The Author राज कुमार कांदु Follow Current Read इंसानियत - एक धर्म - 36 By राज कुमार कांदु Hindi Fiction Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books स्वयंवधू - 27 सुहासिनी चुपके से नीचे चली गई। हवा की तरह चलने का गुण विरासत... ग्रीन मेन “शंकर चाचा, ज़ल्दी से दरवाज़ा खोलिए!” बाहर से कोई इंसान के चिल... नफ़रत-ए-इश्क - 7 अग्निहोत्री हाउसविराट तूफान की तेजी से गाड़ी ड्राइव कर 30 मि... स्मृतियों का सत्य किशोर काका जल्दी-जल्दी अपनी चाय की लारी का सामान समेट रहे थे... मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२ मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२मुनस्यारी से लौटते हुये हिमाल... 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क्या किया उन काफिरों ने तेरे लिए ? ” बांगी साहब अभी भी तैश में ही थे ।तभी रजिया ने एक पर्ची लाकर असलम के हाथों पर रख दिया । असलम ने एक नजर उस पर्ची पर डाली और उठकर बांगी साहब के सामने खड़ा हो गया । पर्ची बांगी साहब की नजरों के सामने लहराते हुए असलम ने सर्द लहजे में कहा ” बांगी साहब ! लगता है आपकी नजरों पर दकियानूसी विचारों की मोटे कपड़े की पट्टी बंधी हुई जिसकी वजह से आपको वह नहीं दिखाई दे रहा जो मैं साफ साफ देख रहा हूँ और महसूस कर रहा हूँ । लीजिये यह देखिए काफिरों की इंसानियत का एक सबूत इस कागज़ के टुकड़े की शक्ल में और दूसरा यह रहा आपका असलम आपके सामने खड़ा जीता जागता सबूत । ”” पता नहीं क्या बके जा रहा है ये और ये तू हमें क्या दिखाने की कोशिश कर रहा है ? ” अबकी रहमान चाचा ने टोका था ।असलम ने उस कागज के टुकड़े को करीने से तह करके रजिया जो फिर से थमाते हुए रहमान चाचा से कहा ” रहमान चाचा ! अभी अभी बांगी साहब ने सवाल किया था ‘ क्या किया है उन काफिरों ने तेरे लिए ? ‘ उसीका जवाब देने की कोशिश कर रहा हूँ । आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि इस हादसे के बाद जब दरोगा साहब तहकीकात करने के लिये आये तब उस लड़की ने अपने शौहर के घायल होने की परवाह नहीं करते हुए मेरा गुनाह अपने सिर लेने की पुरजोर कोशिश की । लेकिन मेरे इकबालिया बयान जिसमें सारी बात सच सच बताते हुए मैंने अपना गुनाह कबूल कर लिया था उसकी वजह से दरोगा ने मुझे गिरफ्तार कर लिया था । उस लड़की का शौहर अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा था और धन्य है वो देवी जो वहां अदालत में मुझे जमानत दिलाने की जंग लड़ रही थी । वह आपकी नजर में काफ़िर हो सकती है बांगी साहब लेकिन मेरी नजर में वह इंसानियत की देवी है । उसीकी नेकनीयती और भलमनसाहत की वजह से शहर के इतने नामी वकील पंडित जी ने मेरे जमानत के लिए पुरजोर पैरवी की और नतीजा आपके सामने है । इतना ही नहीं अदालत द्वारा जमानत का आदेश देने के बाद जमानत के लिए पच्चीस हजार रुपयों का इंतजाम भी उसी देवी ने किया । क्या जरूरत थी उसे यह सब करने की ? वह चाहती तो इस पूरी घटना से खुद को बखूबी अलग रख सकती थी । अगर दिल नहीं मानता तो सहानुभूति के दो शब्द बोलकर अपनी जिम्मेदारी खत्म समझ लेती । कुछ रकम इनाम में भी दे देती लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया बल्कि उसने पूरी शिद्दत से और दिल से हर तरह से मेरी मदद की है । रजिया की हौसलाअफजाई की है । यह जानकर भी कि हम मुस्लिम हैं उसने हमसे और रजिया से एक प्यारा सा रिश्ता