंग रूम में मसहरी पर पड़ा पाया था ।”
सीमा ने इस प्रकार हमीद की ओर देखा जैसे उसे हमीद की बातों पर विश्वास न हुआ हो । फिर वह कहने लगी ।
“मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप क्या कह रहे हैं । वैसे मेरी कहानी भी सुन लो... जब यहां हाल में अंधेरा हुआ था तो कुछ लोगों ने मुझे अपने बंधन में लिया था – फिर मैंने उनके बंधन से अपने को मुक्त भी देखा और अंधेरे के बावजूद आप को पहचान भी लिया था । लोग भागे जा रहे थे और उन्हीं के रेले में मैं भी आगे की ओर खिसकती जा रही थी । इसी प्रकार जब कम्पाउंड में पहुंची थी तो एक सिपाही ने बड़ी शिष्टता से मुझे सलाम किया था । फिर मुझे मेरी कार में बैठाकर मुझे मेरे घर तक पहुंचाया था । उसने मुझसे यही कहा था कि वह यह सब कुछ कैप्टन की आज्ञा पर कर रहा है ।”
“तुमने यह कैसे समझ लिया कि वह सिपाही था ?” – हमीद ने पूछा ।
“उसकी वर्दी से ।“
“उसकी हुलिया क्या थी ?”
“काफ़ी आयु का आदमी था । दाढ़ी और मूछों के बाल पके हुए थे ।”
“तुमसे उसने मेरे बारे में और कुछ नहीं पूछा था ?” – हमीद ने प्रश्न किया ।
“पूछा था – उसने उत्तर दिया था कि कैप्टन हमीद उन लोगों का पीछा कर रहे हैं जिन्होंने आप पर हमला किया था ।”
“तुम्हारे घर पर कोई खास बात ?”
“कोई खास बात नहीं ।”
हमीद को ऐसा लगा जैसे सीमा कुछ छिपा रही हो । इसलिये उसने पूछा ।
“मगर जब मैंने तुम्हें फोन किया था तब...?”
“उस समय कुछ लोग बैठे हुए थे ।” – सीमा ने जल्दी से बात काटकर कहा – “और मैं उन पर यह प्रकट करना नहीं चाहती थी कि मैं आपके पास थी या यह कि मैं आर्लेक्चनू गई थी ।”
“मिस्टर राय, या रनधा का वकील, या पार्क अविन्यु का बारह नंबर वाला फ़्लैट – मेरा विचार है कि यह तीनों वस्तुएं एक ही है ।”
“हां ।” – सीमा ने कहा ।
“और वीना ने कल रात में तुम्हें उसी फ़्लैट पर मिलने के लिये बुलाया है ?”
“हां ।”
“तो फिर इस समय तुम वहां क्यों गई थी ?” – हमीद ने पूछा ।
“मैं उस ओर यह पता लगाने गई थी कि पार्क अविन्यु के बाहर नंबर वाले फ़्लैट में कौन रहता है । वीना यहां किस प्रकार आयेगी और यह कि अगर हम लोग उससे मिलने गये तो किसी कठिनाई या विपत्ति में तो नहीं पड़ जायेंगे ?”
“मगर मैंने तो तुमको वकील के चेम्बर से निकलते हुए देखा था ?”
“मैं चेम्बर में इसलिये गई थी कि मिस्टर राय से बातें करके वीना के प्रति कुछ मालूम कर सकूं ।”
“तो बातें हो पाई थीं ?”
“हां ।”
“नतीजा क्या निकला ?”
“कुछ नहीं । मिस्टर राय कुछ क्षणों तक तो रस्मी बातें करते रहे । फिर कहने लगे कि कानून का पहला सिद्धांत यह है कि चाहे दस हजार अपराधी छुट जाए मगर किसी निर्दोष को सजा न होने पाये । फिर कहने लगे कि मैं इसी सिद्धांत को मानता हूं और इसी कोशिश में रहता हूं कि किसी निर्दोष को सजा न होने पाये । उसके बाद रनधा का जिक्र करते हुए कहने लगे कि रनधा के साथ कानून को इतना कठोर दंड देकर निर्दयता का व्यव्हार नहीं करना चाहिये था । फांसी की सजा तो उन लोगों को मिलनी चाहिये जो पूरे समाज को क़त्ल कर रहे हैं । रनधा तो केवल कुछ लोगों को उस समय क़त्ल करता था जब वह उसकी मांग पूरी नहीं करते थे ।”
“मैं कहता हूं कि तुमने वीना के बारे में भी कुछ बातें की थीं या नहीं ?” – हमीद ने झल्लाकर पूछा ।
“मेरे पूछने के पहले वह कहने लगे थे कि रनधा को फांसी से किसी को क्या लाभ पहुंच सकता है । अतिरिक्त इसके कि एक जान और चली जायेगी । जो लोग मार डाले गये वह जिन्दा नहीं हो सकते । जिनके माल लूटे गये वह न तो बरामद हो सके और न उनको वापस मिले जो उनके पाने के सही अधिकारी थे । यहाँ तक कि सेठ दूमीचंद की लड़की का जो अपहरण हुआ था वह भी न मिल सकी और रनधा की फांसी के बाद पुलिस को उसके मिलने की आशा नहीं ।”
“मिस्टर राय को इसका विश्वास है कि रनधा को फांसी हो जायेगी ?” – हमीद ने पूछा ।
“यह तो मैं नहीं जानती । वैसे वह यही कह रहे थे कि एक सच्चे और इमानदार वकील के समान वह आज फिर रनधा की जान बचाने की अंतिम कोशिश करेंगे ।”
“तुमने अपने ड्राइवर साहब को देखा था ?” – हमीद ने पूछा । फिर ख़ुद ही कहने लगा – “वह भी दूमीचंद के लड़के प्रकाश के साथ वहां गये थे ।”
“आखिर तुम उनके पीछे क्यों पड़ गये हो ?”
“बड़े आदर से उसका उल्लेख कर रही हो ।” – हमीद ने व्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा । फिर गंभीर होता हुआ बोला – “बात वास्तव में यह है कि जब कोई बात मेरी समझ में नहीं आती है तो मुझे उसकी कुरेद हो जाती है । वह ड्राइवर साहब मुझे रहस्यपूर्ण आदमी मालूम पड़ते हैं । कभी मुझे ऐसा लगता है जैसे वह आदमी मेरा देखा हुआ है और कभी ऐसा लगता है जैसे मुझे उस आदमी की तलाश है ।”