The Author Neerja Pandey Follow Current Read नैना अश्क ना हो... - भाग 18 By Neerja Pandey Hindi Love Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books कॉर्पोरेट जीवन: संघर्ष और समाधान - भाग 1 पात्र: परिचयसुबह का समय था, और एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी की... इंटरनेट वाला लव - 90 कर ये भाई आ गया में अब हैपी ना. नमस्ते पंडित जी. कैसे है आप... नज़रिया “माँ किधर जा रही हो” 38 साल के युवा ने अपनी 60 वर्षीय वृद्ध... मनस्वी - भाग 1 पुरोवाक्'मनस्वी' एक शोकगाथा है एक करुण उपन्यासिका (E... गोमती, तुम बहती रहना - 6 ज़िंदगी क्या है ? पानी का बुलबुला ?लेखक द्वा... 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"प्रशांत ने दिलासा देते हुए कहा, "आंटी अंकल ठीक है बस थोड़ा कमजोरी की वजह से बेहोश हो गए थे । अब वो ठीक हैं ।" बड़ी ही सफाई से उसने आईसीयू की बात छिपा ली। साक्षी से जल्दी से एक थर्मस चाय बनाने को बोल कर वो हाथ मुंह धोने चला गया।आधे घंटे में चाय के थरमस और कुछ जरूरी चीजों के साथ पुनः प्रशांत हॉस्पिटल पहुंच गया। डॉक्टर ने अपनी सामर्थ्य भर पूरी कोशिश की और कहा, " चौबीस घंटे बाद ही कुछ बता पाएंगे । "नव्या ने रात गहराने पर प्रशांत को घर जाने को कहा पर वो जाने को तैयार नही हुआ, तो नव्या ने जबरदस्ती पापा को घर जाने को राजी किया। वो उन्हें किसी तरह समझा पाई की आप रात भर रेस्ट कर लो सुबह फिर आ जाना । घर पर साक्षी मम्मी और मां को कैसे संभाल पाएगी? आखिरकार नवल जी तैयार हो गए घर वापस जाने को । उनके जाने के बाद बहुत अनुरोध कर प्रशांत ने दो बिस्कुट और चाय नव्या को खिलाया। नव्या इस हालत में शांतनु जी को नही देख पा रही थी। प्रशांत की सहानुभूति देख इतनी देर से रोका गया दर्द का बांध टूट गया।वो फफक फफक कर रो पड़ी। उसे यूं रोते देख प्रशांत की आंखें भी नम हो गई। जब प्रशांत ने दिलासा देने को नव्या के कंधे पर हाथ रखा तो भवावेश नव्या उसके सीने से लग गई। प्रशांत उसके सर पर हाथ फेर शांत करने की कोशिश करता रहा। जब नव्या खुद पर कंट्रोल किया तो उसे अपनी स्तिथि का आभास हुआ, और वो "सॉरी " कहते हुए तुरंत ही अलग हो गई।प्रशांत ने बिना कुछ कहे ओके की मुद्रा में सर हिलाया।पूरी रात आईसीयू के बाहर लगे बेंच पर बैठ कर नव्या और प्रशांत ने रात बिता दी। बीच में जरा सी आंख लगी तो उसका सर अपने आप इधर उधर होने लगा। प्रशांत ने पास खिसक कर नव्या का सर अपने कंधे पर सहारे के लिए सटा लिया। बिना विरोध के उनिंदी नव्या के अपना सर प्रशांत के कंधे पर रख दिया। सोती हुई नव्या बिल्कुल बच्चों की तरह मासूम लग रही थी। आसूं की लकीरें उसके गालों पर बनी थी। वो बिल्कुल ऐसी लग रही थी जैसे कोई बालक दुखी होकर रोते रोते सो गया हो। प्रशांत का दिल चीत्कार कर रहा था। वो मन ही मन सोच रहा था, "हे प्रभु तू सीधे सादे , भोले भाले लोगों के हिस्से में ही इतना दुख क्यों भर देता है ! क्या गलती की थी इस मासूम ने जो इसका जीवन दुखों से भर दिया ।’ काश ...नव्या के लिए वो कुछ कर पता! इन्ही सोचों में गुम उसने अपनी आंखे बंद कर ली। बंद आंखों से दो बूंद आंसू गालों को गीला कर गए।पूरी रात भगवान से विनती करते बिता सभी का कि शांतनु जी स्वस्थ हो जाए।सुबह होते ही नर्स ने आकर बताया कि आपका पेशेंट अब होश में आ गया है। उसकी हालत अब स्थिर है। डॉक्टर के राउंड पर आने के बाद अगर वो बोलेंगे तो वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाएगा।