The Author राज कुमार कांदु Follow Current Read इंसानियत - एक धर्म - 33 By राज कुमार कांदु Hindi Fiction Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books स्वयंवधू - 27 सुहासिनी चुपके से नीचे चली गई। हवा की तरह चलने का गुण विरासत... ग्रीन मेन “शंकर चाचा, ज़ल्दी से दरवाज़ा खोलिए!” बाहर से कोई इंसान के चिल... नफ़रत-ए-इश्क - 7 अग्निहोत्री हाउसविराट तूफान की तेजी से गाड़ी ड्राइव कर 30 मि... स्मृतियों का सत्य किशोर काका जल्दी-जल्दी अपनी चाय की लारी का सामान समेट रहे थे... मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२ मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२मुनस्यारी से लौटते हुये हिमाल... 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”बिफरते हुए बांगी साहब बोले ” क्या मर्दुदों की तरह इंसानियत ,इंसानियत की रट लगा रखी है । क्या इस्लाम की कोई ताकत नहीं ? ”असलम मुस्कुराया और उसकी मुकुराहट ने आग में घी का काम किया । उन्हें क्या पता था कि असलम किस मिट्टी का बना हुआ था ?” रहमान चाचा ! बांगी साहब ! हमने कब कहा कि इस्लाम की कोई ताकत नहीं है ? ” असलम ने मजे लेते हुए हल्के फुल्के ढंग से अपनी बात कहना जारी रखा ” आज दुनिया के 58 मुल्कों में हमारी ही सल्तनत है । हमारा इस्लाम ही सत्ता में है इन मुल्कों में लेकिन क्या आप लोगों ने देखा है उनका हाल जो इन देशों के बाशिंदे हैं ? बांगी मियां ! आप तो ठहरे इस्लाम के सच्चे सिपाही सो मैं आपको तो नहीं कहूंगा टी वी देखने के लिए क्योंकि इस्लाम में तो टी वी देखना भी हराम है लेकिन रहमान चाचा तो अक्सर टी वी में खबरें वगैरह देखते रहते हैं तो उन्हें पता ही होगा कि हमारे इस शांतिप्रिय धर्म की वजह से आज दुनिया के कई मुल्कों में अशांति ,गदर ,मारकाट मची हुई है । हमारा देश जहां मंगल तक पहुंचने में कामयाब हो गया है बहुत से मुस्लिम देश अपने नागरिकों को जरूरत की चीजें भी मुहैया नहीं करा पाते । ”एक पल के लिए असलम रुका था । उसके रुकते ही रहमान चाचा खटिये से उठने की कोशिश करते हुए बोले ” चलो लड्डन मियां ! इन लौंडों से बहस करना बेकार है । ” लेकिन उनका हाथ पकड़ कर उन्हें बैठने का इशारा करते हुए असलम ने फिर कुछ कहना शुरू किया ही था कि तभी बांगी मियां चीख पड़े ” अरे असलम मियां ! खुदा के कहर से डरो ! क्यों झूठ बोल रहे हो ? इस्लाम के नाम पर ताने तो ऐसे दे रहे हो जैसे तुम्हारे देश में सबकी सब जरूरतें पूरी हो गयी हैं । ”” बस बांगी साहब ! यही मानसिकता है तुम्हारे जैसे ढोंगी मुसलमानों की । खुदा का शुक्र है उसने आपके मुंह से सच्चाई कबूल करवा ही दी । ” असलम ने बांगी साहब को टोका था ।लेकिन उसकी बात समझे बिना ही बांगी साहब असलम की बात सुनकर चौंक पड़े ” क्या मतलब है तुम्हारा ? कैसी सच्चाई ? ”असलम की मुस्कुराहट गहरी हो गयी थी और एक विशेष अंदाज में बांगी मियां के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला ” वो क्या है न बांगी साहब जब मैं आपको सच्चाई बताऊंगा तो आप उससे तुरंत मुकर जाओगे क्योंकि अब बोलने में आप दिमाग का इस्तेमाल करोगे जिसका इस्तेमाल आपने कुछ देर पहले थोड़े समय के लिए बंद कर दिया था । और ये