पुरुष एक उद्योगी और उत्क्षृंखल इकाई है परिवार बसा कर रहना उसका सहज स्वभाव नहीं है यह नारी की ही कोमल भावात्मक कुशलता है जो पारिवारिक रिश्ते बनाकर प्रसन्नता एवं आनंद की परिधि में परिभ्रमण करने के लिए लालायित करती हैं। नारी ही पुरुष की उद्योग उपलब्धियों को व्यवस्था एवं उपयोगिता प्रदान करती है । नारी के कारण ही पुरुष पुत्र वान और प्रसन्न चैता है पत्नी के रूप में नारी का महत्व असीम और अनुपम है पत्नी ही उसकी सुख दुख की संगिनी किंकर्तव्यविमूढ़ ता की स्थिति में सच्ची सलाहकार प्रिय शिष्य रमण काल में रमणी एकांत में आनंद दायिनी और घर में सुख शांति प्रदाता है शास्त्रों में भार्या को छह प्रकार से पुरुष के लिए हित साधक बतलाया गया है
कार्यषु मंत्री करुणेषु दासी
भोजयेशषु माता
रमणेषु रंभा
धर्मानुकूला क्षमा या धरित्री
भार्या च षड् गुणवती च दुर्लभा
वास्तव में यदि नारी मनुष्य को सच्ची सुख शांति प्रदान करना चाहती है तो उसे चाहिए कि वह श्रेष्ठ पत्नी और शुभ ग्रहणी बनकर अपने कर्तव्य भूमिका निभाए अन्नपूर्णा बनकर पति की कमाई में प्रकांडता भरे उसके मन में माधुरी और प्राणों को आनंद प्रदान करें उसके परिश्रजीवन में श्री बनकर हंसे और संसार समर में शक्ति बनकर साहस दे विपत्ति में भावात्मक संबल प्रदान करें गृह लक्ष्मी बनकर घर को स्वर्ग बना दे संतानों को सुयोग्य सुशील और कुशल नागरिक बनाए तभी परिवार और समाज की उन्नति संभव है। किसी ने ठीक ही कहा है घर को स्वर्ग बनाने के लिए यह महत्वपूर्ण कार्य नारी ही कर्तव्य पालन द्वारा पूर्ण कर सकती है
'यदि स्वर्ग कहीं हैं पृथ्वी पर
तो वह है नारी उर के अंदर'
आधुनिक युग में आदर्श पत्नी और सु ग्रहणी के रूप में नारी का एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व यह भी कि वह परिवार में संतानों के बीच पुत्र और पुत्री के भेदभाव को न पनपने दें दोनों के प्रति अपने कर्तव्य का समान रूप से पालन करते हुए उसे यह समझना चाहिए कि लड़के और लड़की में से जो भी अयोग्य और खराब स्वभाव का निकल जाएगा वही परिवार और समाज के लिए अभिशाप स्वरूप होगा लड़कों के साथ साथ लड़कियों को भी अपने कर्तव्य वह अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के उत्तरदायित्व नारी ही पूर्ण कर सकती है आवश्यकता इस बात की है की समय की मांग के अनुसार नारी अपने कर्तव्य को समझें और उन्हें यथा संभव पूर्ण करने का प्रयास करें
तीसरा
शिक्षित नारी के रूप में
जगे हम लगे जगाने विश्व
लोक में फैला फिर आलोक
कविवर श्री जयशंकर प्रसाद के कथन अनुसार संपूर्ण विश्व में सर्वप्रथम चेतना और ज्ञान का प्रचार प्रसार करने वाले भारतीय आज स्वयं अपने देश की नारियों की शिक्षा के प्रति उदासीन हो गए हैं स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात नारी शिक्षा और प्रगति की दिशा में अनेक सराहनीय प्रयास होने के उपरांत भी आज नारी की शिक्षा की स्थिति अ संतोषजनक जनक है आज आवश्यकता है कि इस पवित्र कार्य में स्वयं महिलाएं आगे आएं उन्हें नारी जागृति का बीड़ा उठाना होगा उन्हें घर घर जाकर अपने अशिक्षित बहनों को शिक्षा का महत्व उसकी उपयोगिता को समझाना होगा और उन्हें जागरूक बनाना होगा या उत्तरदायित्व समाज की शिक्षित एवं जागरूक महिलाएं ही कर सकती है