नर्स की आवाज उन दोनों को प्रफुल्लित कर गई। वो किसी देवी सी प्रतीत हो रही थी उन्हें । नौ बजे डॉक्टर आए और चेक अप कर उन्हे वार्ड में शिफ्ट करवा दिया। साथ ही ये हिदायत भी दी कि अभी वो मौत को मात देकर लौटे है। उनका खास ख्याल रखा जाए। उनके सामने किसी भी तरह की तनाव पूर्ण बातें नहीं होनी चाहिए। किसी तरह का स्ट्रेस उन्हें ना हो वरना अब स्थिति कंट्रोल नही हो पाएगी। नव्या और प्रशांत ने डॉक्टर को आश्वस्त किया की वो पूरा ख्याल रखेंगे उनकी बातों का। नव्या ने घर पर फोन कर ये खुश खबरी पापा को बताई। पापा ने गायत्री जी और शाश्वत की मां को ये खुशखबरी सुनाई। शाश्वत की मां जो मंदिर में बैठी पूजा कर रही थी,उठ कर बाहर आई और हॉस्पिटल जाने की इच्छा व्यक्त की। नवल जी ने कहा, " हां हां क्यों नहीं हम सभी चलेंगे। " साक्षी को आवाज लगाते हुए बोले, " बेटा तुम प्रशांत और नव्या के लिए कुछ चाय नाश्ता बना लो और तैयार हो जाओ हम सभी हॉस्पिटल चलेंगे।वार्ड में बेड पर लेटे शांतनु जी बेहद कमजोर लग रहे थे। नव्या उनके पैर के पास बैठी धीरे धीरे उनके पांव को दबा रही थी। प्रशांत स्टूल पर बैठा उनके हाथ को अपने हाथ में उंगलियों से खेल रहा था। आज शांतनु जी को फिर प्रशांत में शाश्वत की छवि दिख रही थी। वो मुग्ध हो कर कभी नव्या को देखते तो कभी प्रशांत को। इशारे से उन्होंने नव्या को अपने पास बुलाया । नव्या पास आकर खड़ी हो गई बोली, " जी पापा कुछ चाहिए?""हां " में सर हिला वो अपने पास आकर बैठने का इशारा करते है ।नव्या वहीं बेड पर बैठ जाती है।शांतनु जी नव्या का हाथ अपने हाथ में लेते हैं और प्रशांत का हाथ जो पहले से हीं उनके हाथ में था देने की कोशिश करते हैं। उनका मंतव्य समझ नव्या अपना हाथ पीछे खींचने की कोशिश करती है।नव्या का विरोध देख वे अपनी अश्रु पूर्ण आंखों से देखते हुए कहते हैं ,"बेटा ये मरते हुए बाप की आखिरी इच्छा है । क्या तुम पूरा नही करोगी?"ये सुन कर नव्या तड़प उठी, उनके होठों पर उंगली रखते हुए बोली,"पापा आप ऐसा मत बोलिए आपको कुछ भी नही होगा । मेरे लिए आप सब हीं बहुत है । मुझे और किसी सहारे की आवश्यकता नही है।"शांतनु जी थके थके स्वर में धीरे से बोले, " ये प्रशांत नही मेरा शाश्वत हीं है। मैं इसे और तुम्हे अलग अलग नही देख सकता। बेटा मेरी इच्छा पूरी नहीं करोगी? " इतना कहते कहते उनकी सांसे तेज तेज चलने लगी।वो हांफने लगे। नव्या घबरा गई । उसके कानों में डॉक्टर की हिदायत गूंजने लगी की इन्हें कोई स्ट्रेस ना दिया जाए।वो डॉक्टर डॉक्टर चिलाने लगी बोली, " पापा आप बिलकुल परेशान ना हो । जैसा आप चाहेंगे वैसा हीं होगा। बस आप ठीक हो जाए । "वो रोते हुए बार बार दुहराने लगी, "पापा जो आप चाहेंगे वही होगा।शांतनु जी ने चैन की सांस ली उनकी उखाड़ती सांसें धीरे धीरे सामान्य होने लगी। नव्या का हाथ प्रशांत के हाथ में दे उनके चेहरे पर गहरा संतोष था।तभी नवल जी साक्षी, गायत्री और शाश्वत की मां के साथ रूम में आते हैं । प्रशांत के हाथों में नव्या का हाथ देख इस दुख की घड़ी में भी सभी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।नव्या सब को देख अपना हाथ छुड़ा बगल में खड़ी हो जाती है। प्रशांत भी खुद उठ कर नवल जी को बैठने को कहता है। नवल जी और शांतनु जी की निगाहें मिलती है दोनो इस जीत पर मुस्कुरा उठते है।ये खबर निर्मला जी को भी नवल जी देते हैं और शीघ्र आगरा आने का अनुरोध करते है। निर्मला जी तो नव्या को पहले हीं पसंद करती थी।इस खबर को सुन जल्दी से जल्दी आने का वादा किया।दो दिन बाद शांतनु जी भी डिस्चार्ज हो कर घर आ गए।निर्मला जी भी दिल्ली से आ गई थी। शुभ मुहूर्त देख कर एक हफ्ते बाद दोनों की मंदिर में शादी कर दी गई।ये सब जल्दी करने की वजह ये भी थी की कहीं शांतनु जी के ठीक होने पर नव्या फिर से मुकर ना जाए।प्रशांत और नव्या को दूल्हा दुल्हन के रूप में देख सभी की खुशी का ठिकाना ना था। ‹ Previous Chapterनैना अश्क ना हो... - भाग 17 Download Our App