Baingan - 26 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | बैंगन - 26

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बैंगन - 26

मुझे संदेह तो था ही, पर जब तक मैं इसकी सत्यता प्रमाणित न कर लूं, मैं किसी से कुछ कहना नहीं चाहता था।
तन्मय ने मुझे बताया था कि जब भाई के बंगले पर उनकी नौकरानी से बात करते हुए किसी के आ जाने पर लड़की ने उसे लगभग धकेल कर वाशरूम में बंद कर दिया तो वो बुरी तरह डर गया था। वो पल - पल कांप रहा था कि अब न जाने क्या होगा।
क्या थोड़ी ही देर में घर के और लोगों के आ जाने के बाद उसे वहां से सुरक्षित निकल पाने का मौका मिलेगा? कहीं ऐसा न हो कि घर का कोई और व्यक्ति आकर दरवाज़ा खोले। ऐसे में अचानक वो क्या करेगा? उससे मारपीट होगी या पुलिस को बुला कर उसे चोरी के इल्ज़ाम में सीधे जेल ही भेज दिया जाएगा। क्या नौकरानी उसका पक्ष लेकर उसे बचा पाएगी? खुद उसकी नौकरी पर भी तो संकट आ जाएगा।
नौकरानी उसे क्यों बचाएगी? उन दोनों का आपस में रिश्ता ही क्या है?
उसे भी क्या सूझी जो लड़की से बात करते करते उसका हाथ ही पकड़ लिया।
उन दोनों के बीच कहीं कुछ था थोड़े ही। वो तो अचानक एकांत पाकर अकेली लड़की को देख वो आपा खो बैठा।
फ़िर लड़की भी तो मटरा - मटरा के उससे बातें कर रही थी। लड़के की हिम्मत तो उसी ने बढ़ाई। वो तो गनीमत समझो जो तन्मय ने उसकी कलाई ही पकड़ी। उसका मन तो लड़की की कमर पर हाथ लगा देने का था। कितनी पतली सी थी। बेहद लंबी भी।
तन्मय भी तो चढ़ती उम्र का जवान लड़का ठहरा। ऐसा नजारा उसने पहले कभी देखा ही कहां था, कि लंबा चौड़ा महल सा सुनसान बंगला हो और उसमें अकेली जवान लड़की।
लड़की भी ऐसी जिसकी चोली और घाघरे के बीच पूरे एक फीट का अंतर। पेट क्या, जैसे कोई कीमती पत्थर की शिला जड़ी हो।
तन्मय को लगने लगा कि अगर वो पकड़ में आया तो लड़की हरगिज़ उसका पक्ष नहीं लेगी। उसे बचाने को कुछ नहीं करेगी। कोई बहाना नहीं गढ़ेगी। बल्कि उसे तो लग रहा था कि कहीं लड़की ने उसे फंसाने के लिए ही वहां न धकेल दिया हो।
उसकी तरफ मुस्करा कर देखना, उसके फूलों की तारीफ़ करना, बात करते हुए सटने की हद तक समीप आ जाना, ये सब तो पैंतरे होते हैं।
सोचता हुआ तन्मय वाशरूम से निकलने की जुगत भिड़ा रहा था और भीतर की एक एक चीज़ का जायज़ा लेकर देख रहा था।
इसी समय तन्मय का हाथ ग़लती से उस स्विच पर पड़ गया। उसने खेल खेल में स्विच घुमा भी डाला।
और फ़िर वही हुआ। वाशरूम थरथराने लगा। बिल्कुल ऐसे, जैसे कोई लिफ्ट हो। इतना ही नहीं, बल्कि तन्मय को तो वो किसी ट्रॉली की तरह हिलता - डुलता लगा। एक सायरन भी बजा।
और फिर एकाएक जब वाशरूम स्थिर हुआ तो उसका दरवाज़ा खुल गया। लड़की आसपास कहीं दिखाई नहीं दी। पर तन्मय तीर की तरह बाहर निकला।
लेकिन ये क्या?
ये तो वो जगह नहीं थी जहां खड़े होकर उसने लड़की का हाथ पकड़ा था। तो क्या सचमुच ये वाशरूम कोई सतह पर चलने वाली लिफ्ट ही थी?
तन्मय से ये बात सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए । मुझे याद आया कि उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ होगा जब मैं वाशरूम से निकला तो घर के किसी दूसरे हिस्से के दरवाजे से बाहर आ गया और वहां मुझे तलाशी लेते हुए पुलिस वाले दिखाई दिए, जबकि घर के बाक़ी लोगों को कुछ पता तक नहीं चला।
तन्मय के साथ घटी घटना ने मुझे कुछ ऐसा संकेत दे दिया कि अब मैं फ़िर से भाई के बंगले पर पहुंचने के लिए उतावला हो गया।
ज़रूर ये कोई ऐसा ही रहस्य था कि बंगले के इस वाशरूम से घर का कोई हिस्सा खुफिया तौर पर जुड़ा हुआ था और उसके बारे में भाभी व बच्चे कुछ नहीं जानते थे।
मेरे दिमाग़ में जैसे हज़ार वाट का कोई बल्ब जल गया।