भारतीय समाज में शिक्षा का अभिशाप नारी वर्ग को कलंक की तरह ग्रसे हुए हैं। शिक्षा के अभाव में भारतीय नारी असभ्य अयोग्य अदक्ष अ प्रगतिशील बनी हुई चेतन होते हुए भी जड़ की तरह जीवन व्यतीत कर रही है समाज एवं राष्ट्र के लिए उसकी सारी उपादेयता नष्ट होती जा रही है अशिक्षा और अज्ञान ने उन्हें कायर और भीरू बना दिया है अशिक्षित नारी बच्चे का लालन-पालन घर की देखभाल शुभ संस्कारों का हस्तांतरण आदि महत्वपूर्ण कार्यों के प्रति भी जागरूक नहीं हो पाती अतः शिक्षित महिलाओं को चाहिए कि वह घर घर शिक्षा का अलख जगाए महात्मा गांधी का यह विचार अक्षरशाः सत्य प्रतीत होता है कि यदि हम किसी पुरुष को शिक्षित करते हैं तो केवल एक व्यक्ति ही शिक्षित होता है परंतु किसी बालिका को जब शिक्षित करते हैं तो एक संपूर्ण पीढ़ी शिक्षित हो जाती है मानवता के अनेक नैतिक मूल्य और सद्गुणों जो मानव की प्रधान संपत्ति है उनके शिक्षण का सही स्थान है घर का वातावरण और उनको निर्माण करती है--- शिक्षित ग्रहणी। व्यक्ति और राष्ट्र उत्थान के लिए किए जाने वाले अनेक प्रयत्नों में अत्याधिक आवश्यक कार्य है सु ग्रहणी का निर्माण इस निर्माण कार्य को सुदृढ़ रूप में शिक्षित महिला ही संपन्न कर सकती है अपने परिवार की बेटियों वह बहनों को शिक्षित व संस्कारित बना कर।
लड़कियां सुशिक्षित होकर अपने शिक्षा के बल पर दहेज रूपी राक्षस का विनाश कर सकती हैं जो वर्षों से भारतीय नारी समाज को ग्रस रहा है समाज में फैली हुई अनेक रूढ़िवादी मान्यताओं अंधविश्वासों कुरीतियों बाल विवाह अनमेल विवाह जैसे सामाजिक बंधनों से भी नारी शिक्षा के द्वारा बंधन मुक्त हो सकती है कहा भी गया है
सा विद्या या विमुक्तए
इस सूक्ति में मुक्ति का अर्थ केवल धार्मिक मुक्ति ही ग्रहण नहीं करना चाहिए अपितु सही अर्थों में विद्या वही है जो हमें समाज में फैले हुए भ्रष्टाचार दुराचार अंधविश्वास असुरक्षा रूढ़िवादिता अज्ञानता आदि सामाजिक बंधनों से मुक्त कर दे
नारियों की दुर्दशा का सबसे प्रमुख कारण अशिक्षा ही है ज्ञान के अभाव में उनका ना बौद्धिक विकास हो पाता है और ना नैतिक ही जिस महिला को बौद्धिक विकास करने का अवकाश ना मिला हो उसके व्यवहार में कभी सरसता नहीं आ सकेगी शिक्षा की कमी के कारण उनका गृहस्थ जीवन शुष्क नीरस एवं निश प्राण ही बना रहेगा शिक्षित महिलाएं अपने आवश्यक कर्तव्यों का पालन करते हुए भी अपनी रुचि इच्छा शक्ति और सुविधानुसार साहित्य संगीत ग्रह कला और कला कौशल का ज्ञान प्राप्त कर गृहस्थ जीवन को समुन्नत बना सकती हैं