सच्चाई है कि जब जब इंसान बोलते हुए अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं करता उसके दिल की बात उसके होठों पर आ ही जाती है , सुना आपने ! दिल की बात होठों पर आ ही जाती है और यही दिल की बात आपके होंठों पर आ ही गयी । आपने कहा ‘ इस्लाम के नाम पर ताने तो ऐसे दे रहे हो जैसे तुम्हारे देश में सबकी सब जरूरतें पूरी हो गयी हैं ‘ क्या आप बता सकते हैं यहां तुम्हारे देश का क्या मतलब है ? क्या यह देश आपका नहीं है ? अरे कैसी दीनी तालीम आपने पाई है और कैसी दीनी तालीम आप मदरसे में तालीम हासिल करने आये मोमिनों को आप देते होंगे ? आपके अल्फाज सारी सच्चाई बयां कर रहे हैं बांगी साहब ! जब आप जैसा पढ़ा लिखा दीनी तालीम हासिल शख्स अपने मादरेवतन को अपना कहने से परहेज करता है तो फिर इस्लाम पर शक होता है । लेकिन गलत इस्लाम नहीं गलत आप हैं बांगी साहब ! गलत आप हैं । इस्लाम आपस में मोहब्बत का पैगाम है , इस्लाम दुनिया में अमन और भाईचारे का नाम है लेकिन तुम्हारे जैसे इस्लाम के चंद रहबरों ने इस्लाम को पूरी दुनिया में रुसवा करने का काम किया है और कर रहे हैं । मुझे फख्र है खुद पर बांगी साहब कि मैं भी एक मुस्लिम हूँ लेकिन आप की तरह नहीं । सिर्फ चेहरे पर नूर के नाम पर दाढ़ी रख लेने से नूर नहीं आ जाता है । उसके लिए आपको खुदावंद करीम के बताए रास्ते पर चलना होता है । इस्लाम में कहां लिखा है कि सजदा करना गुनाह है ? अगर गुनाह नहीं है सजदे करना तो फिर अपने मादरेवतन का सजदा करना इस्लाम में कैसे गुनाह हो गया ? क्या यह गुनाह इसलिए है क्योंकि हमारे देश का नाम हिंदुस्तान या भारत है और आपकी नजरों में जो काफ़िर हैं वो अपने वतन की पूजा करते हैं । कुछ मुस्लिम विद्वानों ने मुल्क में इस्लाम की मिट्टी और पलीत की जब उन्होंने बेकार की जिद दिखाई । एक बहुत बड़े और बहुत मशहूर इस्लामी शख्सियत ने अपने मादरेवतन को सजदा करने के सरकार के सुझाव का मुखालफत यह कहकर किया था कि ‘ यह हमारे देश की संविधान में कहीं नहीं लिखा है । ‘ बहुत सही कहा था उन साहब ने लेकिन मैं पुछता हूं क्या आप सभी काम संविधान के दायरे में ही करते हो ? नहीं ! संविधान के नाम पर आप ‘ एक देश एक कानून ‘ का समर्थन क्यों नहीं करते ? आप चार चार शादियां करते हैं ,कहते हैं इस्लाम में जायज है हालांकि यह भी आप लोग सरासर झूठ बोलते हैं चार शादियां इस्लाम में जायज हैं लेकिन उनकी कुछ शर्तें हैं , तब तो आप ये नहीं कहते कि हम एक से ज्यादा शादी नहीं करेंगे क्योंकि संविधान इसकी इजाजत नहीं देता । अभी जब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के मसले पर अपना फैसला सुनाया तो हमारे देश के सभी हिस्सों से मुस्लिम बहनों ने कोर्ट के इस फैसले का जी खोलकर इस्तकबाल किया । अगर किसी ने देश के सबसे बड़े कोर्ट के फैसले से भी अपनी रजामंदी नहीं दर्शायी तो वो थे चंद गिने हुए आप जैसे इस्लाम के ठेकेदार ।मैं पुछता हूँ …..” कहते हुए असलम थोड़ी देर के लिए रुका । अचानक खांसी आ जाने की वजह से उसकी बात अधुरी रह गयी । रजिया तेजी से पानी लाने के लिए घर में चली गयी । ‹ Previous Chapterइंसानियत - एक धर्म - 32 › Next Chapter इंसानियत - एक धर्म - 34 Download Our App