Boiling water vortex - 10 - sharafat in Hindi Moral Stories by Harish Kumar Amit books and stories PDF | खौलते पानी का भंवर - 10 - शराफ़त

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खौलते पानी का भंवर - 10 - शराफ़त

शराफ़त

भागकर लोकल बस में चढ़ने के बाद जब उसने कंडक्टर से टिकट ले ही ली है, तो पोजीशन लेने के लिए वह इधर-उधर नज़रें दौड़ाने लगा है. पिछले दरवाज़े के सामने वाली जगह पर तो आदमी ही आदमी हैं, कोई लड़की या औरत दिखाई नहीं दे रही. हाँ, महिलाओं वाली सीटों के पास एक लड़की व दो-तीन औरतें ज़रूर खड़ी हैं. औरतों में से एक तो वाकई बहुत ख़ूबसूरत है. वह आगे बढ़कर उसी औरत की बगल में खड़ा हो गया है.

अभी वह उससे कुछ दूरी बनाये हुए है. मज़े लेने धीरे-धीरे शुरू करेगा. या हो सकता है कि इस बीच कोई इससे ज़्यादा सुंदर युवती बस में चढ़ जाए तो वहाँ किस्मत आज़मायेगा. बस में भीड़ बढ़ती जा रही है. दफ़्तर जाने का वक़्त है. सब हड़बड़ी में हैं. भीड़ की परवाह किसी को नहीं है. बस बस मिलनी चाहिए.

बढ़ते-बढ़ते भीड़ काफी बढ़ गयी है. अब उसने धीरे-धीरे उस औरत से सटना शुरू किया है. लेकिन बड़े नामालूम तरीके से. उस औरत ने कोई प्रतिवाद नहीं किया. इससे उसके हौंसले बढ़े हैं और धीरे-धीरे उसने अपने शरीर का काफी हिस्सा उस औरत के जिस्म से सटा दिया हैं. औरत ने एक-दो बार उसकी तरफ देखा है और फिर दूसरी तरफ देखने लगी है. वह बीच-बीच में औरत की ओर भी देख लेता है. अन्यथा वह यही ज़ाहिर कर रहा है कि उसका ध्यान कहीं और है.

औरत के स्पर्श से उसके सारे शरीर में उत्तेजना की लहरें ठाठें मारने लगी है. उसका जी चाहने लगा है कि वह आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में भींच ले और......... मगर यह सब कल्पना वह अभी कर ही रहा है कि उसका स्वप्न भंग हो गया है जब औरत उसे अपने पास से हटकर दरवाजे की तरफ जाती दिखाई दी है.

पहले तो एकदम से यह बात उसके दिमाग़ में आई है कि कहीं उसे उसके खूंखार विचारों का पता तो नहीं चल गया. मगर जब उसने देखा कि वह बस से उतरने की तैयारी में है तो उसकी साँस में साँस आयी है.

यह औरत अगर रोज़ इसी बस में आने लगे तो कैसा रहे? उसके दिल में ख़याल आया है. देखो, कैसे तिकड़म भिड़ती है. नहीं तो बस पकड़ने का अपना ख़ुद का टाइम ‘एडजस्ट’ करना पड़ेगा - वह सोच रहा है.

उस औरत के चले जाने के बाद उसने बेचैनी से इधर-उधर नज़र दौड़ाई है. बस के खड़े हुए यात्रियों में स्त्री जाति की कोई सदस्या उसे नज़र नहीं आ रही. उसकी बेचैनी बढ़ने लगी है. बस की सीटों पर बैठी औरतों पर उसने नज़र डाली है. सुन्दर, मध्यम और असुन्दर का मिश्रण उसे नजर आया है. उसने इन बैठी हुई औरतों में से किसी के साथ सटना चाहा है, पर ऐसा करना उसे संभव नहीं लग रहा. क्योंकि पहले से ही काफी लोग उन सीटों के पास सटे खडे हैं. एक-दो सीटों पर स्त्रियाँ खिड़की की तरफ बैठी हैं और उसके साथ वाली सीट पर पुरूष बैठे हैं. वह ऐसी ही एक सीट के पास जाकर खड़ा हो गया है.