इतिहास साक्षी है कि प्रत्येक काल में शिक्षित और गुणवती महिलाओं ने जीवन के प्रत्येक रूप में पुरुष वर्ग की उन्नति में सार्थक सहयोग प्रदान किया है इतना ही नहीं उन्होंने राज कार्य शासन और रण कौशल में भी अपने चातुर्य का परिचय दिया है रानी दुर्गावती महारानी लक्ष्मी बाई देवी अहिल्या जीजाबाई आदि अनेक नारियों की वीरता साहस बुद्धि चातुर्य की गाथाओं से भारतीय इतिहास जगमग आ रहा है
चौथा
समाज सुधारक के रूप में
आज की शिक्षित नारी यद्यपि सभी क्षेत्रों में पदार्पण कर चुकी है वह एक महान नेता कुशल चिकित्सक अच्छी निर्देशक योग्य वकील कुशाग्र अध्यापिका और श्रेष्ठ मंत्री तथा प्रधानमंत्री जैसे महान पदों पर कुशलतापूर्वक कार्य कर अपने अद्भुत क्षमता को दिखा रही है वह आत्मनिर्भर व स्वावलंबी बनकर पुरुषों को भी चुनौती दे रही है
आधुनिक युग में नारी को इन सभी महान कार्यों के साथ-साथ एक कुशल समाज सुधारक के रूप में परिवार कल्याण समाज कल्याण और जनकल्याण की बागडोर को भी अपने हाथों में संभालना होगा नारी ने अपनी महानता के दम पर ही समय-समय पर महान संस्कारों से युक्त सपूत चरित्रवान पति मान मर्यादा की रक्षा करने वाले आदर्श भाइयों के रूप में सुयोग्य नागरिक प्रदान कर समाज उत्थान में सक्रिय सहयोग प्रदान किया है इतिहास गवाह है कि जब जब भी समाज के तूफान का रुख बदलने में पुरुष वर्ग अक्षम प्रतीत हुआ तब नारी ने हीं शक्ति और दुर्गा का रूप धारण कर समाज कल्याण का उत्तर दायित्व संभाला है। कई कार्यों में नारी नर से भी बढ़कर प्रतीत होती है राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की यह पंक्तियां निश्चय ही सत्य है
एक नहीं दो-दो मात्राएं नर से बढ़कर नारी
समाज में फैले हुए अंधविश्वास भ्रष्टाचार जातिवाद आतंकवाद व नशाखोरी आदि को जिन्हें शासन के अनेक नियम कानून तथा वीरता व तलवार से नहीं नष्ट किया जा सकता वहां भावात्मक रूप से हृदय परिवर्तन कर तथा बुद्धि चातुर्य से उन्हें निपटाया जा सकता है
आज सबसे बड़ी विडंबना यह है किनारी ही नारी प्रगति की दुश्मन बनी हुई है आज आवश्यकता है कि प्रत्येक शिक्षित और समझदार नारी अपने घर परिवार में तथा अपने आसपास के वातावरण में बड़े प्रेम और आत्मीयता के साथ समाज की संकुचित मानसिकता में परिवर्तन लाने का प्रयत्न करें यदि प्रत्येक नारी समाज सुधार की दिशा में अपने घर से ही कार्य प्रारंभ करें तो कोई कारण नहीं कि समाज में सुख व शांति का साम्राज्य ना हो
पांचवा
अपने कर्तव्य के प्रति सजग नारी के रूप में