जोड़ लिया है ‘ भाई जान और भाभी कहती है वो हमें । और आप कहते हैं काफ़िर उन्हें । अगर काफ़िर ऐसे होते हैं तो ऐसे काफिरों पर मैं सौ आलम जैसे दरिंदे को कुरबान कर दूं । ” असलम की सांसें तेज तेज चल रही थीं । वहां सन्नाटा पसर गया था । बांगी साहब और रहमान चाचा के चेहरे की रंगत उड़ी हुई लग रही थी । उनसे कुछ कहते नहीं बन रहा था । कुछ देर की खामोशी के बाद असलम ने फिर से कहना शुरू किया ” बांगी साहब ! जरा उस शेठ का नाम बताना जिसकी कंपनी में आपका बेटा मुलाजिम है । अगर मैं गलत नहीं हूं तो शायद वह भी काफ़िर ही है । वही काफ़िर जिसने आपके बेटे को बिना सूद के एक बड़ी रकम कर्ज दिया था और आप अपनी बेटी के हाथ पीले कर सके थे । ” और फिर रहमान की तरफ मुड़ते हुए बोला ” और आप कैसे भूल गए उस काफ़िर को जिसने आपके बेटे को शहर में तब बचाया था जब किसी कार के धक्के से घायल आपका बेटा सुनसान सड़क पर खून से लथपथ पड़ा हुआ था । वहां से गुजर रहे कोई मिस्टर नारंग थे जिन्होंने अपने ड्राइवर की मदद से उसे अपनी गाड़ी में डालकर अस्पताल में भर्ती करवाया था और अपनी पहचान से तुरंत ही उसका इलाज भी शुरू करवा दिया था । सोचो अगर उसने यह मदद नहीं की होती तो क्या होता आपके बेटे का ? और आप लोग उन्हें कहते हो काफ़िर । सिर्फ कहते ही नहीं हो बल्कि आनेवाली पीढ़ी को उनसे नफरत करने की ही तालीम देते हो । ”असलम ने रजिया को पानी लाने का ईशारा किया और फिर बोला ” कुछ गिनती के गुनाहगारों की वजह से एक पूरी कौम को शक की निगाह से देखना बिल्कुल भी जायज नहीं है । और जिन्हें आप काफ़िर कहकर नफरत कर रहे हो , यह मत भूलो कि वह भी यहीं पैदा हुए यहीं के बाशिंदे हैं , हमवतन हैं । और हमवतनों से कैसी नफरत ? इन काफिरों की भलमनसाहत व इंसानियत का शैदाई होने को उनकी बुजदिली समझना बहुत बड़ी भूल है बांगी साहब ! यह मत भूलो कि इन काफिरों की भलमनसाहत की वजह से ही आज दुनिया में अगर कहीं सबसे ज्यादा आजादी और इज्जत से मुस्लिम रह रहा है और सबसे ज्यादा महफूज कहीं है तो वह सिर्फ और सिर्फ हमारा देश है । अमन और चैन हमें विरासत में मिली है और आपसे हाथ जोड़कर मेरी इल्तीजा है कि मेरे प्यारे वतन की आबोहवा को यहां के अमन चैन को अपनी नफरतों की भेंट न चढ़ाओ बांगी साहब , यहां की गंगा जमुनी तहजीब को जिंदा रहने दो । इसी में हमारी और सभी की भलाई है ।मुझे तो डर है कि अगर इसी तरह आप नफरतों के बारूद में पलीते लगाते रहेंगे तो किसी दिन यह एक बड़े विस्फोट के रूप में फट पड़ेगा और तब खत्म हो जाएगी काफिरों की सहनशीलता , उनकी इंसानियत और हैवानियत का नंगा नाच शुरू हो जाएगा पूरे देश भर में । इससे पहले कि हमारा देश भी यमन , सीरिया और बर्मा की राह पर चल पड़े आप लोग अपनी राह बदल लो । नए नौनिहालों को इंसानियत और इस्लाम की तालीम दो । झूठे जिहाद की नहीं बांगी साहब । नफरतें फैलाओगे तो नफरत ही पाओगे । जो दूसरों से पाना चाहते हो वही दूसरों को देना भी सीखो । खुशियां बांटो और खुशियां पाओ यही कुदरत का और इंसानियत का तकाजा है । अगर आप लोग समझ गए हों तो ठीक है नहीं तो कोई बात नहीं । मैं इससे ज्यादा आप लोगों को नहीं समझा सकता । ”कहकर असलम खटिये पर से उठा और घर में जाने की कोशिश करने लगा । तभी रजिया पानी का गिलास हाथ में थामे हुए बाहर निकली । ‹ Previous Chapterइंसानियत - एक धर्म - 35 › Next Chapter इंसानियत - एक धर्म - 37 Download Our App