बड़े अरमान और असंतोष से वह बस के अगले और पिछले दरवाज़ों की ओर देख रहा है. दो-तीन स्टॉप्स निकल गये हैं, पर कोई भी लड़की या स्त्री बस में चढ़ने वालों में उसे नज़र नहीं आई.

आखिर चार स्टॉप्स के बाद बस जब रूकी है, तो पिछले दरवाजे से चढ़ने वालों की भीड़ में उसे साड़ी का रंगीन पल्ला भी दिखाई दिया है. उसके दिल की धड़कन तेज हो गई है. वह उत्सुकता से चढ़ने वाली को देखने की कोशिश करने लगा है. लेकिन जैसे ही उसकी उत्सुकता खत्म हुई है उसका दिल बुझ गया है. यह तो कोई अधेड़-सी, मोटी और बदसूरत औरत निकली है, जिसकी तरफ देखना भी वह पसंद न करे.

वह औरत टिकट लेने के बाद उसी के पास आकर खड़ी हो गयी है. ज्यादा भीड़ होने की वजह से उस औरत को मजबूरन उससे सटना पड़ रहा है. उसका जी मिचलाने लगा है और वह प्रयत्नपूर्वक उससे दूर हट गया है.

उसने घड़ी देखी है - साढ़े नौ बजने वाले हैं. इसका मतलब उसका सफ़र बस बीस मिनटों का ही रह गया है. तभी, जिस सीट के पास वह खड़ा है, वहाँ बैठा अधेड़ बस से उतरने के लिए उठ खड़ा हुआ है. वह एकदम से उस सीट की तरफ लपक लिया है. कुछ इसलिए भी कि उस अधेड़ के साथ वाली सीट पर बैठी खूबसूरत-सी नवयौवना पर उसकी नज़र काफी पहले से थी. झपटकर वह सीट पर बैठ तो गया है, पर शराफ़त का पल्लू अभी उसने छोड़ा नहीं. अभी एकदम से एक्शन में आना ठीक नहीं. अभी तो वह उस पर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करेगा. हाँ, सिर घुमाकर बाहर सड़क पर देखने का-सा अभिनय करते हुए उसने उस नवयौवना को एक बार निहार ज़रूर लिया है, पर वह निहारना ही उसे काफी उत्तेजित कर गया है.

एक-दो मिनट तो वह उस नवयुवती से हटकर बैठा रहा है. उसके बाद ज्यों ही बस ने मोड़ लिया है, वह उसके साथ थोड़ा-सा सट गया है. मोड़ काट चुकने के बाद बस के सीधा हो जाने पर भी वह उससे सटा ही रहा है. पर अभी यह सटना बड़े नामालूम तरीके का है. अभी वह उसकी प्रतिक्रिया देखने के चक्कर में है. उसके सटे रहने पर लड़की थोड़ा-सा खिसककर दूसरी तरफ हट गयी है. उसे मायूसी-सी हुई है पर यूँ हिम्मत हारने वालों में वह नहीं है. दो-एक मिनट बाद उसने उससे सटने की कोशिश फिर से शुरू कर दी है. इस बार वह पहले की अपेक्षा ज्यादा सटा है. मगर वह लड़की फिर खिसककर उससे दूर हट गयी है. साथ ही उसने उसे सख़्त नजरों से घूरकर भी देखा है. ‘यहाँ तो दाल गलती नजर नहीं आ रही’ सोचते हुए अनमने भाव से वह बैठा रहा है.

एक स्टॉप के बाद लड़की बस से उतरने के लिए सीट से खड़ी हो गई है. तभी एक वृद्ध ने उस लड़की की सीट पर खिसक जाने का इशारा किया हैं, पर वह उधर नहीं खिसका और उसने वृद्ध को उस लड़की की सीट पर जाने के लिए कह दिया है. फिर अपने आसपास खड़ी सवारियों पर उसने नज़र डाली है कि कहीं कोई खूबसूरत-सी लड़की-वड़की हो तो उसे अपने साथ एडजस्ट करवा ले, पर उसके हाथ निराशा ही लगी है. वह अनमने भाव से सामने की सीट पर बैठी औरत को देखते हुए सफ़र करने लगा है.