समाज में नारी के अधिकार का आंदोलन चल पड़ा है वस्तुतः नारी का अधिकार मांगने और देने के प्रश्न से बहुत ऊपर है प्राचीन भारत की नारी समाज में अपना स्थान मांगने नहीं गई थी मंच पर खड़े होकर अपने अभावों की मांग पेश करने की उसे कोई आवश्यकता कभी नहीं हुई उसने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी भूमिका को पहचाना था जहां खड़ी होकर वह समस्त संसार को चुनौती दे सके समाज में उसका स्थान अलौकिक था वह अपने कर्तव्य समझती है इसीलिए देवी है वह त्याग करना जानती है इसीलिए साम्राज्ञी है संपूर्ण विश्व उसके वात्सल्य मय आंचल में स्थान पा सकता है इसीलिए जगन माता है । व्यक्ति परिवार समाज देश संसार सभी को अपना अपना भाग्य मिलता है ---नारी से। फिर वह सर्वस्व देने वाली कर्तव्य परायण नारी सदा अपने सामने हाथ पसारे खड़े इन भूलोक वासियों से क्या मांगे और क्यों मांगे
हमारी प्राचीन हिंदू संस्कृति में गृहस्थ जीवन को एक यज्ञ का रूप दिया गया है उस यज्ञ मैं स्त्री अर्धांगिनी के रूप में पुरुष को सहयोग प्रदान करती है कविकुलगुरु कालिदास के काव्य में निर्जन वनस्थली में ऋषिराज वशिष्ठ अपनी भार्य अरुंधति के साथ सायंकाल की होम क्रिया संपन्न कर रहे हैं नारी शिक्षा का कैसा देदीप्यमान उदाहरण है अशिक्षित नारी क्या इस प्रकार सहयोग करने में समर्थ हो सकती है यह यज्ञ का स्थल स्वरूप था परंतु यही यज्ञ की भावना जब अंतर्मुखी हो जाती है तव नारी का समस्त जीवन ही यज्ञ माय होकर एक पवित्र साधना का रूप धारण कर लेता है भगवान श्रीराम ने जब पितृवचन पालन का व्रत धारण किया तो देवी सीता ने उस यज्ञ को पूर्ण करने में उनका अनुगमन किया जीवन की साधना में सदैव अपने कर्तव्य को पहचानने वाली नारी की महिमा मंडित शक्तियों के सामने प्रकृति भी झुकती थी ब्रह्मांड की समस्त शक्तियां उसके तेज के समक्ष हतप्रभ और निष्प्रभ हो जाती थी यह सब बातें हैं अलौकिक नहीं है आधुनिक युग में भी महात्मा गांधी स्वीकारते हैं कि उनके महात्मा पनका श्रेय उन्हें नहीं अपितु कस्तूरबा को है संत शिरोमणि तुलसीदास और कुलगुरू कालिदास के कविता की महत्ता का श्रेय रत्नावली और विद्युत मा को है
होते ना कालिदास कवि
होती ना यदि विद्योत्तमा
होते ना तुलसीदास भी
यदि होती नहीं रत्नावली
शिवाजी की वीरता का श्रेय जीजाबाई को था पत्नी और मातृत्व के रूप में अपने कर्तव्यों का सजगता से पालन करती हुई नारी एक सुदृढ़ और सु संगठित राष्ट्र का निर्माण कर सकती है किसी ने ठीक ही कहा है----
सुख में दुख में
रण में वन में
छाया पति की बन जाती है
अपनी कोमल अंगुली को रथ चक्के की कील बनाती है पृथ्वी पर गिरते राजमुकुट
लख करके जिसका वीराशन है मिट जाता वसुधा पर से
अन्याय क्रूर कुटिल शासन
जिसके उज्जवल तप के आगे
झुक जाया करता इंदिरासन
है कितना गौरवशाली पद
वसुधा में हिंदू नारी का
अतः इस गौरवशाली पद को नारी सदैव भी महिमामंडित बनाए रखना चाहती है तो उसे अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहकर सदैव प्रगति पथ पर आगे बढ़ते रहना होगा श्री जयशंकर प्रसाद जी के शब्दों में
इस पथ का उद्देश्य नहीं है शांत भवन में टिक रहना किंतु पहुंचना उस उस सीमा पर जिसके आगे राह नहीं है
इति
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