पर उसका यह अनमनापन थोड़ी ही देर में दूर हो गया है जब उसने देखा है कि जींस पहने हुए एक आधुनिका उसकी सीट के पास आकर खड़ी हो गयी है. वह झट से तिरछा होकर बैठते हुए बोला है, ‘‘आइए मैडम, एडजस्ट हो जाइए.’’ लड़की बड़ी बेतकल्लुफी से उसके साथ तिरछी होकर बैठ गयी है. लड़की के शरीर से आ रही सेंट की धीमी-धीमी मादक सुगंध उसे बहुत अच्छी लग रही है. लड़की का शरीर उससे पूरी तरह सटा हुआ है. वह बहुत उत्तेजित-सा महसूस करने लगा है. मगर तभी उसकी उत्तेजना पर जैसे पानी का छींटा पड़ गया है, क्योंकि उस आधुनिका के पास एक खूबसूरत-सा नौजवान आकर खड़ा हो गया है और बड़ी बेशर्मी से उससे सटने की कोशिशें करने लगा है. उसकी उत्तेजना की लहरें धीरे-धीरे मंद पड़ने लगी हैं. उसकी जगह तनाव ने ले ली है.

लड़की के मनोभावों को जानने के लिए उसने बहाने से उसके मुँह की ओर देखा है. वह उसे निर्लिप्त-सी लगी है. इससे उसे ढांढस बंधा है और उसके तनाव पर उत्तेजना का रंग चढ़ने लगा है. वह लड़की से कुछ और अच्छी तरह सट गया है. लड़की ने कोई प्रतिवाद नहीं किया और उससे उसी तरह चिपककर बैठी रही है.

तभी उसके साथ की सीट पर बैठा वृद्ध उतरने के लिए उठ खड़ा हुआ है. अब उसे उस आदमी की सीट पर खिसकना पड़ा है. हालाँकि लड़की अब भी उसकी बगल में बैठी है, पर उन दोनों के बीच का स्पर्श अब उतना प्रगाढ़ नहीं रह गया. उसने लड़की से थोड़ा और सटने की कोशिश की है. उसे लगा है कि लड़की भी उससे कुछ और सट गयी है. वह बड़ा उत्तेजित-सा हो उठा है. उसके जी में आने लगा है कि वह हाथ बढ़ाकर लड़की का मुँह अपनी ओर करके उसका गहरा-सा चुम्बन ले ले. पर तभी अपने दिवास्वप्न से वह चौंक पड़ा है क्योंकि लड़की बस से उतरने की तैयारी करती नजर आई है और फिर अगले ही क्षण सीट से उठकर अगले दरवाज़े की ओर जाने की कशमकश करती नजर आने लगी है. लड़की की सीट पर अब वही खूबसूरत नौजवान बैठ गया है.

तभी पिछले दरवाज़े की तरफ से किसी लड़की के जोर-जोर से बोलने की आवाज़ सुनाई पड़ी है. लोगों की गरदनें एकदम से पीछे घूम गयी हैं. एक-दो लोग तो अपनी-अपनी सीट रोककर मामला जानने के लिए पीछे की तरफ भी गए हैं. वह अपनी सीट पर बैठा-बैठा पीछे का हाल देखने की कोशिश कर रहा है. पता चला है कि किसी लड़के ने बस में चढ़ रही लड़की को छेड़ दिया था और प्रतिक्रिया-स्वरूप वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हुए कुछ कह रही थी. मामले पर लोग अपनी राय देने लगे हैं. वह भी आगे वाली सीट पर बैठे एक अधेड़-से सज्जन से बड़े मासूमियत भरे लहज़े में कहने लगा है, ‘‘लड़कियों का तो लोकल बसों में सफ़र करने का हाल ही नहीं रह गया जी! क्या जमाना आ गया है!’’

 

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